दो दोस्तों ने नौकरी छोड़ शुरू की अपनी कंपनी, हजारों साल पुरानी परंपरा से बनाते हैं घर

Vinoth Kumar & Shreenath Gautam, Founders of Bhutha Architects

तमिलनाडु के कोयम्बटूर के रहनेवाले श्रीनाथ गौतम और विनोथ कुमार ने साल 2018 में सस्टेनेबल आर्किटेक्चर को बढ़ावा देने के लिए ‘भूता आर्किटेक्ट्स’ की शुरुआत की। पढ़ें, कहां से मिली उन्हें इसकी प्रेरणा?

श्रीनाथ गौतम और विनोथ कुमार (Bhutha Architects) तमिलनाडु के कोयम्बटूर के रहनेवाले हैं। दोनों ने स्थानीय एसवीएस स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर से एक साथ पढ़ाई की। साल 2015 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने ऑरोविले में 3 सालों तक साथ काम किया।

यहां की बेहद ही साधारण जीवनशैली ने उन्हें काफी प्रभावित किया। वहां रहते हुए इन दोनों ने ऑर्गेनिक खाने से लेकर, ऑर्गेनिक कपड़ों को अपनाना शुरू कर दिया। फिर, 2018 में उन्होंने सस्टेनेबल आर्किटेक्चर को बढ़ावा देने के लिए ‘BHUTHA Earthen Architecture Studio’ की शुरुआत की।

इसे लेकर विनोथ ने बताया, “हम खुद को गर्व से ‘प्रकृति का असली दोस्त’ मानते हैं। अपने अनुभवों के आधार पर हम अपने हर काम में एक मूल्य जोड़ना चाहते थे। इसलिए हमने भूता आर्किटेक्चर की शुरुआत की।”

वह बताते हैं कि भूता शब्द को ‘पंच भूत’ से लिया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार, हमारा शरीर- आकाश, हवा, आग, पानी और मिट्टी जैसे पांच तत्वों से मिलकर बना है। उनका मकसद, इन्हीं तत्वों के जरिए पर्यावरण और समाज के अनुकूल संरचनाओं को बनाना है।

BHUTHA Earthen Architecture Studio Founder Srinath Gowthan and Vinoth Kumar
भूता आर्किटेक्चर फर्म के संस्थापक श्रीनाथ गौतम और विनोथ कुमार

क्या है अर्थ आर्किटेक्चर?

विनोथ कहते हैं, “अर्थ आर्किटेक्चर- मिट्टी, पानी, सिस्मोग्राफी, सस्टेनेबिलिटी, केमिस्ट्री, सोशल साइंस, आर्कियोलॉजी जैसे कई विषयों का गहन अध्ययन है। भारतीय समाज में हजारों सालों से घर बनाने में इसे अपनाया जाता रहा है। लेकिन बीते कुछ दशकों में सीमेंट के अत्यधिक चलन के कारण हमारी विरासत खतरे में है और इसे बचाना हमारी जिम्मेदारी है।”

वे घरों को बनाने के लिए मिट्टी, पत्थर, चूना पत्थर, लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं और अभी तक तमिलनाडु के कई इलाकों में आठ से अधिक प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुके हैं। 

आइए जानते हैं Bhutha Architects की कुछ मुख्य परियोजनाओं के बारे मेंः

अय्या बुक सेंटर, थेनी शहर

विनोथ बताते हैं, “तमिलनाडु के थेनी शहर के रहनेवाले हरि प्रधान ने अपने सौ साल से भी अधिक पुरानी इमारत की मरम्मत के लिए हमसे करीब एक साल पहले संपर्क किया था। वह इसमें किताब और स्टेशनरी की दुकान चलाते हैं।”

Structure of AYYA BOOK CENTER by BHUTHA
अय्या बुक सेंटर की संरचना

वह कहते हैं, “दुकान की वजह से इमारत का अगला हिस्सा आकर्षक होना जरूरी था। इसे हमने ईंट, लकड़ी और कांच से बनाया है, इसलिए इसमें मिट्टी के घर जैसा फील आता है। वहीं, इसमें ऐसा इंतजाम किया गया है कि दुकानदार को सामान बेचने में ज्यादा परेशानी न हो। हमने अधिक बिकने वाले स्टेशनरी को दाईं तरफ और अनूठी किताबों को बाईं ओर रखा है।”

वह आगे बताते हैं, “दुकान के बीचों-बीच खड़े होने के बाद, इसमें बुक डिस्प्ले और जर्नल सेक्शन को आसानी से देखा जा सकता है। यहां पेन और पेन्सिल का भी डिस्प्ले है। सबको इस तरीके से व्यवस्थित किया गया है कि ग्राहकों को कुछ भी खोजने में ज्यादा दिक्कत न हो।”

अलमारियों को बनाने के लिए मुख्य रूप से कालीमारुथु (अर्जुन की लकड़ी) और देवदार की लकड़ी का उपयोग किया गया है। वहीं, सीढ़ियों को पहले इस्तेमाल किए गए लकड़ियों से बनाया गया है।

AYYA BOOK CENTER IN THENI, Tamilnadu
अय्या बुक सेंटर का प्रतीकात्मक फोटो

इसे लेकर अय्या बुक सेंटर के मालिक हरि प्रधान कहते हैं, “भूता आर्किटेक्ट्स (Bhutha Architects) से जुड़कर खुद को भाग्यशाली महसूस कर रहा हूं। वे पारंपरिक शैली को अच्छी तरह से समझते हैं। उन्होंने हमारी सौ साल से भी अधिक पुरानी इमारत को चूने के प्लास्टर और लकड़ी से दुबारा नया कर दिया है। मैं उनके काम से संतुष्ट और बैहद खुश हूं। मैं चाहता हूं कि वे ऐसे ही आगे बढ़ते रहें।”

सुंदर कोकिला रेजीडेंस, कोयम्बटूर

विनोथ कहते हैं, “इस प्रोजेक्ट की शुरुआत सात महीने पहले हुई। क्लाइंट ने हमसे इकोफ्रेंडली घर बनाने के लिए संपर्क किया था। इस घर में बरामदा, लकड़ी की रसोई, मिट्टी का फ्रिज जैसे कई पारंपरिक सिस्टम शामिल हैं। इस घर का आधा काम पूरा हो चुका है।”

वह बताते हैं, “2600 स्क्वायर फीट के इस घर को 2 एकड़ में फैले एग्रो-फॉरेस्ट्री के बीच बनाया जा रहा है, जिसमें 3 बेडरूम, 1 रसोई और बाथरूम भी हैं।” घर की दीवारों को ईंट, चूना, मिट्टी और पत्थरों से बनाया गया है। वहीं, प्लास्टर के रूप में चूना और सुर्खी का इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा, फर्श को बनाने के लिए टेराकोटा और प्राकृतिक पत्थर का इस्तेमाल किया गया है।

वह बताते हैं कि घर की छत को बनाने के लिए मैंगलोर टाइल का इस्तेमाल करने के साथ-साथ, मद्रास टेरेस रूफ तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। छतों को बनाने के लिए इस पारंपरिक तकनीक में लकड़ी, ईंट और चूने का इस्तेमाल किया जाता है।

Srinath Gautam working with his colleagues at the construction site
कंस्ट्रक्शन साइट पर अपने साथियों के साथ काम करते श्रीनाथ गौतम

वह बताते हैं, “सीमेंट से इस तरह से घर बनाने में करीब 70 लाख का खर्च आता है, जबकि अगर आप हमारी तकनीक (Bhutha Architects) से घर बनाते हैं तो 60 लाख का खर्च आएगा।” 

Bhutha Architects खुद से बनाते हैं प्राकृतिक रंग 

विनोथ और गौतम (Bhutha Architects) को घूमने-फिरने का काफी शौक़ है। कुछ साल पहले वे राजस्थान गए थे। वहां, उन्होंने प्राकृतिक रंग तैयार करने की कला सीखी। इसे लेकर गौतम बताते हैं कि आज वे हल्दी, नील, मंजिष्ठा, अनार के छिल्के, पीला गेंदा, लाल गुलाब जैसी चीजों का इस्तेमाल कर खुद से ही प्राकृतिक रंग बनाते हैं। 

वह बताते हैं, “इन चीजों को अलग-अलग बर्तन में उबाला जाता है और रंग का गाढ़ापन इस बात पर निर्भर करती है कि आपको जरूरत कितनी है। पानी के रंगीन होने के बाद, इसे छान लिया जाता है और कपड़े को उसमें कम से कम आधे घंटे के लिए भिगोया जाता है। कपड़े में सूखाने के बाद, उसे फिर से उबलते पानी में सेंधा नमक या फिटकरी के साथ ट्रीट किया जाता है, जिससे रंग अधिक दिनों तक चलते हैं।”

Bhutha Architects founders giving training in natural color making in a workshop organized at NR School of Architecture, Coimbatore
एनआर स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर, कोयंबटूर में आयोजित एक वर्कशॉप प्राकृतिक तरीके से रंग बनाने की ट्रेनिंग देते गौतम और विनोथ

वह बताते हैं कि रंग बनने के बाद, बेकार चीजें मिट्टी में आसानी से सड़ जाती हैं और पानी मिट्टी के अंदर चला जाता है। रासायन मुक्त होने के कारण मिट्टी को इससे कोई नुकसान नहीं होता है।

उन्होंने इस तकनीक को छात्रों को सीखाने के लिए कोयम्बटूर के एक स्थानीय आर्किटेक्चर स्कूल में दो वर्कशॉप भी आयोजित किए, जिसमें 60 से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया।

भारतीय वास्तुकला को लेकर क्या है Bhutha Architects का मानना?

भारतीय वास्तुकला के बारे में विनोथ कहते हैं, “यह, लोगों के जीवन, संस्कृति और परंपरा से जुड़ी हुई है। देश के हर हिस्से का अपना एक अलग टेक्स्चर है। पुराने जमाने की संरचनाओं के जरिए भारतीय वास्तुकला की महानता को आसानी से समझा जा सकता है। हमारा मक्सद कला और तकनीक के बीच इसी संयोग को बढ़ावा देना है।”

वह अंत में कहते हैं, “हमारा जोर, घरों को बनाने के आधुनिक तरीकों में प्राकृतिक संसाधनों को बढ़ावा देने पर है, ताकि हमारी पहचान की रक्षा होने के साथ-साथ, जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों पर भी लगाम लगे। हम इसके लिए अपने रिसर्च और डेवलपमेंट प्रॉसेस को और मजबूत करेंगे।”

अगर आप Bhutha Architects से संपर्क करना चाहते हैं, तो यहां क्लिक करें या फिर 9965595556 पर कॉल भी कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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