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बच्चों की कोचिंग क्लास से हैं नाखुश? जानिए कैसे इन अभिभावकों ने पाया रिफंड

त्रिलोक चंद गुप्ता, किन्नर चोकसी और दिलबर सिंह जैसे कई अभिभावक अपने बच्चों के कोचिंग क्लास की सर्विस से नाखुश थे। पूरी फीस देने के बावजूद सेवाएं वैसी नहीं थी, जैसा कि विज्ञापन में और दाखिले से पहले कहा गया था। इन परेशान अभिभावकों ने उपभोक्ता कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और अंत में कोचिंग क्लास से भुगतान की गई फीस वापस पाने में सक्षम रहे। आईए जानते हैं कैसे हुआ ये संभव।

टॉपर छात्रों की तस्वीर के साथ अक्सर निजी कोचिंग क्लास बड़े-बड़े विज्ञापन होर्डिंग लगाते हैं और अभिभावकों को भरोसा दिलाते हैं कि उनके संस्थान में दाखिला दिलाने से छात्रों को भरपूर लाभ मिलेगा। अक्सर अभिभावकों को भी लगता है कि उनके बच्चों की पढ़ाई पर बेहतर ध्यान दिया जाएगा और उनका भविष्य संवर जाएगा। इसी आशा के साथ वे बच्चों का दाखिला कराते हैं, लेकिन कई बार Coaching Centre की सेवाएं बेहद निराशाजक होती हैं और पढ़ाने के तरीके भी संतोषजनक नहीं होते। 

बेंगलुरु के रहने वाले, 41 वर्षीय त्रिलोक चंद गुप्ता का भी कोचिंग सेंटर (Coaching Centre) के साथ कुछ ऐसा ही खट्टा अनुभव रहा। अपनी बेटी के बेहतर भविष्य की उम्मीद के साथ, उन्होंने उसका दाखिला एक Coaching Centre में करा दिया। सेंटर ने उन्हें भरोसा दिलाया कि नौवीं कक्षा में उनकी बेटी 80% अंक हासिल करने में सक्षम होगी। इस कोचिंग के लिए त्रिलोक चंद गुप्ता ने 69,408 रुपये का भुगतान किया।

त्रिलोक चंद की बेटी ने, 16 जुलाई से 14 नवंबर 2019 तक क्लासेस किये। लेकिन, जब परीक्षा के परिणाम सामने आए, तो उसे पता चला कि वह सेमेस्टर I  की परीक्षा में फेल हो गई है। रिजल्ट देख कर त्रिलोक परेशान हो गए। 13 दिसंबर 2019 को उन्होंने सेंटर से संपर्क किया और उन्होंने बेटी का दाखिला रद्द करने के साथ-साथ भुगतान की गई पूरी फीस वापस करने की मांग की। पर, कोचिंग सेंटर (Coaching Centre) ने उनकी मांग को पूरी तरह से ठुकरा दिया। 

अदालत पहुँची लड़ाई

coaching class
Trilok with daughter

त्रिलोक ने द बेटर इंडिया को बताया कि जब उनकी बेटी ने आठवीं की परीक्षा पास की, तब Coaching Centre के एक व्यक्ति ने उनसे स्कूल परिसर में ही मुलाकात की।
वह बताते हैं, “दाखिला लेने से पहले सेंटर ने मुझे बताया था कि कक्षाएं पिछले सप्ताह शुरू हो गई थीं, लेकिन मेरी बेटी उसे आसानी से कवर कर लेगी। लेकिन वास्तव में, कोचिंग कुछ महीने पहले ही शुरू हो गयी थी। मेरी बेटी ने बैकलॉग के साथ-साथ उस समय चल रही क्लासेस को कवर करने की भरपूर कोशिश की। अगस्त 2019 में, दूसरी किश्त देने से पहले मैंने ये मुद्दा उठाया था। मैंने उन्हें बताया कि मेरी बेटी की पढ़ाई में अपेक्षित प्रगति दिखाई नहीं दे रही थी। कोचिंग क्लास मैनेजमेंट ने उसे अतिरिक्त कक्षाएं देने की पेशकश की और वादा किया कि वह सितंबर में परीक्षा में 80% अंक प्राप्त करेगी। हमें पता चला कि Coaching Centre साप्ताहिक टेस्ट लेने से पहले प्रश्न पत्र के उत्तर साझा करेंगे ताकि छात्र बेहतर अंक प्राप्त कर सकें।”
लेकिन, त्रिलोक द्वारा बार-बार मुद्दे उठाने और कोचिंग द्वारा बदले में आश्वासन दिए जाने के बावजूद, उनकी बेटी फेल हो गई।

इसके बाद त्रिलोक ने अपनी बेटी का दाखिला रद्द कर दिया। 19 दिसंबर, 2019 को उन्होंने Coaching Centre को एक कानूनी नोटिस भेजा। इसके बाद, उन्होंने 3 मार्च 2020 को जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के पास शिकायत दर्ज की और 69,408 रुपये की पूरी फीस वापस करने की मांग की।

Coaching Centre ने अपना बचाव किया, क्योंकि छात्रा ने आंशिक रुप से सेवाओं का लाभ उठाया था, और इसलिए वे केवल शेष बची हुई फीस ही वापस करने के लिए बाध्य थे।
अदालत द्वारा दिए गए आदेश में कहा गया, “गणना के अनुसार, शिकायतकर्ता को केवल 5,119 रुपये की राशि मिलनी चाहिए। हालांकि, विपक्षी पार्टी एक उदार दृष्टिकोण अपनाकर 26,014 रुपये की धनराशि वापस करने के लिए सहमत हुए। ”

सवाल नैतिकता का’

Coaching Centre का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील नमन सारस्वत कहते हैं कि अदालत के सामने सबूत पेश किया गया, जिसमें दिखाया गया कि छात्रा कक्षा में उपस्थित रही हैं और उन्होंने पहले पाँच महीने की सेवाएं ली थीं। उन्होंने आगे बताया, “सेवाओं में कमी को स्वीकार करते हुए संस्थान ने पहले ही कहा था कि दूसरे सेमेस्टर के लिए शेष राशि वापस कर दी जाएगी।”

अदालत ने कहा कि छात्रा ने पहले सेमेस्टर में कक्षाओं में भाग लिया, और यह स्पष्ट है कि वह कोचिंग में दाखिला रद्द करना चाहती हैं। कोर्ट ने शिकायतकर्ता को 26,014 रुपये और 5,000 रुपये मुकदमा चार्ज वापस करने का आदेश दिया।

फैसले का स्वागत करते हुए, त्रिलोक कहते हैं कि सच्चाई की जीत हुई है। वह कहते हैं, “फीस वापसी से ज़्यादा यह मामला नैतिकता के बारे में रहा है। मेरे जैसे कई माता-पिता इन संस्थानों में भरोसा रख कर अपने बच्चों का दाखिला करते हैं, लेकिन केवल मूर्ख बनते हैं। मैं सराहना करता हूँ कि संस्थान ने अपनी गलती स्वीकार की। लेकिन माता-पिता के लिए अपने बच्चे की बेहतरी के लिए सामने आना और लड़ना भी उतना ही जरूरी है।”

इसी तरह के कुछ मामले और हैं जहाँ Coaching Centre द्वारा नॉन रिफंडेबल फीस क्लॉज का उल्लेख होने के बावजूद असंतुष्ट अभिभावक पैसे वापस लेने में सक्षम रहे हैं। अहमदाबाद के किन्नर चोकसी का मामला भी कुछ ऐसा ही है। 2020 में उनके बेटे ने आर्किटेक्चर में नेशनल एप्टीट्यूड टेस्ट की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटर में दाखिला लिया था। दाखिला लेने के चार दिन बाद ही उनके बेटे को कोर्स काफी असंतोषजनक लगा और उन्होंने दखिला रद्द करने और फीस वापस करने की मांग की। चोकसी ने उपभोक्ता कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। चोकसी ने यह आरोप भी लगाया कि ज़्यादा छात्रों को आकर्षित करने के लिए सफल छात्रों की तस्वीरें विज्ञापन में डाली गई थीं।

कोचिंग क्लास ने अपने बचाव में कहा कि रसीद में दिए गए क्लॉज में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि यह राशि वापस नहीं की जाएगी। यह भी तर्क दिया गया कि टॉपर छात्रों के उल्लेखित चित्र संभावित उम्मीदवारों को प्रेरित करने के लिए थे, न कि उन्हें आकर्षित करने के लिए।

अदालत ने कहा कि क्योंकि चोकसी के बेटे ने कक्षाओं को असंतोषजनक पाया और इसलिए फीस वापस न करना “अनुचित व्यापार व्यवहार” (unfair trade practices) है। कोर्ट ने कोचिंग सेंटर को 38,000 रुपये की शुल्क राशि वापस करने का निर्देश दिया और कहा कि रसीद में नॉन रिफंड क्लॉज एक “अनुचित” और “एकतरफा” निर्णय था।

इसके अलावा, छात्रों और अभिभावकों को ध्यान देना चाहिए कि कोचिंग क्लासेस कोर्स के प्रवेश के लिए एकमुश्त शुल्क की माँग नहीं कर सकते हैं।

2007 में, नई दिल्ली में दलबीर सिंह ने एक मेडिकल प्रवेश कोचिंग संस्थान के खिलाफ मामला दर्ज किया और दो साल की कोचिंग के लिए जाने वाले 18,734 रुपये की पूरी फीस वापस करने की मांग की गई। उनके बेटे ने पाया कि संस्थान में मेडिकल से ज़्यादा इंजीनियरिंग छात्रों को पढ़ाया जा रहा था। उसने दाखिला लेने के छह महीने के भीतर कोर्स छोड़ दिया।

कोचिंग संस्थान ने दलील देते हुए कहा कि छात्र ने स्वेच्छा से प्रवेश वापस ले लिया है और सेवाओं की कोई कमी नहीं है। शिक्षण गुणवत्ता को घटिया बताने वाले दावों का खंडन करते हुए, उन्होंने उन छात्रों का रिकॉर्ड भी प्रस्तुत किया, जो अच्छे परिणाम के साथ संस्थान से उत्तीर्ण हुए। कोचिंग सेंटर ने आगे दलील देते हुए कहा कि सीट की गैर-हस्तांतरणीयता (non-transferability) के एवज में दो साल के लिए फीस की मांग की गई थी, और इसलिए फीस वापस नहीं की जा सकती है।

संस्थान के तर्क को खारिज करते हुए, अदालत ने यूजीसी के दिशानिर्देशों का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि कोई छात्र जो एक भी कक्षा में शामिल नहीं हुआ है, वह 100 रुपये की न्यूनतम कटौती के साथ, हॉस्टल और अन्य फीस वापस लेने की योग्यता रखता है। उपभोक्ता कोर्ट ने कहा कि चूंकि छात्र दो साल की पूरी अवधि के लिए कक्षाओं में शामिल नहीं हुआ था, इसलिए फीस वापस नहीं करना “अकारण और अनुचित” माना जाएगा और “इसलिए लागू नहीं किया जाएगा।” अदालत ने कोचिंग सेंटर को राशि वापस करने का निर्देश दिया।

मूल लेख: हिमांशु नित्नावरे 

संपादन- जी एन झा

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