गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।।
स्कूल कॉलेज में पढ़ाई से लेकर जीवन के मूल्यों तक को सीखने के लिए, हर किसी को एक गुरु की जरूरत होती है। ऊपर लिखे दोहे में गुरु की महानता का वर्णन बिल्कुल सही तरीके से किया गया है। एक शिक्षक चाहता है कि उसका ज्ञान खुद तक सिमित न रहे, बल्कि उनके छात्रों तक पहुंचे। माता-पिता की तरह ही हमारी सफलता से हमारे शिक्षक को ख़ुशी मिलती है। इसके लिए वह कई प्रयास भी करते हैं।
आज हम आपको भुज (गुजरात) के एक ऐसे ही शिक्षक के बारे में बताने जा रहे हैं, जो बच्चों को पढ़ाना बस अपनी ड्यूटी नहीं बल्कि अपना जीवन का लक्ष्य मानते हैं।
भुज के हितेन ढोलकिया प्राथमिक स्कूल के शिक्षक ‘अशोक परमार’, गणित पढ़ाने के अपने अनोखे तरीकों के लिए जाने जाते हैं। न सिर्फ अपने स्कूल के बच्चे, बल्कि अपने यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज के माध्यम से, वह दूसरे बच्चों को भी गणित सीखने में मदद कर रहे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताते हैं, “बच्चों को पढ़ाने और उनके विकास के लिए, मेरे तीन मुख्य सिद्धांत हैं। पहला है- भौतिक वातावरण, दूसरा एक्टिविटी है- बेस लर्निंग और तीसरा विषय से थोड़ा हटकर है- सर्वांगीण विकास पर काम करना।”
अपने इन्हीं सिद्धांतों को ध्यान में रखकर, वह 1998 से बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं। हालांकि वह स्कूल में भाषा (Language) के शिक्षक हैं और मुख्य रूप से बच्चों को हिंदी और गुजराती पढ़ाते हैं। लेकिन पसंदीदा विषय गणित होने के कारण, वह गणित भी पढ़ा रहे हैं और इस विषय से जुड़ी कई एक्टिविटीज़ भी कराते रहते हैं।
बच्चों का भविष्य निर्माण है, जीवन का लक्ष्य
अशोक के परिवार में उनके भाई और भाभी दोनों शिक्षक हैं। परिवार के इसी माहौल को देखते हुए, उन्होंने पढ़ाई करते समय ही एक शिक्षक बनने का फैसला कर लिया था। डॉ. अंबेडकर यूनिवर्सिटी से B.Ed. करने के बाद, वह साल 1998 से सरकारी स्कूल में पढ़ाने का काम कर रहे हैं। पहले वह कच्छ के ही मुंद्रा जिले के एक स्कूल में पढ़ाते थे, लेकिन साल 2008 में ट्रांसफर होने के बाद, वह भुज के हितेन ढोलकिया प्राथमिक स्कूल में आ गए।
इस स्कूल को वह भुज का सबसे विशेष स्कूल बताते हैं। क्योंकि साल 2001 में आए भूकंप के बाद, इस स्कूल को कर्णाटक सरकार ने भुज के ही एक होनहार बच्चे हितेन ढोलकिया की याद में बनवाया था, जिसकी नींव डॉ ऐ पी जे अब्दुल कलाम ने रखी थी।
हालांकि अशोक यहां भाषा के शिक्षक हैं, लेकिन वह साल 2005 से स्टेट रिसोर्स टीम के मेंबर के तौर पर भी काम कर रहे हैं। इसके तहत वह राज्य की प्राथमिक कक्षा के लिए गणित की किताब लिख रहे हैं। अब तक वह गणित की 55 किताबें का लिख चुके हैं।
खेल-खेल में सिखाते हैं गणित
ज्यादातर बच्चों को गणित एक कठिन विषय लगता है। ऐसे में अशोक सर के किए गए कई इनोवेशंस गणित को आसन बना देते हैं। वह कहते हैं, “बच्चों की तर्क शक्ति जितनी अच्छी होगी, यह विषय भी उतना ही सरल बन जाएगा। इसलिए मैंने तर्क आधरित 40 गेम्स डिज़ाइन किए हैं, जिसके माध्यम से बच्चे आसनी से बड़े से बड़ा सवाल हल कर लेते हैं।”
उनके द्वारा बनाए गए इन 40 बक्सों को राज्य सरकार के इनोवेशन फेस्टिवल में काफी तारीफ मिली। अब वह इस तरह की एक्टिविटी को राज्य सरकार की मदद से, दूसरे स्कूल के लिए बनाने का काम भी कर रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने एक्टिविटी लर्निंग के लिए भी कई प्रोग्राम डिज़ाइन किए हैं। जिसमें से 3D सांप-सीढ़ी बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय है। वहीं उन्होंने स्कूल में STEM लाइब्रेरी भी बनाई है, जिसमें बच्चे साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स से जुड़ी एक्टिविटी और किताबें पढ़ सकते हैं। इस बॉक्स लाइब्रेरी को वह लॉकडाउन के दौरान भी बच्चों के घर पर मुहैया कराते थे।
अपने ज्ञान को ‘क्लास से मास तक’ ले जाने के लिए, वह साल 2013 से अपना यूट्यूब चैनल भी चला रहे हैं। जहां वह बच्चों को आसन तरीके से गणित का पाठ पढ़ाते हैं।
उन्हीं के स्कूल में 8वीं कक्षा की एक छात्रा ‘वया ईल्का ईस्माईल’ बताती हैं, “गणित मुझे काफी मुश्किल लगता था, लेकिन अशोक सर ने इसे हमारे लिए बेहद आसान बना दिया है। हम क्लास के बाहर ही एक्टिविटी करके गणित पढ़ लेते हैं। लॉकडाउन के दौरान भी वह हमारे घर तक, एक्टिविटी बॉक्स और किताबे पहुंचाया करते थे।”
कई कलाओं में निपुण हैं अशोक सर
गणित के साथ-साथ अशोक सर, पेंटिंग और संगीत के कई वाद्य यंत्र बजाने में भी माहिर हैं। वह कहते हैं, “अगर स्कूल का भौतिक वातावरण अच्छा होगा, तो बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी पढ़ने आएंगे। इसी कारण मैंने सोचा कि क्यों न स्कूल की दीवारों, खिड़कियां और दरवाजों पर सुन्दर कलाकृतियां बनाई जाएं। बच्चों ने भी इसे खूब पसंद किया।”
वह स्कूल में क्लासेज़ खत्म होने के बाद, खुद अपने हाथों से इन कलाकृतियों को बनाने का काम करते हैं। इसके अलावा, वह बच्चों को समय-समय पर अलग-अलग वाद्ययंत्र बजाना सिखाते हैं और स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम को तैयार करने जैसी चीजें भी करवाते रहते हैं। यह काम वह पुरे स्कूल स्टाफ की मदद से करते हैं। गणित के शिक्षक न होने के बावजूद, उनकी रुचि को देखते हुए प्रिंसिपल ने उन्हें इसे पढ़ाने की अनुमति दी है। उनका मानना है कि अपने साथी शिक्षकों के सहयोग के बिना, मेरे लिए कुछ भी करना आसान नहीं था।
कई पुरस्कारों से किए गए सम्मानित
गणित विषय में उनके बनाएं कई वीडियोज़, राज्य शिक्षा विभाग की साइट पर भी देखने को मिलते हैं। लॉकडाउन में होमलर्निंग के लिए बनाए गए उनके वीडियोज़ को दूरदर्शन पर भी प्रसारित किया जाता था। इसके अलावा, उनका गणित की पज़ल से जुड़ा एक फेसबुक पेज भी है। जहां वह सालों से खुद की बनाई पहेलियां पेश करते हैं, जो देश-विदेश के लोगों तक पहुंचती हैं।
वह पढ़ाने को मात्र अपनी नौकरी नहीं मानते, बल्कि इसे अपने जीवन का हिस्सा मानते हैं। यही कारण है कि उनका पूरा दिन इस तरह की अलग-अलग पाठ्य सामग्री को डिज़ाइन करने और इसे बच्चों तक पहुंचाने में बीतता है।
उनके इन निरन्तर प्रयासों के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले हैं। वह पुरस्कार में मिली राशि खुद पर खर्च करने के बजाय, बच्चों के लिए किसी नए अविष्कार को करने में लगाते हैं।
साल 2019 में उन्हें गुजरात साइंस अकादमी की और से श्रेष्ठ शिक्षक अवॉर्ड मिला था। उसी साल उन्हें कच्छ के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार भी मिला। IIM अहमदाबाद में आयोजित होने वाले इनोवशन फेयर में उनकी बनाई एक्टिविटी बॉक्स को काफी सराहना मिली।
साल 2020 में, गुजरात के राज्यपाल ने उन्हें राज्य के श्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया था। वहीं, इस साल भी शिक्षक दिवस पर उन्हें देश के कुछ चुनिंदा शिक्षकों के साथ राष्ट्रीय सम्मान मिलने जा रहा है।
उनकी छात्रों के प्रति जिम्मेदारी और मेहनत को देखकर, यह कहना गलत नहीं होगा कि अशोक परमार जैसे शिक्षक सही मायनों में, देश के भविष्य निर्माण का काम कर रहे हैं। अपने काम के प्रति लगाव और शिक्षक के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों का सही से निर्वहन करने वाले अध्यापक अशोक परमार को द बेटर इंडिया का सलाम।
संपादन- अर्चना दुबे
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