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छात्र डिप्रेशन में न जाएँ इसलिए कोटा डीएम ने उठाया इतना बड़ा जोखिम! 

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“मैं इन छात्रों को लेकर काफी डरा हुआ था। अकेलापन, चिंता और अवसाद युवाओं को अधिक प्रभावित करता है। मेरा पूरा ध्यान उन बच्चों को सुरक्षित तरीके से कोटा से बाहर निकालने पर था।" - ओम प्रकाश कसेरा, जिला कलेक्टर,कोटा।

ट्विटर पर कुछ हफ्ते पहले #ThankyouDMKota ट्रेंड हुआ था। इस हैशटैग के जरिए लोग ओम प्रकाश कसेरा के लिए सम्मान और कृतज्ञता जाहिर कर रहे थे। 2012 बैच के आईएएस अधिकारी कसेरा वर्तमान में राजस्थान के कोटा में जिला कलेक्टर के रूप में तैनात हैं।

कसेरा ने कोटा में फंसे 50,000 से अधिक छात्रों को उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने में मदद की। कसेरा को उन माता-पिता के ढेरों संदेश आ रहे हैं जो अपने बच्चों को लेकर बेहद चिंतित थे। वह विनम्रता से कहते हैं, “इतने सारे फोन कॉल्स, एसएमएस, व्हाट्सएप मैसेज और सोशल मीडिया पर प्रशंसा भरे पोस्ट देखकर मैं हैरान रह गया। मैं तो सिर्फ अपना काम कर रहा था।

द बेटर इंडिया के साथ बातचीत में कसेरा ने बताया की कैसे उन्होंने पूरे ऑपरेशन को अंजाम दिया। उन्होंने बताया कि 12 मई 2020 को जब छात्रों को लेकर आखिरी बस कोटा बस स्टेशन से बाहर निकली तब जाकर मैंने राहत की साँस ली।

घर से दूर फंसे छात्र

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कोटा में फँसे छात्र।

भारत की कोचिंग की राजधानी कहे जाने वाले कोटा में हर साल JEE और NEET जैसी परीक्षाओं की तैयारी के लिए हजारों छात्र आते हैं। महामारी के कारण लॉकडाउन होने पर देशभर से आए इन बच्चों के सामने संकटपूर्ण स्थिति आ गई।

कसेरा बताते हैं, “पहला लॉकडाउन रातोंरात कर दिया गया था। जिसके कारण लगभग 60,000 छात्र अपने घर और परिवार से दूर कोटा में फँस गए। ये छात्र बहुत ही कम उम्र के थे और हमें जितनी जल्दी हो सके उन सभी को यहाँ से बाहर निकालना था।

चूँकि अधिकांश छात्र किशोर उम्र के थे। इसलिए शिक्षकों, माता-पिता और प्रशासन को खासतौर से उनके भावनात्मक और मानसिक स्थिति को लेकर चिंता हो रही थी। वह कहते हैं, “उन छात्रों का हौंसला बढ़ाना हमारे लिए सबसे चुनौतीपूर्ण काम था। बहुत से हॉस्टल और पेइंग गेस्ट ने अपने किचन और मेस बंद कर दिए थे। छात्रों को ठीक से खाना नहीं मिल पा रहा था।जब उन्हें इस स्थिति के बारे में पता चला तब कसेरा और उनकी टीम ने छात्रों को रोजाना भोजन की सप्लाई के लिए कम्युनिटी किचन की शुरूआत की।

हर कदम पर छात्रों की मदद करना

छात्रों से भरी ट्रेन को रवाना करते कोटा डीएम व उनकी टीम

मैं इन छात्रों को लेकर काफी डरा हुआ था। अकेलापन, चिंता और अवसाद किशोरों को अधिक प्रभावित करता है। मेरा पूरा ध्यान उन बच्चों को सुरक्षित तरीके से कोटा से बाहर निकालकर उनके घर भेजने पर था। उन्होंने संस्थानों में मनोवैज्ञानिकों द्वारा इन छात्रों के अंदर से डर को बाहर निकालने के लिए एक सत्र का आयोजन करने के लिए कहा। उन्होंने बताया,  “हर 40 से 50 छात्रों के लिए हमने एक काउंसलर की व्यवस्था की, जो उन्हें नकारात्मक विचारों से निकालने में और मार्गदर्शन करने में मदद कर सके।

इन उपायों से छात्रों को लॉकडाउन के पहले चरण में थोड़ी तसल्ली मिली। लेकिन लॉकडाउन 2.0 की घोषणा के बाद छात्र फिर परेशान हो गए और घर लौटने की अनुमति देने की मांग करने लगे।

लॉकडाउन 2.0 और बढ़ती निराशा

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घर जानते वक़्त खुशी का इज़हार करते छात्र।

कसेरा बताते हैं, “लॉकडाउन 2.0 की घोषणा के बाद हम जानते थे कि उन्हें इस समस्या के बारे में जल्द से जल्द अवगत कराना पड़ेगा। हमने देखा कि कोविड-19 के साथ यह लड़ाई बहुत जल्द खत्म नहीं होने वाली है, और उन्हें अपने परिवारों और सपोर्ट सिस्टम से दूर यहाँ रखना सही नहीं था।

यह सिर्फ छात्रों की ही बात नहीं थी। उन्होंने कहा,कुछ समय बाद मुझे इन छात्रों के माता-पिता के भी लगातार फोन आने शुरू हो गए। वे चाहते थे कि उनके बच्चों को घर लौटने दिया जाए। हमें विभिन्न राज्य विभागों से भी कॉल आने लगे। 

कसेरा के लिए यह एक मुश्किल समय था और उन्हें पता था कि उन्हें इन बच्चों को सुरक्षित घर पहुँचाने का रास्ता खोजना होगा।

कसेरा बताते हैं, केंद्र सरकार के साथ कई दौर की चर्चा और बातचीत के बाद हम इन छात्रों को वापस भेजने के लिए कदम बढ़ाने में कामयाब रहे। यही वह क्षण था जब मैंने राहत की साँस ली।

पूरे ऑपरेशन में हुई कई दिक्कतें 

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कोटा डीएम को शुक्रिया करते छात्र।

कुछ राज्य सरकारों ने कोटा के लिए बसों की व्यवस्था की जबकि कुछ अन्य राज्यों ने कोटा प्रशासन से आग्रह किया कि वे सभी व्यवस्थाए करें, जिसकी प्रतिपूर्ति (भुगतान) बाद में संबंधित राज्य सरकारों द्वारा कर दिया जायेगा। सोशल डिस्टेंसिंग नियमों का पालन करते हुए 50,000 से अधिक छात्रों को घर वापस भेजने का प्रबंध करना आसान काम नहीं था। उन्होंने कहा, “यहाँ अधिकांश छात्र गुजरात, झारखंड, राजस्थान, बिहार और दिल्ली / एनसीआर क्षेत्र से थे। कुछ राज्यों में तो यह प्रक्रिया आसान थी, लेकिन कुछ अन्य राज्यों से व्यवस्थाओं पर आम सहमति पाने के लिए बहुत इधर-उधर भागदौड़ करनी पड़ी। मैं नहीं चाहता था कि शहर में छात्रों को कोई नुकसान हो।

कसेरा कहते हैं,मैं अब गर्व से कह सकता हूँ कि कोटा छोड़ने वाले 50,000 से अधिक छात्रों में से हर एक छात्र अपने घर पहुँच गया है। किसे कहाँ जाना है न तो इस व्यवस्था में कोई गड़बड़ी हुई, न ही उनकी यात्रा के दौरान कोई अप्रिय घटना हुई। सबसे अच्छी बात यह है कि 28 दिनों तक घर पर रहने के बाद कोई भी छात्र टेस्ट में पॉजिटिव नहीं पाया गया है।

प्रशंसा की चर्चा 

सोशल मीडिया का उपयोग अक्सर सरकारी नीतियों और प्रशासनिक कार्यों में खामियों को बाहर लाने के लिए किया जाता है लेकिन इस मामले में कसेरा के इस नेक काम के लिए उन्हें काफी सम्मान और तारीफ मिली जो उनके लिए चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, “मुझे हर रोज घर पहुँचने वाले छात्रों के माता-पिता के हजारों कॉल आ रहे हैं। अपने-अपने घरों में पहुँचने के तीन दिन बाद 15 मई 2020 को पूरे भारत के इन छात्रों ने एक ट्विटर हैशटैग शुरू किया इस पेशे में आने के बाद इसी तरह के मौकों पर हमें लोगों की सेवा करनी होती है। मुझे खुशी है कि मैं ऐसी यादों को संजो सकूँगा।

ओम प्रकाश सुमैरा जैसे अधिकारी हमारे समाज के अनूठे रत्न हैं। इनके जज़्बे को द बेटर इंडिया सलाम करता है।

मूल लेख-

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