मुंबई में रहने वाली प्रीति पाटिल, पिछले 20 वर्षों से टैरेस और बालकनी गार्डनिंग को बढ़ावा देने के लिए लोगों को जागरूक कर रही हैं। मुंबई पोर्ट ट्रस्ट (Mumbai Port trust) की चीफ केटरिंग मैनेजर के तौर पर काम करने वाली, प्रीति ने अनजाने में ही, मुंबई निवासियों के लिए एक नये लाइफस्टाइल (जीवन शैली) ट्रेंड – टैरेस और बालकनी गार्डनिंग की शुरुआत कर दी थी।
उन दिनों लोग बालकनी में गुलाब, जैस्मिन, पुदीना, धनिया या कैक्टस जैसे दो-चार पेड़ ही लगाते थे। यह, प्रीति जैसे लोगों की पहल थी, जिसने लोगों को अपने घर की छत और बालकनी में अपना खाना (फल/सब्जियां आदि) खुद उगाने के लिए प्रेरित किया।
प्रीति ने द बेटर इंडिया को बताया, “ मैंने इसकी शुरुआत साल 2001 में की। एमबीपीटी कैफेटेरिया में, हम हर दिन पोर्ट ट्रस्ट में काम करने वाले हजारों कर्मचारियों के लिए खाना तैयार करते हैं। अब आप कल्पना कीजिये कि यहाँ से कितने ज्यादा फल-सब्जियों के छिलके या बचा हुआ खाना लैंडफिल (कचरा भराव क्षेत्र) में जाता होगा।” किचन वेस्ट के ढेर ने प्रीति को इसे रीसायकल कर, फिर से इसे इस्तेमाल करने के तरीके ढूंढ़ने के लिए प्रेरित किया।
यह वह समय था जब इंटरनेट की शुरुआत हुई थी। पर्यटन बढ़ रहा था, चाहे वह अंतरराष्ट्रीय यात्रा हो या फिर घरेलू। इससे लोगों को दूसरी जगहों पर हो रही चीजों के बारे में पता चल रहा था। पत्तों, टहनियों, गोबर, फल-सब्जियों के छिलकों जैसे कचरे का उपयोग करके, जैविक खेती करने के बारे में जागरूकता बढ़ रही थी।
इसी बीच, प्रीति को रिटायर्ड अर्थशास्त्री डॉ. आर. टी. दोशी से मिलने का मौका मिला, जो एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम) और अन्य जैविक खाद की मार्केटिंग कर रहे थे। साथ ही, वह मुंबई और पुणे के बीच कामशेत में जैविक खेती भी कर रहे थे। जैविक खेती में अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने मुंबई और पुणे निवासियों के लिए एक वर्कशॉप शुरू की थी। जिसमें, वह दैनिक किचन वेस्ट का इस्तेमाल करके बालकनी गार्डनिंग करने के फायदे बताते थे।
प्रीति ने भी वर्कशॉप में हिस्सा लिया और उन्हें अहसास हुआ कि उनके पास 3000 वर्गफुट की एक जगह है, जिसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। वह जगह थी, एमबीपीटी कैंटीन की छत। मुंबई में अरब सागर के तटीय क्षेत्र के किनारे स्थित एमबीपीटी का डॉकयार्ड (गोदी बाड़ा) एक प्रतिबंधित क्षेत्र है। पोर्ट से लगातार थोक के माल की ढुलाई की जाती है। ढुलाई के लिए यहाँ दिनभर बहुत से जहाज आते-जाते रहते हैं। यहां पर सैकड़ों क्रेन, माल उठाने वाली मशीन और भारी-भरकम ट्रेलर ट्रक आदि माल की ढुलाई करते हैं और इस वजह से यहां लगातार शोर-शराबा रहता है। इस तरह के गर्म, शोर-शराबे और धूल भरे क्षेत्र को प्रीति पाटिल ने हरियाली से भरने का सपना देखा। पांच साल के भीतर, उन्होंने अपने कैफेटेरिया की टीम की मदद से और एमबीपीटी प्रशासन से अनुमति लेकर, अपने इस सपने को पूरा किया। वह बतातीं हैं, “हमने केवल चार पौधे – दो अमरूद और दो चीकू से शुरुआत की थी।”
छत को किया हरा-भरा:
कुछ ही समय में, छत पर 116 किस्मों के पौधे लग गए। जिनमें नारियल, अनानास, सीताफल, पपीता, केला, आम, आंवला, भिंडी, टमाटर, ब्रोकली, इमली और कुछ पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, चौलाई, धनिया, पुदीना आदि शामिल हैं। ये सब रसोई से निकलने वाले कचरे को पोषक खाद मे परिवर्तित करके उगाये गए हैं। प्रीति मानतीं हैं कि छत से मिलने वाली उपज से बाड़े पर काम करने वाले 4000 कर्मचारियों के खाने की आपूर्ति नहीं की जा सकती है, लेकिन इस एक गार्डन के चलते वह अपने सभी जैविक कचरे को इस्तेमाल में ले पा रहे हैं।
डॉ. दोशी से गार्डनिंग के गुर सीखने के बाद, उन्होंने नेचूको आधारित खेती विधि (नेचूको बेस्ड फार्मिंग मेथड) ‘अमृत कृषि’ के जनक, दिवंगत दीपक सचदे के कामों पर शोध करना शुरू किया। जिन्होंने ‘अमृत मिट्टी’ का उपयोग करना सिखाया था, जिसे सबसे अच्छा प्राकृतिक उर्वरक भी माना जा सकता है। आप इसे बायोमास जैसे – सूखे पत्तों, गाय के गोबर, गोमूत्र और प्रकृतिक गुड़ का उपयोग करके बना सकते हैं।
प्रीति का एमबीपीटी गार्डन दीपक की मदद से खिल उठा। जिन्होंने, प्रोफेसर श्रीपद ढाबोलकर से इन तकनीकों को सीखा था और प्रीति ने बगीचे में खुद इन तकनीकों का प्रयोग भी किया था। वह कहतीं हैं कि जब उनके पास जमीन नहीं थी तो उन्होंने प्लास्टिक लॉन्ड्री बैग, बड़े ड्रमों को दो भागों में काटकर और ईंटों की बाउंड्री (सीमा) बनाकर, इनमें मिट्टी और अमृत मिट्टी भरी और पौधे लगाए।
अक्सर लोगों को डर होता है कि पेड़ों की जड़ें छत से नीचे की तरफ निकलने लगेंगी। इस पर वह कहतीं हैं, “जड़ें तब तक कहीं नहीं फैलेंगी, जब तक उन्हें सहारे की जरूरत नहीं होगी। अगर उन्हें बाहर से किसी दीवार या खंबे का सहारा मिल जाता है तो पौधों को पोषण देने वाली मूल जड़ों (फीडर रूट्स) को सिर्फ 9 इंच मिट्टी की जरूरत होती है। साथ ही, छतों पर लगने वाले पेड़ों की छंटाई (प्रूनिंग) करना जरुरी है ताकि फल तोड़ना आसान हो।”
मुंबई की हवा और मूसलाधार बारिश को नियंत्रित करने के लिए, प्रीति ने प्लास्टिक शीट से एक छोटा ग्रीनहाउस भी स्थापित किया। ऊंची इमारतों के लिए, वह बिल्डरों से मोटी छत डिजाइन करने और उनमे हवारोधी यन्त्र (विंडब्रेकर) लगाने का आग्रह करती हैं। आगे वह बतातीं हैं, “सौभाग्य से भारत में अच्छी-खासी धूप होती है और छतों से बारिश का साफ पानी भी मिलता है।”
शहरों में सामुदायिक खेती:
प्रीति का विश्वास है कि हाउसिंग सोसाइटी में टैरेस गार्डनिंग लोगों को एकजुट रख सकती है क्योंकि, इसमें सभी घरों की भागीदारी की जरूरत होती है। जब लोगों को यह अहसास होता है कि अपने घर में खुद खाना उगाने से, उन्हें निश्चित तौर पर रसायन मुक्त सब्जियां मिलेंगी तो वह इस प्रक्रिया का आनंद लेते हैं। प्रीति ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर ‘अर्बन लीव्स’ पहल की शुरुआत की और हाउसिंग सोसाइटीज और छतों पर ‘सामुदायिक खेती’ करने को लोकप्रिय बनाया। हालांकि, कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन में उनका यह काम रुक गया था।
वैसे गार्डनिंग करने वाले लोगों ने, लॉकडाउन के दौरान भी प्रीति से संपर्क किया। आज भी हर रोज, उन्हें अलग-अलग जगह से लोग अमृत मिट्टी के बारे में या टैरेस गार्डन से जुड़ी जानकारी लेने के लिए फोन करते हैं। अमृत मिट्टी के बारे में प्रीति कहतीं हैं, “अक्सर लोग बाजार में खाद के रूप में बिकने वाला रेडी-मेड मिक्स खरीद कर ले आते हैं, जो अच्छी गुणवत्ता का नहीं होता है। इससे छत या बालकनी गार्डनिंग में लोगों को उनकी उम्मीद के मुताबिक नतीजा नहीं मिलता है। यह जान लें कि अमृत मिट्टी तैयार करने में वक्त लगता है।”
यदि हम खाद्य अपशिष्ट की बात करें तो संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का मानना है कि अनुमानित वैश्विक खाद्य अपशिष्ट ( Global Food Waste) औसत मात्रा में सालाना लगभग 100 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है। संस्था के मुताबिक, खाद्य अपशिष्ट एक वर्ष में लगभग 2.6 ट्रिलियन डॉलर की वैश्विक आर्थिक और पर्यावरण की हानि का कारण बनता है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 8 प्रतिशत है।
अब जरा सोचिये कि अगर हर कोई प्रीति की तरह, इस जैविक कचरे का उपयोग हरियाली बढ़ाने और खुद अपना खाना उगाने के लिए करे तो इस समस्या को कितने बड़े स्तर पर हल किया जा सकता है!
मूल लेख – सुरेखा कडापा बोस
संपादन- जी एन झा
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