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अमेरिका की नौकरी छोड़, किडनी मरीजों को आधे दाम पर डायलिसिस सुविधा दे रहे हैं शशांक

मुंबई के शशांक मोधिया ने साल 2019 में अपने स्टार्टअप 'द रीनल प्रोजेक्ट' की शुरुआत की और इसके तहत वह टियर II और टियर III शहरों में रहने वाले 150 किडनी मरीजों को नियमित रूप से किफायती डायलिसिस की सुविधा प्रदान कर रहे हैं।

कोविड-19 महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान बहुत से लोगों की नौकरियां चली गई और बहुत-से व्यवसाय भी बंद हो गए। साथ ही, कुछ ऐसी सेवाएं भी बंद हुईं, जो कुछ लोगों के लिए काफी जरूरी थीं। खासकर कुछ स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं, जैसे- किडनी डायलिसिस (Kidney Dialysis)। मुंबई के गोराइ निवासी 44 वर्षीय आश्विन कदम को इस दौरान काफी परेशानी हुई क्योंकि, उन्हें अपनी किडनी की बीमारी के चलते नियमित रूप से हेमोडायलिसिस उपचार की जरूरत होती है। 

इस बीमारी के मरीजों को हफ्ते में कम से कम एक या इससे ज्यादा बार, अपने स्वास्थ्य के हिसाब से किडनी डायलिसिस करवाना पड़ता है। लेकिन, लॉकडाउन के दौरान जब कई जगह सर्विसेज नहीं मिली तो मुंबई के एक स्टार्टअप, द रीनल प्रोजेक्ट ने इन लोगों की परेशानी हल की। आश्विन को इस स्टार्टअप के चलते समय पर ट्रीटमेंट मिली और वह भी कम पैसों में। 

ऐसे ही एक और मरीज हैं, नासिक के पास संगमनेर के दत्तात्रेय जोवेरकर। वह कहते हैं, “मैं 2016 से लगातार डायलिसिस (Kidney Dialysis) ले रहा हूँ और पहले सरकारी योजना के तहत एक प्राइवेट संस्थान में जा रहा था। लेकिन, मैंने इस स्टार्टअप के साथ अच्छी चिकित्सा लेने का फैसला किया। यहाँ काम करने वाले लोग पेशेवर हैं और मुझे पिछले सेंटर से ज्यादा अच्छी सेवा मिल रही है। मेरे ब्लड सैंपल की सभी रिपोर्ट भी लगातार सही आ रही हैं, जो एक अच्छा संकेत है।”

आज हम आपको ‘रीनल प्रोजेक्ट’ के बारे में ही बताने जा रहे हैं, जिसकी शुरुआत 2019 में शशांक मोधिया ने की थी। इससे पहले, वह अमेरिका स्थित एक एमएनसी हेल्थकेयर कंपनी, बैक्सट इंटरनेशनल (Baxter International) के साथ काम कर रहे थे। यह कंपनी मरीजों को किफायती हेमोडायलिसिस उपलब्ध कराती है। 39 वर्षीय शशांक ने अमेरिका की ‘यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सस’ से बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री ली है। इसके बाद उन्होंने इस कंपनी के साथ 12 साल तक काम किया। वहाँ शशांक एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 11 देशों के लिए, बतौर क्वालिटी मैनेजर काम कर रहे थे।  

वह कहते हैं, “मैंने भारत, मलेशिया और फिलीपींस जैसे अन्य देशों में चिकित्सा सेवाओं के बीच काफी अलग स्थिति देखी। मुझे एहसास हुआ कि हमारे देश में हेमोडायलिसिस से जुड़े कई मामले हैं। खासकर, ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी इस उपचार की पहुँच नहीं है।”

हर किसी तक नहीं है ट्रीटमेंट की पहुँच

भारत में हर साल लगभग दो लाख किडनी के मरीज देखे जाते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतभर में हेमोडायलिसिस के लिए सालाना 3.4 करोड़ सत्र की जरूरत है लेकिन, इनमें से सिर्फ आधे ही सत्र हो पाते हैं। वह कहते हैं कि यह ट्रीटमेंट तालुका के स्तर तक भी नहीं पहुँच पाता है और वजह है, इसके संचालन की लागत। साथ ही, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता भी मानकों के हिसाब से नहीं है। 

सुविधाओं की कमी पर बात करते हुए शशांक कहते हैं, “अस्पतालों के लिए हेमोडायलिसिस सुविधा केंद्र चलाना मुश्किल है। क्योंकि, इसके लिए समर्पित कर्मचारी चाहिए जो हर समय उपलब्ध रहें। हर दिन मरीजों की संख्या बढ़ रही है और हर तीन घंटे में मरीज बदल जाते हैं। साफ़-सफाई और सभी उपकरण जैसे ब्लड बैग, रुई, सुईं आदि कि गुणवत्ता भी अच्छी होनी चाहिए।”

Kidney Dialysis
Kidney Dialysis Facility at Ulhasnagar.

वह कहते हैं कि खून के लिए ‘ब्लड बैंक’ से सम्पर्क, इंफ्रास्ट्रक्चर की व्यवस्था और संचालन के लिए, काफी ज्यादा लागत की जरूरत होती है। साथ ही, अस्पताल के कर्मचारियों को हर तरह की आपातकालीन स्थिति के लिए तैयार रहना होता है। उन्हें संक्रमण का खतरा भी रहता है। साथ ही, मरीजों के स्वास्थ्य के साथ भी कोई लापरवाही नहीं बरती जा सकती है। मरीजों की खून की रिपोर्ट पर नियमित रूप से जांच करनी पड़ती है ताकि उसी हिसाब से उनका उपचार हो सके।

इन सभी मुश्किलों के चलते, ये सुविधाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। इन मुद्दों को सुलझाने के लिए, शशांक ने अपने गुरु और किडनी रोग विशेषज्ञ, डॉ. धनंजय ऊकलकर से सलाह ली। लगभग चार महीनों के गहन अध्ययन के बाद, उन्होंने शहर की सीमा से बाहर रहने वाले मरीजों की सहायता के लिए एक स्टार्टअप शुरू करने का फैसला किया।

शशांक कहते हैं कि डाइलिसिस (Kidney Dialysis) की सुविधा देने वाले ज्यादातर अस्पताल टियर 1 शहरों में हैं और कुछ टियर 2 शहरों में। वह कहते हैं, “अर्ध-शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले मरीज हफ्ते में तीन बार डायलिसिस के लिए नहीं पहुँच सकते हैं। क्योंकि, उपचार के खर्च के साथ-साथ यात्रा और अन्य चीजों का खर्च भी बढ़ जाता है। लगभग 50% ग्रामीण मरीज जिन्हें हेमोडायलिसिस की जरूरत हैं, उन्हें उपचार करवाने के लिए 100 किमी यात्रा करनी पड़ती है। इस स्टार्टअप का काम ऐसे लोगों तक पहुँचकर, उनके लिए उपचार को किफायती बनाना है।” 

मुंबई के उपनगरों के अलावा, इस स्टार्टअप के केंद्र ठाणे, पुणे, नासिक, संगमनेर और नागपुर में हैं।

किफायती स्वास्थ्य सेवा

शशांक कहते हैं कि हेमोडायलिसिस के लिए, एक सत्र की औसत लागत 1,700 रुपये से 4,000 रुपये के बीच है। ऐसे मरीजों के लिए वार्षिक औसत खर्च कम से कम 2 लाख रुपये है। हालांकि, यह स्टार्टअप 725 रुपये से 1,400 रुपये के बीच उपचार प्रदान करता है और इस प्रकार, लागत में लगभग 40 प्रतिशत की कमी आती है।

शशांक कहते हैं कि मरीजों को किसी भी सुरक्षा और स्वास्थ्य पहलुओं से समझौता किए बिना उपचार प्रदान किया जाता है।

“उनका स्वास्थ्य ही हमारी प्राथमिकता है तथा प्रत्येक डायलिसिस की सफलता दर 100 प्रतिशत होनी चाहिए,” वह कहते हैं।

Kidney Dialysis

शशांक ने बुनियादी ढांचे की लागत को कम किया है। वह बताते हैं, “20-25 बिस्तर की सुविधा की कोई जरूरत नहीं है। किसी तालुका या शहर के एक निजी अस्पताल में 200 वर्ग फुट के कमरे में तीन से छह बिस्तरों की एक छोटी इकाई स्थापित की जा सकती है। इस तरीके से, अस्पताल को तैयार इंफ्रास्ट्रक्चर (ढांचा) मिल जाता है और कमाई दोनों साझेदारों के बीच बांटी जा सकती है।”

तीन बिस्तर के सेटअप में सामान्य रूप से लगभग 25 लाख रुपये का खर्च आता है, जिसमें 3.5 लाख रुपये के उपकरण की लागत शामिल है। शशांक कहते हैं, “हालांकि, हम उपकरण किराए पर लेकर और चिकित्सा व ऑपरेशन जैसी अन्य लागतों को पूरी करके, 5 लाख रुपये में ही यह सुविधा स्थापित कर सकते हैं।”

शशांक का कहना है कि इस तरह की सुविधा में जरूरी कर्मचारियों की संख्या भी कम है। “इस तरह के कदम से बुनियादी ढाँचे की कुल लागत को कम करने में मदद मिलती है, जिससे उपचार की लागत कम हो जाती है। अहमदनगर के शिरडी वाले केंद्र में, 725 रुपये में डायलिसिस (Kidney Dialysis) की जाती है।”

वह आगे बताते हैं कि कुछ केंद्र आधी कीमत पर उपचार देते हैं। “उदहारण के लिए, पुणे के बावधन में हेमोडायलिसिस की औसत लागत दो हजार रुपये है। हालांकि, हम इसी उपचार को 999 रुपए में करते हैं। इस तरह, मरीज को इन पैसों में ज्यादा उपचार मिलता है और उनका खर्च आधा हो जाता है।” यह स्टार्टअप सरकारी योजनाओं के तहत भी इलाज करता है। कुछ मरीजों को वह घर पर भी उपचार प्रदान कर रहे हैं। 

उनके सभी सेंटर मुनाफा नहीं कमा रहे हैं। वह कहते हैं, “प्रॉफिट कम है और शिरडी जैसे केंद्र में हर रोज मरीज भी नहीं आते हैं। लेकिन जरूरी यह है कि हम चिकित्सा सुविधा को सभी तक पहुंचाएं। हम 20 केंद्रों में लगभग 80% मुनाफे में चल रहे हैं। फ़िलहाल, इनसे 150 मरीजों को फायदा पहुँच रहा है और आगे की योजना हजार केंद्र बनाकर, हर दिन 10 हजार मरीजों को सुविधा प्रदान करने की है।”

उनके स्टार्टअप को दिसंबर 2019 में 100X.VC से 25 लाख रुपये की फंडिंग मिली, इसके बाद उन्हें अगस्त 2020 में एंजेल निवेशकों से 2.3 करोड़ रुपये मिले। शशांक कहते हैं, “ हमारी पहली प्राथमिकता उपचार को सुलभ बनाना और अधिक से अधिक लोगों की मदद करना है।”

मूल लेख: हिमांशु नित्नावरे 

संपादन- जी एन झा

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