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बचपन की यादें समेटे, कई स्वाद लेकर आई हैं मुंबई की रुचिरा, घर बैठे कर सकते हैं ऑर्डर

Food Startups In Mumbai

मुंबई की रुचिरा सोनलकर, अपने पति रोहन के साथ मिलकर ‘Native Tongue’ नामक एक कंपनी चलाती हैं, जिसके अंतर्गत वे प्राकृतिक और प्रेजर्वेटिव-फ्री जैम, स्टोन ग्राउंडनट बटर, सेवरी स्प्रेड, फ्रूट कॉर्डियल्स और डेजर्ट सॉस जैसे कई स्वादिष्ट खाद्य उत्पाद बेचते हैं।

खट्टी कैरी, नमक-मिर्च लगा चटपटा अमरूद या फिर शेंगदाना की चटनी! ये नाम सुनकर आपको बचपन की याद तो ज़रूर आई होगी। व्यस्त और भागमभाग वाली ज़िंदगी के बीच कुछ ऐसी चीज़ें हैं, जो हमें बीते वक्त की सैर करा लाती हैं। मुंबई की रहने वाली रुचिरा सोनलकर, कुछ ऐसा ही मज़ेदार स्वाद अपने (Food Startups In Mumbai) एक फ़ूड स्टार्टअप के ज़रिए लेकर आई हैं। जो निश्चित तौर पर बीते समय की कई याद समेटे हुए हैं।

40 वर्षीया, रुचिरा अपने पति रोहन के साथ ‘Native Tongue’ नामक एक कंपनी चलाती हैं। यहां वह जैम, स्टोन ग्राउंडनट बटर, सेवरी स्प्रेड, फ्रूट कॉर्डियल्स और डेजर्ट सॉस जैसे स्वादिष्ट उत्पाद बेचती हैं। रुचिरा कहती है कि वह कभी पेशेवर शेफ नहीं थी लेकिन, खाना बनाना उन्हें हमेशा पसंद था। यह कंपनी शुरु करने से पहले, उन्होंने 13 साल तक एक डिजिटल समाचार कंपनी के लिए प्रोडक्ट हेड के रूप में काम किया। 2014 में अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ी। यह वो समय था जब खाना बनाने को लेकर उन्होंने प्रयोग करना शुरु किया। उन्होंने कुछ महाराष्ट्रियन व्यंजनों पर हाथ आजमाना शुरु किया, जिनके बारे में ज़्यादा लोगों को जनकारी नहीं थी। फिर बाद में उन्होंने जैम और सॉस पर फोकस किया।

Food Startups In Mumbai

उन्हें पहला ब्रेक अपनी एक दोस्त की गोद भराई समारोह के दौरान मिला। यहां उन्हें मेहमानों के लिए स्प्रेड बनाने का ऑर्डर मिला। द बेटर इंडिया से बात करते हुए, रुचिरा कहती हैं, “यह हमारा पहला ऑर्डर था और लोगों ने इसका स्वाद काफी पसंद किया। बाद में और लोगों ने हमसे संपर्क किया और यहीं से हमारा सफ़र शुरू हुआ। हमने 2018 में अपना पहला ब्रांड, ‘जैम पैक्ड’ शुरू किया।” अब रुचिरा पूरी तरह बिजनेस में लग गई और रोहन ने अपनी नौकरी जारी रखी। लेकिन, उनसे जितना संभव हो पाता, वह रुचिरा की मदद करते।

स्वदेशी फ्लेवर्स से प्यार

रुचिरा कहती हैं, “हमने सब कुछ घर पर ही किया, रेसिपी तैयार करने से लेकर लेबल छापने तक। शुरुआत हमने छह फ्लेवर के साथ की – स्ट्रॉबेरी जैम, नमकीन कैरमल, रम कैरमल, हनी मस्टर्ड, मिर्च के साथ पीनट बटर और गार्लिक कॉनफिट। ये हमारे शुरूआती प्रयोग थे। हम देखना चाहते थे कि कौन सा फ्लेवर लोगों को सबसे ज़्यादा पसंद आएगा। लेकिन, लोगों से मिलने वाली प्रतिक्रिया उत्साह से भरने वाली थी। जिन लोगों ने कभी पीनट बटर नहीं खाया था, उन्हें मिर्च के साथ हमारा उत्पाद पसंद आया। क्योंकि, यह उन्हें शेंगदाना चटनी की याद दिलाता है। पीनट बटर 20 साल की उम्र के लोगों के साथ-साथ, 50 साल की उम्र के लोगों को भी पसंद आया। हमारे पास हनी मस्टर्ड भी है, जो कसुंदी की याद दिलाता है। “

रुचिरा कहती है कि भारत में स्वदेशी उपज की कई किस्में हैं, जिनके बारे ज़्यादा लोगों की पता नहीं है। वह आगे बताती हैं, “हमने उन सामग्रियों को उठाया, जिनमें या तो जीआई टैग था या उनके बारे में कुछ विशेष था। हम ऐसे स्वाद को जगाना चाहते थे, जिनके साथ बीते वक्त की याद जुड़ी हो। उदाहरण के लिए, हमने राजापुरी कैरी (आम) के साथ आम पन्ना बनाया। लोग जानते थे कि आम पन्ना क्या है लेकिन, हम इसके पीछे की उपज के बारे में बात करना चाहते थे। हमने कुछ दिलचस्प तरीके के साथ इसे बनाने की कोशिश की, जैसे कि हमने कैरी को आग में भूना। इससे एक अगल तरह ही मनमोहक खुश्बू उत्पन्न होती है, जो इसे अधिक चटपटा बनाता है। आप इसे पेय के रूप में सेवन कर सकते हैं या इसे पानी-पूरी में भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। क्योंकि इसमें एक फ्लेवर है, जो जलजीरे जैसा है। हमने गोंधराज नींबू के साथ मसाले भी बनाए। कई लोग काफिर नींबू से परिचित हैं, जो चीन से आता है। गोंधराज भी करीब-करीब वैसा ही नींबू है, फिर भी कई लोग इसके बारे में बहुत अधिक नहीं जानते हैं। ”

रुचिरा और रोहन उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन किसानों के साथ काम करते हैं, जिनके पास छोटी ज़मीन है। उदाहरण के लिए, उनके स्ट्रॉबेरी नासिक के एक छोटे से जैविक खेत से आते हैं। उनके मक्खन के लिए मूंगफली उनकी ही बिल्डिंग में रहने वाली 75 वर्षीया दादी से खरीदी जाती है, जो मूंगफली का व्यवसाय चलाती हैं। दादी अपने व्यवसाय के लिए मूंगफली सीधे काठियावाड़ से लाती है। इसी तरह, वह अपने अमरूद और शहतूत भी जैविक खेतों से लाती हैं।  

वह कहती हैं, “हमारा उद्देश्य, अलग-अलग मौसमों और क्षेत्रों के आधार पर उपज की बारीकियों और बदलते अंतर को उजागर करना है।” वर्तमान में ‘Native Tongue’ के विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पादों में 22 तरह के फ्लेवर उपलब्ध हैं। रुचिरा कहती हैं, “हमने अंजीर रैलिश बनाना भी शुरू किया। हम जीआई टैग किए गए अंजीर, महाराष्ट्र में पुरंदर के एक खेत से लेकर आए। वे स्वाद और खुश्बू से भरपूर हैं, जो हमारे खाद्य उत्पादों में स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है।”

तरह-तरह के स्वादिष्ट स्प्रेड

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दिसंबर 2019 में, इस जोड़े ने अपने व्यवसाय का नाम बदल कर ‘Native Tongue’ रख दिया। रुचिरा बताती हैं, ”हमारे उत्पादों में से केवल 20-30% ही जैम थे, इसलिए, हम अपने कारोबार का नाम कुछ ऐसा रखना चाहते थे, जो हमारे सभी खाद्य उत्पादों को दर्शाए।” रुचिरा बताती है कि तब तक कंपनी का सारा काम, लगभग 180 वर्ग फीट की छोटी सी रसोई से किया जा रहा था। लेकिन, जब उन्होंने अपने बिजनेस का विस्तार किया तो वे जनवरी 2020 में एक थर्ड-पार्टी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में चले गए। तब उनके बिजनेस ने अच्छी रिफ्तार पकड़ ली थी। लेकिन तीन महीने के भीतर, कोरोना महामारी के कारण पूरी तस्वीर ही बदल गई। लेकिन, उनके लिए एक अच्छी बात यह रही कि उन्होंने किसी जगह अपना निवेश नहीं किया था। इसलिए, उन दोनों ने फिर से अपनी ही रसोई से अपना बिजनेस करना सही समझा।

महामारी के दौरान ‘Native Tongue’ ने अपना काम जारी रखा। इस दौरान, स्थानीय और प्रेजरवेटिव-मुक्त भोजन खाने पर जोर के साथ, रुचिरा ने भी अपने खाद्य उत्पाद पर नए सिरे से फोकस किया और व्यवसाय काफी फला-फूला। वह कहती हैं, “इस साल जनवरी में, हमने अपने खाद्य उत्पादन के लिए 1,500 वर्ग फुट जगह ली है।”

उनका यह स्टार्टअप अपनी लागत से तैयार किया गया है। वह हंसते हुए कहती हैं, “आप मुझे एक एक्सीडेंटल ऑन्ट्रप्रनर कह सकते हैं। हम एक सर्विस-क्लास परिवार से आते हैं। हमने कभी नहीं सोचा था कि अपना खुद का व्यवसाय शुरु करेंगे। चार महीने पहले तक मेरे पति, मेरे साथ केवल पार्ट-टाइम काम कर रहे थे। लेकिन, अब वह पूरा समय बिजनेस को दे रहे हैं।” रुचिरा बताती हैं कि जनवरी में, उन्हें दोस्तों और परिवार से कुछ राशि मिली है ताकि उनका काम चलता रहे।

सभी खाद्य उत्पादों में, ब्याडगी मिर्च (मूल रूप से कर्नाटक से) के साथ बना ‘पीनट बटर’ सबसे लोकप्रिय है। गार्लिक कॉनफिट की बिक्री भी अच्छी होती है। वह कहती हैं, “जब हमने यह प्रोडक्ट शामिल किया तो बहुत से लोगों ने हमें ऐसा करने से मना किया। क्योंकि, ‘कॉनफिट’ शब्द अनसुना और डरावना सा लगता है। लेकिन हम भारतियों को लहसुन काफी पसंद होता है। इसके अलावा, धीमी आंच पर भुने हुए लहसुन का उपयोग भी कई जगह कर सकते हैं। आप इसे अपने आलू पराठा या पाव भाजी में इस्तेमाल कर सकते हैं।” ‘Native Tongue’ को हर महीने करीब 1,500 ऑर्डर मिलते हैं और ये अपने खाद्य उत्पाद, पूरे भारत में सप्लाई करते हैं। जिसमें मिज़ोरम और जम्मू और कश्मीर भी शामिल हैं।

त्योहार के सीजन के दौरान, ऑर्डर लगभग 3,500 तक बढ़ जाते हैं। रुचिरा ने बड़े ब्रांड जैसे- ‘बेकर्स डज़न’ और फॉर्च्यून के होटलों के साथ भी करार किया है। खाद्य उत्पादों की कीमत 200 रुपये से 600 रुपये के बीच है।

रुचिरा कहती हैं, “हम नहीं चाहते कि हम बड़े खाद्य उत्पादक बनकर, प्राकृतिक और घर के खाने के स्वाद वाला अहसास ही खो दें। यही कारण है कि हम कई बड़े ब्रांड के साथ तालमेल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे- अगर कोई अच्छी सवरडो ब्रेड बेच रहा है तो हम उसके साथ परोसा जाने वाला जैम होना चाहते हैं।”

बेकर्स डज़न की मार्केटिंग मैनेजर रुचिका केड़िया का कहना है कि उनकी इसी सोच के कारण, हमारी कंपनी एक महीने पहले ‘Native Tongue’ के साथ जुड़ी है। वह कहती हैं, “पिछले साल हमने अक्सर देखा कि कई लोग ब्रेड के साथ खाए जाने वाली चीज़ों के बारे में पूछ रहे थे। हमने हाल ही में, ‘Native Tongue’ ब्रांड के बारे में जाना। उनके खाद्य उत्पादों में कोई प्रेजरवेटिव नहीं हैं, यह देख कर हमारे हेड बेकर काफी प्रभावित हुए। उनके पास एक बहुत ही अनोखा फ्लेवर सेट है, जैसे- ठंडाई नट बटर और आलू बुखारा प्रिजर्व। स्प्रेड की बिक्री काफी अच्छी हो रही है तथा हम इन उत्पादों को दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और बेंगलुरु में अपने सभी स्टोर पर बेचते हैं। मुंबई में, विशेष रूप से प्रतिक्रिया बहुत ही अच्छी रही है। उनके खाद्य उत्पाद लॉन्च होने के दो दिनों के भीतर ही, आउट ऑफ स्टॉक हो गए। विशेष रूप से, मलबरी प्रिजर्व और हनी मस्टर्ड की बिक्री काफी अच्छी रही है।”

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एक मजबूत सपोर्ट सिस्टम

रुचिरा कहती हैं कि उनका दिन सुबह लगभग साढ़े नौ बजे शुरू होता है, जिसमें वह खाद्य उत्पादन की देखरेख करती हैं। रोहन मार्केटिंग और पैकेजिंग देखते हैं। उनके पास फ्रीलांसर भी हैं, जो पीआर और ब्रांड कम्यूनिकेशन में उनकी मदद करते हैं।

एक बिजनेस वुमन के रूप में अपने सफ़र पर, रुचिरा ने माना कि उनके लिए चीजें इतनी कठिन नहीं रही। वह कहती हैं, “लेकिन रोहन ने मेरे बिजनेस के लिए नौकरी छोड़ दी, जो हर किसी के लिए संभव नहीं है।”

वह कहती हैं, “मुझे लगता है कि महिलाएं अक्सर सपोर्ट सिस्टम की तलाश नहीं करती हैं, जो बाद में एक परेशानी के रूप में सामने आती है। मैं भाग्यशाली हूं कि मेरे पास एक ऐसा परिवार है, जिनसे मुझे पूरी मदद मिलती है और मेरा प्रोत्साहन भी बढ़ाते हैं। मेरी मां ने एक स्पॉट फाइनेंसर के रूप में हमारे बिजनेस में कदम रखा और मेरी सास ने मेरे बच्चे की देखभाल की। सबसे मदद लेना जरूरी है। हम सबको कहीं ना कहीं मदद की ज़रूरत होती है।”

रुचिरा बताती हैं कि उनका यह सफ़र धीमा पर आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता हुआ और कई सीखों से भरा हुआ है। वह कहती हैं, “हम अचार और मुरब्बा की एक समृद्ध संस्कृति से हैं लेकिन, जब मैंने काम शुरू किया तो मैंने पाया कि कैन बनाने वाली चीजें आसानी से उपलब्ध नहीं है। इसलिए, मैंने खाद्य-ग्रेड प्लास्टिक की बोतलों को काटकर, चौड़े फनल जैसा बनाया और कैनिंग उपकरण के रूप में उपयोग किया। सप्लायर को ढूंढना और एक स्थिर चेन स्थापित करना या सही प्रकार की पैकेजिंग खोजना भी एक चुनौती थी। वह कहती हैं, “मुझे काफी घूमना पड़ता है, यहां तक कि मैं APMC बाजारों में भी घुटने भर गटर के पानी में भी घूमी हूं। लेकिन आखिर में, खाद्य उत्पादों को जो प्रतिक्रिया मिलती है, उसके लिए ये सब जायज है।”

आज, ‘Native Tongue’ ने पूरी तरह से प्लास्टिक-मुक्त पैकेजिंग को अपनाया है। उनके उत्पाद कांच की बरनी में आते हैं और रिसायकल्ड पेपर में पैक किए जाते हैं।

‘Native Tongue’ स्लो फ़ूड (स्थानीय पाक परंपराओं के अनुसार उत्पादित और तैयार की जाने वाली तथा आमतौर पर उच्च गुणवत्ता वाले स्थानीय सामग्री का उपयोग करके बनाए जाने वाले खाद्य उत्पाद) के सिद्धांतों का पालन करने की कोशिश करता है। उदाहरण के लिए, अपने स्टोन ग्राउंट नट बटर के साथ, वह स्वाद के साथ-साथ पोषण का भी पूरा ख्याल रखती हैं। वह कहती है, “जब आपके उत्पादन की गुणवत्ता अच्छी होती है तो आप रेसिपी को सरल रख सकते हैं और सामग्रियां अपने आप ही इन्हें अच्छा बना देती हैं। जिससे आपको अपने ग्राहकों को इनकी गुणवत्ता बताने की जरूरत नहीं पड़ती। क्योंकि, इन्हें देख कर ही वे इनकी गुणवत्ता का अनुमान लगा लेते हैं।”

‘Native Tongue’ के खाद्य उत्पाद देखने के लिए आप इसके फेसबुक और इंस्टाग्राम पेज को देख सकते हैं।

मूल लेख: दिव्या सेतू

तस्वीर सौजन्य: रुचिरा सोनलकर

संपादन – प्रीति महावर

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