मध्यप्रदेश : इस आईएएस अफ़सर की एक पहल दिला रही है ज़रूरतमंद लोगों को मुफ़्त दवाएं और इलाज!

पंजाब के भटिंडा में जन्में व पले-बढ़े डॉ संजय गोयल (बाल रोग विशेषज्ञ) ने कभी भी सिविल सर्विसेज ज्वाइन करने के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन जब उन्हें लगा कि समाज में स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए एक कुशल प्रशासन अत्यंत आवश्यक है। वे मध्य-प्रदेश में आईएएस के रूप में नियुक्त हुए।

पंजाब के भटिंडा में जन्में व पले-बढ़े डॉ संजय गोयल (बाल रोग विशेषज्ञ) ने कभी भी प्रशासनिक अधिकारी बनने के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन जब उन्हें लगा कि समाज में स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाने के लिए एक कुशल प्रशासन की बहुत ज़रूरत है, तो उन्होंने सिविल सर्विस के बारे में सोचा।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए डॉ. गोयल ने बताया कि कैसे पंजाब के गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में काम करने के बाद उन्हें स्वास्थ्य, बीमारी और गरीबी के दुष्चक्र और किसी भी राज्य के भविष्य के विकास पर इसके प्रभाव के बारे में पता चला।

“पंजाब के एक छोटे से गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक चिकित्सा अधिकारी के रूप में काम करते हुए मैंने स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता, शिक्षा (विशेष रूप से वंचित वर्गों की लड़कियों के लिए) और दवाओं की कमी जैसे बुनियादी सुविधाओं की कमी देखी। मुझे एहसास हुआ कि किसी भी समाज की स्वास्थ्य स्थिति न सिर्फ डोक्टरों की उपलब्धता पर निर्भर है बल्कि इसके लिए देश के प्रशासन विभाग में हर एक क्षेत्र के विशेषज्ञों का उच्च पदों पर होना भी ज़रूरी है,” उन्होंने कहा।

पंजाब के एक गांव में मेडिकल अफ़सर के तौर पर जब वे काम कर रहे थे, तब उनके साथ हुई एक घटना ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दे दिया।

“एक गरीब लड़की अपने पिता के साथ बार-बार मेरे पास आती थी। उसके पिता एक बंधुआ मजदूर थे, जिन्हें उनकी कमाई के रूप में पैसे नहीं मिलते। लगभग सात साल की होने के बावजूद, उसका सरकारी स्कूल में दाखिला नहीं हुआ, क्योंकि उसके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं था! जिसके लिए उसके पिता को सबसे पास के तहसील-मुख्यालय तक जाने तक के पैसे नहीं थे। तब मुझे महसूस हुआ कि आम लोगों की ज़िन्दगी में बदलाव लाने के लिए प्रशासनिक तंत्र का हिस्सा होना कितना ज़रूरी है,” डॉ गोयल ने बताया।

साल 2003 में मध्य प्रदेश कैडर में वे आईएएस के तौर पर भर्ती हुए। उनके नाम पर अनेकों उपलब्धियां दर्ज हैं। उन्होंने अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भरपूर मेहनत की। सीहोर जिले में ग्रामीण स्तर पर आरोग्य स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण में उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

यह एक ऐसा मॉडल है जिसे पूरे राज्य में दोहराया गया औरसुचारू रूप से चलाया भी गया! निति आयोग की 12 वीं योजना समीक्षा में भी इसका उल्लेख किया गया है।

उन्हें ग्वालियर जिले को जिला मजिस्ट्रेट के रूप में सिर्फ नौ महीने के दौरान खुले शौच मुक्त (ओडीएफ) क्षेत्र में बदलने का गौरव भी प्राप्त है। इसके अलावा केंद्र की ‘बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ’  योजना के तहत अभिनव अभियान आयोजित करने के लिए उन्हें सराहना मिली। आज वे राज्य संचालित वितरण और खुदरा आपूर्ति फर्म के प्रबंध निदेशक हैं।

डॉ. संजय गोयल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में 17 नवंबर, 2012 को राज्य सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के निदेशक के रूप में शुरू की गई मध्य-प्रदेश सरकार की ‘फ्री मेडिसिन स्कीम’ की सफल योजना है।

डॉ संजय गोयल आईएएस 2003 बैच

मध्य-प्रदेश सरकार ने इस योजना को सभी क्षेत्रों के मरीजों को बुनियादी आवश्यक दवाएं नियमित रूप से उपलब्ध कराने के लिए शुरू किया है। इस योजना के तहत, सभी सरकारी अस्पतालों में जेनेरिक दवाएं निःशुल्क वितरित की जाती हैं। जिला अस्पतालों से उप-स्वास्थ्य केंद्रों तक नि:शुल्क निदान सुविधा (ईसीजी, सोनोग्राफी, इकोकार्डियोग्राफी और एक्स-रे परीक्षण) के प्रावधानों के साथ गरीब नागरिक बिना किसी भुगतान के इलाज करवा सकते हैं।

अगर निर्धारित दवा स्टॉक से बाहर है या उपलब्ध नहीं है, तो डॉक्टर की सलाह पर अगली वैकल्पिक दवा निर्धारित की जाती है। डॉक्टरों के परामर्श के अनुसार मरीजों को मुफ्त दवाएं मुहैया कराई जा रही हैं।

720.59 लाख (सभी राज्यों में सातवीं रैंक पर) की आबादी के साथ, जनसंख्या घनत्व के मामले में राज्य आश्चर्यजनक रूप से 23वें नंबर पर है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो राज्य का क्षेत्रफल ज्यादा होने की वजह से जनसंख्या ज्यादा जगह में फैली हुई है और इसी कारण यहाँ जनसंख्या घनत्व बाकी राज्यों के मुकाबले कम है। ज़्यादातर राज्य स्वास्थ्य के क्षेत्र में कम पहुंच और ज्यादा खर्च जैसी समस्यायों से जूझ रहे हैं, मध्य-प्रदेश भी उनमें से एक है। इस स्कीम का उद्देश्य भी इन मुद्दों को हल करना है।

केंद्र सरकार के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के साथ मिलकर, राज्य सरकार ने इस योजना को कार्यान्वित करने के तरीकों पर एक विस्तृत कार्य योजना बनायीं। सार्वजनिक स्वास्थ्य पर काम कर रहे अमेरिका की एक स्वय सेवी संस्था, एफएचआई 360 द्वारा तैयार एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं:

1. आम जन की सुविधाओं के लिए दवाओं की आसान और निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई पहल की गईं। ज़रूरी दवाइयों की लिस्ट में संशोधन किये गए, प्रोक्योरमेंट के लिए सलाहकार नियुक्त किये और डब्ल्यूएचओ जीएमपी (विश्व स्वास्थ्य संगठन अच्छा विनिर्माण अभ्यास) पसर्टिफिकेशन भी शुरू किया गया। समय-समय पर दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए जिला अधिकारियों को निर्देश भेजे गए।

2. राज्य औषधि प्रबंधन सूचना प्रणाली (एसडीएमआईएस), एक सूची प्रबंधन सॉफ्टवेयर द्वारा जिला भंडार में दवा भंडार संतुलन की नियमित निगरानी रखी जाती है। साथ ही सभी जिलों में स्कीम के लिए एक विस्तृत कार्य योजना भेजी गयी है।हर दिन के दवाओं के लेनदेन के सभी रिकॉर्ड कंप्यूटर में रखे जाते हैं ताकि मूल्यांकन आसान हो। एसडीएमआईएस का उपयोग करके दवा उपलब्धता, ऑर्डर प्लेसमेंट, आपूर्ति प्राप्त आदि की निगरानी हर रोज की जाती है।

3. लोगों का दवाओं की गुणवत्ता के प्रति आश्वासन बढ़ाने के लिए डब्ल्यूएचओ-जीएमपी द्वारा प्रमाणित दवाइयों को अप्रैल 2013 से दवाओं के टेंडर में शामिल किया गया है। दवाओं और अन्य सर्जिकल वस्तुओं को एनएबीएल (परीक्षण और अंशांकन के लिए राष्ट्रीय मान्यता बोर्ड प्रयोगशालाओं) मान्यता प्राप्त लैब्स में जांच के लिए भेजा जाता है।

हालांकि, प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती राज्य के 51 जिलों में दवाओं की खरीद और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन की निगरानी करना था।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकारी अस्पताल में (एमपी गवर्नमेंट)

4. ऐसे में एसडीएमआईएस काम में आया। इससे मांग का पूर्वानुमान लगाया गया, साथ ही हर एक आइटम का रेट कॉन्ट्रैक्ट रखा जाता। इसके अलावा यह ऑर्डर प्लेसमेंट, आपूर्तिकर्ता मॉड्यूल, भुगतान विवरण और स्टॉक विवरण जैसे मुद्दों का ख्याल रखता है।

इसके अलावा, एफएचआई 360 रिपोर्ट के मुताबिक, यह प्रणाली “अनुमान की मांग के साथ-साथ दवा आपूर्ति की स्थिति, कितनी और किस तरह से खपत हो रही है, विक्रेता का प्रदर्शन, भुगतान दक्षता, पुरे खर्च को ट्रैक करना, दवा खत्म होने पर प्रबंधन करना और सूची प्रबंधन की निगरानी करने में भी मदद करती है।”

5. गुणवत्ता नियंत्रण के विषय पर, एसडीएमआईएस विक्रेता के प्रदर्शन की जाँच करने के लिए डेटा प्रदान करता है, जिसे राज्य खरीद के समय आपूर्तिकर्ताओं के चयन से संबंधित निर्णय लेने के लिए उपयोग कर सकता है।

डॉ गोयल की निगरानी में प्रशासन ने ये कुछ कदम उठाये। इसके अलावा आप इसके बारे में पूरी जानकारी यहाँ पढ़ सकते हैं।

क्या इस योजना ने काम किया?

एफएचआई 360 द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, प्रभाव वास्तविक था। जिला और नागरिक अस्पतालों में उपलब्ध दवाओं की संख्या और प्रकारों में बढ़ोतरी के अलावा, ब्लॉक स्तर, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उप-स्वास्थ्य केंद्रों पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी मरीजों की संख्या बढ़ने लगी। यह व्यापक रूप से आबादी की बढ़ती मांग और उन तक पहुंच में होने वाली बढ़ोतरी का संकेत है।

“सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में ओपीडी मरीजों की संख्या और आईपीडी प्रवेश क्रमशः 2012 से 2014 तक 85.4% और 33.4% की औसत से बढ़ा। राज्यव्यापी अनुमान से पता चलता है कि 2014 में ओपीडी में संख्या 2.8 करोड़ से बढ़कर 2014 में 5.1 करोड़ हो गयी। ओपीडी में मरीजों की संख्या में अधिकतम परिवर्तन 2012 और 2013 के बीच 47.4% और 2013 और 2014 के बीच 48.9% पर पीएचसी में देखा गया है; इसके बाद सीएसी 2012 और 2013 के बीच 31.1% और 2013 और 2014 के बीच 42.5% दिखा।”

ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ओपीडी मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी अत्यधिक देखने को मिली। इस बीच, अध्ययन के लिए अव्यवस्थित रूप से चयनित 687 रोगियों का साक्षात्कार किया गया, जिसमें 65% का मानना ​​था कि दवाएं प्रभावी और अच्छी गुणवत्ता वाली थीं, जबकि 78% मानते थे कि इस योजना ने उन्हें स्वास्थ्य सुविधा लेने के लिए प्रेरित किया है। स्थानीय सहायक नर्स मिडवाइव (एएनएम) और मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) मुख्य रूप से इस योजना के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिए जिम्मेदार थे।

“687 मरीजों के साक्षात्कार में से, औसतन 44% जानते थे कि यह योजना सभी को मुफ्त दवाएं प्रदान करती है, 549 मरीजों को उनके लिए निर्धारित दवाएं मिली हैं, जिनमें से बहुमत (94% औसतन सुविधाएँ )को बाहर से दवाएं खरीदने की जरूरत नहीं पड़ी, और बहुमत (92% औसतन) को मुफ्त दवाएं मिली। रिपोर्ट के मुताबिक कुल मिलाकर, 52.5% उत्तरदाताओं ने सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में दवाओं और नैदानिक ​​सेवाओं की उपलब्धता में बदलाव के बारे में सकारात्मक धारणा व्यक्त की थी।

हालांकि, इस योजना का सबसे मज़ेदार पहलू यह है कि कैसे नागरिक अब जिला अस्पताल जाने से पहले स्थानीय पीएचसी जाकर चेक-अप करवाते हैं।

प्रतीकात्मक चित्र/फेसबुक

“इस योजना के लॉन्च होने के बाद से, समुदाय के सदस्य पहले निकटतम पीएचसी से संपर्क करते हैं और उसके बाद, यदि आवश्यक हो, तो जिला अस्पताल जाते हैं,” डिंडोरी के पहाड़ी क्षेत्र में एक मेडिकल अधिकारी ने एफएचआई 360 सर्वेक्षकों से कहा।

एफएचआई 360 की रिपोर्ट के मुताबिक, इन उत्साही आंकड़ों के बावजूद, कुछ वास्तविक चुनौतियां हैं। सबसे पहले तो वो डॉक्टर जो राज्य की आवश्यक दवा सूची में से निर्धारित दवाएं नहीं लिखते हैं। ऐसे में दवाओं की भरपूर आपूर्ति है लेकिन फिर भी स्थानीय स्तर पर इन दवाओं की मांग नहीं होती।

इसके अलावा हेल्थ वर्करों की भी कमी है, जिससे की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इस बीच, एक स्टोर कार्यकर्ता ने कहा, “कई पीएचसी फार्मासिस्ट द्वारा संचालित होते हैं, जो न्यूनतम दवा सूची में दवाओं के उपयोग को नहीं जानते हैं। इसलिए, वे उसमें से दवाएं निर्धारित नहीं करते हैं।”

मरीजों की संख्या बढ़ने से और कर्मचारियों की संख्या कम होने के कारण ड्रग वितरण काउंटर में विशेष रूप से एक समस्या है। राज्य की राजधानी में एक डॉक्टर के मुताबिक, “इस योजना के लॉन्च होने के बाद ओपीडी और आईपीडी में लगभग 50% की वृद्धि हुई है और ड्रग डिस्ट्रीब्यूशन काउंटर में कतार का प्रबंधन सीमित कर्मचारियों के चलते एक बड़ी समस्या बन गया है। कभी-कभी तो मार पीट हो जाती है।”
डॉक्टरों के अनुसार, न्यूनतम दवा सूची पर एक चिंता यह भी कि यह उनकी वास्तविक आवश्यकताओं को नहीं दर्शाता है। कई स्टोर मालिकों ने भी इस भावना को साँझा किया।

एक डॉक्टर ने कहा, “सूची में से लगभग 50 दवाएं वास्तव में अक्सर उपयोग की जाती हैं। ऐसे में बाकी दवाएं रखे-रखे ही एक्सपायरी डेट पर आ जाती है। जिसके चलते इन्हें इलाज़ के लिए प्रयोग में नहीं लाया जा सकता।”

प्रतीकात्मक चित्र/फेसबुक

हालांकि, यह योजना इन सभी चुनौतियों के अलावा राज्य में स्वास्थ्य विभाग की स्थिति बहुत हद तक सुधारने में कामयाब रही है। पेरासिटामोल से लेकर अब कैंसर की दवाओं तक के लिए नागरिकों को अत्यधिक खर्च नहीं करना पड़ता है।

डॉ गोयल कहते हैं, “चुनौतियां बनी रहती हैं, लेकिन कम से कम हम बुनियादी ढांचे को बनाये रखने में अभी तक सफल रहे हैं।” बेशक, यह कोई वन मैन शो नहीं था। हजारों डॉक्टरों, सरकारी अधिकारियों, सामुदायिक नेताओं और स्वयंसेवकों के अलावा, वह तत्कालीन स्वास्थ्य आयुक्त पंकज अग्रवाल और प्रधान सचिव प्रवीर कृष्ण को भी इस मुफ्त दवा योजना के कार्यान्वन में मार्गदर्शन के लिए श्रेय देते हैं।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के निदेशक के रूप में डॉ गोयल का कार्यकाल साल 2014 में खत्म हुआ था। लेकिन जब भी वे पीछे मुड़कर देखते हैं तो उन्हें ख़ुशी होती है कि वे समाज के लिए कुछ करने में कामयाब रहे।

उनका कहना है, “ऐसे कठिन कार्यों को पूरा करने के बाद आपको जो संतुष्टि मिलती है, जिसका लाखों लोगों के जीवन पर वास्तविक असर पड़ता है वह बहुत ही अद्वितीय और बेमिसाल है।”

मूल लेख: रिंचेन नोरबू वांगचुक


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X