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ससुर ने पढ़ाया तो महिला किसान ने ऑर्गेनिक खेती कर लाखों में पहुँचाई कमाई

खेती में किए नवाचारों के लिए ललिता को राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

‘किसान’ इस शब्द को सुनते ही हर किसी के दिमाग में एक पुरुष की छवि उभरती है, लेकिन उन्हीं के साथ साए की तरह खेती-बाड़ी में मदद करने वाली महिलाएँ, किसान का दर्जा कभी नहीं हासिल कर पातीं। वह बस किसान पति की ढाल बनकर ही रह जाती हैं। लेकिन आज की कहानी कुछ अलग है, आज हम एक ऐसी महिला किसान के बारे में बताने वाले हैं जो जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) के लिए देशभर के सैकड़ों किसानों की रोल मॉडल हैं। नाम है, ललिता सुरेश मुकाती, जो मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के छोटे से गांव बोरलाय की रहने वाली हैं। ललिता ‘इनोवेटिव फॉर्मर’ और ‘हलधर जैविक कृषक राष्ट्रीय सम्मान’ जैसे कई अवॉर्ड से सम्मानित हैं।

बीए ग्रेजुएट ललिता ने करीब 20 साल पहले पति से खेती के गुर सीखने शुरू किए थे। अब 37.5 एकड़ खेत में पति के सहयोग से खुद खेती करती हैं। खेती सीखने के लिए वह इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, दुबई तक जा चुकी हैं। आज जब अधिकतर किसान रातों-रात ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए खेतों में रसायन का प्रयोग कर रहे हैं, तब इन सब के बीच ललिता ने पेस्टिसाइड फ्री ज़मीन पर लाखों की कमाई वाली फसलें उगाई हैं।

‘द बेटर इंडिया’ से बात करते हुए ललिता ने बताया कि उनका जन्म एमपी में ही मुनावरा के पास एक गांव में हुआ। गांव में लड़कियों का 12वीं तक पढ़ना ही बहुत बड़ी बात होती थी। इकलौती संतान ललिता को उनके पिता ने पढ़ाया और बेटी को आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखा। उनके पिता कभी नहीं चाहते थे कि बेटी की शादी किसी किसान से हो और वह सिर्फ एक गृहिणी बनकर रह जाए। उनके पिता बेटी को पढ़ा-लिखाकर कुछ बनाना चाहते थे, लेकिन परस्थितियां ऐसी रहीं कि 20 अप्रैल 1996 को ललिता की शादी कृषि विज्ञान से ग्रेजुएट ‘सुरेश मुकाती’ से हो गई। समय बीता और ललिता के पति ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए जॉब की बजाय खेती को चुना।

बेटी का ससुराल संपन्न था लेकिन वहघरेलू कामों में ही जिंदगी गुजार देगी, इस बात की चिंता पिता को हमेशा रही। पिता की इसी इच्छा को ध्यान में रखकर ललिता हर पल कुछ करने के बारे में  सोचती तो थीं, पर उन्हें लगा कि शादी के बाद उनकी पढ़ाई छूट जाएगी। लेकिन ललिता के ससुर पूरे गाँव में सम्मानित किसान का दर्जा रखते थे। वह काफी पढ़े लिखे थे इसलिए बहू को भी आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। ससुराल में आकर उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और वह पाँच बच्चों की माँ बनीं। इस दौरान उन्होंने सिर्फ गृहस्थी पर ही ध्यान दिया। बच्चे बड़े हुए तो उन्होंने 100 एकड़ जमीन में अकेले पति को पसीना बहाते देख, मन ही मन फैसला ले लिया कि वह खेती करेंगी।

आखिर वह दिन आया जब ललिता खेत में फावड़ा लेकर जमीन को समतल करने उतर गईं?

मुकाती बताती हैं कि उन्होंने स्वेच्छा से किसानी सीखी। इसमें उनके पति ने उनकी पूरी मदद की। ललिता के पति सुरेश किसानी के कारण बहुत बार शहर जाते थे। ऐसे में खेती का काम प्रभावित होता था। उन्होंने एक दिन पति से इस बारे में विस्तार से बात की और कहा कि वह खेती की एबीसीडी से लेकर मजदूरों के रुपये-पैसे के हिसाब तक सब जानना चाहती हैं। ललिता ने पूरे मन से किसानी में खुद को झोंक दिया और एक साधारण किसान से बढ़कर ‘इनोवेटिव और ऑर्गेनिक फॉर्मर बनीं।

“वह फावड़ा चलाती है, वह ट्रैक्टर चलाती है,
बीज बोने वह खेत में अकेली ही जुत जाती है।“

ललिता अपने खेत में काम करतीं हुईं

किसानी सिखाने में ललिता को पति का पूरा सपोर्ट मिला। उन्होंने पत्नी को जमीन, मिट्टी, बीज और फसल तक की जानकारी विस्तार से दी। अब दोनों साथ खेतों में ही नहीं बल्कि शहर में किसानों की मीटिंग में भी जाने लगे। ऐसे ही जानकारी जुटाते हुए जब ललिता को पेस्टिसाइड के नुकसान का पता चला तो वह सोचने लगीं कि शायद हम ज़हर उगा रहे हैं। सैकड़ों बीमारियां और लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रख, ललिता आगे बढ़कर जैविक खेती को सीखने-समझने लगीं।

जैविक खेती की ओर कदम

उन्होंने पूरे 20 एकड़ में सीताफल (कस्टर्ड एप्पल) की जैविक खेती करने से शुरुआत की। ललिता ने किसानी में कदम रखा तो सबसे पहले अपनी जमीन को पेस्टिसाइड फ्री कर दिया। उन्होंने बताया कि साल 2015 से अपने खेत में कीटनाशक डालना पूरी तरह बंद कर दिया। ललिता ने पेस्टिसाइड फ्री की पुरजोर वकालत की और हर किसान मीटिंग में इस मुद्दे को उठाया।

इसके लिए उन्हें साल 2018 में  ‘हलधर जैविक कृषक राष्ट्रीय सम्मान’ और साल 2019 में पूसा में इनोवेटिव फॉर्मर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा सैकड़ों टीवी चैनलों पर वह किसान अवार्ड्स से सम्मानित होती रही हैं।

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महिला किसान अवार्ड के दौरान ललिता (मध्य)

ललिता ने अपने हाथों से जैविक खाद बनाई है। ये काम बेहद मुश्किल था लेकिन उन्होंने लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हेल्दी फल-सब्जियां और फसले उगाने की ठानी। अपने बाग-बगीचों से वह कई प्रकार के पत्ते चुन-चुनकर लातीं और खाद बनातीं। उन्होंने जैविक खेती के लिए एक नई तकनीक बनाई, इसमें कई प्रकार के पत्ते, गोबर, गोमूत्र और रसोई से निकलने वाले कचरे से ही उन्होंने कीटनाशक तैयार किया। इससे उनकी खेती फलने-फूलने लगी और उनका रसायन पर खर्च जीरो आया।

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जैविक खाद बनाते हुए

जैविक खेती करके ही मुकाती ने प्रति एकड़ 20 प्रतिशत लागत के साथ 80 प्रतिशत का मुनाफा कमाया। उन्होंने जैविक खेती से लाखों की कमाई करके कीर्तिमान रच डाला। और आज उनसे सीखकर ही उन्हीं के गाँव में हजारों एकड़ में सीताफल की खेती शुरू हो गई है, जिसकी उन्हें बहुत ख़ुशी है।

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सीताफल की खेती में किया कमाल (ललिता का हर पल साथ देने वाले उनके पति के साथ )

इतना सब करने के बावजूद भी उन्होनें खुद को एक दक्ष किसान नहीं माना। एक दिन मजदूर और ड्राइवर के न आने पर उनका काम ठप्प पड़ गया और कोई ट्रैक्टर चलाने वाला नहीं मिला। ऐसे में उन्होंने गैती, फावड़ा चलाने के साथ-साथ ट्रैक्टर चलाना भी सीखा। इस घटना से उन्होंने ठान लिया कि किसी पर निर्भर नहीं रहना है। अब खेतों में ललिता को ट्रैक्टर चलाते देख पुरुष किसान भौंचक्के रह जाते हैं।

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ट्रैक्टर चलाती हुई ललिता

नई तकनीकी अपनाकर हुआ लाभ 

जैविक खेती के अलावा भी ललिता ने काफी इनोवेटिव काम शुरू किए हैं। ललिता ने ‘टपक विधि’ से सिंचाई शुरू की। उन्होंने जल संरक्षण और बिजली बचाव के लिए भी घरेलू और नायाब तरीके खोज निकाले और उनको स्थापित भी किया। टपक सिंचाई पद्धति वह विधि है, जिसमें जल को बूंद-बूंद के रूप में फसलों के जड़ क्षेत्र में एक छोटी व्यास की प्लास्टिक पाइप से दिया जाता है। इस विधि से पानी की 70 प्रतिशत तक बचत होती है। मिट्टी का कटाव नहीं होता। खेती की लागत कम होती है। फसलों की पैदावर 150 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। यह विधि लवणिय, पहाड़ी या बलुई मिट्टी करीब हर जगह काम आती है।

ललिता मप्र. राज्य प्रमाणीकरण संस्था भोपाल से पंजीकृत 37.5 एकड़ भूमि में खेती करती हैं।वह खासतौर पर सीताफल की खेती के लिए प्रसिद्ध हैं। 20 एकड़ में सीताफल का बगीचा, साढ़े तीन एकड़ में आंवला चीकू और नींबू लगाए हैं। इसके अलावा वह 5 एकड़ में हल्दी, 4 एकड़ में देशी मूंग, 2 एकड़ में देशी गिरनार मूंगफली,  2 एकड़ में मक्का, 1 एकड़ में अदरक भी उगा रही हैं।

इसके अलावा,  ललिता के घर में बायोगैस से ही खाना पकता है। उन्होंने बिजली के खर्च को भी जीरो कर लिया है। घर में लगे सोलर पैनल से खेती के अलावा घर की जरूरत की बिजली बना लेती हैं।

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अपने इनोवेटिव कार्य का शुभारंभ करते मुकाती दंपत्ति

बच्चों को भी बनाया खूब काबिल

खेती के अलावा ललिता मछली पालन भी कर रही हैं। उन्होंने बारिश का पानी इकट्ठा कर मछली पालना शुरू किया है। इसके अलावा खेतों की सिंचाई के लिए बनाए गए छोटे कुएं (हौद) को भी मछली पालन में इस्तेमाल कर रही हैं। 

किसान होने के अलावा ललिता मुकाती ने अपने माँ होने के फर्ज को भी बखूबी निभाया है। उन्होंने पांचों बच्चों को हाई-क्लास शिक्षा दी, उनके बच्चों ने भी ऊंचे पदों पर जगह बनाकर माता-पिता का नाम रोशन किया है। ‘द बेटर इंडिया’ से बात करते हुए बड़ी खुशी से मुकाती अपने बच्चों की सफलता के बारे में बताती हैं। उनकी बड़ी बेटी एक डेन्टिस्ट हैं, दूसरी बेटी इलाहाबाद कैंट में अफसर और छोटी बेटी का हाल ही में आईआईटी में सिलेक्शन हुआ है। वहीं उनका सबसे छोटा बेटा पढ़ाई कर रहा है।

52 की बुजुर्ग हो चलीं ललिता को कमर में दर्द की शिकायत रहती है इसलिए अब वह खेतों में बड़े ट्रैक्टर नहीं चलाती हैं। समय रहते उन्होंने अपने 22 साल के बड़े बेटे शिवम मुकाती को खेती संभालने की जिम्मेदारी सौंप दी है। बेटा शिवम एग्रीकल्चर से ही ग्रेजुएट है। लॉकडाउन से पहले उन्होंने तरबूज, भिंडी आदि की सफल खेती करके माँ को अपनी काबिलियत का नमूना पेश किया था।

भविष्य की योजनाएं 

मुकाती भविष्य में अपने लक्ष्य को लेकर पूछे गए सवाल पर कहती हैं कि उन्होंने सीताफल के पल्प (गूदा) स्टोरेज का काम शुरू किया है। इसे वह आगे बढ़ाना चाहती हैं। सीताफल कच्चा ही बिकता है, पकने के बाद इस फल को स्टोर नहीं किया जा सकता। फसल के नुकसान को देख वह घर पर मशीन लगाकर इसके पल्प स्टोरेज पर काम कर रही हैं।

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राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुकीं ललिता से जब पूछा गया कि क्या जैविक खेती के उत्पादन के लिए उन्हें सरकार से कोई मदद मिली? तो वह उदास हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि पल्प स्टोरेज के प्रशिक्षण के लिए उन्होंने राज्य और केंद्र सरकार से मदद मांगी थी लेकिन निराशा ही हाँथ लगी। ऐसे में उन्होंने यूट्यूब से देखकर ही इसका काम शुरू कर दिया है।

भविष्य में मुकाती दूसरे किसानों को जैविक खेती के गुर सिखाना चाहती हैं। इसके अलावा महिलाओं को खेती में प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने ‘माँ दुर्गा महिला किसान’ नाम के एक समूह की स्थापना भी की है। इस ग्रुप में करीब 20-25 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं, जो ऑर्गेनिक फार्मिंग सीख रही हैं।

ग्रुप के साथ करीब दो साल से जुड़ी सारिका पटवारी का कहना है कि, ललिता मुकाती के साथ जुड़कर आत्मनिर्भर बनने की ओर एक कदम बढ़ाने जैसा महसूस होता है। समूह के साथ मिलकर वह महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए काम कर रही हैं। उनका प्रयास है कि गाँव में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं रसोई से बाहर निकल ऐसे जागरूक कामों से जुड़ें।

ललिता न सिर्फ महिलाओं के लिए बल्कि देश के सैकड़ों किसानों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं। जिस खेती को लोग घाटे का सौदा समझते हैं, उसी जैविक खेती से लाखों की कमाई करके उन्होंने एक मिसाल पेश की है। देश की इस प्रेरक किसान बेटी को हमारा सलाम!

ललिता मुकाती से संपर्क करने के लिए आप उन्हें ankitasitafal@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं।

संपादन- पार्थ निगम

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