जब हिन्दी फिल्मों पर भी जमकर चढ़ा इंजिनियर का जादू!

भारतीय सिनेमा किसी ना किसी रूप मे हमारे समाज को भारत निर्माण के लिए प्रेरित का रहे इन इंजिनीयर्स के महत्वपूर्ण योगदान का उत्परेरक रहा है. भारत के इन्ही महान इंजिनीयर्स को समर्पित करते हुए, चलिए आज उन चार फ़िल्मो की चर्चा करे जो की इस बेहतरीन पेशे को रुपेहले पर्दे पर और बेहतरीन बनाने मे सफल रहे है.

सिनेमा ने हमेशा से ही आम जनता को किसी ना किसी रूप में प्रभावित किया है। भारतीय फिल्म जगत ने अपने कुछ असाधारण कृतीयो द्वारा भारतीयो को देश निर्माण मे सहयोग देने हेतु भी प्रेरित किया है। देश निर्माण की बात निकले तो अधिकतर देश के नेताओ तथा समाजसेवा से जुड़े लोगो का ही ज़िक्र होता है। परंतु एक व्यवसाय ऐसा भी है जिससे जुड़े लोग देश निर्माण के इस कार्य मे उतने ही सहयोगी रहे है, जितना देश के नेता तथा समाजसेवक रहते है। इस पेशे को हम अभियांत्रिकी तथा इससे जुड़े लोगो को अभियंता अर्थात इंजिनियर कहते है। आइए आज हम कुछ ऐसी ही हिन्दी फ़िल्मो को याद करते है, जिन्होने इस पेशे को नये मायने दिए है।

र वर्ष पंद्रह सितंबर को हम इंजिनीयर्स डे मनाते है। यह दिन, भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक, सर मोक्षगुंडम वीसवेस्वरया, जिन्होने मंडया, कर्नाटका के कृष्णा राज सागर डॅम का निर्माण किया था , की याद मे मनाया जाता है। यांत्रिकी के क्षेत्र मे अपने अद्भूत योगदान के लिए उन्हे भारत सरकार ने भारत के सर्वोच्च सम्मान, ‘भारत रत्न’ से भी नवाज़ा है। सर वीसवेसर्या ने ‘ऑटोमॅटिक स्ल्यूस गेट्स’ और ‘ब्लॉक इरिगेशन सिस्टम’ का भी आविष्कार किया, जिन्हे आज भी इंजिनियरिंग की दुनिया मे चमत्कार माना जाता है।

भारतीय सिनेमा किसी ना किसी रूप मे हमारे समाज को भारत निर्माण के लिए प्रेरित कर रहे इन इंजिनीयर्स के महत्वपूर्ण योगदान का उत्परेरक रहा है। भारत के इन्ही महान इंजिनीयर्स को समर्पित करते हुए, चलिए आज उन चार फ़िल्मो की चर्चा करे जो इस बेहतरीन पेशे को रुपेहले पर्दे पर और बेहतरीन बनाने मे सफल रहे है।

1. सत्यकाम

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‘सत्यकाम’ सदैव भारत निर्माण के लिए दिए गये इंजिनीयर्स के बलिदान की कहानी के रूप मे याद किया जाएगा

देश के निर्माण की प्रक्रिया मे एक इंजिनियर की भूमिका तथा उससे जुड़े भ्रष्टाचार की परिशिष्टता को धर्मेन्दर तथा संजीव कुमार ने हृषिकेश मुखर्जी की इस रचना मे संक्षिप्त रूप से ही सही पर बखूबी दर्शाया है।

एक सिविल इंजिनियर का अपनी तरक्की के शिखर पर पहुचने के बावजूद सब कुछ छोड़कर, देश निर्माण के लिए निकल पड़ने का इससे अच्छा उदाहरण कही नही मिलेगा।

‘सत्यकाम’ सदैव भारत निर्माण के लिए दिए गये इंजिनीयर्स के बलिदान की कहानी के रूप मे याद किया जाएगा।

 

2. स्वदेस

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रॉनी स्क्रूवाला ने, इसी फिल्म के नाम से एक संगठन, ‘स्वदेस’ की रचना की जो की ग्रामीण भारत को समर्थ बनाने का काम करती है।

आशुतोष गोवारीकर द्वारा निर्देशित तथा यू.टी.वी. और रॉनी स्क्रूवाला द्वारा निर्मित, स्वदेस ऐसे इंजिनीयर्स के लिए एक प्रेरणादायी फिल्म के रूप मे उभर कर आई जो अपने देश को छोड़कर विदेश मे नौकरी करने चले जाते है।

यह कहानी एक ऐसे इंजिनियर की थी जो अपने गाँव आता है और फिर यहाँ की परेशानियों को अपने वैश्विक अनुभव द्वारा सुलझाता है।

शाहरुख ख़ान ने इस फिल्म मे अपने अभिनय से इस किरदार मे जान डाल दी। यह फिल्म उनके करियर के बेहतरीन फ़िल्मो मे से एक मानी जाती है। इस फिल्म का प्रभाव कुछ इस कदर पड़ा कि इस फिल्म के निर्माता रॉनी स्क्रूवाला ने, इसी फिल्म के नाम से एक संगठन, ‘स्वदेस’ की रचना की, जो की ग्रामीण भारत को समर्थ बनाने का काम करती है।

 

3. थ्री इडियट्स

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देश की शिक्षा व्यवस्था का उत्कृष्ट उदाहरण है 3 इडियट्स

शायद ही आजतक किसी विषय विशेष को इतनी बारीकी से किसी भी फ़िल्म मे दिखाया गया है। और ना ही किसी और पेशे का इतनी सच्चाई से विवरण किया गया, जितना की राजकुमार हिरानी की इस फिल्म मे किया गया है। कहानी का आधार, ‘यदि आप भेड़ चाल मे शामिल होंगे तो अंत मे भेड़ ही बन कर रह जाएँगे‘ हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था का उत्कृष्ट उदाहरण देता है। फिल्म का मुख्य किरदार, रॅंचो, जिसका किरदार आमिर ख़ान ने निभाया है, फिल्म मे एक ही संदेश देना चाहता है कि…

“कामयाबी के पीछे मत भागो…काबिल बनो… तो कामयाबी अपने आप आपके पीछे आएगी।”

इस फिल्म के मुताबिक यदि सौ मे से बीस प्रतिशत विद्यार्थी, जो इंजिनियरिंग कर रहे है अपने दिमाग़ की नही अपने दिल की सुने तो हमारे देश की सत्तर प्रतिशत से भी ज़्यादा मुश्किलो का हल चुटकियो मे निकल सकता है।

 

4. रोबोट

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इन्गिनीरिंग के दुरुपयोग से होने वाले दुश्परिनामो को दर्शाती है ‘रोबोट’

जहाँ अभी तक की हर फिल्म मे हमने इंजिनियरिंग के सिर्फ़ अच्छे पहलू को देखा उसके ठीक विपरीत यह फिल्म इसके दूसरे पहलू की तरफ नज़र डालता है। मशीनो को इंसान बनाने की अपनी ललक मे इंसान या कह लीजिए एक व्यज्ञानिक जब खुद को भगवान समझने लगता है तो उसके क्या दुष्परिणाम हो सकते है, उसका विवरण यह फिल्म बखूबी करती है। रजनीकांत द्वारा निभाए गये इस दोहरी भूमिका मे उन्होने इस सच्चाई को उजागर किया है कि भले ही मशीने हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है पर हमे उन पर निर्भर होने की भी सीमाएं बनानी होंगी।

मशीनो पर मानव नियंत्रण का होना बेहद ज़रूरी है, वर्ना मशीनो के अत्याधिक निर्भरता, मानव जीवन का विनाशक भी सिद्ध हो सकता है।

इंजिनीयर्स की भूमिका हमारे समाज मे बहुत महत्पूर्ण है और यहाँ ये तर्क दिया जा सकता है कि इन फ़िल्मो मे इस भूमिका का उतना अच्छा विवरण नही मिलता जितना मिलना चाहिए था. पर इसी से ये सिद्ध होता है कि शिक्षा की इस धारा पर हमने उतना ध्यान नही दिया, जितना देना चाहिए था।

आशा करते है कि भारत निर्माण मे अपना अचूक योगदान देने वाले इस प्रतिभा जिसे इंजिनियरिंग कहा जाता है, को इससे कई ज़्यादा सम्मान मिले।

द बेटर इंडिया की तरफ से आप सभी को इंजिनीयर्स डे की शुभकामनाये !!!

 मूल लेख श्रेय – श्री नलिन राय


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