कादर ख़ान: क़ब्रिस्तान में डायलॉग प्रैक्टिस करने से लेकर हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकार बनने तक का सफर!

31 दिसंबर 2018 को लम्बे समय से बीमार चल रहे हिंदी सिनेमा जगत के दिग्गज कलाकार और पटकथा लेखक, कादर ख़ान का निधन हो गया। काफ़ी अरसे से उनका इलाज़ कनाड़ा के एक अस्पताल में चल रहा था। उनके निधन की खबर से पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री शोक-ग्रस्त है। महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर कॉमेडी किंग गोविंदा ने उनकी मृत्यु पर शोक जाहिर किया।

“बेटे, इस फ़कीर की एक बात याद रखना… ज़िंदगी का अगर सही लुत्फ़ उठाना है न, तो मौत से खेलो… सुख में हँसते हो, तो दुःख में कहकहे लगाओ.. ज़िंदगी का अंदाज़ बदल जायेगा! बेटे ज़िन्दा हैं वो लोग जो मौत से टकराते हैं; मुर्दों से बद्तर हैं वो लोग, जो मौत से घबराते हैं… सुख को ठोकर मार और दुःख को अपना. सुख तो बेवफ़ा है चंद दिनों के लिए आता है और चला जाता है, मगर दुःख; दुःख तो अपना साथी है अपने साथ रहता है! पोंछ ले आँसू, पोंछ ले आँसू; दुःख को अपना ले. अरे, तक़दीर तेरे क़दमों में होगी और तू मुक़द्दर का बादशाह होगा…”

साल 1977 में आई अमिताभ बच्चन की फ़िल्म, ‘मुकद्दर का सिकंदर’ और इस फ़िल्म के इस एक संवाद ने लोगों का दिल छू लिया था। इतना ही नहीं, जब अमिताभ बच्चन ने इस डायलॉग को सुना तो उनकी आँखों से आँसू बह निकले थे। इस डायलॉग को लिखा था कादर ख़ान ने।

80 और 90 के दशक में हिंदी सिनेमा के लिए पटकथा लेखन का अगर कोई सिकंदर था, तो वह थे कादर ख़ान!

31 दिसंबर 2018 को लम्बे समय से बीमार चल रहे हिंदी सिनेमा जगत के दिग्गज कलाकार और पटकथा लेखक, कादर ख़ान का निधन हो गया।

यह कादर ख़ान ही थे जिनके लिखे संवाद कई हिट फिल्मों की नींव बने। महानायक अमिताभ बच्चन को भी उनके द्वारा लिखे गये डायलॉग्स ने ही बॉलीवुड का ‘एंग्रीयंग मैन’ बनाया था।

अमिताभ बच्चन के साथ कादर खान

काबुल में जन्मे कादर ख़ान ने साल 1973 में राजेश खन्ना के साथ फिल्म ‘दाग’ से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की। इसके बाद शुरू हुआ कभी न रुकने वाला एक ख़ूबसूरत सिलसिला, जहाँ कादर ख़ान 300 से अधिक फिल्मों में नज़र आए। 80 से लेकर 90 के दशक में सहायद ही कोई ऐसी फ़िल्म आई होगी, जिसमें उन्होंने कोई भूमिका न अदा की हो।

पर कादर ख़ान को ये नाम और शोहरत रातों-रात नहीं मिली थी। उन्होंने इस मुकाम तक पहुँचने के लिए न जाने कितनी ठोकरें खायीं। बहुत ही कम उम्र में उनके माता-पिता एक दुसरे से अलग हो गए और उनकी माँ की दूसरी शादी कर ली।

उनके सौतेले पिता का रवैया उनके साथ कभी भी अच्छा नहीं था। कभी कई-कई दिनों तक उन्हें भूखा रहना पड़ता, तो कभी मार-पीट कर, घर से निकाल दिया जाता था। पर ये उन की हिम्मत और कुछ कर गुज़रने की लगन थी, कि उन्होंने ज़िंदगी में अपना एक अलग मुकाम बनाया। कई मौको पर कादर ख़ान ने कहा था कि उनकी कामयाबी में उनकी माँ की सलाह और साथ का बहुत बड़ा हाथ रहा।

बचपन में उनके घर के पास एक फैक्ट्री हुआ करती थी, जहाँ उनके साथ के बच्चे कुछ देर काम करके एक-दो रूपये कमा लिया करते थे। एक दिन कादर ने भी इस फैक्ट्री में काम करने की सोची। लेकिन जउन्हें जाता देख, उनकी माँ ने उन्हें रोककर कहा, “मुझे पता है, तुम कहाँ जा रहे हो। तुम उन बच्चों के साथ चंद पैसे कमाने जा रहे हो। पर ये सब तुम्हें कभी भी बहुत आगे तक नहीं ले जायेगा। अगर तुम सच में चाहते हो कि तुम्हारा परिवार गरीबी में न रहे, तो जितना पढ़ सकते हो उतना पढ़ो।”

कादर ख़ान

कादर पर उनकी माँ की इस सीख का इतना असर हुआ कि उन्होंने पूरी ज़िन्दगी सीखना और पढ़ना कभी नहीं छोड़ा। मुंबई के एक कॉलेज से कादर ख़ान ने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया था। इसके बाद उन्होंने एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफ़ेसर के तौर पर काम भी किया।

शुरू से ही उन्हें डायलॉग बोलने और एक्टिंग का भी शौक़ था। स्कूल के दिनों से ही उनका रिश्ता थिएटर से जुड़ गया था। बचपन में वे एक कब्रिस्तान में जाकर डायलॉग बोलने का रियाज़ करते थे। एक लम्बे अरसे तक थिएटर से जुड़े रहने के पश्चात उनके एक नाटक ‘लोकल ट्रेन’ को ‘ऑल इंडिया बेस्ट प्ले’ का ख़िताब मिला। इस नाटक की इतनी चर्चा थी, कि उस वक़्त के मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार ने इसे देखने की गुज़ारिश की।

कादर ख़ान ने भी तुरंत सभी तैयारियाँ कर, दिलीप कुमार के लिए फिर से यह नाटक दिखाया। उनके नाटक से दिलीप कुमार इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत उन्हें दो फ़िल्मों के संवाद लेखन का ऑफर दे दिया। इसके बाद उनका रिश्ता फ़िल्मों से जुड़ गया। एक्टिंग के साथ-साथ उन्होंने 250 से अधिक फिल्मों के लिए संवाद लिखे।

दिलीप कुमार और कादर खान

साल 1974 में उन्हें अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा ब्रेक मिला। मनमोहन देसाई ने उन्हें अपनी एक फिल्म के लिए संवाद लिखने को कहा। हालांकि, उन्हें कादर ख़ान पर कोई ख़ास भरोसा नहीं था। देसाई अक्सर कहते, “तुम लोग शायरी तो अच्छी कर लेते हो पर मुझे चाहिए ऐसे डायलॉग जिस पर जनता ताली बजाए।”

फिर क्या था, कादर ख़ान संवाद लिखकर लाए और मनमोहन देसाई को कादर ख़ान के डायलॉग इतने पसंद आए कि वो घर के अंदर गए, अपना तोशिबा टीवी, 21000 रुपए और ब्रेसलेट कादर ख़ान को वहीं के वहीं तोहफ़े में दे दिया। इसके बाद कादर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी भाषा पर पकड़, हाज़िर-जबावी कॉमेडी और बेहतरीन अदायगी ने उन्हें मशहूर पटकथा लेखकों की फ़ेहरिस्त में ला खड़ा किया।

पटकथा के साथ-साथ कादर ख़ान एक बेहतरीन अभिनेता भी थे। कोई भी किरदार हो; चाहे गंभीर या फिर कॉमेडी, कादर ख़ान के अभिनय का कोई सानी नहीं था। और कुछ इस तरह… कभी भूखा सोने वाला यह कलाकार अपनी कला के ज़रिये कामयाबी की सीढियाँ चढ़ता गया!

शायद कोई नहीं जो उनकी कमी को सिनेमा जगत में पूरा कर सके। पर जो जगह वो दर्शकों के दिलों में बना कर गए हैं, वह हमेशा कायम रहेगी!

संपादन – मानबी कटोच


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