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बिहार की बाढ़ से प्रभावित, 10वीं पास बुज़ुर्ग ने बना दी पानी पर चलने वाली साइकिल

61 वर्षीय सैदुल्लाह सालों से पंक्चर बनाने का काम करते हैं और आविष्कारों के जूनून में अपनी 40 एकड़ ज़मीन भी बेच चुके हैं।

आज की कहानी बिहार के एक ऐसे बुजुर्ग की है, जिनके जीवन का लक्ष्य ही आम लोगों की सहायता करना है। 10वीं पास मोहम्मद सैदुल्लाह की उम्र 60 साल से अधिक हो चुकी है। उनके अविष्कारों ने उन्हें देश में अलग पहचान दिलाई है। खास तौर पर पानी पर चलने वाली साइकिल बनाकर उन्होंने देश भर में ख्याति बटोरी। इस साइकिल से बाढ़ प्रभावित इलाकों में लोगों को काफी मदद मिली थी। 2005 में उन्हें इसके लिए नेशनल ग्रासरूट इनोवेशन अवार्ड भी मिला था। अविष्कार को ही अपने जीवन का लक्ष्य मानने वाले सैदुल्लाह ने अपनी जिंदगी इसी के नाम कर दी। इन दिनों वह चारों ओर घूमने वाला पंखा बनाने में जुटे हैं। इसके बनने से पंखे के चारों ओर बैठे लोगों को बराबर हवा मयस्सर होगी।

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मोहम्मद सैदुल्लाह

 

बिहार की बाढ़ को देखकर बनाई पानी पर चलने वाली साइकिल

सैदुल्लाह कहते हैं कि करीब 45 साल पहले की बात है। 1975 में बिहार में बाढ़ आ गई। यह तीन हफ्तों तक रही। नदी पार करने के लिए उन्होंने नाव और शहर में एक साइकिल का इस्तेमाल किया। तब उनके दिमाग में यह ख्याल आया कि वह क्यों न ऐसी साइकिल बनाए, जो जमीन के साथ ही पानी पर भी आराम से चले। उन्होंने इसे विकसित किया। इस साइकिल को इस्तेमाल कर उन्होंने पहलघाट से महेंद्रूघाट तक गंगा पार की। इस पर उनका छह हजार रुपये का खर्च आया था। साइकिल का निर्माण तो उन्होंने महज तीन दिन में कर दिया। इसमें रेक्टैंगुलर एयर फ्लोट था, जो साइकिल को तैरने में मदद करता है। यह दो जोड़ी में था-आगे और पीछे के पहियों में। साइकिल को जमीन पर चलाने के लिए फ्लोट को फोल्ड भी किया जा सकता था। बाढ़ के दौरान इस साइकिल के सहारे उन्होंने बहुत लोगों की मदद की। उन्हें मंजिल पर पहुंचाया। इस साइकिल का नाम बच्चे बच्चे की जुबां पर था। समय के साथ मोहम्मद सैदुल्लाह ने कुछ बदलाव कर इसकी लागत कम की। बकौल सैदुल्लाह वह अब इसे केवल तीन हजार रुपये में भी बना सकते हैं।

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सैदुल्लाह की बनायी पानी वाली साइकिल

 

अविष्कारों के जुनून के चलते बेच दी गांव की 40 एकड़ जमीन

मोहम्मद सैदुल्लाह बताते हैं कि अन्वेषक का दिमाग हर वक्त अविष्कार के बारे में सोचता है। सैदुल्लाह पर अविष्कारों का जुनून इस कदर सवार था कि उन्होंने इसके लिए अपनी 40 एकड़ जमीन भी बेच दी। उन्होंने पानी पर चलने वाली साइकिल, चाबी से चलने वाला टेबल फैन, चारा काटने की मशीन से चलने वाला मिनी वाटर पंप, मिनी ट्रैक्टर का भी अविष्कार किया। उनके सारे अविष्कार ऐसे थे, जिनसे आम आदमी की जिंदगी आसान हुई। वह साफ कहते हैं कि उन्होंने अपने सभी अविष्कारों की प्रेरणा आम आदमी जीवन से ली है।

पत्नी के नाम पर किया अविष्कारों का नामकरण

 मोहम्मद सैदुल्लाह की शादी 1960 में नूरजहां से हुई। उनके तीन बच्चे हैं। दो बेटी और एक बेटा। वह खुद 60 साल के हैं। उनमें स्वाभिमान कूट कूट कर भरा है। उन्हें पत्नी से इस कदर प्रेम है कि उनके हर अविष्कार का नाम उन्होंने उन्हीं के नाम पर किया है। जैसे नूर मिनी वाटर पंप, नूर साइकिल, नूर राहत, नूर इलेक्ट्रिक पावर हाउस, नूर वाटर पंप आदि। सैदुल्लाह अपनी पत्नी को बहुत याद करते हैं। उनका कहना है कि उनके नाम पर किसी अविष्कार का नाम रखने की चाहत भी उनके लिए प्रेरणा का काम करती है। उनको जहन में रखकर उनके लिए काम करना आसान हो जाता है।

 मठिया डीह गांव में अपनी बेटियों के साथ रहते हैं सैदुल्लाह

मोहम्मद सैदुल्लाह बताते हैं कि वह बिहार के मोतिहारी जिले में स्थित पूर्वी चंपारण के एक छोटे से गांव जटवा-जेनेवा में पले बढ़े। उनके पिता शेख इदरीस एक किसान थे। देश की आजादी के वक्त उनके पिता कांग्रेस पार्टी में रहकर देश की सेवा कर रहे थे। सैदुल्लाह के अनुसार उन्होंने गजपुरा से दसवीं तक पढ़ाई की। लेकिन कुछ व्यक्तिगत कारणों से इससे आगे नहीं पढ़ सके। इस समय वह पूर्वी चंपारण के मठिया डीह गांव में अपनी बेटियों के साथ रहते हैं। सैदुल्लाह अपने पास मोबाइल फोन भी रखना पसंद नहीं करते। उनका कहना है कि काम के वक्त किसी तरह की बाधा उन्हें पसंद नहीं और मोबाइल फोन एक बाधा जैसा है। गांव का ही एक युवक अपने पास उनका मोबाइल फोन रखता है। यदि किसी को सैदुल्लाह से बात करनी होती है तो वह युवक ही फोन पर बात कराता है।

 साइकिल के पंचर लगाने से जो कमाते हैं, नया बनाने में लगाते हैं

सैदुल्लाह जिस तेजी से अविष्कारों के बारे में सोचते हैं, उसी तेजी से वह साइकिल के पंचर भी लगाते हैं। मोहम्मद सैदुल्लाह इस वक्त गांव में एक हजार रुपये किराये पर रह रहे हैं। बकौल सैदुल्लाह उन्हें पंचर लगाने से जो कमाई होती है, उसे वह कुछ नया बनाने में इस्तेमाल करते हैं। उनकी बेटियां भी उनके जुनून को जानती, समझती हैं, ऐसे में उन्हें पूरा सहयोग करती हैं। बेटियां हैं, लेकिन मां की तरह देखभाल करती हैं। उनका खाना-पीना सब कुछ बड़ी तन्मयता से करती हैं। सरकार की ओर से नए अविष्कारकों को बहुत मदद दी जा रही है। इस बात को सैदुल्लाह भी मानते हैं। उनका कहना है कि नई चीजों का इस्तेमाल करके लोग इन्हें बनाने वालों की मदद कर सकते हैं। इससे मिलने वाली राशि से उनके अन्वेषण कार्यों में गति आ सकती है।

 साइकिल से पहुंच गए भोपाल

सैदुल्लाह साइकिल पर ही लंबी दूरी नाप देते हैं। वह बताते हैं कि कुछ ही समय पहले वह साइकिल पर चंपारण से भोपाल पहुंच गए। वहां वह अपने रिश्तेदारों के पास गए थे। उनकी हिमालयी राज्य देखने की भी इच्छा है। लेकिन इन राज्यों की दूरी भी वह साइकिल से ही नापना चाहते हैं। अपने अन्वेषणों से बेहद प्यार करने वाले मोहम्मद सैदुल्लाह आखिरी समय तक कुछ न कुछ नया रचते रहने की इच्छा रखते हैं।

द बेटर इंडिया मोहम्मद सैदुल्लाह के जज्बे को सलाम करता है।

नोट- सैदुल्लाह का गाँव इस वक़्त भीषण बाढ़ की चपेट में है इसलिए हम उनकी बहुत ज्यादा तस्वीरें नहीं ले पाए। अगर आप उनकी किसी भी तरह की मदद करना चाहते हैं तो आप मोहम्मद सैदुल्लाह से 8002125218 पर संपर्क कर सकते हैं।

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