Placeholder canvas

घर खरीदने के लिए जमा किये पैसों से खोला Rice ATM, 60 हजार+ लोगों तक पहुँचाया राशन

हैदराबाद के रामू दोसापाटी पिछले डेढ़ साल से Rice ATM चला रहे हैं, जिसके जरिये वह बेसहारा और जरूरतमंद लोगों को राशन के साथ-साथ रोजगार के साधन उपलब्ध कराने में भी मदद कर रहे हैं।

कोरोना महामारी के कारण देश में हर तबके के लोगों की आर्थिक स्थिति पर असर हुआ है। लेकिन यह भी सच है कि मुश्किल परिस्थितियों के बीच, बहुत से लोग उम्मीद की किरण बनकर उभरे। ऐसे लोगों को किसी ने ‘कोरोना वॉरियर’ कहा, तो किसी ने ‘रियल लाइफ हीरो’। इनमें से बहुत से लोग आज भी जरूरतमंदों की मदद में जुटे हुए हैं। ऐसे ही लोगों में एक हैं, हैदराबाद में रहने वाले रामू दोसापाटी। 

साल 2020 में पहले लॉकडाउन के दौरान गरीब, जरूरतमंद और बेसहारा लोगों के लिए ‘Rice ATM’ शुरू करने वाले रामू अब न सिर्फ राशन बल्कि लोगों को  नौकरी और रोजगार मुहैया कराने में भी मदद कर रहे हैं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए रामू ने बताया, “साल 2003 में एमबीए पूरी करने के बाद से कॉर्पोरेट सेक्टर में बतौर एचआर काम कर रहा हूं। इतने सालों में मेरी पोस्ट और सैलरी दोनों ही काफी अच्छी हुई हैं। हालांकि, 2006 तक मेरी दुनिया सिर्फ मेरे अपने परिवार और मेरे सपनों तक ही सीमित थी। लेकिन 2006 में मेरा एक एक्सीडेंट हुआ जिसमें सिर पर गंभीर चोट आई क्योंकि मैंने हेलमेट नहीं पहना था। उस समय मेरी पत्नी प्रेग्नेंट थी। मैं खुद अस्पताल में भर्ती था। उस दौरान मेरे मन में बस यही बात चल रही थी कि मैं अपनी पत्नी और इस दुनिया में आने वाले अपने बच्चे के लिए जीना चाहता हूं।”

रामू ने बताया कि उस नाजुक पल में वह ईश्वर से बस यही प्रार्थना कर रहे थे कि अगर उन्हें ज़िंदगी का यह दूसरा मौका मिला तो वह इसे दूसरों की सेवा में लगाएंगे। अपनी कमाई और समय का कुछ हिस्सा समाज की भलाई के लिए देंगे। इसलिए अस्पताल से ठीक होकर घर जाने के बाद रामू ने समाज की भलाई के लिए कुछ अभियान की शुरुआत की। सबसे पहले उन्होंने लोगों को हेलमेट पहनने के प्रति जागरूक करने के लिए अभियान चलाया क्योंकि वह अपनी गलती समझ चुके थे और चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा लोग उनकी इस दुर्घटना से सबक ले पाएं। 

Rice ATM helping needy and poor people
Ramu Dosapati started Rice ATM

लॉकडाउन में सिक्योरिटी गार्ड से मिली प्रेरणा 

रामू लॉकडाउन के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि साल 2020 में जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो शुरुआत के 20 दिन वह घर से बाहर नहीं निकले। उन्होंने तय किया था कि वह घर के अंदर ही रहेंगे ताकि चेन को ब्रेक किया जाए। लेकिन 13 अप्रैल 2020 को अपने बेटे के जन्मदिन के लिए वह चिकन खरीदने एक दुकान गए। दुकान पर वह बाहर खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। लेकिन काफी देर तक उनसे पहले गयी महिला बाहर नहीं आई तो उन्होंने दुकानदार से पूछा कि आखिर इतनी देर क्यों लग रही है।

“मुझे पता चला कि सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वाली लक्ष्मा नाम की एक महिला 20 किलो चिकन पैक करा रही हैं। जब वह बाहर निकलीं तो मैंने उनसे पूछा कि वह इतने चिकन का क्या करेंगी? तो उन्होंने बताया कि दूसरे राज्यों, शहरों से बहुत से लोग हैदराबाद में फंसे हुए हैं। उनके पास न काम है और न पैसे तो इन लोगों के लिए वह खाना बनाकर पहुंचाती हैं,” उन्होंने बताया। 

लक्ष्मा से थोड़ा और पूछने पर पता चला कि उनकी सैलरी मात्र 6000 रुपए/माह है। जिसमें से वह चार हजार रुपए इन लोगों को खाना खिलाने पर खर्च कर रही हैं। रामू कहते हैं, “लक्ष्मा से जब मैंने पूछा कि क्या 2000 रुपए में उनके घर का खर्च चल जायेगा तो उन्होंने कहा, ‘मैं यहां की लोकल निवासी हूं। मुझे तेलुगु आती है, बहुत से लोगों को मैं जानती हूं। अगर मुझे पैसे या खाने की समस्या हुई तो स्थानीय लोगों से मदद मांग लूंगी। लेकिन ये दूसरे जगहों से आये लोग न तो यहां की भाषा जानते हैं और न ही किसी और को जिससे वे उधर मांग ले।’ उनकी बात सुनकर मुझे लगा कि जब वह लोगों की मदद कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं और उसी दिन से मैं इस काम में जुट गया।”

शुरुआत में, रामू ने लक्ष्मा के साथ मिलकर लोगों को खाना बनाकर बांटना शुरू किया। लेकिन जब कोरोना के मामले बढ़ने लगे तो उन्होंने अपने अपार्टमेंट के नीचे राशन का एक सेंटर खोल दिया, जिसका नाम उन्होंने ‘Rice ATM’ रखा। यहां से कोई भी जरूरतमंद और बेसहारा मुफ्त में सूखा राशन लेकर जा सकता है। सूखे राशन में उन्होंने दाल, चावल, तेल और अन्य मसाले आदि पैक करके लोगों को दिया। वह कहते हैं कि उनके एटीएम का मतलब है ‘एनी टाइम मील।’ 

helping poor people with dry ration
Giving Dry Ration to Needy

उन्होंने जून 2020 तक ज्यादातर माइग्रेंट मजदूरों को राशन दिया। लेकिन जून के बाद ज्यादातर लोग अपने-अपने घरों को लौट गए। लेकिन फिर भी शहर में ऐसे बहुत से लोग थे जिन्होंने लॉकडाउन में अपनी नौकरी गंवा दी थी या किसी का काम बंद हो गया था। 

“मुझे बहुत बुरा लगा, जब एक महिला ने मुझसे आकर पूछा कि क्या वह अपने परिवार के लिए राशन ले सकती हैं। उनकी नौकरी चली गयी थी और काम न होने से कई महीनों से कोई आमदनी भी नहीं थी। शहर में ऐसे बहुत से लोग थे जिन्होंने अपना रोजगार खो दिया या फिर कोरोना ने उनके घर के कई कामकाजी सदस्य को उनसे छीन लिया। इसलिए हमने अपना अभियान जारी रखा ताकि कोई भी भूखा न सोये। इस काम में अब शहर के कई लोग मेरी मदद कर रहे हैं,” वह कहते हैं। 

खर्च किए 50 लाख से ज्यादा रुपए 

रामू अब तक इस अभियान पर 50 लाख रुपए से ज्यादा खर्च कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि फ़िलहाल वह वन बीएचके फ्लैट में रहते हैं। लेकिन कुछ समय पहले उन्होंने अपने गांव में पुश्तैनी जमीन बेची थी ताकि वह अपने परिवार के लिए थ्री बीएचके फ्लैट ले सकें। उन्होंने इस राशि को भी इस अभियान में लगा दिया और इसके अलावा अपनी सैलरी से वह लगातार खर्च कर रहे हैं। “हम कोई एनजीओ नहीं है इसलिए किसी से कोई डोनेशन नहीं लेते हैं। लेकिन अब हमारे दोस्त और जानने वाले सपोर्ट करने लगे हैं। बच्चों के जन्मदिन, शादी की सालगिरह जैसे मौकों पर ये लोग अब जरूरतमंदों को राशन देने लगे हैं,” उन्होंने बताया। 

राइस एटीएम अब तक 60 हजार से ज्यादा परिवारों की मदद कर चुका है। इसके अलावा, पिछले कुछ महीनों से उन्होंने हैदराबाद स्थित एक सॉफ्टवेयर स्टार्टअप की को-फाउंडर यशस्विनी जोन्नलगड्डा के साथ मिलकर ‘प्रोजेक्ट प्रिशा’ की शुरुआत की है। जिसके जरिये अब वे लोगों को उनकी स्किल के आधार पर नौकरी या रोजगार मुहैया कराने में मदद कर रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान यशस्विनी भी अपने स्तर पर लोगों की मदद कर रही थीं। इस दौरान उन्हें रामू के राइस एटीएम के बारे में पता चला था। 

Helping people in getting employment
Giving Stitching Machine

यशस्विनी कहती हैं, “हमने मिलकर तय किया कि हमें और भी कुछ करने की जरूरत है। इसलिए हमने मदद के लिए आने वाले लोगों की स्किल जानकर स्क्रीनिंग शुरू की। अगर कहीं भी उनकी स्किल के हिसाब से नौकरी होती तो उनकी मदद की जाती। इसके अलावा, ऐसे लोग जो कंपनी आदि में नौकरी नहीं कर सकते हैं उन्हें हमने फ़ूड कार्ट, आयरन कार्ट, सिलाई मशीन और टी स्टॉल आदि देने की शुरुआत की। हम सिर्फ इन्हें स्टॉल या कार्ट नहीं दे रहे हैं बल्कि उनका छोटा-सा व्यवसाय सेटअप करने में भी मदद करते हैं।”

उनसे मदद लेने वाली सुधा बताती हैं, “मैं और मेरे पति आर्टिस्ट हैं। मैं इवेंट्स में गाती हूँ और मेरे पति कीबोर्ड प्लेयर हैं। लेकिन लॉकडाउन में सभी इवेंट्स कैंसिल हो गए तो हमारे लिए घर चलाना बहुत मुश्किल हो गया। सितंबर 2020 में मुझे रामु जी के बारे में पता चला। पहले उन्होंने हमारी राशन देकर मदद की। और अब मुझे सिलाई मशीन भी दी है क्योंकि मैं सिलाई करना जानती हूँ। इससे अब कम से कम मैं अपने घर का कुछ खर्च चला पा रही हूँ।”

सुधा की तरह, अपने ‘प्रोजेक्ट प्रिशा’ के जरिये अब तक वे 825 परिवारों को रोजगार का साधन देने में कामयाब रहे हैं और उनका यह प्रोजेक्ट जारी है। रामू ने बताया कि कुछ समय पहले ही उन्होंने एक परिवार को ऑटो भी दिया है ताकि उनका गुजारा हो सके। रामू कहते हैं कि उनके अबतक के सभी अभियानों में परिवार का पूरा साथ मिला है। इससे पहले भी वह अलग-अलग मुद्दों पर काम कर रहे थे। जैसे पहले उन्होंने प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने के लिए एक अभियान चलाया था। 

यकीनन, रामू और उनसे जुड़े सभी लोग की यह पहल काबिल-ए-तारीफ है। 

हमें उम्मीद है कि और भी लोग उनसे प्रेरणा लेंगे। अगर आप रामू से संपर्क करना चाहते हैं तो उनका फेसबुक पेज देख सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

यह भी पढ़ें: ‛नेकी की दीवार’ से मुकेश कर रहें हैं गरीबों की मदद, साथ ही पढ़ा रहे बचत का पाठ

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X