आईएएस अधिकारी सरयू मोहनचंद्रन मूल रूप से केरल (Kerala IAS) की रहने वाली हैं। वह फिलहाल, तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में तैनात हैं। कुछ महीने पहले, उन्होंने अपने फेसबुक पर अपनी माँ, खादिजा के लिए एक काफी भावनात्मक पोस्ट साझा किया।
इस पोस्ट में उन्होंने अपनी माँ के ऑस्टियोपोरोसिस डायग्नोसिस का जिक्र करते हुए लिखा कि अपनी पारिवारिक और पेशेवर जिम्मेदारियों को निभाने के लिए, खादिजा ने दिन-रात कड़ी मेहनत की और खुद के सेहत की कभी परवाह न की। इतना ही नहीं, परिवार को मदद करने के बीच, उन्होंने एलएलबी की डिग्री भी प्राप्त की, जो बचपन से ही उनका सपना था।
सरयू लिखती हैं, “अपने रिटायरमेंट के बाद, बिना किसी विलंब के, माँ ने कानून की पढ़ाई के लिए अपना दाखिला ले लिया। इससे हम आश्चर्यचकित थे।”
अपने पोस्ट के अंत में सरयू अपराधबोध को व्यक्त करते हुए लिखतीं हैं, “जब मैं अपने जीवन को मुड़कर देखती हूँ, तो मैं खुद को दोषी महसूस करती हूँ। अब मुझे एहसास होता है कि उस वक्त मुझे हँसी नहीं आनी चाहिए थी, जब मेरे पिता किताबें न पढ़ने के लिए माँ का मजाक उड़ाते थे। मैं अब समझती हूँ कि उन्होंने पढ़ाई इसलिए नहीं की, ताकि हम पढ़ सकें…”
यहाँ उनके पूरे पोस्ट का अनुवाद है।
मेरी माँ घुटने में दर्द के कारण पिछले तीन साल से परेशान हैं।
इसके बावजूद, मेरी माँ दवाई लेकर पूरा काम करती रहीं। उन्होंने मेरे पिता की खाने की हर माँग को पूरा किया और नटखट पोते को भी संभाला।
वह दर्द से कराह रहीं थीं। लेकिन, मैं कोरोना महामारी के कारण अस्पताल जाने से डर रही थी। इसके बाद, मेरी बहन मदद के लिए आई।
लेकिन, माँ को दर्द से राहत नहीं थी। अंत में, वह अमृता अस्पताल में एडमिट हुईं।
मेरी माँ, जो हमेशा अपने कामों में व्यस्त होती थीं, काफी दर्द में थीं। इस कारण वह रातों को नींद नहीं पाती थीं।
डॉक्टरों का कहना है कि उनके दोनों घुटने 40% तक खराब हो चुके हैं और रिप्लेसमेंट सर्जरी ही इसका एकमात्र उपाय है।
ऐसी स्थिति में, डॉक्टर ने उन्हें थोड़ी राहत के लिए एक इंजेक्शन दिया और वह घर आ गईं।
पूरी जिंदगी, उनके पैर हमारे लिए थक कर चूर हो गए। पिछले 40 वर्षों से, उनके दिन की शुरुआत पापा के लिए काली चाय बनाने से शुरू होती है। इसके बाद, वह एक मशीन की तरह करी, चावल बनातीं और पानी गर्म कर यार्ड साफ करती थीं।
हम उनकी मदद करने की कोशिश करते थे, लेकिन हमारे कुछ करने से पहले ही, वह उस काम को खत्म कर देती थीं।
अपने ऑफिस से घर आने के बाद, वह सबसे पहले रसोई में जाती थीं। एक बार रसोई का काम पूरा होने के बाद, वह अपने ऑफिस के फाइलों में लग जाती थीं।
इन्हीं सब चीजों के बीच, माँ को सबसे ज्यादा परेशान मैंने किया।
इसके बावजूद, जब मैं दूसरी क्लास में थी, मेरी माँ ने एलएलबी में दाखिला ले लिया।
वह मेरे भाई-बहनों और मेरे लिए सब कुछ करती थीं। वह हमें क्विज प्रतियोगिताओं में छोड़ने के लिए हर जगह जाती थीं। मुझे जिस किताब की जरूरत पड़ती थी, वह मुझे खरीद कर देती थीं।
जब मैंने यूपीएससी की तैयारी शुरू की, तो सिर्फ मेरी माँ ने मुझ पर यकीन जताया। अकादमिक परीक्षाओं में कम अंक और यूपीएससी के विशाल पाठ्यक्रम के कारण, मैं मॉक टेस्ट से डरी हुई थी। लेकिन, मेरी माँ हमेशा मेरे साथ खड़ी रहीं। वह कहती थीं, “यदि तुम इसमें सफल नहीं हुई, तो कौन होगा?”
बाद में, भले ही मैं आईएएस बन गई। लेकिन, माँ की जिम्मेदारियाँ कम नहीं हुई। आज भी कहीं ट्रांसफर होने के बाद, वह मेरे लिए पैकिंग करेंगी और नए जगह पर ठीक से सेटल होने के बाद ही मानेंगी।
हालांकि हर पोस्टिंग में एक घर और रसोईघर होता है। माँ यहाँ मेरा देखभाल करने वालों को मेरा पसंदीदा खाना बनाना सिखाती थीं।
अपने रिटायरमेंट के बाद, माँ ने कानून की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिया, इससे हम आश्चर्यचकित थे।
जब मैं पीछे देखती हूँ, तो मैं खुद को दोषी महसूस करती हूँ। माँ कॉलेज यूनियन की सदस्य थीं। लेकिन, हमारे कारण, उन्हें वह जीवन नहीं मिला, जिसकी वह हकदार थीं।
हमें उस वक्त हँसी नहीं आनी चाहिए थी, जब मेरे पिता, किताबें पढ़ने के लिए समय न मिल पाने के कारण माँ का मजाक उड़ाते थे।
अब, मुझे एहसास होता है कि उन्होंने पढ़ाई इसलिए नहीं की, ताकि हम पढ़ सकें।
ईश्वर से विनती है कि उनका दर्द दूर हो जाए, और हम उन्हें वकील के गाउन में प्रैक्टिस करते और अपनी अनोखी कहानी लिखते देख सकें।
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मूल लेख – Roshini Muthukumar
संपादन – जी. एन. झा
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