“मैं 72 की उम्र में भी खुद को यंग फील करता हूं। मुझे सीढ़ी से ऊपर चढ़ने-उतरने में कोई परेशानी नहीं होती है। मैं खुद बागवानी करता हूं। गमले लाना, मिट्टी लाना, पौधों की देखभाल करना, ये सभी काम में खुद कर लेता हूं। मेरा तो मानना है कि आप जितना प्रकृति से जुड़े रहेंगे, उतने एक्टिव रहेंगे और उतनी ही आपकी सेहत अच्छी होगी,” यह कहना है पंजाब के रजिंदर सिंह का।
लुधियाना के रहनेवाले रजिंदर सिंह, आज न सिर्फ सीनियर सिटीजन, बल्कि युवाओं के लिए भी प्रेरणा हैं। वह न सिर्फ व्यवसाय में अपने बच्चों की मदद करते हैं, बल्कि नियमित गार्डनिंग और कम्पोस्टिंग भी कर रहे हैं।
पहले सेना, फिर बैंक में किया काम
रजिंदर सिंह के घर के बाहर, आंगन से लेकर उनकी छत तक, सभी जगह पेड़-पौधे लगे हुए हैं। साथ ही, इन पेड़-पौधों की देखभाल के लिए वह खुद ही तरह-तरह की खाद भी तैयार करते हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैंने 10वीं तक की पढ़ाई की, फिर एक फैक्ट्री में काम करने लगा। कुछ समय बाद, मैं भारतीय सेना से जुड़ गया। सेना में रहते हुए मैंने ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई भी की। लेकिन मेरा प्रमोशन नहीं हुआ, तो 15 साल की नौकरी के बाद मेरी रिटायरमेंट हो गई। रिटायरमेंट के बाद स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में मुझे क्लर्क की नौकरी मिल गई।”
साल 2007 में रजिंदर, बैंक से रिटायर हो गए और अपने बेटे की केमिस्ट शॉप में मदद करने लगे। उन्होंने बताया, “पहले सुबह आठ से रात दस बजे तक दुकान में ही रहता था। लेकिन अब पिछले कुछ समय से मैं आधा दिन दुकान को देता हूं और बाकी समय गार्डनिंग करता हूं। पौधों के लिए खाद बनाता हूं और साथ ही, कई बार अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर पौधरोपण भी करता हूं। अब तो नगर निगम वाले भी लोगों को जागरूक करने के लिए मुझे बुलाते हैं।”
चार साल पहले शुरू की बागवानी
उन्होंने बताया कि उनके घर के बाहर थोड़ी सी खाली जगह है, जिसमें उन्होंने कुछ फलों के पेड़ लगाए हुए थे। लेकिन एक बार उनका यह बगीचा खराब हो गया। उनके कई पेड़ भी खराब हो गए थे। उन्होंने बताया कि तब तक वह बागवानी या कम्पोस्टिंग में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते थे। लेकिन उस समय, उनके बच्चों ने किसी एक्सपर्ट से बगीचा ठीक करने के लिए सम्पर्क किया। एक्सपर्ट ने काफी ज्यादा फीस मांगी तो रजिंदर सिंह ने ठान लिया कि वह खुद ही यह बगीचा ठीक करेंगे।
वह कहते हैं, “तब मैंने अलग-अलग पेड़-पौधों के बारे में पढ़ना शुरू किया। अलग-अलग नर्सरी में जाता था और दूसरे लोगों से पूछता रहता था। मेरी दिलचस्पी पेड़-पौधों में बढ़ने लगी। इसके बाद, मैंने फिर से अपना बगीचा तैयार कर लिया। आज इसमें संतरा, नींबू, आलू बुखारा, सेब के पेड़ लगे हैं। कई पेड़ों से तो हम फल खा भी रहे हैं। इसके बाद, मैंने अपनी छत पर भी गमलों में कुछ फूलों के पौधे लगा लिए। “
आज उनकी छत पर 500 गमले हैं, जिनमें फूलों के साथ-साथ वह भिंडी, करेला, लौकी, टमाटर, बैंगन जैसी मौसमी सब्जियां भी उगा रहे हैं। इस बार उनके बगीचे में इतने ज्यादा लौकी और करेले हुए कि उन्हें इसे लोगों में बांटना पड़ा।
बनाते हैं कई तरह की खाद
रजिंदर सिंह कहते हैं कि बागवानी के कारण अब उनके घर से किसी भी तरह का गीला और जैविक कचरा बाहर नहीं जाता है। बल्कि कई बार वह सड़क किनारे पड़े पत्तों को खाद बनाने के लिए ले आते हैं। उन्होंने बताया, “मैंने बागवानी के साथ घर पर खाद बनाने की शुरुआत की। जैसे-जैसे मुझे सफलता मिलने लगी, मैं आगे बढ़ता रहा। मैं अब 10 तरह के कम्पोस्ट तैयार कर लेता हूं। मेरे घर की रसोई और बगीचे से कोई कचरा घर के बाहर नहीं जाता है।”
कैसे बनाते हैं कम्पोस्ट:
- वह केले के छिल्कों से दो तरह की खाद तैयार करते हैं। एक तरीके से छिल्कों को सुखाकर पाउडर और दूसरे तरीके से लिक्विड खाद बनाते हैं।
- प्याज के छिल्कों से लिक्विड खाद बनाने के बाद, बचे हुए वेस्ट को होम कम्पोस्टिंग बिन में डाल देते हैं। इससे अच्छी सूखी खाद भी तैयार हो जाती है।
- इस्तेमाल हुई चाय की पत्ती से भी वह खाद तैयार करते हैं।
- अंडे के छिल्कों को पीसकर वह पाउडर बनाकर स्टोर कर लेते हैं, ताकि पौधों में कैल्शियम के लिए इसे डाला जा सके।
- नींबू, संतरे और कीनू के छिल्कों से बायोएंजाइम तैयार करते हैं। इसके बाद, जो वेस्ट बचता है उसे सूखी खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- बगीचे में गिरे सभी पत्तों को सुखाकर लीफ कम्पोस्ट तैयार करते हैं।
- रसोई से निकलने वाले सभी फल-सब्जियों के छिल्कों को इकट्ठा करके सूखी खाद तैयार करते हैं।
- सभी सूखे फूलों को इकट्ठा करके लिक्विड खाद और सूखा पाउडर, दोनों तरह का पोषण तैयार करते हैं। यह फ़ूलों के पौधों के लिए काफी कारगर होता है।
- नीम के पत्तों को सुखाकर नीमखली बनाते हैं। साथ ही, निम्बोली और पत्तियों से कीट प्रतिरोधक भी तैयार किया जाता है।
- इसके अलावा, घर में बचने वाली खट्टी लस्सी से कीट प्रतिरोधक बनाते हैं। और तो और पनीर बनाने के बाद, बचने वाले सभी वेस्ट को भी वह पौधों में पोषण देने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
पड़ोसी हुए प्रेरित
रजिंदर कहते हैं, “पनीर के वेस्ट को आप लौकी के पौधों में डालिए, तो आपको बहुत ही अच्छा उत्पादन मिलता है। इसलिए मैं किसी भी चीज़ को अपने घर से वेस्ट नहीं जाने देता हूं। इस कारण हमारे घर का कचरा काफी कम हुआ है। क्योंकि सूखे कचरे में भी मैं कोशिश करता हूं कि प्लास्टिक जितना कम हो उतना अंदर आए। यदि उसमें पॉलिथीन या रैपर मिल जाता है, तो उनसे मैं इको ब्रिक बनाता हूं। अब तक मैं 40-50 इको ब्रिक बना चुका हूं।”
उन्हें देखकर अब उनके पड़ोसी भी कचरा प्रबंधन करने लगे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी कॉलोनी को अब कचरा प्रबंधन के मामले में मॉडल कॉलोनी कहा जाता है। नगर निगम के कर्मचारियों के साथ मिलकर रजिंदर दूसरे लोगों को भी खाद बनाना सिखाते हैं। इसके अलावा, जैसे ही उन्हें मौका मिलता है वह अलग-अलग खाली जगहों में पौधरोपण भी करते हैं। उनका कहना है कि अगर आप चाहें तो न सिर्फ अपने घर को बल्कि अपने आसपास की जगहों को भी खूबसूरत और स्वच्छ बना सकते हैं। जरूरत है तो बस एक कोशिश की।
रजिंदर सिंह से संपर्क करने के लिए आप उनका फेसबुक पेज देख सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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