असम के आदिवासियों से सीख, तेलंगाना में उगा रहे “Magic Rice”, नहीं पड़ती है उबालने की जरूरत

Telangana Farmer

तेलंगाना के करीमनगर जिले में रहने वाले श्रीकांत गरमपल्ली ने “Magic Rice” को उगाने का तरीका असम के आदिवासी समुदायों से सीखा। जहाँ इसे बोका सोल या मड राइस के नाम से जाना जाता है।

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में खाना बनाना अक्सर बोझिल काम माना जाता है। यही कारण है कि आज “रेडी-टू-ईट” या “बिना पकाये हुए खाने” (Cooking Without Fire) खाने का चलन बढ़ गया है। इसी को देखते हुए, तेलंगाना के करीमनगर जिले के एक किसान ने “मैजिक राइस” उगाना शुरू कर दिया, जिसे खाने से पहले सिर्फ गर्म या ठंडे पानी में भिगोने की जरूरत है।

इस चमत्कारी चावल की खेती करने वाले किसान श्रीकांत गरमपल्ली (38) ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं एक किसान परिवार से आता हूँ, धरती मेरी पहली माँ है।”

श्रीकांत पिछले 30 वर्षों से खेती-किसानी कर रहे हैं। इस कड़ी में उन्होंने बताया, “मैजिक राइस के अलावा, मेरे पास 120 किस्म के चावल का संग्रह है, जिसमें नवारा, मप्पीलै सांबा और कुस्का जैसे नाम हैं।” 

इसके साथ ही, वह अन्य 60 प्रकार के जैविक सब्जियों की भी खेती करते हैं। अपने खेती कार्यों के लिए उन्होंने 12 एकड़ जमीन ठेके पर ली है।

कैसे शुरू हुआ सफर

दरअसल, यह दो साल पहले की बात है। श्रीकांत ओडिशा में एक मंदिर में दर्शन करने के लिए गए थे। वहाँ प्रसाद की लाइन में उनकी मुलाकात एक सज्जन से हुई। बातों ही बातों में, उन्हें पता चला कि श्रीकांत एक किसान हैं। 

जब श्रीकांत ने उन्हें अपने धान के कलेक्शन के बारे में बताया, तो उन्होंने मैजिक राइस के बारे में जानकारी दी। इसके बाद श्रीकांत को पहली बार इस चावल के बारे में पता चला।

cooking without fire

हालांकि, श्रीकांत को अपने नए दोस्त का मोबाइल नंबर लेने का ध्यान नहीं रहा। लेकिन, उन्होंने किसी तरह मैजिक राइस के बारे में पर्याप्त जानकारी जुटा ली कि इसकी खेती कौन करते हैं और इसे कैसे पकाया जाता है। 

इसके बाद, वह फौरन असम गए, जहाँ इस धान की खेती होती है। इसी क्रम में वह गुवाहाटी यूनिवर्सिटी भी गए, जहाँ उन्होंने इस धान की सबसे अच्छी किस्म के बारे में जानकारी हासिल की।

यूनिवर्सिटी के पदाधिकारियों ने बोका सोल या मड राइस (कीचड़ में उगने वाला धान) को जुटाने में श्रीकांत की मदद की। 

साथ ही, उन्हें यह भी बताया कि इस चावल को बनाने के लिए ईंधन की कोई जरुरत नहीं होती है। यह काफी पौष्टिक होता है, और इसमें 10.73 प्रतिशत फाइबर 6.8 प्रतिशत प्रोटीन होते हैं।

इस धान को भारत सरकार ने ‘जीआई टैंगिग’ दी है। विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने श्रीकांत को सलाह दी कि, यदि वह इसकी खेती के तरीकों के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं, तो उन्हें नलबाड़ी, दरंग और धुबरी जैसे आदिवासी इलाकों का दौरा करना चाहिए।

क्या हुआ आगे

इसके बाद, श्रीकांत जानकारी जुटाने के लिए आदिवासी इलाके में गए।

वह कहते हैं, “यह एक गलत धारणा है कि आदिवासी समुदाय, बाहरी लोगों को अपने पास नहीं आने देते। यदि आपके इरादे नेक हैं, वे आपकी मदद करेंगे। जब आदिवासियों को पता चला कि मैं बोका सोल धान की खेती कर, इसके दायरे को बढ़ाना चाहता हूँ, तो वे खुशी-खुशी मदद के लिए तैयार हो गए।”

मैजिक राइस के बारे में जानने के लिए, श्रीकांत एक हफ्ते से अधिक समय के लिए आदिवासियों के साथ रहे। वहाँ, उन्हें इसके खेती के तरीकों के बारे में सिखाया गया था कि, यह कैसे नियमित धान की खेती समान ही है। 

वहाँ से लौटते वक्त आदिवासी किसानों ने श्रीकांत को तोहफे में 100 ग्राम चावल भेंट किया।

cooking without fire

इसके बाद, जून 2020 में, श्रीकांत ने अपनी पत्नी और माता-पिता की मदद से एक छोटे से खेत में धान की खेती शुरू की, जिससे करीब 15 किलो पैदावार हुई।

वह कहते हैं, “यह धान करीब 145 दिन में तैयार होता है। मैंने अपनी उपज का कुछ हिस्सा अपने पास रख कर, बाकी गुवाहाटी यूनिवर्सिटी और अपने रिश्तेदारों के बीच बाँट दिया।”

श्रीकांत के अनुसार, इस चावल की खासियत यह है कि इसे कोई अपनी इच्छानुसार गर्म या ठंडा पानी, दोनों में बना सकता है। इसे तैयार होने में करीब 30 मिनट लगते हैं।

श्रीकांत ने अपनी उपज में से करीब 5 किलो, अगली खेती के लिए बचा कर रखा है।

वह कहते हैं, “मैं इस धान की खेती, वित्तीय लाभ कमाने के लिए नहीं करना चाहता हूँ। फिलहाल, मेरा ध्यान इसके उत्पादन को बढ़ाने का है। हो सकता है कि, तीन-चार साल बाद मैं, इसे उत्पादन के आधार पर लोगों को बेच सकूं।”

मूल कहानी – SANJANA SANTHOSH

संपादन – जी.एन. झा

यह भी पढ़ें – धान की पराली से आलू की खेती कर पर्यावरण, पानी और पैसे, तीनों बचा रहे यह किसान, जानिए कैसे

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

cooking without fire, cooking without fire, cooking without fire

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X