मुझे अच्छी तरह से याद है। मई का महीना था और चेन्नई में अग्नि नक्षत्रम शुरू हो चुका था। यह एक ऐसा समय होता है जब तापमान अपने चरम पर होता है और धरती आग उगलती है। दोपहर के भोजन के बाद पापा हमें अपने कॉलेज के दिनों की बातें बता रहे थे। धीरे-धीरे बात शहर की एक ऐसी जगह पर आकर पहुँच गई जिसने हमें बीते समय की याद दिला दी। उन शब्दों को सुनकर मुझे अपने वो गुजरे पल याद आ गए जब मैं पहली बार मद्रास लिटरेरी सोसाइटी गई थी। लगभग 200 साल पहले निर्मित यह लाइब्रेरी आज भी हमारे देश के इतिहास, विरासत और वास्तुकला का एक शानदार नमूना है।
1880 के दशक में स्थापित यह पुस्तकालय साउथ एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक है। यह पुस्तकालय दशकों पुराने पांडुलिपियों, लिखित कृतियों, फिक्शन, नॉन-फिक्शन का बहुमूल्य खजाना है।
एक पुस्तक प्रेमी का इस पुस्तकालय में जाना ठीक वैसा ही है,जैसे एक बच्चा चॉक्लेट की दुकान में खड़ा हो। दरअसल, पुस्तकालय में जब आप चारों तरफ नजर दौड़ाते हैं तो आप इनमें ऐसे खो जाते हैं कि यह तय कर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है कि आज के लिए कौन सी किताब चुनें और अगली बार के लिए कौन सी किताब छोड़ें। अरस्तू के ओपेरा ओम्निया से लेकर न्यूटन के प्रिंसिपिया मैथेमेटिका और क्षेत्रीय भाषाओं की ढेर सारी किताबें यहाँ आपको मिल जाएगी। इस पुस्तकालय में 85,000 से अधिक पुस्तकों का संग्रह मौजूद है।
मद्रास लिटरेरी सोसाइटी – एक अनोखी वास्तुकला

पुस्तकालय की भव्य इमारत तक पहुँचने से पहले ही आस पास के हरे-भरे मैदान और गुलमोहर के खूबसूरत पेड़ हमारा ध्यान आकर्षित कर लेते हैं। गेरूआ रंग की ईंटों से बना यह पुस्तकालय सामने से देखने में महल जैसा प्रतीत होता है। द्वार से प्रवेश करने के बाद आपको रोशनी से भरे हॉल में पुस्तकालय की छत को छूती हुई 28 फुट लंबे बुक शेल्फ की कतारें नजर आयेंगी।

इतनी ऊँची छत, देखकर मुझे काफी आश्चर्य हुआ? एक आर्किटेक्ट ने मुझे भवन में लगे महँगी धातु के खूबसूरत नगों, वास्तुकला और डिजाइन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि पुस्तकालय के हॉल में पर्याप्त रोशनी आने के लिए बहुत से वेंटिलेशन बनाए गए हैं। इसके साथ ही लोहे के बने दो तल वाले शेल्फ में किताबों को रखा गया है। पुस्तकालय के जनरल सेक्रेटरी थिरुपुरसुंदरी सेववेल ने बताया कि सबसे ऊंची शेल्फ से किताबें उतारने के लिए शेल्फ के बीच चरखी लगी है।
पुस्तकालय के अंदर आकर्षण का मुख्य केंद्र है चरखी का प्रयोग, इससे पुस्तकों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है। जब मैंने अपने बच्चे को इसकी तस्वीर दिखायी तो उसने कहा, “ये तो बिल्कुल हॉगवर्ट्स की तरह है!“ मैं अपने बच्चे में भी किताबों के प्रति वही मोह देखकर मुस्कुरायी, क्योंकि मैंने भी पुस्तकालय जाना तभी शुरू किया जब मैं छोटी थी।
पुस्तकालय में आस पास के पेड़ों से आने वाली ठंडी हवा के झोंकें और अंदर का शांत माहौल यहाँ आने वाले को मंत्रमुग्ध कर देता है। साथ ही सुभाषचंद्र बोस, एनी बेसेंट और डॉ. एस राधाकृष्णन जैसी सुविख्यात व्यक्तित्वों की मेजबानी भी इस पुस्तकालय के लिए गौरान्वित करने वाली है।
यह पुस्तकालय पाठकों, छात्रों और पर्यटकों से भरा रहता है। पुस्तकालय की इमारत हर किसी को अपनी ओर खींचती है। लेकिन जब तक महामारी नहीं फैली थी, तब तक। क्या आप इस बात पर यकीन करेंगे कि सन 1800 में अपनी स्थापना के बाद से यह पुस्तकालय लॉकडाउन शुरू होने से पहले एक दिन के लिए भी बंद नहीं हुआ था?
जब मैंने थिरुपुरसुंदरी से पूछा तो उन्होंने बताया कि यही इस पुस्तकालय की खासियत है।
एक अच्छी इमारत की संरचना के तीन प्रमुख तत्व
थिरूपुरसुंदरी के अनुसार, किसी इमारत को लम्बे समय तक टिके रहने के लिए तीन चीजें ज़रूरी हैं : पर्यावरण अनुकूलनशीलता, ध्वनिक विशेषताएँ और प्रकाश की उचित व्यवस्था, और इस पुस्तकालय में ये तीनों है।
वह कहती हैं, “आप इमारत की डिजाइन में दो परतों वाली खिड़कियाँ और मद्रास टेरेस रूफ देख सकते हैं। इमारत में चूने के प्लाटर का प्रयोग किया गया है जिससे पर्याप्त प्राकृतिक वेंटिलेशन मिलता है साथ ही इस इमारत में पर्यावरण के अनुकुल कई चीजें नजर आती हैं।”
वह आगे कहती हैं कि माइक को सही जगह पर लगाने जैसी छोटी-छोटी चीजें भी इमारत के अंदर की आवाज में बदलाव ला सकती हैं। इसीलिए किसी भी सार्वजनिक समारोह या सेमिनार के दौरान माइक प्लेसमेंट और अन्य चीजों की व्यवस्था सहायक लाइब्रेरियन विनायगम की देखरेख में होती है।
थिरुपुरसुंदरी मुस्कुराते हुए बताती हैं, “मैं खुद यह महसूस करती हूँ कि इस जगह को वास्तव में जो खास बनाता है वह हैं यहाँ काम करने वाले लोग, हेड लाइब्रेरियन उमा माहेश्वरी जो पिछले ढाई दशक से पुस्तकालय से जुड़ी हैं, विनयगन जो 17 से अधिक वर्षों से यहां कार्यरत हैं या मार्थम्मा जो चार दशकों से पुस्तकालय की देखभाल कर रहे हैं। यकीनन मैं यह कह सकती हूँ कि यहाँ आने वाले लोगों, पुस्तकों और पुस्तकालय के एक -एक कोनों के बारे में बताने के लिए इन सभी के पास अपनी-अपनी कहानियाँ हैं। ये वे स्तंभ हैं जिनके ऊपर पुस्तकालय की संरचना खड़ी है।“
चाहे आप साहित्य के शौकीन हों या सुंदर इमारतों के प्रशंसक हों, आप मद्रास लिटरेरी सोसाइटी में घंटों बिता सकते हैं। जब आप अगली बार चेन्नई आएं तो इस ऐतिहासिक पुस्तकालय को जरूर देखने आएँ।
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आप मद्रास लिटरेरी सोसाइटी को किसी तरह की मदद पहुँचाने के लिए खुद भी पहल कर सकते हैं।
कवर फोटो- मोहम्मद रफीक
मूल लेख-VIDYA RAJA
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