गौतमी ने जर्नलिज़्म को अलविदा कहा, दिल्ली से बोरिया बिस्तर समेटा और पहुँच गई वापस हिमाचल। अपनी उन्हीं जड़ों में, पहाड़ों की उसी गोद में जहाँ से उसका सफर शुरू हुआ था। लेकिन इस बार शिमला लौटना वैसा नहीं था जैसा बीते वर्षों में हुआ करता था जब वह कॉलेज या ऑफिस से छुट्टी पर थोड़े समय के लिए घर आया करती थी। इस बार वह लौटी थी यहीं बस जाने के लिए ताकि कुछ मन का कर सके।
मगर वह जिन इरादों को दिल में बसाकर, जिन सपनों पर सवार होकर हिमाचल वापस आयी थी उन पर दूसरों को यकीन दिलाना आसान नहीं था। गौतमी कहती हैं, ”लौटने पर पता चला कि लौटना आसान नहीं होता। छोटे शहर या कस्बों से बाहर किसी बड़े शहर जाना ‘प्रगति’ की निशानी मानी जाती है और उसी शहर लौटने पर हमें ‘लूज़र’ समझा जाता है। लिहाज़ा, जब विदेश में पढ़ाई और दिल्ली जैसे महानगर में नौकरी करने के करीब 7-8 साल बाद मैं शिमला वापस आयी तो शुरू में सभी को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है वरना महानगरों की रफ्तारी ज़िंदगी और परदेस की चकाचौंध छोड़कर कोई शिमला क्यों लौटेगा?’’
मगर उसके पास सपने थे। अपने दोस्त सिद्धार्थ के साथ हिमाचल में गौतमी ने उन सपनों में रंग भरा और जन्म हुआ ”बुरांश” का।
”हमारे पास बैलेन्स शीट नहीं, खुली आंखों से देखे सपने हैं’’
स्थानीय हिमाचली सेल्फ-हेल्प समूहों से अचार, जैम, चटनी, चिलगोज़े, राजमा, हर्बल चाय, ऊनी सामान, शहद, क्रीम, गुट्टी का तेल वगैरह जाने क्या-क्या खरीदकर, पैकेजिंग कर, अपने शब्दों की चाशनी में घोलकर दोनों ने इन्हें ऑनलाइन बेचना शुरू किया।
हाल में हरियाणा के सूरजकुंड मेले में हिमाचल प्रदेश ने ‘थीम राज्य’ के तौर पर मौजूदगी दर्ज करायी तो ‘बुरांश’ ने भी अपना एक स्टॉल मेले में लगाया। यहाँ उन्हें सीधे ग्राहकों के संपर्क में आने का मौका मिला।
बिक्री बढ़ी तो इन दोनों युवा ऑन्ट्रप्रेन्योर्स के भरोसे ने भी छलांग लगायी। लेकिन ये कुछ नया कर पाते उससे पहले ही देशभर में महामारी की प्रेतछाया टंग गयी और लॉकडाउन ने ‘बुरांश’ के सोर्सिंग तथा डिलीवरी चक्र की रफ्तार रोक दी।
गौतमी और सिद्धार्थ कहते हैं, ”लॉकडाउन हमारे लिए बड़ी सीख लेकर आया। सबसे बड़ा सबक तो हमने यही लिया है कि पूरा कारोबार ऑनलाइन करने की बजाय ऑफलाइन दखल होना भी जरूरी है।”
छोटी उम्र के बड़े सपने ऐसे ही होते हैं। उनमें उत्साह होता है। तभी तो बुरांश के जन्म के कुछ ही दिनों बाद जब लॉकडाउन की मार पड़ी तो भी इन दोनों युवाओं का भरोसा डगमगाया नहीं।
गौतमी बताती हैं,”बीते दो-ढाई महीनों में बिक्री के ऑर्डर ही नहीं सूखे बल्कि हमारे ऑपरेशन हब में डिलीवरी के लिए रखे कई सारे ‘पेरिशेबल आइटम’ भी खराब हो गए। लेकिन हम इस नुकसान को जज़्ब कर सके हैं क्योंकि हमने अपने स्टार्ट-अप को कर्ज की बैसाखियों से मुक्त रखा था।”
सिद्धार्थ के घरवालों ने अपने घर का एक हिस्सा बुरांश का ऑफिस और पैकेजिंग हब बनाने के लिए उपलब्ध कराया था। सिद्धार्थ का कहना है, ”हमारी बचत और परिवार से मिली कुछ रकम ही हमारे इस स्टार्ट-अप की ‘वर्किंग कैपिटल’ थी। लॉकडाउन में जब बुरांश की आमदनी शून्य रह गई थी तब हमें सिर्फ ऑफिस में बिजली-पानी और इंटरनेट कनेक्शन के बिलों का खर्च ही उठाना पड़ा। हम लोन की भारी-भरकम ईएमआई या शोरूम के किराए के बोझ से बचे रहे। लॉकडाउन जैसे अभूतपूर्व संकट ने हमें साफ-साफ यह संदेश दिया है कि अपनी महत्वाकांक्षाओं में रंग भरने के लिए अपने बजट पर नियंत्रण रखना कितना जरूरी होता है।”
आज जबकि दुनियाभर में कितने ही स्थापित स्टार्ट-अप बंद होने या बर्बाद होने की कगार पर पहुँच चुके हैं वहीं ‘बुरांश’ अपनी भावी योजनाओं को लेकर मंथन करने में मगन है, “लॉकडाउन के दौरान हमने अपनी वेबसाइट और अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को मजबूत करने के अलावा आगे की रणनीति क्या होगी, इस पर काफी सोच-विचार किया।”
‘बुरांश’ के जरिए हिमाचल के सुदरवर्ती लाहुल-स्पीति से सीबकथॉर्न की पत्तियों की चाय मंगवायी जा सकती है तो तीर्थन में द ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की सीमाओं से चुनी गई यू हर्बल टी (Yew tea), किन्नौरी न्योजे (चिलगोज़े), जंगलों का शहद और हिमाचली स्व-सहायता समूहों से जुड़ी औरतों की खास सेब की चटनी भी खरीदी जा सकती है।
हिमाचल की सेब पट्टी थाणेदार में सेब के बगीचों से चुने सेबों से इस चटनी को बनाने का नुस्खा इन हिमाचली औरतों की पारंपरिक रसोई से आया है।

बुरांश हिमालय के शुद्ध उत्पादों को बेचता है स्थानीय उत्पादकों से सीधे खरीदकर और वो भी उनके मुंहमागे दाम पर। अपने पोर्टफोलियो में नए और पारंपरिक उत्पादों को शामिल करने की तलाश गौतमी और सिद्धार्थ को हिमाचल के कितने ही पांपरिक मेलों, मंडियों, हाटा बाज़ारों तक ले गई है। दिल में अरमानों की खनक और आँखों में कुछ नया कर गुजरने का ख्वाब लिए ये दोनों युवा दूर-दूर के कितने ही गांवों-कस्बों और बाज़ारों की खाक छान चुके हैं। यहाँ तक कि रामपुर के अंतरराष्ट्रीय लवी मेले, चंबा के मंजीर मेले से लेकर मंडी के शिवरात्रि मेले और कुल्लू दशहरे तक में शिरकत कर ये सीधे उत्पादकों से मिलते हैं, नए-नए पारंपरिक व्यंजनों-उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री की संभावनाओं को टटोलकर ‘बुरांश’ परिवार में उन्हें शामिल कर लेते हैं।
हिमाचल के जनजातीय इलाकों से लेकर सुदूर इलाकों से शुद्ध देसी स्वाद और महक को शेष भारत तक पहुंचाने की गौतमी और सिद्धार्थ की मुहिम ”स्वावलंबन” का युवा संस्करण है। गौतमी कहती है, ”नीति आयोग के गलियारों में मैंने स्टार्ट-अप और स्किल इंडिया के जितने भी मुहावरे सीखे थे, उन्हें आज अपने ही सपनों पर आजमा रही हूँ ताकि अपने हिमाचल की कला-संस्कृति, खान-पान, शिल्प, रिवायतों, मेलों, त्योहारों की सुगंध को दूर-दूर तक फैला सकूँ।”
‘बुरांश’ बेशक अभी छोटे पैमाने पर कम बजट वाला स्टार्ट-अप है, लेकिन जल्द ही राज्य की अन्य बहुमूल्य कलाओं, शिल्पों और कारीगरों तक को जोड़ने के ख्वाब खुली आंखों से देखने लगा है। और लॉकडाउन जैसे सख्त इम्तहान में ‘पास’ हो जाने के बाद आत्मविश्वास की नई ताकत से लबरेज़ भी है।
आप बुरांश से संपर्क भी कर सकते हैं-
इंस्टा हैंडल: @buraansh_
फेसबुक पेज: @Buraansh.official
ईमेल: info@buraansh.com
वेबसाइट-www.buraansh.com
मोबाइल: 8800946097
यह भी पढ़ें- किसी ने ग्राहकों से जोड़ा, तो किसी ने तैयार की रेसिपीज़ और एक दिन में बिक गए 10 टन अनानास!
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।
We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons: