पार्वती घाटी, हिमाचल प्रदेश में कसोल से लगभग 40 किमी दूर बसी एक बहुत ही खूबसूरत घाटी है। यह घाटी न सिर्फ हिमाचल के लोगों के लिए ख़ास है, बल्कि टूरिज्म के नज़रिए से भी काफी मशहूर है। यह घाटी कई खूबसूरत रास्तों और ट्रेक रूट्स का हिस्सा है, जहां से पीक सीजन में लाखों लोग गुजरते हैं। साथ ही, यहाँ से पार्वती नदी और ब्यास नदी के संगम का एक शानदार नज़ारा भी देखने को मिलता है।
हालांकि एक समय था, जब पार्वती नदी और ब्यास नदी के संगम से लगभग 100 मीटर की दूरी पर कचरे का ढेर नज़र आता था। ज्यादा टूरिस्ट आने की वजह से, सालों से यहाँ कचरा जमा हो रहा था। अंधाधुंध भरे जा रहे इस कचरे के ढेर ने नदी में प्रदूषण का खतरा बढ़ा दिया था। साथ ही, इस जगह के आसपास के इको सिस्टम को भी खराब कर रहा था। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहाँ लगभग 20 साल पहले, कचरे का ढेर लगना शुरू हुआ था, जिसे साफ करने या अच्छे से प्रबंधित करने का काम कभी भी नहीं किया गया।
लेकिन अगर आप आज यहां आएंगे, तो आपको नज़ारा कुछ और ही मिलेगा। क्योंकि, अब यहां कचरे का कोई ढेर नहीं है, बल्कि चारों तरफ बस हरियाली ही हरियाली है।
इस जगह को एक सुंदर से बगीचे में तब्दील कर दिया गया है, जहाँ आपको कई किस्म के पेड़, बेल या लताएं, झाड़ियाँ, जड़ी-बूटियाँ आदि देखने को मिल जाएंगी। साथ ही, यहाँ कई प्रकार के सुंदर पक्षी भी आते-जाते रहते हैं।
कैसे की काय पलट?
यह सबकुछ पार्वती डिवीज़न के उप वनसंरक्षक, ऐश्वर्य राज की वजह से मुमकिन हो पाया है। उन्होंने कुछ ही महीनों में लगभग 2.5 एकड़ में फैले कचरे के ढेर को हरे-भरे बगीचे में बदल दिया।
ऐश्वर्य ने द बेटर इंडिया को बताया, “राहत की बात यह थी कि जिस जमीन पर कचरा डाला जा रहा था, वह वन विभाग की ही थी, वरना हमें और भी कई स्टेकहोल्डर्स की मदद लेनी पड़ती।”
29 वर्षीय ऐश्वर्य का कहना है कि इस साल फरवरी में इलाके के दौरे के वक्त, उन्हें इस कचरे के ढेर के बारे में पता चला। वह कहते हैं, “मैंने 2021 में डिवीजन का कार्यभार संभाला और फरवरी में पार्वती घाटी के एक सामान्य निरीक्षण पर गया था। घाटी में इस कचरे के ढेर को देखकर, मैं हैरान हो गया। मैं हैरान इस बात से भी था कि आजतक किसी ने इसे साफ करने या इसका प्रबंधन करने की जिम्मेदारी कैसे नहीं ली! वन अधिकारियों ने हमें बताया कि कचरे की परेशानी लगभग दो दशक पहले शुरू हुई थी और प्रबंधन के अभाव में देखते ही देखते स्थिति बद से बद्तर होती चली गई।”
संयोग से, उसी महीने राज्य सरकार ने ‘स्वर्णिम वाटिका’ नामक एक पहल की घोषणा की। इस पहल के तहत राज्य के गठन की Golden Jubilee के अवसर पर एक पौधरोपण अभियान चलाया गया। ऐश्वर्य ने इस पहल की मदद से फंड इकट्ठा करने और कचरे के ढेर वाले मसले को हल करने का फैसला किया।
कुछ ही दिनों में, वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट के साथ मिलकर 25 टिपर (कचरा या सामान ढोनेवाले ट्रक) कचरा, कैक्टस और खरपतवार को हटाया गया। जैविक कचरे से वर्मीकंपोस्ट बनाया गया। वह कहते हैं, “हमने गहरी खुदाई करके, मिट्टी की गुणवत्ता की जाँच की। जिससे हमें पता चला कि घाटी की मिट्टी, पेड़-पौधों के विकास के लिए काफी अच्छी है। यहाँ हमने देसी किस्मों के 400 से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए जैसे- देवदार, सिल्वर ओक, हॉर्स-चेस्टनट, जकरंदा, अमलतास, गुलाब, थूजा, साइकैस, रिबन प्लांट, ग्लेडियोलस, सेब, आड़ू, खुबानी, बेर और अनार आदि।”
इसके अलावा, पहाड़ियों में घर बनाने के लिए इस्तेमाल होनेवाले स्लेट या पत्थर, जो बेकार पड़े या इस्तेमाल किये हुए थे, उन्हें पास की बस्ती से अपसायकल करवाया गया। उन्हीं पत्थरों का इस्तेमाल कर, यहाँ रास्ता बनवाया गया। प्राकृतिक खूबसूरती को बनाए रखने के लिए नदी के पत्थरों का इस्तेमाल करके लैंडस्केपिंग की गई। इस दौरान, किसी भी काम के लिए कॉन्क्रीट का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
ऐश्वर्य का कहना है कि इस इलाके की घेराबंदी की गई और सुरक्षा के लिए कैमरे भी लगाए गए। वह आगे कहते हैं, “यह जगह दिखने में कैसी लगेगी और लोगों को इसे देखकर कैसा महसूस होना चाहिए, यह सब मैंने स्थानीय पेड़ों की किस्मों तथा इकोलॉजी को देखकर और समझकर, अपने टैब में एक महीने में डिजाइन किया। आनेवाले कुछ हफ़्तों में ही, यहाँ करीब 300 पौधे लगाए जाने हैं। मॉनसून आने तक पौधरोपण अच्छे से हो जायेगा।”
पूरी तरह बदल दी तस्वीर!
ऐश्वर्य का कहना है कि सीनियर अधिकारी और लोकल पंचायत ने परियोजना को पूरा करने के लिए जरूरी साधन उपलब्ध कराकर, इस काम में हमारी मदद की। वह बताते हैं, “यह गार्डन स्थानीय लोगों और टूरिस्ट के लिए खुला होगा। यह गार्डन यहां आने वाले लोगों के लिए यकीनन एक नया और अनोखा अनुभव साबित होगा, क्योंकि पहाड़ों पर अक्सर ऐसी जगह या पार्क देखने को नहीं मिलते हैं।”
एक स्थानीय निवासी बबलू का कहना है कि पहले यह जमीन बंजर और कांटेदार पौधों से भरी हुई थी। उन्होंने आगे कहा, “यह जगह असामाजिक गतिविधियों का भी अड्डा बन चुकी थी। लेकिन, आज यहाँ पहले जैसी खूबसूरती और हरियाली आ चुकी है। अब यहाँ रोज़ शाम को कई लोग आते हैं और खूबसूरत नज़ारों के बीच घंटों बिताते हैं।”
ऐश्वर्य का कहना है कि हाल ही में इलाके के दौरा करते हुए, उन्होंने एक पीली चोंचवाले ब्लू मैगपाई (एक हिमालयी पक्षी) की एक झलक देखी। उन्होंने बताया, “यह ग्रीन ज़ोन, ऐसे पक्षियों तथा जानवरों के लिए एक सुरक्षित आसरा भी बन जाएगा। ऐसी और भी कई जगहों की पहचान की गई है, जिन्हें ग्रीन ज़ोन बनाया जाएगा। जिससे न सिर्फ जगह की खूबसूरती बढ़ेगी, बल्कि पर्यावरण के संरक्षण और विकास को भी बल मिलेगा।”
ऐश्वर्य का कहना है कि ग्रीन जोन एक उदाहरण है, जहां वन विभाग के ये प्रयास दर्शाते हैं कि पर्यावरण का संरक्षण और जगह का विकास, एक साथ कैसे किया जा सकता है। वह अंत में कहते हैं, “पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में, ऐसे काम होते रहने चाहिए।”
मूल लेख: हिमांशु नित्नावरे
संपादन- जी एन झा
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