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हिमाचल: केवल रु.1300 लागत और 1 लाख 93 हजार कमाई, जानिए कैसे किया इस किसान ने यह कमाल

हेतराम के सफल खेती और बागवानी के मॉडल को देखकर हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग की ओर से हेतराम को मास्टर ट्रेनर नियुक्त किया गया है।

दिनों-दिन कृषि-बागवानी की बढ़ती लागत और किसानों को ऋण के बोझ तले दबते देख हिमाचल प्रदेश के बागवान हेतराम ने न सिर्फ अपने गांव और पंचायत बल्की पूरे सिराज घाटी के किसानों को कम लागत और जहरमुक्त खेती वाली प्राकृतिक पद्धति की ओर मोड़ने की एक अनुकरणीय पहल की है।

किसानों की आय में वृद्धि कर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए हेतराम की ओर से शुरू की गई इस पहल के चलते हिमाचल प्रदेश की सिराज घाटी के 500 से अधिक किसान-बागवानों ने प्राकृतिक खेती पद्धति को अपना लिया है।

हेतराम ने द बेटर इंडिया को बताया कि एक साल पहले तक वह भी अन्य किसान-बागवानों की तरह अपने खेतों में बेहतर फसल के लिए कीटनाशकों, हाईब्रीड बीजों और रासायनिक खादों का प्रयोग करते थे। इससे उनके उपर हर साल लगभग डेढ लाख रूपये का ऋण चढ़ जाता था, जबकि खेती और बागवानी में भी ज्यादा अच्छे परिणाम देखने को नहीं मिल रहे थे। वह इस मंहगी खेती को छोड़कर एक बेहतर विकल्प की तलाश कर रहे थे, तभी उन्हें सरकार की ओर से शुरू की गई ‘प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना’ के बारे में पता चला और इस योजना के तहत शुरू की गई प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण में जाने का मौका मिला।

उन्होंने बताया कि यह प्रशिक्षण ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पद्धति’ के जन्मदाता पद्मश्री सुभाष पालेकर स्वयं दे रहे थे।

उन्होंने कहा, “मैंने यहां से छह दिन का प्रशिक्षण लिया और अपने खेतों में इस खेती विधि से खेती को करने लग गया।“

प्रशिक्षण पूरा होने के बाद हेतराम ने प्रयोग के तौर पर तीन बीघा क्षेत्र में इसे अपनाया। उन्होंने तीन बीघा क्षेत्र में 20 सेब के पौधों के साथ मिश्रित खेती के तौर पर राजमा और धनिया लगाया था, जिसमें उनकी कुल लागत 1300 रूपये और कुल आय 1 लाख 93 हजार रूपये रही। जबकि रासायनिक खेती में इसी क्षेत्र में उनका खर्चा 6 हजार रूपये और कुल लागत 1 लाख 23 हजार रूपये रही थी। इस सफल प्रयोग के बाद अब हेतराम अपनी 13 बीघा भूमि में सब्जियों के साथ अपने 1 हजार सेब के पौधों में भी इसी खेती विधि को कर रहे हैं।

हेतराम बताते हैं, “इस खेती विधि को शुरू करने के पहले ही सीजन में मुझे अप्रत्याशित परिणाम देखने को मिले। इसलिए पहले तो मैंने अपने गांव वालों को इस खेती के लिए प्रेरित किया और अब पूरे जिले के किसानों को इस खेती विधि को अपनाकर खेती की लागत को कम कर मुनाफे को बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहा हूं। जब मैं रसायनिक खेती करता था तो रसायनों के प्रयोग के दौरान मुझे सिर में दर्द रहना और आखों में जलन होती थी, लेकिन जब से प्राकृतिक खेती को अपनाया है इससे मुझे किसी भी प्रकार की एलर्जी नहीं है। क्योंकि इस खेती विधि में बाजार से कुछ भी खरीदकर लाने की जरूरत नहीं होती है इसलिए हर साल दवाईयों और रसायनों के लिए प्रयोग होने वाले लाखों रूपये की भी बचत तो हो रही है साथ ही उत्पादन में किसी प्रकार की कमी नहीं आई है। “

जिले के 2000 किसानों को किया जागरूक

हेतराम के सफल खेती और बागवानी के मॉडल को देखकर हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग की ओर से हेतराम को मास्टर ट्रेनर नियुक्त किया गया है। हेतराम जिले के अन्य किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक करते हैं। हेतराम ने बताया कि अभी तक वे 2 हजार से अधिक किसानों को इस खेती विधि को सीखा चुके हैं, जिनमें से 500 से अधिक किसान इसे पूरी तरह अपना चुके हैं। उन्होंने बताया कि उनके खेती के मॉडल को देखकर जिले के किसानों के साथ साथ लगते अन्य जिलों के किसान भी उनके खेतों में पहुंच रहे हैं।

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सेब के 1000 पौधों पर कर रहे प्रयोग

हेतराम सब्जियों की खेती के अलावा सेब की बागवानी भी करते हैं। उन्होंने अपने बगीचे में 1000 सेब के पौधे लगाए हैं और वे इन पौधों में अब किसी भी प्रकार के कीटनाशकों और रसायनों को प्रयोग नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि जब वह रसायनिक खेती करते थे तो उनकी बहुत लागत आती थी जबकि अब उनकी कृषि लागत घटकर पांच हजार रूपये तक पहुंच गई है।

रासायनिक खेती के नुकसानों के बारे में बताते हुए हेतराम कहते हैं कि रासायनिक खेती में सेब, मटर, गेहूं, मक्का और राजमास के पत्तों में बीमारियों के कारण पत्ते पीले पड़ जाते थे लेकिन प्राकृतिक खेती को अपनाने से इसमें नियंत्रण है। उन्होंने बताया कि पत्तों के पीले पड़ने पर वे इसमें घर में मौजूद कई दिनों की पुरानी खट्टी लस्सी में पानी मिलाकर और जीवामृत का छिड़काव करते हैं। इससे बीमारियों पर नियंत्रण हो रहा है।

हेतराम अब पुराने बीजों को भी संभाल कर रख रहे हैं और इन्हें ही अपने खेतों में लगाएंगे इससे उनकी कृषि लागत में और कमी आएगी। हेतराम का कहना है कि किसानों को पर्यावरण के साथ संतुलन बनाते हुए प्राकृतिक खेती को अपनाना चाहिए।
हेतराम से इस नंबर पर संपर्क किया जा सकता है-9816516444

पता- गांव चापड, पंचायत रोड, ब्लॉक सिराज, जिला मंडी, हिमाचल प्रदेश

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