बहुत समय पहले हमने दार्जीलिंग में रहने वाली सृजना सुब्बा की कहानी प्रकाशित की थी। सृजना का कहना है कि दुनिया के हर बच्चे को अच्छी किताबें पाने और पढ़ने का अधिकार है। इसलिए उन्होंने अपने इलाके के बच्चों के लिए एक लाइब्रेरी शुरू की। थोड़ी अलग, लेकिन कुछ ऐसी ही मिलती-जुलती-सी कहानी है मेरठ की रहने वाली अमिता शर्मा की भी।
अमिता की सोच भी यही है कि कोई भी बच्चा, किताबों के आभाव में कभी पढ़ाई न छोड़े। उत्तर-प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद जिले के एक गाँव में पली-बढ़ी अमिता फ़िलहाल अपने पति, संजय शर्मा के साथ मेरठ में रहती हैं।
अमिता बताती हैं, “हम गाँव से दो-ढाई किलोमीटर दूर स्कूल में पढ़ने जाते थे। घर के आर्थिक हालातों के चलते हमें हमेशा पुरानी किताबों से ही पढ़ना नसीब हुआ। लेकिन जब मैं देखती कि उनकी कई सहेलियों की पढ़ाई सिर्फ इसलिए छूट गई क्योंकि उनके घरवाले पुरानी किताब भी नहीं खरीद सकते थे, तो मुझे लगता कि मैं खुशनसीब हूँ।”
बचपन के दिनों से ही उनके मन में लोगों के लिए कुछ करने की भावना ने जन्म ले लिया था। स्कूल की पढ़ाई खत्म कर कॉलेज शुरू किया तो गाँव में ही बच्चों को मुफ्त में ट्यूशन पढ़ाया करती थी। कोशिश करती कि गरीब बच्चों के लिए पुरानी किताबें कहीं से बंदोबस्त कर दें। वक़्त बीता और अमिता की शादी हो गई।
पति संजय शर्मा अपना एक कोचिंग सेंटर चलाते हैं और किस्मत से, उनका मानना भी यही है कि हर बच्चे को पढ़ने का अधिकार मिलना चाहिए। इसलिए उनसे अपनी तरफ से जितना हो पाता है, उतना गरीब घरों के बच्चों को कोचिंग फीस में रियायत देने की कोशिश करते हैं। वह बताते हैं कि जब उनकी पत्नी ने उन्हें बताया कि कैसे वह बच्चों को पढ़ाती थी और किताबों की व्यवस्था करती थी। उन्होंने कहा, “मुझे अच्छा लगा कि वह दूसरों के बारे में इतना सोचती हैं और सच में हमारे यहाँ बहुत से बच्चे किताबों के आभाव में भी पढ़ाई छोड़ देते हैं।”
बहुत सोच-विचार कर अमिता ने संजय के साथ मिलकर साल 2016 में ‘प्रेरणा बुक बैंक’ की शुरुआत की। उन्होंने अपने पास पहले से मौजूद मात्र 1,100 किताबों से यह बैंक शुरू किया।
क्या है प्रेरणा बुक बैंक
अमिता बताती हैं कि प्रेरणा बुक बैंक से कोई भी छात्र-छात्रा, सरकारी नौकरी के प्रतिभागी या फिर कोई बड़ा-बुजुर्ग, अपनी रूचि के हिसाब से 1 महीने से 1 साल की अवधि तक के लिए मुफ्त में किताबें ले सकता है। बदले में उन्हें सिर्फ आधार कार्ड की एक फोटोकॉपी जमा करनी होती है।
अमिता कहती हैं, “यह प्रावधान भी हमने इसलिए किया क्योंकि शुरूआत में बहुत से लोगों ने किताबें लौटाई ही नहीं और इससे हमें दूसरे लोगों को वह किताबें देने में परेशानी हुई।”
उनके पास स्कूल स्तर से लेकर कॉलेज, सरकारी परीक्षाओं और साहित्य की किताबों का कलेक्शन है और किसी भी उम्र के लोग उनसे संपर्क कर सकते हैं। अमिता बताती हैं कि शुरुआत में एक वक़्त था जब वह खुद लोगों के घर जा-जाकर रद्दी इकट्ठा करती थी और उसमें से सही-सलामत काम की किताबों को अपने अभियान के लिए रख लेतीं। लेकिन अब लोग खुद उन्हें फ़ोन करके किताबें ले जाने के लिए बुलाते हैं।
पिछले 4 सालों में अमिता साढ़े 3 लाख से भी ज्यादा किताबें जमा कर कर चुकी हैं। उनके इस अभियान से अब तक हजारों छात्र-छात्राओं की मदद हुई है। मेरठ में उनका मुख्य केंद्र विजयनगर में हैं लेकिन लोगों की बढ़ती मांग के बाद उन्होंने शहर के दूसरे कोनों में भी बुक बैंक शुरू किए।
“मेरठ में हमारा जो बैंक है, उसके लिए हमने किराए पर कमरा लेकर सारी व्यवस्था खुद की है। हालांकि, बाकी बहुत सी जगहों पर हमने लोगों से बात की और वे हमारे साथ इस अभियान में जुड़कर मदद कर रहे हैं,” उन्होंने आगे बताया।
प्रेरणा बुक बैंक आज 4 राज्यों तक फ़ैल चुका है, जिनमें उत्तर-प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और उत्तराखंड शामिल हैं। इन 4 राज्यों में 65 केंद्र हैं। अमिता और संजय अपने जान-पहचान के लोगों की मदद से दूसरे शहरों तक पहुंचे हैं। अमिता बताती हैं कि वह लोगों को जागरूक करती हैं और उन्हें अपने इलाके में पुरानी किताबें इकट्ठा करके केंद्र शुरू करने के लिए कहती हैं। उनकी यह पहल बहुत से गांवों तक भी पहुंची है।
अमिता ने बताया, “गांवों में यह करना बहुत आसान हो जाता है क्योंकि वहां लोग अपने घर का एक कमरा किताब रखने के लिए दे देते हैं। वे कोई किराया नहीं लेते और तो और अपनी तरफ से जैसे भी मदद हो पाए करने की कोशिश करते हैं। शहरों में हर जगह आपको ऐसा नहीं मिलता। कहीं आसानी से मदद मिल जाती है तो कहीं काफी मेहनत करनी पड़ती है।”
उनके मुताबिक, उनके यहाँ से किताबें लेकर पढ़ने वाले बहुत से बच्चे आज जीवन में अच्छा कर रहे हैं। बहुत-सी लड़कियों की पढ़ाई सिर्फ इसलिए जारी है क्योंकि उन्हें किताबें प्रेरणा बुक बैंक से मिल जाती हैं। राहुल नामक एक लड़के ने उनकी किताबों से एसएससी के इम्तिहान की पढ़ाई की और इसे पास किया।
मेरठ के ही रहने वाले एक छात्र राहुल बताते हैं कि ग्रैजुएशन की पढ़ाई के बाद वह एक्सटर्नल अफेयर्स की परीक्षाओं की तैयारी करना चाहते थे। लेकिन जब किताब खरीदने पहुंचे तो एक ही किताब की कीमत 1200 रुपये थी और उनके घर की आर्थिक हालत ऐसी नहीं है कि वह किताबों पर हजारों रुपये खर्च कर पाएं।
राहुल ने कहा,“किस्मत से मुझे प्रेरणा बुक बैंक के बारे में पता चला और मैं वहां पहुँच गया। वहाँ मुझे सभी किताबें मिल गईं और वह भी मुफ्त में। मेरे लिए प्रेरणा बुक बैंक किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि अगर यह नहीं होता तो मैं कभी तैयारी नहीं कर पाता।”
राहुल के जैसे ही और भी बहुत से युवा हैं जिन्होंने प्रेरणा बुक बैंक से किताबें लेकर अपना जीवन संवारा है। ऊषा नाम की एक लड़की ने उत्तर-प्रदेश TET पास किया है तो शिवा नाम के एक लड़के ने पुलिस कांस्टेबल की।
इन बच्चों को सफल होता देख अमिता को अपनी पहल सार्थक लगती है। वह कहती हैं कि लोग अक्सर सोचते हैं कि किसी की मदद करने के लिए बहुत पैसे खर्च करने होंगे। लेकिन ये भी छोटी-छोटी चीजें हैं जिनसे आप किसी की शिक्षा में मदद कर सकते हैं।
छात्र-छात्राओं के साथ-साथ वह दूसरे लोग, खासकर कि बुजुर्गों को भी पढ़ने के लिए मुफ्त में किताबें देती हैं। प्रेरणादायक कहानियों से लेकर मशहूर लोगों की जीवनियों तक, हर तरह की किताब वह अपने यहाँ रखती हैं ताकि उम्रदराज हो चुके लोग भी इनका आनंद उठा सकें।
अमिता ने कभी नहीं सोचा था कि उनकी छोटी-सी पहल एक बड़ी मुहिम बन जाएगी। लॉकडाउन के दौरान भी बहुत से लोगों ने उनसे संपर्क किया और उन्होंने लगभग 900 छात्रों को किताबों की पीडीएफ उलब्ध कराई। उनकी योजना भविष्य में और भी राज्यों में इस मुहिम को फैलाने की है। वह कहती हैं कि हर किसी को पढ़ने का अधिकार है और अगर हम किसी भी तरह इसमें किसी की मदद कर सकते हैं तो हमें ज़रूर करनी चाहिए।
अगर आपको इस कहानी ने प्रभावित किया है तो आप भी उन्हें अपनी पुरानी किताबें भेज सकते हैं और साथ ही, उन्हें किताबें रखने के लिए अलमारी, रैक आदि की ज़रूरत पड़ती रहती है। अगर किसी के पास कोई पुरानी अलमारी या रैक हो तो उससे भी मदद कर सकते हैं। प्रेरणा बुक बैंक से संपर्क करने के लिए 9808713111 पर कॉल कर सकते हैं!
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