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पिता ने चाय बेचकर पढ़ाया, बेटे ने बिना कोचिंग के पास की UPSC की परीक्षा!

Tea seller son topper IAS

“मैं अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलूंगा, और यही मेरी सबसे बड़ी ताकत है।"

देशल दान ने बचपन से एक ही सपना देखा था। वह आईएएस बनना चाहते थे। 2017 में देशल के बचपन का सपना पूरा हुआ जब पहले ही प्रयास में उन्होंने न केवल यूपीएससी की परीक्षा पास की बल्कि परीक्षा में टॉप स्थान प्राप्त किया। देशल की खुशी की सीमा नहीं थी। देशल के साथ एक और खास बात ये है कि उन्होंने यह परीक्षा बिना किसी औपचारिक ट्रेनिंग के पास की है।

देशल मूल रूप से जैसलमेर के सुमलाई गाँव के रहने वाले हैं। उनके पिता कुशालदान चरण एक चाय की दुकान चलाते हैं। शुरू से ही उनके परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी और उन्होंने आर्थिक रूप से काफी ज़्यादा परेशानियों का सामना किया है। 

देशल आईआईआईटी-जबलपुर से बीटेक ग्रैजुएट हैं। अपने परिवार और सात भाई-बहनों में से वह ऐसे दूसरे शख्स हैं जो शिक्षित हैं। 

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देशल दान

द बेटर इंडिया के साथ इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में, देशल ने परीक्षा में बैठने की वजह और प्रेरणा के बारे में बात की। वह बताते हैं कि एक चाय की दुकान चलाने वाले के बेटे से यूपीएससी टॉपर बनने के पीछे एक कहानी है। एक व्यक्तिगत नुकसान से इस यात्रा की शुरूआत हुई। घटना से हताश होने की बजाय वह और मजबूत बने और आईएएस बनने का सपना देखना शुरू किया।

देशल ने सिविल सेवा क्यों चुना?

इस सवाल के जवाब में देशल अपने जीवन की एक घटना के बारे में बताते हैं, जिसने उन्हें बदला भी और मजबूत भी बनाया। वह कहते हैं, “मेरे बड़े भाई ने लगभग आठ वर्षों तक भारतीय नौसेना में सेवा की। वह आईएनएस सिंधुरक्षक पनडुब्बी में तैनात थे। दुर्भाग्य से पनडुब्बी में हुई एक दुर्घटना में मेरे भाई की जान चली गई।”

जब यह घटना हुई तब देशल 10 वीं कक्षा में थे। वह कहते हैं, “मैंने भारतीय नौसेना के बारे में उनसे कई कहानियाँ सुनीं थी।”

“वह अपने काम के बारे में बहुत बातें करते थे मुझसे अक्सर कहते थे कि सशस्त्र बल या प्रशासनिक सेवा में शामिल हो जाओ। ”

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सफलता के लिए जूनून

अपने भाई से प्रेरित होकर, देशल ने सिविल सेवा परीक्षा में बैठने का फैसला किया। वह कहते हैं, “मैं एक प्रयास करना चाहता था और परिणाम को लेकर बहुत ज़्यादा चिंतित नहीं था।”

चाय-स्टॉल मालिक का बेटा

अपने परिवार और मामूली साधनों के बारे में बात करते हुए, वह कहते है, “मेरे परिवार के पास जमीन थी, लेकिन हम इसके साथ ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते थे। शायद ही ऐसी कोई महत्वपूर्ण चीज़ इस पर उगाई जा सकती थी।”

वह बताते हैं, “इस कारण पिता ने मेरे जन्म से पहले ही वर्ष 1989 में एक चाय की दुकान शुरू कर दी थी। ज़मीन पर साल में एक या दो फसल हो जाती थी और चाय की दुकान से मिलने वाली आय से ही घर चलता था। मेरे बड़े भाई ने भी, पिता के साथ चाय की दुकान पर जाना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं हमेशा जानता था कि मुझे ज़्यादा चाहिए।”

वह आगे बताते हैं,  “मेरे माता-पिता में से कोई भी शिक्षित नहीं हैं, और यहां तक कि मेरे सबसे बड़े भाई भी शिक्षित नहीं हैं और बहुत कम उम्र से उन्होंने काम करना शुरू कर दिया।”

“केवल मैंने और मेरे छोटे भाई ने शिक्षा पूरी की है।”

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भारत दर्शन के दौरान की एक तस्वीर

जब उनसे हमने पूछा कि उनकी उपलब्धि पर उनके परिवार की कैसी प्रतिक्रिया है  तो वह बेहद ईमानदारी के साथ कहते हैं, ”जबकि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि मैं क्या हासिल करने में कामयाब रहा हूं, लेकिन उन्हें मुझ पर गर्व है और जब दूसरों को मुझे सम्मान देते हुए देखते हैं तो उन्हें बेहद खुशी होती है।”

देशल के पिता का मानना था कि आईएएस अधिकारी बनना उन लोगों की पहुंच से बाहर होने जैसा है। देशल बताते हैं, “वह अक्सर मुझसे कहते थे कि मैं जो बनना चाहता था वह मेरी पहुंच से परे है। वह मुझसे अक्सर यह भी पूछते थे कि जो चीज़ पाई नहीं जा सकती उसके लिए मैं इतनी कड़ी मेहनत क्यों कर रहा हूं।”

यह देशल का जुनून और दृढ़ संकल्प था जिसके कारण वह अपने सपने को साकार कर पाए। वह कहते हैं, “अगर मुझे खुद पर यकीन नहीं होता, तो मैं अपने गांव में खेती औऱ दूसरे काम कर रहा होता।”

आईएएस अधिकारी बनने के बाद…

वह कहते हैं, “मैं अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलूंगा, और यही मेरी सबसे बड़ी ताकत है। मैंने संघर्ष देखा भी है और मुझे अनुभव भी है और मैं यह कह सकता हूं कि मुझे समझ में आ गया है कि क्या किया जाना चाहिए। खुद को बहुत बड़ा समझने से अहंकार आने लगता है, जिससे मैं हमेशा दूर रहने का प्रयास करूंगा।”

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इंस्टिट्यूट के दौरान खींची गईतस्वीर

देशल का कहना है कि अधिकारियों का खुद को जनता के लिए उपलब्ध कराना सबसे महत्वपूर्ण है।

लोगों की आईएएस अधिकारी तक पहुंच होनी चाहिए और उनकी समस्याओं का समाधान निकलना चाहिए। ये ऐसे गुण हैं जो एक अधिकारी को अलग बनाते हैं।

उन्होंने कहा, “हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम ‘सिविल सेवक’ हैं और पहले लोगों की सेवा करने के लिए यहां आते हैं।

देशल को हम द बेटर इंडिया की तरफ शुभकामनाएँ देते हैं और आशा करते हैं कि वह अपने सिद्धांतों को बनाए रखेंगे।

मूल लेख- 

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