पगड़ी को पट्टी की तरह इस्तेमाल कर बचायी जान; वाकई इंसानियत का कोई धर्म नहीं होता!

जम्मू-कश्मीर में त्राल तहसील के देवर गाँव के निवासी, मंजीत ने एक सड़क दुर्घटना में खून से लथपथ औरत की जान बचाने के लिए अपनी पगड़ी उतारकर उसे पट्टी की तरह इस्तेमाल किया ताकि उस औरत का खून और ज्यादा ना बहे। अवंतीपोरा में एक 45 वर्षीय औरत को तेज रफ़्तार से आ रहे एक ट्रक ने टक्कर मार दी।

हुत से लोगों का विश्वास है कि इंसानियत और मानवता किसी भी व्यक्तिगत विचार और धार्मिक आस्था से बढ़कर है। पर जब समय पड़ने पर कोई ऐसा करता है, तो वह बहुत से लोगों के लिए एक मिसाल कायम करता है। ऐसा ही कुछ कश्मीर में एक 20-वर्षीय सिख लड़के ने किया, जब उसने एक महिला की जान बचाने के लिए बिना एक पल भी सोचे अपनी पगड़ी उतार दी।

जम्मू कश्मीर में त्राल तहसील के देवर गाँव के निवासी, मंजीत सिंह ने एक सड़क दुर्घटना में खून से लथपथ एक महिला की जान बचाने के लिए अपनी पगड़ी उतारकर, उसे पट्टी की तरह इस्तेमाल किया ताकि उस औरत का खून और ज़्यादा न बहे।

ख़बरों के मुताबिक, अवंतीपोरा में तेज रफ़्तार से आ रहे एक ट्रक ने एक 45-वर्षीय औरत को टक्कर मार दी। जब मंजीत ने उसे देखा तो वह औरत खून से लथपथ घायल अवस्था में सड़क पर पड़ी थी। मंजीत ने तुरंत सूझ-बूझ से काम लेते हुए उस महिला की मदद की।

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महिला के पैर में गहरी चोट आई थी, जिस वजह से काफ़ी खून बह रहा था। जब कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं बढ़ा, तो मंजीत ने तुरंत अपनी पगड़ी खोली और उसके घाव पर बाँध दी।

मंजीत ने बताया, “मैंने उसे सड़क पर पड़े देखा, उसके पैर से लगातार खून बह रहा था। मैं अपनी पगड़ी उतारकर उसके पैर में बाँधने से खुद को बस रोक नहीं पाया।”

सिखों में दस्तार या फिर पगड़ी पहनना अनिवार्य होता है। यह उनके विश्वास और आस्था के साथ-साथ उनके आत्म-सम्मान, साहस और पवित्रता का भी प्रतीक है।

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लेकिन इस तरह की स्थिति में, मंजीत ने अपने व्यक्तिगत विचारों और मान्यताओं से पहले इंसानियत को रखा और एक दूसरे इंसान की जान बचायी। कश्मीर की ‘शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी’ में दिहाड़ी-मजदूरी का काम करने वाले मंजीत ने कहा कि उन्होंने वही किया जो कोई और उनकी जगह होता तो करता।

अपने पिता की मृत्यु के बाद, मंजीत परिवार में अकेले कमाने वाले है और उन पर एक दिव्यांग माँ, बहन और भाई की ज़िम्मेदारी है। अपने जीवन में हर कदम पर संघर्ष करने वाले मंजीत को बिल्कुल भी नहीं लगता कि उन्होंने कुछ अलग और असाधारण काम किया है। और शायद, मंजीत की यही सोच हमारे देश में धार्मिक भाईचारे और मानवता की मिसाल है।

मूल लेख: अनन्या बरुआ

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संपादन – मानबी कटोच


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