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कचरे से खाद बनाकर, हर महीने 90 किलो सब्जियां उगाती है, मुंबई की यह सोसाइटी

Zero Waste Society

मुंबई की ‘Emgee Greens society’ पिछले दो साल से कचरा मुक्त है। उन्होंने पुरानी अलमारियों और सिंक तक को रीसायकल कर जैविक पौधों के लिए इस्तेमाल किया है और छत पर उगाई गई सब्जियों का उपयोग पूरी सोसाइटी कर रही है।

मुंबई के वडाला इलाके की ‘Emgee Greens society’ अन्य सोसाइटी से थोड़ी अगल है। पिछले दो साल से, इस सोसाइटी में बीएमसी (बृहन्मुंबई नगर निगम) की गाड़ियां कचरा उठाने नहीं आती हैं। दरअसल, दो सालों से इस सोसाइटी में रहने वाले लोग घर के कचरे से ही जैविक खाद बना रहे हैं। बीएमसी द्वारा जारी एक ‘पर्यावरण स्टेटस रिपोर्ट’ (ESR) के अनुसार, मुंबई में 2019-2020 में कुल 6,500 से 6,800 मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न हुआ था। इस कचरे का लगभग 73 प्रतिशत हिस्सा खाद्य अवशेष था। इसे एक बड़ी समस्या के रूप में देखते हुए, सोसाइटी में रहने वाले लोग इसे ‘Zero Waste Society’ बनने का प्रयास कर रहे हैं।

जैविक सब्जियां उगाना

Zero Waste Society
Farming sessions conducted with the children on a Sunday.

‘Emgee Greens society’ में करीब 131 परिवार रहते हैं, जिनके घरों से हर दिन लगभग 60 किलो गीला कचरा निकलता है। यहाँ रहने वाले लोग दो सालों से अपनी बिल्डिंग के पिछले हिस्से में, सोसायटी के कचरे को इकट्ठा कर रहे हैं। ये लोग ‘एरोबिक खाद विधि’ का पालन करके कचरे को खाद में बदल रहे हैं। यह काम सोसाइटी का कूड़ा, शहर के डंपयार्ड में देने से बचने की कोशिश में शुरु किया गया था।

स्थानीय कॉरपोरेटर सूफ़ियां वानु ने भी सोसाइटी के इन दावों की पुष्टि की है। वह बताते हैं कि, “दो सालों से नगरपालिका यहाँ कचरा इकट्ठा नहीं कर रही है। यही कारण है कि इसे ‘जीरो गार्बेज सोसाइटी’ कहा जाता है।”

हालांकि, यह बहुत समय पहले की बात नहीं है, जब यहाँ रहने वालों ने इस समस्या पर गौर करना शुरु किया। सोसाइटी के सेक्रेटरी अश्विन फर्नांडीस कहते हैं, “सोसाइटी में 131 परिवार रहते हैं। हालांकि, हम अपने कचरे को कम करने के प्रयास से खुश थे। लेकिन, हम जो खाद बना रहे थे, उसे खरीदने वाला कोई नहीं था।” प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले कचरे से, अब तक केवल एक टन खाद उत्पन्न हुई है।

Zero Waste Society
Aerial view of the terrace farms at Emgee Greens Society

हालांकि, सोसाइटी में रहने वाले कुछ लोग नियमित रूप से खाद का उपयोग करते थे। सुहेल मर्चेंट अपनी बालकनी में फूल उगाते थे तो वहीं सुनील देशपांडे अपनी बालकनी में पालक, मेथी और धनिया जैसी अन्य सब्जियां उगाते थे।

पेशे से बिजनेस कन्सल्टेन्ट सुहेल कहते हैं, “हमें पता चला कि कुछ दूसरे लोग भी बालकनी में सब्जियां उगा रहे हैं। तब हमने छत पर जैविक खेती करने के बारे में सोचा। कचरे को खाद में बदलने और फिर छत पर जैविक सब्जियों को उगाने के बारे में सोचना, निश्चित रूप से एक अच्छा विचार था। हमने सोसाइटी के सेक्रेट्री, अश्विन से अनुमति मांगी और लगभग पाँच महीने पहले इस प्रॉजेक्ट को शुरू किया।”

उन्होंने जैविक तरीके से फसल उगाने के बारे में इसलिए विचार किया ताकि कीटनाशकों या पेस्टीसाइड्स का अधिक उपयोग ना किया जाए।

Zero Waste Society
Tomato plantation at the society

आज इस सोसाइटी में रहने वाले लोग, एक महीने में करीब 90 किलो फसल उगा लेते हैं। यहाँ पालक, मेथी, बैंगन, मिर्च, करेला, फूलगोभी, धनिया और टमाटर सहित कई अन्य सब्जियां उगाई जा रही हैं। अन्य निवासियों की तुलना में सुनील, सुहेल और सोसाइटी में रहने वाले एक अन्य निवासी, अथर्व देशपांडे, टैरेस पर ज़्यादा समय बिताते हैं। एमबीए की तैयारी कर रहे अथर्व कहते हैं, “हमारे अलावा, कई और लोग भी टैरेस फार्मिंग की जरूरतों में हमारी मदद करते हैं। हम हर रविवार को फार्मिंग सेशन आयोजित करते हैं, जहाँ सोसाइटी के सभी लोग और उनके बच्चे जैविक खेती कार्यशालाओं में शामिल होते हैं।”

बेकार पड़ी अलमारियों से बनाए फार्म बेड

यहाँ रहने वाले लोग न केवल जैविक सब्जियों को उगाने के लिए, कचरे का उपयोग कर रहे हैं बल्कि बेकार पड़ी अन्य वस्तुओं को रिसायकल कर खेती के उपयोग में भी ला रहे हैं। कई चीज़ों का इस्तेमाल फार्म बेड बनाने में किया गया है। पुरानी पानी की बोतलों, बाल्टियों, वॉशबेसिन, अलमारी और पलंग को रिसायकल कर फार्म बेड बानए गए हैं, जिनमें सब्जियां उगाई जा रही हैं। सुहेल कहते हैं, “हम हर चीज़ को रिसायकल करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि टैरेस खेती से जुड़े खर्चों को भी कम किया जा सके। हम चीजों को रिसायकल, रीयूज (वापस काम में लेना) और रिड्यूस (कम करना) कर रहे हैं।”

जैविक टैरेस फार्मिंग पर यह सोसाइटी, हर महीने 11 हजार रुपये खर्च करती है। जिसमें एक फुल टाइम माली की लागत भी शामिल है।

Plant is grown in a discarded washbasin

वह आगे बताते हैं, “किसी भी पौधे के लिए एक नया बेड बनाने में आठ दिन लगते हैं। हम बेड पर मिट्टी डालते हैं और चार दिनों के लिए इसे पानी देते हैं। फिर हम बायोनिल डालते हैं (जो कि जैविक भी है और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है), दो दिन इसमें पानी डाला जाता है ताकि यह किसी भी पौधे के लिए पूरी तरह पौष्टिक हो जाए और फिर इसमें खाद मिलाया जाता है। हम फिर इसमें और मिट्टी डालते हैं। इस प्रक्रिया में आठ दिन लगते हैं।”

टैरेस फार्मिंग से सोसाइटी में रहने वाले लोगों के लिए, आसानी से जैविक सब्जियां उपलब्ध हो जाती हैं। सोसाइटी के भीतर ही टैरेस फार्मिंग होने से, उन्हें लॉकडाउन के दौरान काफी आसानी हुई है। अथर्व कहते हैं कि टैरस पर वर्तमान में होने वाली खेती, फिलहाल सोसाइटी में रहने वाले लोगों की जरूरत पूरा करने में सक्षम नहीं है। वह कहते हैं, “बेशक, हमें बहुत ज़्यादा चीज़ें नहीं मिल रही हैं कि हम रोज जैविक भोजन खा सकें। लेकिन, अगर हमें यह सप्ताह में दो बार भी मिल रहा है तो यह काफी है।”

A farming bed made out of a discarded cupboard

सोसाइटी में रहने वाले लोगों के लिए, यह एक शुरुआती प्रॉजेक्ट था। मुंबई के अन्य सोसाइटी वालों को भी, वे टैरेस फार्मिंग करने की सलाह देते हैं। सोसाइटी का इंस्टाग्राम पेज ‘GreensPerSqFt’ से कई लोग छत पर बागवानी करने और जैविक खेती के गुर सीख रहे हैं। अथर्व कहते है, “कोरोना महामारी ने महानगरों की निर्भरता खेतों पर बढ़ा दी है। कचरे को खाद बनाना और जैविक सब्जियों को उगाने के लिए, उसी खाद का उपयोग करने का यह विचार, भविष्य में सोसाइटियों को अधिक आत्मनिर्भर बना देगा। ज़रा सोचें कि हर जगह जैविक खेती होने लगे! क्या यह एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन नहीं होगा? “

मूल लेख- बिलाल खान

संपादन- जी एन झा

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