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पहले नागपुर फिर नवी मुंबई! IAS अफसर ने डंपयार्ड को मिनी जंगल बना, शहर को दी ताज़ी सांसें

Miyawaki Forest IAS Abhijit Bangar Turned Dumpyard Into Forest, Planted 60,000 Trees

नवी मुंबई नगर निगम के नागरिक प्रमुख अभिजीत बांगर ने नवी मुंबई में एक डंपयार्ड को हरे-भरे जंगल में बदल दिया है। 3 एकड़ में फैला यह मिनी जंगल न केवल लोगों को शुद्ध हवा दे रहा है, बल्कि कई तरह के सांप, तितलियों, पक्षियों सहित कई तरह के जीव-जंतु को आकर्षित भी कर रहा है।

नवी मुंबई के कोपर खैरने इलाके को आज देखें, तो दूर-दूर तक हरियाली ही नज़र आती है। 3 एकड़ में फैले जंगल (Miyawaki Forest) में लगे लंबे और हरे-हरे हजारों पेड़, लोगों को छाया दे रहे हैं और शुद्ध हवा भी। लेकिन यह इलाका हमेशा से ऐसा नहीं था। सिर्फ एक साल पहले, यहां से लोग गुजरने से भी कतराते थे। यह जगह लोगों के लिए एक डंपयार्ड था, लोग घर और बाहर का कचरा यहां फेंकते थे। यहां फैली गंदगी से आने वाली दुर्गंध से लोगों के लिए सांस लेना भी मुश्किल था। 

लेकिन एक साल के भीतर यह डंपयार्ड न केवल सुंदर जंगल में बदल चुका है, बल्कि कई किस्म के जीव-जंतु के रहने का ठिकाना भी बन रहा है।

इस जगह को 3 एकड़ के सुंदर जंगल में बदलने का सारा श्रेय आईएएस अधिकारी अभिजीत बांगर को जाता है। नवी मुंबई नगर निगम (NMMC) में नागरिक प्रमुख, अभिजीत ने ‘मियावाकी वन तकनीक’ अपनाई और इस जगह की सूरत ही बदल दी।

नागपुर में भी बना चुके हैं जंगल (Miyawaki Forest)

Miyawaki forest Green Yatra NGO
मियावाकी जंगल

द बेटर इंडिया से बात करते हुए अभिजीत ने डंपयार्ड को जंगल बनाने की पूरी यात्रा के बारे में विस्तार से बताया। अभिजीत कहते हैं कि वह अर्बन फॉरेस्ट बनाना चाहते थे, ताकि शहरों में हरियाली बढ़ सके। लेकिन अर्बन फॉरेस्ट बनाने के लिए ज्यादातर शहरों की एक समस्या है – जगह की कमी।

वह कहते हैं, “नवी मुंबई से पहले मैं नागपुर में पोस्टेड था और वहां भी एक डंपयार्ड को मियावाकी जंगल (Miyawaki Forest) में बदलने के लिए एक ऐसा ही प्रोजेक्ट शुरु किया था। उस प्रोजेक्ट को मुंबई स्थित एक गैर सरकारी संगठन, ‘ग्रीन यात्रा’ के साथ मिलकर पूरा किया गया था। अपने पहले के अनुभव को देखते हुए, मैंने नवी मुंबई में मियावाकी जंगल विकसित करने के लिए भी उसी एनजीओ के साथ काम करने का फैसला किया।”

अभिजीत ने एक बड़े क्षेत्र को चुना, जो छोटी नदी और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से लगा हुआ था। उन्होंने पौधों में पानी देने के लिए एसटीपी से रीसायकल किए गए पानी का इस्तेमाल करने का फैसला किया। चूंकि यह जगह छोटी नदी के नजदीक थी, इसलिए पक्षियों और अन्य जीवों के लिए बाधा कम थी और साथ ही यह इलाका मैंग्रोव वनस्पति से आसानी से जुड़ सकता था।

क्या थीं चुनौतियां?

इस प्रोजेक्ट पर काम करने वाले एनजीओ, ग्रीन यात्रा के संस्थापकों में से एक, प्रदीप त्रिपाठी बताते हैं कि जब उन्होंने साइट का दौरा किया, तो वह जगह प्लास्टिक, कपड़े, कंस्ट्रक्शन से निकला मलबा और दूसरे कचरे से भरा हुई थी। लेकिन मियावाकी वन तकनीक (Miyawaki Forest Technique) के लिए साफ मिट्टी की जरूरत होती है और इसमें किसी भी तरह के कचरे की मिलावट नहीं होती है।

इसके अलावा, यहां सालों से पड़े कचरे के ढेर के कारण मिट्टी सख्त हो गई थी और उसमें कई तरह के केमिकल मिले हुए थे। इस जगह को जगंल में बदलना एक मुश्किल काम था। लेकिन प्रदीप कहते हैं कि शहर में जमीन ढूंढना आसान नहीं है, इसीलिए उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार करने और मिट्टी को ठीक करके इसे जंगल में विकसित करने का फैसला किया।

प्रदीप बताते हैं कि शुरुआत में वह पूरी तरह अनिश्चित थे कि वहां लगाए जाने वाले पौधे जीवित रह पाएंगे या नहीं। उन्हें पता नहीं था कि ये पौधे स्वस्थ रहेंगे या बड़े हो पाएंगे या नहीं। लेकिन नागपुर प्रोजेक्ट पर काम करने के अनुभव ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया और उन्होंने पेड़ लगाना शुरु किया। इसके बाद, डंपयार्ड की मिट्टी को मियावाकी जंगल के लिए उपयुक्त बनाने के लिए उन्होंने उसे ट्रीट करने का फैसला किया।  

मिट्टी को कैसे बनाया उपजाऊ?

Locals can walk along the green lungs developed by NMMC
Locals can walk along the green lungs developed by NMMC

हाई डेन्सिटी ट्री प्लानटेशन तकनीक कम समय में तेजी से पेड़ों को बढ़ने में सक्षम बनाती है। इस तकनीक (Miyawaki Forest Technique) में, मिट्टी के पोषण मूल्य को समझने के लिए ज़मीन को एक मीटर तक खोदा जाता है और बायोलॉजिकल, फिजिकल और केमिकल टेस्टिंग की जाती है।

टेस्टिंग से मिट्टी की बनावट और जैविक सामग्री का भी पता चलता है। फिर जरूरत के मुताबिक, मिट्टी को ज़रूरी पोषण देने के लिए कोकोपीट, कम्पोस्ट, मिट्टी, परफोरेट और वॉटर रिटेनर का उपयोग करके बायोमास तैयार किया जाता है। इसके बाद, मिश्रण को मिट्टी पर फैला दिया जाता है और वृक्षारोपण के लिए लेयर में डाला जाता है।

लगाए गए इन पेड़ों को दो साल के रख-रखाव की ज़रूरत होती है, जिसके बाद यह एक आत्मनिर्भर युनिट बन जाती है। प्रदीप ने बताया कि यहां की मिट्टी को रोपण के लिए तैयार करने में बहुत मेहनत और समय लगाया गया था।

प्रदीप ने बताया कि पेड़ लगाते समय वॉलन्टियर्स ने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए संवेदनशील फैसले लिए। उन्होंने बताया कि वे पेड़ खरीदने के लिए नर्सरी नहीं जाना चाहते थे। उन्होंने देसी पेड़ ढूंढे और इस जमीन पर लगाया। क्षेत्र के मूल प्रजातियों के पेड़ की पहचान करने के लिए पड़ोसी क्षेत्रों से एक वन सर्वेक्षण किया गया और पौधों को चार श्रेणियों में बांटा किया गया था: वृक्ष, उप-वृक्ष, छत्र ( छाया देने वाले ) और झाड़ी। जंगल में इन सभी प्रकार के पौधों की प्रजातियां देखी जा सकती हैं।

आज यह जंगल है कई तरह के पशु-पक्षियों का घर

प्रदीप कहते हैं कि 60 से अधिक पेड़ों की प्रजातियों को शॉर्टलिस्ट किया गया था, जिसमें 17 प्रतिशत छायादार पेड़ थे, जबकि लगाए गए पेड़ों में से 43 प्रतिशत साधारण पेड़ और बाकि के 30 प्रतिशत और 10 प्रतिशत में उप-वृक्ष और झाड़ियाँ शामिल थीं। एनजीओ ने इस जंगल में पेड़ लगाने के लिए आंवला, नींबू, नीम, जामुन, आम, पलाश, सागौन, भारतीय बादाम, काला कत्था और ऐसी कई दूसरी प्रजातियों को चुना।

प्रदीप ने बताया कि सदाबहार जंगल बनाने के लिए उन्होंने अलग-अलग किस्म के पड़ों का कॉम्बिनेशन बनाया। पक्षियों और अन्य जीवों को भोजन के लिए आकर्षित करने वाले पेड़-पौधे भी लगाए गए।

3 एकड़ की पूरी जमीन पर 60,000 पौधे लगाए गए थे। पहले चरण में 40,000 पेड़ और दूसरे चरण में 20,000 पौधे लगाए गए। एक प्रसिद्ध संगीत कंपनी ने प्रोजेक्ट के लिए सीएसआर फंड दिया। इस मिनी-फ़ॉरेस्ट (Miyawaki Forest) को बनाने के लिए 18,000 घंटे काम किया गया। मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए जैविक और प्राकृतिक सामग्री का इस्तेमाल किया गया है।

प्रदीप बताते हैं कि वह ये देखकर हैरान हो गए कि लगाए गए ज्यादातर पौधे जीवित रहे और एक साल के भीतर काफी अच्छी तरह बढ़े। लगाए गए पेड़-पौधे न केवल ठीक तरह से बढ़ रहे हैं, बल्कि पक्षियों की 35 प्रजातियों, 15 किस्म की तितलियों, मधुमक्खियों, मिलीपेड, सेंटीपीड, घोंघे, 12 सांप प्रजातियों और यहां तक ​​कि सुनहरे सियार सहित कीट प्रजातियों को आकर्षित भी कर रहे हैं।

और कई शहरों में भी बनेंगे ऐसे जंगल (Miyawaki Forest)

Miyawaki forest Green Yatra NGO
Miyawaki forest Green Yatra NGO

अभिजीत का कहना है कि कुछ प्रजातियों ने वन क्षेत्र में प्रजनन शुरू कर दिया है। यहां बाधाएं कम हैं और प्रजनन गतिविधि इशारा करती है कि जानवरों को यहां रहना सुरक्षित लगता है। आज, हरे-भरे पेड़ों से बना यह जगंल न केवल स्थानीय तापमान को कम रखने में मदद कर रहा है, बल्कि यहां रहनेवाले लोगों के लिए ऑक्सीजन हब के रूप में भी काम कर रहा है।

इस क्षेत्र के रहनेवाले सौम्यादिप्त चक्रवर्ती कहते हैं, “मैं काम पर जाने के दौरान, इस जंगल से गुजरता हूं और थोड़े ठंडे तापमान का आनंद लेता हूं। मैं यहां वीकेंड पर टहलने भी आता हूं, क्योंकि यह मुझे प्रकृति के करीब आने का मौका देता है।

इसके अलावा, एनजीओ ने दिल्ली, नागपुर, पुणे, बेंगलुरु, गुरुग्राम, दिल्ली एनसीआर और अन्य इलाकों में मियावाकी जंगलों को विकसित करने के लिए अन्य स्थानीय संगठनों के साथ भी करार किया है। प्रदीप ने बताया कि इन शहरों में उन्होंने सात लाख पेड़ लगाए हैं। ऐसे और जंगल बनाने के लिए, दूसरे क्षेत्रों की पहचान करने की उनकी योजना है। संगठन ने मध्य प्रदेश और गुजरात में भी प्रोजेक्ट शुरू किया है।

अंत में अभिजीत कहते हैं कि जंगल की सफलता से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में भी ऐसे ग्रीन जोन बनाए जा सकते हैं। उनका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा मियावाकी वन (Miyawaki Forest) बनाना है। वह 80,000 पेड़ों वाला एक और जंगल बनाने की योजना बना रहे हैं।

मूल लेखः हिमांशु नित्नावरे

संपादनः अर्चना दुबे

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