सिर्फ पेड़ ही नहीं लगाते, उनकी देखभाल कर बड़ा भी करते हैं उमाशंकर तिवारी!

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उमाशंकर अब तक 1200 से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं, इनमें से कई पौधे पेड़ बन चुके हैं। वे प्लास्टिक का उपयोग नहीं करने के लिए भी लोगों को जागरुक करते हैं।

‘पौधे लगाना मुश्किल काम नहीं है, ये कोई भी कर सकता है, लेकिन पौधों की पेड़ बनने तक हिफाजत करना मुश्किल है। माँ बनकर उनकी बच्चों की तरह देखभाल करनी होती है, इसलिए आप पौधे तभी लगाएं जब आप यह ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हों’ ये कहना है भोपाल निवासी उमाशंकर तिवारी का।

बागमुगलिया एक्सटेंशन कॉलोनी विकास समिति के अध्यक्ष तिवारी अब तक 1200 से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं और खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश पौधे अब पेड़ बन चुके हैं। पर्यावरण संरक्षण के प्रति जुनूनी तिवारी के घर के चारों तरफ आपको ऊँचे-ऊँचे पेड़ नज़र आएंगे, जो उनके प्रयासों के चलते ही ‘नवजात’ से ‘पूर्व विकसित’ अवस्था में पहुँच पाए हैं।

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उमाशंकर तिवारी।

भोपाल सहित देश के अधिकांश हिस्से वातावरण में आए बदलाव की मार झेल रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह कम होता ग्रीन कवर है। कभी स्मार्ट सिटी, तो कभी मेट्रो के नाम पर पेड़ों की कुर्बानी दी जा रही है। जितनी तादाद में पेड़ काटे जा रहे हैं, उससे दोगुनी तादाद में भी यदि पौधे रोप जाएँ तो भी नुकसान की भरपाई संभव नहीं। क्योंकि एक पौधे को पेड़ बनने में सालों लग जाते हैं और देखभाल के अभाव में इतने लंबे समय तक उसके जीवित रहने की संभावना भी कम रहती है।

तिवारी इस बात को बखूबी समझते हैं, इसलिए एक तरफ जहां वह पेड़ों की कटाई का विरोध करते हैं, वहीं दूसरी तरफ पौधे लगाकर उनकी रक्षा का संकल्प भी लेते हैं।

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जनभागिता से पौधारोपण करते उमाशंकर तिवारी।

भोपाल का बागमुगलिया इलाका काफी हरा-भरा है। यहां पर्यावरण के लिए हितकारी पेड़ जैसे कि नीम, पीपल, बरगद आदि अच्छी खासी संख्या में हैं। तिवारी का जोर खासकर ऐसे ही पौधे रोपने पर रहता है। हाल ही में प्रशासन के सहयोग से बागमुगलिया एक्सटेंशन कॉलोनी के रहवासियों ने 2000 से ज्यादा पौधे लगाए, जिनमें नीम, पीपल, बरगद के साथ-साथ फल वाले पौधे ज्यादा थे।

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तिवारी के पर्यावरण संरक्षण अभियान में शामिल बागमुगलिया रहवासी।

ढोल-नगाड़ों के साथ हुए इस पौधारोपण कार्यक्रम के पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, तिवारी मानसून के आगाज़ के साथ ही बागमुगलिया से लेकर कटारा हिल्स तक पौधे लगाने की तैयारी कर रहे थे। बागमुगलिया पथरीला इलाका है, लिहाजा यहाँ पौधों के लिए गड्ढे खोदना आसान नहीं रहता। इसलिए तिवारी ने अलग-अलग व्हाट्सअप ग्रुप्स पर गड्ढे करने के लिए मजदूरों या जेसीबी मशीन उपलब्ध कराने की अपील की थी। एक दिन उनके पास किसी महिला का फोन आया, जिन्होंने पहले पौधारोपण के उनके अभियान के बारे में सवाल-जवाब किए और फिर हर संभव मदद का आश्वासन दिया। ये महिला कोई और नहीं बल्कि संभागीय आयुक्त कल्पना श्रीवास्तव थीं।

वह कहते हैं, “जानकर अच्छा लगा कि सरकारी स्तर पर कोई अधिकारी पर्यावरण संरक्षण में इतनी दिलचस्पी लेता है। प्रशासन की तरफ से हमें निशुल्क पौधे उपलब्ध कराए गए और गड्ढे आदि करवाने की व्यवस्था भी की गई। उस दौरान सभी सक्रिय रहवासियों ने मिलकर 2000 पौधे लगाए। हमनें ढोल-नगाड़ों के साथ घूम-घूमकर पौधायात्रा निकाली, ताकि लोग घरों से बाहर निकलें, प्रेरित हों और इस अभियान का हिस्सा बनें।”

करीब दो दशक पहले जब उमाशंकर तिवारी बागमुगलिया रहने आए तब यहां हरियाली तो थी, लेकिन ज्यादा नहीं। इसके अलावा पर्यावरण हितैषी पेड़ों की भी कमी थी। सबसे पहले तिवारी ने अपने आसपास पौधे लगाना शुरू किया और बच्चों की तरह उनकी देखभाल करते रहे। सुबह-शाम वह घर से पानी लेकर जाते और पौधों की प्यास बुझाते। उनका लगाया हुआ पीपल का पौधा आज 19 साल का हो गया है और गर्मी के दिनों में सूरज की तपिश से राहत प्रदान करता है।

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बरगद के पेड़ के साथ उमा शंकर तिवारी।

समय के साथ धीरे-धीरे उन्होंने कई लोगों को अपने इस अभियान से जोड़ा और आज उनकी पर्यावरण संरक्षण टीम में अनगिनत नाम शामिल हैं। हालांकि, तिवारी किसी पर निर्भर नहीं रहते। उन्हें यदि कुछ करना है, तो बस करना है, फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन उनके साथ है, कौन नहीं। उमाशंकर तिवारी और उनकी टीम के लिए सबसे मुश्किल होता है गर्मियों में पौधों की हिफाजत करना, क्योंकि पानी के अभाव में पौधे दम तोड़ देते हैं और इतने बड़े इलाके में घूम-घूमकर हर पौधे की प्यास बुझाना भी आसान नहीं।

तो इसका हल कैसे निकालते हैं? इसके जवाब में वह कहते हैं, “यह निश्चित तौर पर मुश्किल काम है। पहले की बात अलग थी, शुरुआत में मैंने आसपास पौधे लगाए इसलिए घर से ही उनके लिए पानी ले जाना संभव था, लेकिन अब हमारा दायरा बेहद विस्तृत हो गया है। इसलिए हमें टैंकर बुलवाने पड़ते हैं, पर समस्या इसमें भी है। गर्मी के मौसम में टैंकर की डिमांड बढ़ जाती है और यही टैंकर मालिकों के लिए कमाई का समय होता है।”

लिहाजा वह चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी पानी पहुँचाएं जबकि पौधरोपण करने वाली टीम के साथ यह मुमकिन नहीं हो पाता क्योंकि रुक-रुककर प्रत्येक पौधे में पानी डालना होता है। इस वजह से कई बार वह आनाकानी भी करते हैं, हालांकि, उमाशंकर तिवारी और टीम किसी न किसी तरह व्यवस्था कर ही लेते हैं।

तिवारी यह भी सुनिश्चित करते हैं कि पौधों की मवेशियों से रक्षा के लिए ट्री गार्ड लगाए जाए।

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मवेशियों से सुरक्षा के लिए लगाए गए गार्ड।

ऐसे में यह सवाल मन में उठना लाज़मी है कि आखिर इस सबके लिए पैसा कहाँ से आता है? इस पर वह कहते हैं, ‘जनसहयोग से। कॉलोनी में कई ऐसे लोग हैं जो पर्यावरण संरक्षण के अभियान में उनके साथ हैं, वह समय-समय पर किसी न किसी रूप में सहयोग करते रहते हैं और जो आर्थिक सहयोग नहीं कर पाते, वे श्रमदान कर देते हैं।

विकास के नाम पर पेड़ों की कुर्बानी प्रशासन द्वारा ली जाती है, लेकिन कई बार आम लोग भी बिना किसी बड़ी वजह के सालों पुराने पेड़ काट डालते हैं। ऐसे लोग उमाशंकर तिवारी की नज़र में पर्यावरण के सबसे बड़े गुनहगार हैं और उनकी कोशिश रहती है कि गुनहगारों को उनके कीये की सजा मिले। वे लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक करने का भी काम कर रहे हैं।

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लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुक करते उमाशंकर।

कुछ वक़्त पहले कहीं जाते समय-समय तिवारी ने कुछ लोगों को एक घर के बाहर लगा पेड़ काटते देखा। जब उन्होंने रोकने का प्रयास किया तो वह मालिक के आदेश का हवाला देने लगे। तिवारी के जोर देने पर एक व्यक्ति घर से बाहर आया, लेकिन कुछ समझने के बजाये वह अनाप-शनाप उदाहरण देने लगा। उसने कहा ‘विजय माल्या देश छोड़कर भाग गया, कुछ हुआ क्या? इसी तरह पेड़ काटने से भी कुछ नहीं होगा।’

इतना सुनते ही तिवारी ने नगर निगम अधिकारियों को फोन लगाने शुरू कर दिए और आख़िरकार उस व्यक्ति पर बिना अनुमति पड़े काटने के लिए जुर्माना लगाया गया। फिलहाल वह मेट्रो की जद में आने वाले पेड़ों को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं।

तिवारी ने केवल पौधे रोपने तक ही खुद को सीमित नहीं रखा है। वह प्लास्टिक के खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं और इसकी शुरुआत उन्होंने अपने घर से ही की है। तिवारी के दोमंजिला घर में यदि किसी को किराये पर रहना है, तो उसे पॉलीथिन-प्लास्टिक को अपनी जिंदगी से पूरी तरह निकालना होगा। उन्होंने बाकायदा सूचना के रूप में इसे घर के बाहर चस्पा किया हुआ है।

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उमाशंकर तिवारी का घर, और बाहर चस्पा नियम।

वह कहते हैं, “भले ही मेरा कमरा खाली पड़ा रहे, मैं प्लास्टिक इस्तेमाल करने वाले को कमरा नहीं दूंगा। क्योंकि मेरे लिए पैसे से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण पर्यावरण को बचाना है।”

तिवारी परिवार ऐसे कार्यक्रमों में शामिल नहीं होता जहां प्लास्टिक उपयोग की जा रही है। अधिकांश कॉलोनीवासी इस बात को अच्छे से समझते हैं, इसलिए तिवारी परिवार को निमंत्रण देने से पूर्व वह ये सुनिश्चित करना नहीं भूलते ही प्लास्टिक इस्तेमाल में न आए।

एक किस्सा याद करते हुए नाप-तौल विभाग में कार्यरत तिवारी बताते हैं कि उनके एक जूनियर की शादी थी, वह उनके प्लास्टिक से दूर रहने की प्रतिज्ञा से परिचित था। आमंत्रित करते वक़्त उसने उमाशंकर को आश्वस्त किया कि शादी में पॉलीथिन-प्लास्टिक कुछ इस्तेमाल नहीं होगा। लिहाजा वह सपरिवार शादी में गए, उन्हें वहां न प्लास्टिक के दोने नज़र और न चम्मच। वे बेहद खुश थे, लेकिन तभी उनकी नज़र प्लास्टिक के ग्लास के ढेर पर गई, जिन्हें पानी पिलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। वे बिना कुछ खाए-पीये तुरंत परिवार को लेकर वापस लौट आए।

हालांकि, पर्यावरण संरक्षण के जुनून के चलते उन्हें परेशानियां भी उठानी पड़ती हैं, कई बार लोग उनके जुनून को पागलपन का नाम दे देते हैं, लेकिन तिवारी को इससे फर्क नहीं पड़ता। वे लोगों को पर्यावरण संरक्षण के तहत प्लास्टिक का उपयोग न करने और पौधारोपण प्रति जागरुक करने का भी काम कर रहे हैं।

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पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुक करते उमाशंकर तिवारी व अन्य।

वह कहते हैं, “परेशानियाँ तो आएंगी ही, दूसरों को खुश करने के लिए मैं खुद को नहीं बदल सकता। मेरे लिए सबसे अच्छी बात है कि मेरा परिवार साथ खड़ा है। मैंने लोगों से साफ़ कह रखा है कि यदि वह चाहते हैं कि मैं उनके किसी कार्यक्रम में आऊं तो उन्हें प्लास्टिक का मोह छोड़ना होगा। कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने प्लास्टिक और मुझमें से, मुझे चुना। इससे ख़ुशी की बात भला और क्या हो सकती है।”

‘द बेटर इंडिया’ के माध्यम से उमाशंकर तिवारी लोगों से कहना चाहते हैं कि न केवल पौधे लगाए बल्कि बड़े होने तक उनकी देखभाल भी करें, क्योंकि यही पौधे कल आपके बच्चों के काम आएंगे। इसके अलावा, यदि आप वास्तव में पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो प्लास्टिक के इस्तेमाल को पूरी तरह बंद कर दें। हम पहले भी बाज़ार झोला लेकर जाते थे और आज भी जा सकते हैं, बस हमें अपनी सोच बदलनी है।’

यदि आप भी उमाशंकर तिवारी के इस अभियान का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो उनसे 9826050919 पर संपर्क कर सकते हैं।

 

 संपादन – भगवती लाल तेली 

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