Placeholder canvas

पानी की खरीद-बिक्री के ख़िलाफ़ लड़ रहे निर्देशक श्रीराम डाल्टन ने की 2 हज़ार किलोमीटर की पदयात्रा, लगाये 5 लाख पेड़

फिल्म निर्देशक श्रीराम डाल्टन पानी की खरीद-बिक्री के खिलाफ एक मुहिम चला रहें हैं! इस मुहिम में वे अपनी एक फिल्म के दौरान 5 लाख पेड़ लगा चुके हैं!

ल ही जीवन हैं। जल अमृत हैं। बिन पानी सब सून। प्यासे को पानी पिलाना धर्म का काम।
जैसी कई तरह की कहावते हमारे यहाँ कही जाती हैं, बोली जाती हैं और सुनाई जाती हैं।
पानी हर एक सजीव के लिए हवा के बाद पहली जरुरत हैं। विज्ञान के मुताबिक आप तीन दिन से ज्यादा बिना पानी के जी नहीं सकते। लेकिन आजकल बाजारवाद ने ऐसा माहौल बना दिया हैं कि आपके घर में वाटर प्योरिफायर होना अनिवार्य हो गया हैं। आप बस या ट्रेन में मुसाफरी के दौरान सार्वजानिक पियाऊ से पानी पिते हैं तो आपको अनपढ़ या कंजूस समझा जाता हैं। और खरीद कर पानी पीने को फैशन बना दिया गया हैं लेकिन ऐसा क्यों ?

क्यूंकि पानी पर बाजारवाद हावी हैं। जब से पानी की खरीद-बिक्री चालू हुयी हैं, बाजारवाद की मोनोपोली ने पानी को ब्रांड बना दिया हैं। नहीं तो पानी को खरिदना-बेचना मतलब जीवन को खरीदना-बेचना। यानी की आप के पास पैसे हैं तो आप जी सकते हैं, नहीं तो आपको जीने का कोई हक नहीं। – ऐसा फिल्मकार श्रीराम डाल्टन का कहना हैं।

श्रीराम डाल्टन हाथ में लाठी, पीठ पर बैग और हाथ में पानी से भरा कमंडल लेकर मुंबई से झारखंड की ओर करीब दो हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकल गए हैं। रास्ते में मिलने वाले लोगों से पानी की खरीद-बिक्री न करने, पेड़ लगाने, पयावार्ण को बचाने एवं मानवीय मूल्यों को बचाने की अपील करते हुए आगे बढ़ रहे हैं।


झारखंड के डाल्टनगंज शहर में पैदा हुए श्रीराम डाल्टन बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से फाइन आर्ट्स में स्नातक हैं। फिल्म जगत के जाने-माने सिनेमेटोग्राफर अशोक मेहता के साथ आधे डजन से भी ज्यादा फिल्मों में काम करने बाद अशोक मेहता के कहने पर वे फिल्म निर्देशन में आये। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को लेकर बनायीं गयी श्रीराम की शोर्ट फिल्म “ओपी स्टॉप स्मेल्लिंग योर सॉक्स” यूट्यूब और फिल्म निर्देशकों के बीच काफी चर्चा का विषय रही हैं। 2014 में श्रीराम को अपनी शोर्ट फिल्म “द लॉस्ट बहरूपिया” के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय फिल्म पुरष्कार से नवाजा।

इसके आलावा श्रीराम ने ‘नेतरहाट फिल्म इंस्टिट्यूट’ के माध्यम से 2016 और 2017 में दो फिल्म वर्कशॉप का आयोजन किया जिसे क्रमश: “जल” और “जंगल” नाम दिया गया. दोनों वर्कशॉप में भारत, नेपाल और श्रीलंका से फिल्म, साहित्य, कला और प्रकृति में रूचि रखने वाले करीब 200 लोग शामिल हुए और 20 शोर्ट फिल्म व एक फीचर फिल्म का निर्माण किया गया। इन सारी फिल्मों में जल-जंगल का महत्व एवं जल-जंगल पर हो रही राजनीती व बाजारवाद को मुद्दा बनाया गया (इनमे से कई सारी फिल्मे नेतरहाट फिल्म इंस्टिट्यूट के यूट्यूब चैनल पर मौजूद हैं)।

श्रीराम ने 2014 में दोस्तों और रिश्तेदारों के प्रोत्साहन पर अपनी कहानी “स्प्रिंग थंडर” को फिल्म का स्वरुप देने का फैसला किया और एक छोटी टीम और कैमरा लेकर झारखंड पहुँच गए।


“स्प्रिंग थंडर में बाकि बॉलीवुड फिल्मों की तरह मसाला और कोई सुपरस्टार नहीं था तो कोई प्रोडूसर नहीं मिला,” श्रीराम बताते हैं।

स्प्रिंग थंडर, झारखंड में युरेनियम खदानों के आसपास चलने वाले जमीन अधिग्रहण, ठेकेदारों की गुंडागर्दी व राष्ट्रिय- अंतर्राष्ट्रीय राजनीती और छोटे किसानों और मजदूरों के जीवन पर आधारित हैं। जिसमे आकाश खुराना, रवि शाह, अरशद खान, सुधीर संकल्प और ऑस्ट्रेलियाई एक्ट्रेस अमांडा ब्लूम ने काम किया है।

श्रीराम बताते है,  “फिल्म का प्लोट काफ़ी बड़ा था और पैसे के आभाव के चलते फिल्म को पूरा होने में साढ़े तीन साल से भी ज्यादा समय लग गया। वैसे भी हम सिर्फ फिल्म नहीं बना रहे थे, साथ-साथ रोड शॉ करते, जिसमे लोगों को दुनिया की बेहतरीन फिल्मे दिखाते। और हमारी टीम ने फिल्म शूटिंग के दौरान लगभग पांच लाख पेड़ भी लगायें।”

स्प्रिंग थंडर में बाकि बॉलीवुड फिल्मों की तरह कोई सुपरस्टार या मसालेदार गाने न होने के कारण फिल्म को बाजार में लाने के लिए कोई भी डिस्ट्रीब्यूटर तैयार नहीं हुआ। तो प्राकृति में विश्वास रखने वाले श्रीराम 2018 में होने वाले “जमीन” वर्कशॉप की जमीन तैयार करने और अपनी फिल्म के साथ लोगों को जोड़ने के लिए पैदल मुंबई से झारखंड निकल पड़े। श्रीराम अपनी पदयात्रा के दौरान रास्ते में मिलनेवाले लोगों से पानी की खरीद-बिक्री न करने, पर्यावण को बचाने एवं बाजारवाद की मोनोपोली के बारे में बातचीत करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने 5 जून 2018 को नाशिक में अपनी फिल्म “स्प्रिंग थंडर” का फर्स्ट लुक रिलीज़ किया। पदयात्रा के दौरान अलग-अलग जगहों पर जल और जंगल वर्कशॉप में बनायी गयी फिल्मों का स्क्रीनिंग भी किया।

श्रीराम बताते हैं, “सिनेमा बाजार से बड़ा हैं और सिनेमा तो लोगों तक पंहुचा कर ही रहूँगा। अगर मैंने कोई लव स्टोरी, ड्रामा या थ्रिलर फिल्म बनायीं होती तो बाजार हाथों-हाथ मेरी फिल्म को ले लेता लेकिन मैंने सामाजिक समस्याओं को फिल्म का मुद्दा बनाया तो बाजार ने हाथ खड़े कर दिए। मानवीय मूल्यों की कीमत लगाना गलत बात है, और जो काम मैं  फिल्म रिलीज़ होने के बाद करने वाला था, वो अब फिल्म के साथ-साथ ही करूँगा। नासिक, वर्धा, रायपुर और भिलाई में मैं अपनी पैदल मार्च के दौरान रोड-शो करूँगा, जिसमें लोगों को फिल्में दिखाऊंगा। साथ ही जल-जंगल-जमीन के मुलभुत अधिकारों पर चर्चाएँ  करूँगा और पानी की खरीद बिक्री न करने की अपील करूँगा। क्यूंकि पानी की खरीद बिक्री मानवीय मूल्यों की खरीद बिक्री हैं।”

लेखक – आशीष पीठिया 

लेखक के बारे में –

आशीष पीठिया का जन्म एक किसान परिवार में हुआ और इन्हें किसानो से लगाव हैं। अभी आशीष मुंबई में बतौर स्वतन्त्र फिल्म डायरेक्टर/ एडिटर काम कर रहे है। इन्हें कहानी और कवितायेँ  लिखने- पढ़ने का शौक हैं।

 

संपादन – मानबी कटोच


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

 

 

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X