Placeholder canvas

बिहार की सुनीता बाँस और पाइप में उगा रही हैं सब्जियाँ, मशरूम ने बनाया आत्मनिर्भर!

Bihar Woman

खुद आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ सुनीता अन्य महिलाओं को भी मशरूम उगाने की ट्रेनिंग देती हैं, ताकि उनका भी जीवन संवर सके।

कोरोना संक्रमण के बीच एक शब्द की खूब चर्चा हो रही है, वह है ‘आत्मिनिर्भर भारत’। इसका शाब्दिक अर्थ है खुद के पैर पर खड़े लोग। मतलब स्वरोजगार। देश में कई ऐसे लोग हैं जो इस शब्द को हू-ब-हू चरितार्थ कर रहे हैं। उन्हीं में से एक हैं बिहार के सारण जिले के बरेजा गाँव की सुनीता प्रसाद और उनके पति सत्येंद्र प्रसाद। दोनों भले ही मात्र दसवीं पास हों, लेकिन अपने छोटे-छोटे अभिनव प्रयासों से इन्होनें न सिर्फ खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि आज वह गाँव के अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।

सुनीता देवी ने पहले मशरूम को अपने रोजगार का जरिया बनाया और एक हद तक खुद को आत्मनिर्भर बनाया। आजकल वह ‘वर्टिकल खेती’ के सहारे घर के आंगन और छत पर सब्जी और फूल उपजा रही हैं। सुनीता देवी के इस अभिनव प्रयोग के लिए मांझी स्थित किसान विज्ञान केंद्र ने उन्हें ‘अभिनव पुरस्कार’ से भी स्मानित किया। इतना ही नहीं उन्हें डीडी किसान के ‘महिला किसान अवार्ड शो’ में भी शामिल किया गया।

Bihar Woman
सुनीता देवी

द बेटर इंडिया से बात करते हुए सुनीता देवी ने कहा, “मुझे शुरू से ही सब्जी उपजाने का शौक रहा है। कोई भी बर्तन टूट जाता था तो उसमें मिट्टी डालकर कुछ ना कुछ उसमें लगा देती थी। एक दिन मैं कबाड़ी वाले को सामान बेच रही थी। इस दौरान मुझे उसकी साइकिल पर एक पाइप नजर आया, जिसे मैंने खरीद लिया। पाइप को छत पर रख दिया। देखते ही देखते उसमें मिट्टी जम गई। उसके बाद उसमें घास भी निकल आई। यह देख मुझे लगा कि इसको उपयोग में लाया जा सकता है।”

सुनीता आगे बताती हैं,  “मैंने अपने पति से ठीक ऐसा ही एक पाइप लाने के लिए कहा। वह करीब छह फुट लंबा पाइप बाजार से लाए। इसके बाद हमने उसमें कुछ छेद कर दिये। इसके बाद मिट्टी डालकर उसमें कुछ पौधे लगा दिए। जो भी पौधा मिलता था, लगा देते थे। यह आइडिया काम कर गया और उपज होने लगी। अब तो मैं उसमें बैगन, भिंडी और गोभी तक उपजाती हूँ। गोभी देख तो किसान विज्ञान केंद्र की एक अधिकारी अचरज में पड़ गईं। उन्हीं की सलाह पर मैंने इसकी प्रदर्शनी लगाई और मुझे ‘किसान अभिनव सम्मान’ मिला।”

Bihar Woman
इस तरह से पाइप की मदद से हो रही है वर्टिकल खेती।

सुनीता का कहना है कि आबादी बढ़ रही है। जमीन घट रही है। खाने के लिए तो सब्जी चाहिए। घर में सीमेंट और मार्बल लग रहे है। अभी नहीं सोचेंगे तो आगे क्या होगा? उन्होंने कहा कि वर्टिकल खेती शुद्ध जैविक खेती है। लोग घर के किसी भी हिस्से में इसे कर सकते हैं। इससे हर आदमी कम से कम अपने खाने लायक सब्जी तो उपजा ही सकता है। आज जो हम खा रहे हैं, उसमें केमिकल होता है। वर्टिकल खेती से उपजे सब्जी से लोगों का स्वास्थ्य भी बढ़िया रहेगा और पैसे भी बचेंगे।

सुनीता चाहती हैं कि इस पद्धति को हर कोई अपनाए। इसे सस्ता बनाने किए वह अब पाइप की जगह बाँस का उपयोग करने लगी हैं। एक पाइप करीब 800-900 रुपए का आता है। वहीं बाँस के लिए महज 100 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। सुनीता पहले असम में रहती थीं। वहाँ उन्होंने बाँस का उपयोग देखा था। उसी से उन्हें पाइप की जगह बाँस के उपयोग की प्रेरणा मिली।

Bihar Woman
इस तरह के बाँस का प्रयोग कर रहीं हैं सुनीता देवी।

सुनीता को परिवार का पूरा सहयोग मिलता है। उन्होंने कहा, “मुझे सदैव अपने परिवार के लोगों का प्रोत्साहन मिला। गाँव में रहकर बहु होते हुए भी मेरे लिए यह करना तभी संभव हो सका। मेरी सास और पति ने कभी मुझे घूंघट में नहीं रखा। सास से तो माँ की तरह प्यार और सहयोग मिला।”

 मशरूम है आय का मुख्य स्त्रोत

सुनीता के परिवार का आय का मुख्य स्त्रोत मशरूम है। इसके बारे में वह कहती हैं, “पहले खेती बढ़िया नहीं थी। हम सोचते थे कि आखिर क्या किया जाए। पॉल्ट्री फार्म खोला, लेकिन घाटा हो गया। इसके बाद मशरूम लगाया गया। खेती के लिए पूसा स्थित कृषि विश्वविद्यालय से ट्रेनिंग भी ली। पैदावार भी अच्छी थी। लेकिन लोगों को मशरूम के उपयोग की जानकारी नहीं थी। बिका नहीं, इस नुकसान उठाना पड़ा। फिर भी मैंने इसे छोड़ा नहीं। पटना से बीज लाकर इस काम में लगे रहे।”

 महिलाओं को मशरूम के बारे में दी जानकारी

शुरुआती दौर में लोगों को मशरूम की जानकारी नहीं थी इस कारण से पैदावार के बावजूद इससे लाभ नहीं हो पा रहा था। यह देख सुनीता ने महिलाओं को इसके लिए जागरूक करना शुरू किया। इतना ही नहीं उन्होंने इसकी ट्रेनिंग भी दी। वह बताती हैं, “मैंने करीब 100 महिलाओं को इसकी ट्रेनिंग दी। उन्हें बताया कि कोई भी ऐसी सब्जी नहीं है कि जो 200 में रुपए बिके। मैंने उन्हें खाने से लेकर इसे उपजाने की जानकारी दी। उन्हें मशरूम की खीर, अचार, सब्जी, पकौड़े बनाकर खिलाये। अब तो ऐसी स्थिति है को घर में कोई भी मेहमान आते हैं तो उन्हें मशरूम ही खिलाया जाता है। आज इससे साल में दो से ढाई लाख रुपए की आमदनी हो जाती है।”

सुनीता ओएस्टर मशरूम उगाती हैं। उन्हें शादी और पार्टी के लिए ऑर्डर मिलने लगे हैं। जो मशरूम बच जाता है, उसे ड्रायर से सुखाकर डीप फ्रीजर में रख देती हैं। इतना ही पैकिंग कर दुकानों को भेजती हैं। सुनीता और उनका परिवार करीब पांच साल से मशरूम की खेती कर रहा है। वर्टिकल खेती को भी अब चार साल बीत गए हैं।

Bihar Woman
सुनीता साथी महिलाओं को प्रशिक्षण भी दे रहीं हैं।

नील गाय से किसान परेशान तो हल्दी की खेती का आया आइडिया

सुनीता के गाँव में लोग नील गाय की वजह से परेशान रहते हैं। नील गाय फसल को नुकसान पहुँचाती है। यह सब देखकर सुनीता ने हल्दी की खेती करने की योजना बनाई है। दरअसल हल्दी को कोई भी जानवर नुकसान नहीं पहुँचाता है। हल्दी की खेती के लिए सुनीता ने जमीन लीज पर ली है। इतना ही नहीं उन्होंने गाँव की कुछ महिलाओं को इसके लिए प्रोत्साहित भी किया है। लोग सुनीता के अभिनव प्रयोग की तारीफ करते हैं।

सुनीता जैसी महिलाएं ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सच्चे रोल मॉडल हैं। अगर आप इनकी मदद या इनसे कुछ सीखना चाहते हैं तो 9931252609 पर संपर्क कर सकते हैं।

यह भी पढ़ें- एक ही गमले में 5 सब्जियाँ उगाने और 90% पानी बचाने का तरीका बता रहे हैं यह वैज्ञानिक!

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X