‘तितलियां’ – युवाओं की एक पहल जो झुग्गी के बच्चों की बेरंग ज़िन्दगी में रंग भर रही है!

बच्चे, बचपन और उनके चेहरे की मुस्कान को बचाने के लिए रांची में युवाओं की एक टोली आगे आई है। तितलियां नाम की संस्था रांची के युवा बिजनसमैन अतुल गेरा ने स्थापित की है। इस संस्था से रांची के कई युवा जुड़े है जो गरीब बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए लगातार काम कर रहे है। मिलिए इन युवाओं की टोली से जो अपने जज्बे से रांची के झुग्गियों में रहने वाली बच्चियों की बेरंग जिंदगी में अपने जज्बे से रंग भर रहे है।

बच्चे, बचपन और उनके चेहरे की मुस्कान को बचाने के लिए रांची में युवाओं की एक टोली आगे आई है। तितलियां नाम की संस्था रांची के युवा व्यवसायी अतुल गेरा ने स्थापित की है। इस संस्था से रांची के कई युवा जुड़े है जो गरीब बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए लगातार काम कर रहे है। मिलिए इन युवाओं की टोली से, जो रांची के झुग्गियों में रहने वाली बच्चियों की बेरंग जिंदगीयों में शिक्षा और स्नेह के रंग भर रहे है।

रांची के चुटिया इलाके के बनस तालाब के पास की झुग्गियों में दर्जनों परिवार रहते है, जिनकी जिंदगी दिहाड़ी मजदूरी, रिक्शा चलाकर और दूसरों के घरों में काम करके चलती है। इन परिवारो के बच्चे आस-पास के सरकारी स्कूलों में पढ़ने तो जाते है लेकिन दिन-भर माता पिता के व्यस्त होने की वजह से इन्हें जुआ, नशाखोरी सहित तमाम तरह की गलत आदतें पड़ जाती है। हालात कुछ ऐसे है कि अभी भी इस बस्ती की बच्चियों की शादी 13 साल की उम्र में हो जाती है और दो रोटी के लिए तरसते हुए बचपन बीत जाता है।

रांची के युवा व्यवसायी अतुल गेरा की मुलाकात एक बार बहू बाजार स्थित बनस तालाब के करीब झुग्गियों में रहने वाली कुछ बच्चियों से हुई। अतुल ने इन बच्चियों को कुछ बिस्किट दिए।इसके बाद ये बच्चियां बिस्किट लेने के लिए रोजाना उनसे मिलने पहुंच जाती थी।

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इनसे बातचीत के दौरान अतुल को इनके घर- परिवार और बस्ती के हालात के बारे में पता चला। वहीं अतुल को ये भी अंदाजा होने लगा था कि अगर जल्द इन बच्चियों के लिए कुछ नहीं किया गया तो फिर काफी देर हो जाएगी। फिर अतुल ने फेसबुक पर अपने दोस्तों से संपर्क किया और यहीं से शुरू हुई गरीब बच्चे-बच्चियों के भविष्य गढ़ने की कोशिश।

अतुल ने फेसबुक के जरिए  सक्षम लोगों (फोस्टर अभिभावक) की तलाश शुरू की जो गरीब बच्चे- बच्चियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने का खर्च उठा सके। अपने दोस्तों और जान-पहचान वालों सहित कई लोगों ने फोस्टर अभिभावक बनने की इच्छा जाहिर करते हुए अतुल से संपर्क किया। फिर अतुल ने तितलियां‘ नाम का समूह बनाया और तितलियां के बैनर तले सबसे पहले 11 लोगों को चुना। हर एक अभिभावक को एक बच्ची का फोस्टर अभिभावक बनाया ताकि वो उस बच्ची का सारा खर्च वहन करें और उसकी देख-रेख में भी मदद करें।

यहीं से शुरू हुआ झुग्गियों में रहने वाले गरीब और बदनसीब बच्चों की जिंदगी को बदलने का सफर।

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तितलियां के संस्थापक अतुल गेरा बनस तालाब स्लम के बच्चों के साथ

तितलियां संस्था के सहयोग से सबसे पहले चुनी हुई 11 बच्चियों का दाखिला अनिता आवासीय विद्यालय, कांके में कराया जा चुका है। पूरी बस्ती से सबसे पहले उन 11 बच्चियों को चुना गया जो पूरी तरह भटक कर गलत रास्ते पर जा चुकी थी।

टीबीआई से बात करते हुए तितलियां के संस्थापक अतुल गेरा बताते है, “हम चाहते है कि 10-12 साल की उम्र में ही जो बच्चियां बर्बाद हो रही है उनको रोका जाए। इस दिशा में तितलियां ने एक प्रयास किया है। हम जल्द ही और 10 बच्चों का नामांकन दूसरे आवासीय विद्यालय में कराने वाले है। इस पहल के पीछे की सोच ये है कि इन रास्ते से भटके गरीब बच्चों को अच्छा माहौल मिले और अच्छी पढ़ाई लिखाई की सुविधा मिले ताकि इनकी जिंदगी सुधर सके और ये गलत रास्ते पर न जाएं।”

अतुल का कहना है कि यह कारवां आगे न बढ़ पाता अगर ‘अनिता आवासीय विद्यालय’ की प्रिंसिपल, सिस्टर एलेक्सिया ने उनका साथ नहीं दिया होता। सिस्टर एलेक्सिया ने इन बच्चों को अपने स्कूल में जगह दी।

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अपने फोस्टर अभिभावक एवं सिस्टर एलेक्सिया के साथ बच्चियां

उन्होनें शुरू में इन बच्चों को अलग रखा था ताकि दूसरे बच्चों पर इनका असर ना पड़े। ये बच्चे ऐसे रहन –सहन से आये थे कि सिस्टर एलेक्सिया ने इनके दाखिले के समय इन्हें देखकर कहा था कि उन्हें इन बच्चियों के बालो को साफ करने में ही एक हफ्ते का समय लग जायेगा। वक्त बदला, माहौल बदला और ये बच्चियां अब बदल चुकी है और अपने उज्जवल भविष्य के सपने संजो रही है।

चेहरे पर मुस्कान ओढ़े अतुल ने कहा, “मैं संजना का फोस्टर अभिभावक हूं और मेरी अपनी बेटी का नाम भी संजना ही है। हम जब भी इन बच्चियों से मिलने स्कूल जाते है तो उनका हौसला और जिंदगी को नए सिरे से जीने का जज्बा साफ नज़र आता है।”

झुग्गियों से आवासीय स्कूल का सफर तय कर चुकी छोटी बच्ची दिपिका बताती है, “यहां आने के बाद मेरा रंग भी गोरा हो गया है और हमें भर पेट खाना भी मिलता है। हम सभी लोग मन लगाकर पढ़ाई कर रहे है।”

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संस्था की सबसे छोटी बच्ची दिपिका

इन मासूम बच्चियों के लाचार माता-पिता बहुत खुश है कि तितलियां  ने इनकी जिंदगी को नया आयाम दिया है। बनस तालाब के पास की झुग्गियों में फिर से बच्चो को चुनने की पक्रिया शुरू की जा चुकी है। बहुत जल्द करीब 10 बच्चों का नामकुम के एक आवासीय विद्यालय में दाखिला कराया जाएगा।

तितलियां के सदस्य गोद लिए बच्चों की पढ़ाई सहित रोजाना की जरूरतों का पूरा खर्च उठाते है एवं समय समय पर स्कूल में बच्चों से मिलकर उनकी हौसला अफजाई भी करते है।

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फोस्टर अभिभावक गोद ली हुई बच्ची के साथ स्कूल में

तितलियां के आगे की रणनीति पर बात करते हुए अतुल ने कहा कि हम और फोस्टर अभिभावको की तलाश कर रहे है और हमारा प्रयास जारी रहेगा।

अतुल के शब्दों में “अभी तो नापी है हमने मुट्ठी भर जमीं….अभी तो पूरा आसमां बाकी है……”

तितलियां अपने रंगों को गरीब बच्चों की जिंदगी में भरने के साथ-साथ उनके कल को संवारने के लिए कृतसंकल्पित है आने वाले दिनों में सैकड़ों गरीब, जरुरतमंद बच्चों को आवासीय विद्यालय से जोड़ने की योजना है ।

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अपने आवासीय स्कूल में बनस तालाब स्लम के बच्चे

 

अगर आप भी तितलियां से जुड़ना चाहते है और किसी गरीब, अनाथ या जरुरतमंद बच्चे के अंधेरे जीवन में शिक्षा रूपी रौशनी पहुंचाना चाहते है तो तितलियां के संस्था पर अतुल गेरा से इस नंबर पर संपर्क करें -9835127273

 

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