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येरवडा जेल के किशोर अपराधियों को जीना सिखा रही हैं 21 वर्षीय नीतिका !

पुणे में एक छात्रों का समूह येरवडा जेल के किशोर अपराधियों के सुधार और कल्याण के लिए काम कर रहा है। इन बच्चों की काउंसलिंग से लेकर आत्मविशवास बढाने की गतिविधियों से इन्हें बाहरी दुनियां का सामना करने की ताक़त मिल रही है।

पुणे में एक छात्रों का समूह येरवडा जेल के किशोर अपराधियों के सुधार और कल्याण के लिए काम कर रहा है। इन बच्चों की काउंसलिंग से लेकर आत्मविशवास बढाने की गतिविधियों से इन्हें बाहरी दुनियां का सामना करने की ताक़त मिल रही है।

नीतिका नागर जब अपने ग्रेजुएशन के प्रोजेक्ट के दौरान किशोर अपराधियों से मिलीं तो इनकी स्थिति जानकर इतनी प्रभावित हुईं कि पढाई के दौरान ही उन्होंने एक ग्रुप बनाकर इनके जीवन की राहें संवारना शुरू कर दिया।

नीतिका, पुणे के सिम्बोइसिस लॉ स्कूल में फ़ाइनल ईयर की पढाई कर रही हैं। इक्कीस वर्षीय नितिका ने पहले सेमेस्टर में समाजशास्त्र विषय पर अपने कुछ सहपाठियों के साथ एक प्रोजेक्ट पर काम किया था। प्रोजेक्ट के दौरान बाल सुधार गृह के दौरे ने नीतिका और उसके साथियों को किशोर अपराधियों की समस्याओं से रूबरू कराया और फिर इन्हीं छात्रों के समूह ने बाल सुधार गृह के अधिकारिओं की मदद से बच्चों के लिए कानूनी सहायता के लिए काम करना शुरू कर दिया। इन्होने उन बच्चों की काउंसलिंग के लिए सेशन लिए।

नीतिका बताती हैं ,हमने फर्स्ट ईयर में प्रोजेक्ट के दौरान जब गहरी रिसर्च की तो एहसास हुआ कि बाल सुधार गृह में रह रहे बच्चों की हालत बाकी बच्चों से एकदम अलग है। बाल अपराधियों के लिए मुश्किल होता है क्योंकि उनका सही और गलत का बोध खो जाता है। वो हताश होते जाते हैं। ज्यादातर बाल सुधार गृहों की हालात बहुत बुरी हैं। इन्हीं सब कारणों ने हमें ऐसे बच्चों के लिए कुछ करने को प्रेरित किया ।”

2013 में नीतिका ने 12 अन्य छात्रों के साथ मिलकर प्रेष्ठीनाम से एक समूह बनाया जो बाल सुधार गृह के बच्चों के सुधार के लिए काम करने लगा।

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शुरुआत में इस समूह का कोई संगठनात्मक ढांचा नहीं था। उनके साथ कुछ लोग जुड़े थे, जो बच्चों को कानूनी सहायता देने और उनके लिए शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित करते थे। लेकिन आज नीतिका की पूरी टीम है जो नेहरु उद्योग केंद्र, येरवडा में 40 बच्चों के साथ काम करती है।

 

प्रेष्ठी आज एक गैर सरकारी संगठन में तब्दील हो गया है जो अंतर्राष्ट्रीय संस्था एलेक्सिस सोसाइटी के अंतर्गत काम करता है।

 

प्रेष्ठी की टीम में ऐसे मनोवैज्ञानिक भी हैं जो बाल सुधार ग्रहों में जाकर बच्चों की टीम के साथ-साथ व्यक्तिगत काउंसलिंग भी करते  हैं। सप्ताह में तीन बार ग्रुप काउंसलिंग सेशन होते हैं। इसके साथ-साथ बच्चों से व्यक्तिगत सेशन लगभग रोज होते हैं।

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इन मासूम अपराधियों की प्रभावी ट्रेनिंग के लिए इन्हें दो श्रेणी में बांटा गया है। एक श्रेणी में चोरी, छिनैती आदि करने वाले बच्चों का समूह है जिन्हें एक बार ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है। वहीँ दूसरी श्रेणी में हत्या, मारपीट, रेप करने वाले आदती बच्चे हैं जिन्हें लगातार ट्रीटमेंट और थेरेपी की जरूरत रहती है।
इन बच्चों को ट्रीटमेंट करने वाले मनोवैज्ञानिक परमानेंट इस समूह से नहीं जुड़े हैं। वे कॉन्ट्रेक्ट पर अपनी सेवाएं देते हैं। इन मनोवैज्ञानिकों में पुणे के चेतना काउंसलिंग सेंटर और सिंबियोसिस यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान के प्रोफेसर शामिल हैं। इनके साथ मनोविज्ञान से ग्रेजुएट हुए छात्र भी सेशन में मदद करते हैं।

 


इनमें से कई बच्चे हैं, जो बाल सुधार गृह से छूटने के बाद अपनी पढाई जारी रखना चाहते हैं। लेकिन उनके लिए एक  समस्या है। उन्हें डर होता है कि इतने लंबे समय तक पढाई से दूर रहने के बाद क्या फिर वो वापसी कर पाएंगे। हम ऐसे बच्चो की पढाई में मदद करना चाहते हैं, ताकि वे बाहर की दुनियां में पिछड़ न जाएँ। वैसे हम पहले से ही उन बच्चों के फॉर्म्स भरवा रहे हैं जो हाल ही में छूटने वाले हैं,“ नीतिका ने बताया ।

 

चोरी के जुर्म में पकड़े गए आकाश को हाल ही में रिहाई मिली। आकाश शुरुआत में किसी से बात नहीं करता था। आकाश के लिए रिहाई के बाद बाहरी दुनियां में जीना आसान नहीं था। नीतिका के सांतवे सेशन के बाद आकाश ने बोलना शुरू किया और वो अपने ग्रुप में अधिक आत्मविश्वास से बात करने लगा। रिहाई के बाद आकाश नीतिका के पास आया और उसने बताया कि, “मैं आपकी वजह से बोलना सीख गया, अब मैं अपने माता-पिता से भी ठीक से बात करता हूँ।”

 

नीतिका के लिए ये सबसे भावुक क्षण था, ” मैं भावुक हो गयी। ये बच्चे अपनी मानसिक धारणाओं से निकलना चाहते हैं। हम उनके जीवन में  सुधार ही नहीं उनमें ये जोश भी भरते हैं कि उन्हें अपने जीवन में कई मुकाम हासिल करने हैं। वे इतने कमजोर नहीं रहते जितने पहली बार सुधार गृह में आने पर थे।” 

 

 

नीतिका अपनी पढाई के बाद प्रेष्ठी का दायरा और बढ़ाना चाहती हैं। ताकि कई अनुभवी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर इन बच्चों के लिए काम करती रहें।

 

मूल लेख तान्या सिंह द्वारा लिखित।

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