ट्रक ड्राइवर पिता का बेटा घरों में बाँटता था अखबार, CAT क्वालीफाई कर पहुँचे IIM Kolkatta

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शिवा ने कभी भी किसी काम को छोटा नहीं माना। उन्होंने कार धोने और फूल बेचने से लेकर रिटेल स्टोर में भी काम किया। पढ़िए उनके संघर्ष का यह सफ़र।

बेंगलुरु के रहने वाले शिवा कुमार नागेंद्र की कहानी राल्फ वाल्डो इमर्सन के प्रसिद्ध कोट को सच साबित करती है, जिसमें उन्होंने कहा था, “अगर अकेला आदमी अपने विवेक से पूरे दृढ़ निश्चय के साथ आगे बढ़े और लगातार कोशिश करता रहे तो एक दिन वह इस विशाल संसार को अपनी मुट्ठी में कर सकता है।”

शिवा कुमार का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। बचपन से ही वह आर्थिक तंगी और गरीबी में पले-बढ़े। शिवा ने कम उम्र से ही अखबार बांटने का काम शुरू कर न सिर्फ अपने माता-पिता की मदद की बल्कि पूरी ईमानदारी से अपनी पढ़ाई करते हुए उनका सीना गर्व से ऊंचा कर दिया।

सालों बाद अखबार बेचने वाला वह छोटा लड़का मजबूत इरादों वाला एक आदमी बन गया। 2013 में उन्होंने कैट की परीक्षा पास करके आईआईएम-कोलकाता में दाखिला लिया।

द बेटर इंडिया ने इस अनोखी जीवन यात्रा के बारे में जानने के लिए शिवा कुमार नागेंद्र से बात की। आइये जानते हैं कि हम उनसे क्या सीख सकते हैं!

पढ़ाई को प्राथमिकता देना 

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अपने माता-पिता के साथ शिव कुमार

मैसूरु में जन्मे शिवा के माता-पिता उनके जन्म के तुरंत बाद बेंगलुरु चले गए और यहीं वह पले बढ़े।

शिव बताते हैं, “मेरे पिता ट्रक ड्राइवर थे जबकि मेरी माँ घर पर मेरा और मेरी बहन का ख्याल रखती थीं।” गरीबी के बावजूद उन्हें मारुति विद्यालय भेजने का श्रेय शिवा अपने माता-पिता को देते हैं। वह अपने पूरे परिवार में औपचारिक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति थे।”

वह कहते हैं, “मेरी माँ के लिए अपने बच्चों की पढ़ाई जरूरी थी। हम जितना खर्च उठा सकते थे, उतने में ही मेरा दाखिला अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में हो गया। इससे उन्हें काफी गर्व महसूस हुआ। वह जानती थी कि घर पर ऐसा कोई नहीं है जो मेरे होमवर्क में मेरी मदद कर सके। जब तक मैं अपने दम पर पढ़ सकता था, पढ़ा, उसके बाद उन्होंने किसी तरह मुझे ट्यूशन क्लास में भेजा। वह स्कूली और सीखने की पूरी यात्रा में मेरे साथ रहीं।”

शिवा की माँ का मानना था कि अच्छी शिक्षा ही सफलता के द्वार खोलती है। इसलिए उन्होंने उसके होमवर्क में मदद के लिए स्कूल के बाद कोचिंग क्लास में दाखिल करवाया।

शिवा भी पूरी ईमानदारी और मेहनत से पढ़ाई करते रहे। उन्होंने तय कर लिया था कि वह पढ़ाई में सौ फीसदी बेहतर करने की कोशिश करेंगे। वह बताते हैं, “मैं हमेशा एक अच्छा छात्र था और अपने अच्छे नंबरों से मैं काफी मोटिवेट होता था। मेधावी विद्यार्थी होने के कारण मैं शिक्षकों के बीच लोकप्रिय था।”

परिवार की आर्थिक मदद करना

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साइकिल से अखबार बांटने जाते शिव

शिवा जब चौथी कक्षा में थे तब उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए सुबह अखबार बांटने का फैसला किया। उन्हें ऐसा करने के लिए किसी ने नहीं कहा था। वह कहते हैं, “मैंने देखा कुछ बच्चे सुबह अखबार बांटते हैं। मुझे लगा कि यह ऐसा काम है जिसे मैं स्कूल जाने से पहले कर सकता हूँ और इससे मेरे परिवार को कुछ पैसे भी मिल जाएंगे।”

वह हर महीने 100 रुपये कमाते थे। लेकिन शिवा के लिए यह सिर्फ पैसे नहीं बल्कि इससे बढ़कर कुछ था। वह कहते हैं, “मैं सशक्त महसूस कर रहा था। मुझे अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मालूम थी। काम करके मैं अपनी छोटी-छोटी जरूरतें पूरी कर लेता था। मुझे अपने माता-पिता से पैसे मांगने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। इस तरह मैं छोटे-मोटे काम करता रहा।”

काम करके पैसा कमाने से उन्हें दुनिया देखने का नजरिया भी विकसित हुआ। शिवा ने कभी भी किसी काम को छोटा नहीं माना। उन्होंने कार धोने और फूल बेचने से लेकर रिटेल स्टोर में भी काम किया। उन्होंने अपने और अपने परिवार की मदद के लिए सभी तरह के काम किए।

उन्होंने कहा, “मुझे जो भी एक्सपोज़र मिला उससे मुझे पैसे की कीमत समझ में आने लगी कि संघर्ष क्या है और अगर मैं अपना दिमाग लगाऊं तो मुझे क्या हासिल हो सकता है।”

अपने अनुभवों को व्यवहार में लाना

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प्रेरक कहानी

जब शिवा 10 वीं कक्षा में थे, तो उन्हें एक अखबार की डीलरशिप खरीदने का मौका मिला। वह कहते हैं, “कई सालों तक अखबार बांटने का काम करने के बाद मुझे समझ में आ गया था कि सिस्टम क्या है। इस दौरान मुझे डीलरशिप खरीदने का एक शानदार मौका मिला था।” माँ और बेटे ने मिलकर इसके बारे में सोचा। शिवा ने अपनी माँ के कुछ सोने के जेवर बेचकर डीलरशिप की पहली किस्त जमा की।

शिवा लगातार अपने बिजनेस को बढ़ाने के बारे में सोचते रहे। वह कहते हैं, “स्कूल के बाद मेरा बहुत सारा समय बिजनेस को आगे बढ़ाने में लग जाता था। कुछ ही सालों में हमारा डिस्ट्रिब्यूशन 50 से बढ़कर लगभग 800 हो गया।”

फिलहाल शिवा के पिता डीलरशिप को मैनेज करते हैं। यहाँ तक कि आज भी जब डिलीवरी ब्वॉयज की कमी होती है, तो शिवा सुबह-सुबह अखबार देने पहुंच जाते हैं।

आईआईएम- कोलकाता के जरिए मिला रास्ता

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शिव कुमार नागेन्द्र

शिवा कहते हैं, “जब मैं 13 साल का था तब मेरे पिता का एक्सिडेंट हो गया। इससे परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब  हो गई। हमें अपने स्कूल की फीस भी देनी थी।”

इस समस्या का समाधान खोजते हुए शिवा को कृष्ण वेद व्यास का ख्याल आया। वह एक बिजनेसमैन थे, जिनके यहाँ शिवा अखबार पहुंचाते थे। शिवा हिम्मत करके एक दिन उनके घर गए और स्कूल की फीस भरने के लिए रिक्वेस्ट की।

कृष्ण, शिवा के बारे में पता लगाने के लिए उसके स्कूल गए। वहाँ उन्हें पता चला कि वह न सिर्फ सच बोल रहा था बल्कि वह अपने कक्षा का टॉपर भी है। तब कृष्ण ने शिवा की पढ़ाई के लिए फंड देने का फैसला किया। शिवा की स्कूल फीस भरने से लेकर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए परामर्श देने तक, कृष्ण अंकल का शिवा के जीवन में एक अलग स्थान रहा है।

शिवा के माता-पिता का कहना है, “वह हमारे बेटे के अभिभावक रहे हैं। उन्होंने न केवल आर्थिक मदद की बल्कि हर कदम पर शिवा का मार्गदर्शन किया। उन्होंने हमारे जीवन में जो योगदान दिया है, उसके लिए हम उनके आभारी हैं।”

शिवा ने बैंगलोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अपनी इंजीनियरिंग पूरी की और अक्टूबर 2013 में कैट की परीक्षा में 99.86 प्रतिशत अंक हासिल किए।

शिवा कहते हैं, “कृष्णा चाचा मेरे साथ हर कदम पर थे, चाहे वह ग्रुप डिस्कशन, इंटरव्यू की तैयारी हो या आवेदन पत्र के लिए अपने बारे में एक नोट लिखना हो। उन्होंने हमेशा मेरा हाथ पकड़े रखा।”

शिवा कहते हैं, “जीवन में कई तरह की चुनौतियां हैं, आपको बस इतना करना है कि आप कड़ी मेहनत करते रहें और विश्वास रखें कि कुछ समय में चीजें बदल जाएंगी और बेहतर दिखने लगेंगी।”

वर्तमान में शिवा बेंगलुरु में एक कॉर्पोरेट हाउस में काम करते हैं।

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मूल लेख- VIDYA RAJA

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