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अपनी घरेलू सहायक के साथ मिलकर सैकड़ों गरीब बच्चों को पढ़ा रही है नोयडा की मीना निझवान!

हममें से शायद ही कोई होगा जो समाज को कुछ देने की ख्वाहिश न रखता हो। हम सब सामाजिक मदद करना चाहते हैं, लेकिन अक्सर अकेले होने की वजह से या कहाँ से शुरू करें इन सवालों से जूझते रहते हैं। और अपने रोजमर्रा की ज़िन्दगी में खो जाते हैं। ये कहानी आपके इन सवालों को रास्ता दिखाएगी।

हममें से शायद ही कोई होगा जो समाज को कुछ देने की ख्वाहिश न रखता हो। हम सब सामाजिक मदद करना चाहते हैं, लेकिन अक्सर अकेले होने की वजह से या कहाँ से शुरू करें इन सवालों से जूझते रहते हैं। और अपने रोजमर्रा की ज़िन्दगी में खो जाते हैं। ये कहानी आपके इन सवालों को रास्ता दिखाएगी।

ये कहानी है नोएडा की मीना निझवान और उनकी घरेलू कामों में सहायक पदमा की।
नोएडा की मीना निझवान ‘संकल्प साक्षरता समिति’ के माध्यम से सैकड़ों जरूरतमंद बच्चों को पढ़ा रही हैं।

1993 में मीना निझवान ने अपनी घरेलू सहायक पदमा को पढ़ाना शुरू किया। तब उन्हें कुछ तो अंदाजा था कि ये पहल एक दिन हज़ारो बच्चों की ज़िन्दगी संवारने वाली है।

“मैं आर्मी बैकग्राउंड से आती हूँ, इसलिए हमेशा समाज के लिए कुछ करने की बड़ी इच्छा रखती थी। जब मेरे पति आर्मी से रिटायर हुए और हम एक स्थाई जगह रहने लगे। मैंने पदमा को पढ़ाना शुरू किया,” 71 वर्षीय मीना बताती हैं।

1995 में जब मीना और पदमा को अपने घर पास यूँही भटक रहे चार गरीब बच्चे दिखे, तो वे उन्हें अपने घर लेकर आ गयी। उन्होंने बच्चों को नहलाया, खाना खिलाया और उनसे ये वादा लिया कि अब वो पढ़ाई शुरू करेंगे।

Meena with Padma (left), her first student and her biggest support

मीना के लिए ये बहुत ख़ुशी की बात थी कि उन बच्चों ने वादा निभाया और हर दिन उनके घर पढ़ने को आने लगे।

धीरे धीरे आसपास ये बात फैली तो कूड़ा उठाने वाले, रिक्शा चलाने और घरेलु कामकाजी परिवारों के बच्चे भी उनके घर पढ़ने को आने लगे। अब मीना का घर एक छोटे स्कूल में बदलने लगा। बच्चों के उत्साह ने मीना को प्रेरित किया और उन्होंने अपने इस जिम्मे को ‘संकल्प साक्षरता समिति’ का नाम दे दिया।

इन बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ उनकी कॉपी-किताबों, स्टेशनरी सहित खाने का इंतज़ाम भी मीना करने लगीं।

“बच्चों की बढ़ती संख्या से मैं खुश भी थी और थोड़ी चिंतित भी, क्योंकि मेरे पास पर्याप्त धन नहीं था कि उनकी परवरिश कर सकूँ। मेरे पिता की बंद पड़ी फेक्ट्री में नमक के पैकेट्स थे उन्होंने मुझे कहा, देखो अगर इनसे तुम्हारी कुछ मदद हो पाए तो.. फिर मैं नमक के पैकेट्स लेकर निकल पड़ी, अनजान लोगों के दरवाजे खटखटाती और उनसे इन बच्चों की पढाई के लिए नमक के पैकेट खरीदने को कहती,” मीना अपने मुश्किल वक़्त को याद करते हुए कहती हैं।

बच्चों के साथ व्यवहारिक चुनौतियाँ भी कम नहीं है। ये वो बच्चे हैं जिनके साथ उनके समाज और परिवार में बुरी तरह व्यवहार किया जाता है, उन्हें मारना-पीटना और गाली-गलौज रोजमर्रा की सामान्य बात है। इस माहौल में पल रहे बच्चों के लिए मीना पर भी विश्वास करना कठिन है।

“धीरे धीरे मैंने ये महसूस किया कि बच्चों को पढ़ाना बेशक जरुरी है लेकिन साथ ही उनके परिवार को संवेदनशील बनाना भी उतना ही जरुरी है। मैंने इनके घरों में जाना शरू किया और उनके माता-पिता को ये बातें समझाने की कोशिश की। आखिर मेरे जीवन का मकसद सिर्फ बच्चों को शिक्षा देना भर नहीं है बल्कि उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद करना है,” मीना बताती हैं।

मीना के शिक्षा से ज़िंदगियाँ संवारने के प्रयास को स्माइल फाउंडेशन ने सहयोग देने का फैसला लिया। तब से उनके बच्चों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।

Meena with the children of nearby slums who come to her centre to study

“स्माइल फाउंडेशन के सहयोग से हम बच्चों को संकल्प स्कूल में एलिमेंट्री शिक्षा दे पा रहे हैं, उसके साथ ही हम उन्हें मुख्यधारा के स्कूलों में आगे की पढाई के लिए दाखिल कर रहे हैं। अब हम फॉर्मल स्कूलों की फीस का खर्च उठाने की ओर ध्यान लगा रहे हैं।”

मीना ने अपने घर के पास एक स्कूल में प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत की है, जहाँ वे पास के झुग्गियों की 50 महिलाओं को मुफ़्त शिक्षा दे रही हैं।

मीना निझवान अकेले दम पर बदलाव की प्रेरक हैं। वे मिसाल हैं ऐसे लोगों के लिए जो समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं। हमें अकेले ही अपने घर से बदलाव की शुरुआत कर देनी चाहिए, आगे का कारवां अपने आप जुड़ता जाता है।

स्माइल फाउंडेशन राष्ट्रीय स्तर की विकास संस्था है जो 4 लाख बच्चों और उनके परिवारों को हर वर्ष 200 से ज्यादा वेलफेयर प्रोजेक्टो से सीधे लाभ पहुंचाती है।

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