कचरे से संगीत पैदा करते ‘धारावी रॉक्स बैंड’ के होनहार बच्चे!

कचरा बीनने वाले बच्चो का जीवन बेहद कठोर होता है। सारा दिन गंदगी में से कचरा बीनना, उन्हें अपने ही झोपड़े में लाकर चुनना और फिर जैसे तैसे अपना पेट भरना- बस यही उनका जीवन था। इन बच्चो का बचपन, उनकी गरीबी की बिमारी की वजह से दम तोड़ चुका था। विनोद सिर्फ इनके स्वास्थ्य और बाकी अधिकारों के लिए ही नहीं बल्कि इनके नीरस और कठोर जीवन में थोड़ी सी मिठास लाने के लिए भी कुछ करना चाहते थे। इसी सोच की नींव पर शुरुआत हुई, थिरकते, गुनगुनाते और गुदगुदाते संगीत से भरे बैंड, 'धारावी रॉक्स' की!

क्या कभी आपने सोचा है कि आप जो गंदगी फैलाते है, वो कहा जाती है? यूँही एक हसीन शाम जो आप अपने प्रियजन के साथ जुहू के समुद्र तट पर टहलते हुए और पानी की वो बोतल वही फेंकते हुए बिताते है, या कभी अपने ही गम में बैठे हुए कोल्ड ड्रिंक का वो कैन जो आप उसी साफ़ जगह पर छोड़ आते है, उसे कौन उठाता होगा? और अगली शाम जो आपको आपका सुकून भरा जुहू फिर एक बार साफ़ सुथरा मिलता है तो ये सफाई कौन करता होगा? ये सारी गंदगी कहा जाती होगी?

ये सारी गंदगी जाती है धारावी में! ‘धारावी’ – भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी! सुनते ही सामने उभर आती है भूख, गरीबी, दम घोंटने वाली छोटी-छोटी तंग गलियां, गन्दगी, बदबू और हर वो बात जिससे आप दूर रहना चाहेंगे। पर अगर हम ये कहे कि इसी धारावी से आपके फैलाये कूड़े की मदद से संगीत निकलता है तो?

धारावी में करीबन 1 लाख कचरा बीनने वाले रहते है, जिनमे से अधिकतर बच्चे है। यदि मुंबई की सफाई का श्रेय किसी को जाता है तो वो इन्ही कचरा बीनने वालो को जाता है। ये लोग बेहद जोखिम भरे तथा गंदे वातावरण में काम करते है, पर फिर भी इनकी देख रेख के लिए कोई भी कानून नहीं बना है।

जब ये बात मजदूरों के अधिकार के लिए लड़ने वाले वकील, श्री. विनोद शेट्टी को पता चली, तो उन्होंने इनकी बेहतरी की ओर काम करने के लिए सन 2005 में ‘एकोर्न फाउंडेशन’ नामक संस्था की नींव रखी।

इन कचरा बीनने वाले बच्चो का जीवन बेहद कठोर होता है। सारा दिन गंदगी में से कचरा बीनना, उन्हें अपने ही झोपड़े में लाकर चुनना और फिर जैसे तैसे अपना पेट भरना- बस यही उनका जीवन है। इन बच्चो का बचपन, उनकी गरीबी की बिमारी की वजह से अक्सर दम तोड़ देता है। विनोद सिर्फ इनके स्वास्थ्य और बाकी अधिकारों के लिए ही नहीं बल्कि इनके नीरस और कठोर जीवन में थोड़ी सी मिठास लाने के लिए भी कुछ करना चाहते थे।

इसी सोच की नींव पर शुरुआत हुई, थिरकते, गुनगुनाते और गुदगुदाते संगीत से भरे बैंड, ‘धारावी रॉक्स’ की!

dharavi-rocks4

पर ये कोई आम संगीत उपकरणों की मदद और प्रशिक्षित गायकों और संगीतकारों से भरा बैंड नहीं था। इस बैंड के संगीत उपकरण थे- कचरा बीनने वाले इन बच्चो का लाया हुआ कचरा और इनके गायक और संगीतकार थे- खुद ये बच्चे।

पानी की बड़ी बड़ी बोतले जिसमे मुंबई वाले पानी जमा करके रखते है, प्लास्टिक की भर्निया, कांच की बोतले, बोतलों के ढक्कन और भी कई फ़ालतू चीज़े जिन्हें हम कचरा समझ कर फेंक देते है, उनमे से ये बच्चे संगीत पैदा करते है।

इस बैंड के ज़रिये वो बच्चे एक दुसरे से जुड़े, जो सारा दिन सडको पर दो वक़्त की रोटी के लिए मारे मारे फिरते थे और फिर सडको पर ही सो जाते थे।

विनोद कहते है, “इनमे से कई बच्चे ऐसे भी थे जो नशे के शिकार थे, चोरियां करते थे या फिर घर से भागे हुए थे, पर कहीं अपने मन की गहराई में आज भी वे आम बच्चो की तरह ही खेलना चाहते थे, गाना चाहते थे, नाचना चाहते थे। धारावी रॉक्स को हम इन्ही बच्चो का सहारा बनाना चाहते थे।”

धारावी रॉक्स की शुरुआत धारावी के ही एक छोटे से झुग्गी-नुमा कमरे से हुई। शुरू में बहुत कम बच्चे आये और उन्होंने गाना बजाना शुरू किया। पर उनके संगीत की आवाज़ सुनकर धीरे धीरे और बच्चे भी उस कमरे का रुख करने लगे। और आज धारावी रॉक्स में 8 से 18 साल के बीच के करीबन 20 से 25 बच्चे है।

dharavi-rocks1

ये बच्चे अपने दिन भर का कचरा बीनने का, या मजदूरी का काम ख़त्म करके सीधे संगीत से लबरेज़ इस छोटे से कमरे में भागे चले आते है, जहाँ पर इनके सारे दिन की थकान मिनटों में मिट जाती है।

इन बच्चो ने अपना संगीत ही नहीं बल्कि संगीत उपकरण भी खुद ही बनाया। इनके कुछ-कुछ आविष्कार जैसे की चावल के दानो से भरा हुआ कैन बहुत लोकप्रिय है।

धीरे-धीरे कचरे के ढेर से संगीत चुनकर निकालने वाले इन बच्चो ने मुंबई वासियों का दिल जीत लिया। और इन्ही में से एक थे मुंबई के रहने वाले युवा संगीतकार, अभिजीत जेजुरिकर जो इन बच्चो तथा विनोद के काम से इतने प्रभावित हुए कि इन्ही के साथ जुड़ गए तथा इन बच्चो को संगीत सिखाने लगे। जल्द ही इन बच्चो की बैंड ने मंच पर भी अपना सिक्का जमा लिया।

अब तक ये बच्चे करीब 50 बार मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन करके लोगो का दिल जीत चुके है। देश और विदेश के कई कलाकार अब इन बच्चो को संगीत सीखाने भी आते है।

Vinod Shetty with the children of Dharavi Rocks band
धारावी रॉक्स बैंड के बच्चो के साथ विनोद शेट्टी.

15 साल की शीतल राठौर कहती है, “धारावी रॉक्स ने मेरा आत्मविश्वास लौटा दिया है। मंच पर जाना हम जैसे बच्चो के लिए बहुत बड़ी बात है। हम कई कलाकारों से भी मिले, जैसे शाहरुख़ खान, सलमान खान और कटरीना कैफ और उन सभी ने हमे और ज्यादा प्रोत्साहन दिया। कई संगीतकारों ने वर्कशॉप के ज़रिये हमे संगीत सिखाया। हमारे गुरु, संगीता राव और अभिजित सर ने हमे अनुशासन और संयम में रहना सिखाया। हम इन सबके लिए विनोद सर और एकोर्न फाउंडेशन के हमेशा ऋणी रहेंगे, जिन्होंने धारावी से आये हम जैसे गरीब बच्चो पर इतना विश्वास किया और हमे एक नयी ज़िन्दगी दी।”

इस बैंड की एक और ख़ास बात ये है कि थोड़े समय के बाद जैसे ही ये बच्चे स्वावलंबी हो जाते है, तो इनकी जगह नए बच्चो को दे दी जाती है। ऐसा करने से इन्हें जो शोहरत मिल रही है उसका इनपर गलत असर भी नहीं पड़ता और नए बच्चो को भी मौक़ा मिलता है।

विनोद का कहना है कि इस बैंड के ज़रिये ये बच्चे सिर्फ संगीत ही नहीं फैला रहे बल्कि कचरे को रीसायकल करके दुबारा इस्तेमाल करने की भी जागरूकता फैला रहे है।

और अब वक़्त है धारावी रॉक्स के इस ज़बरदस्त संगीत को सुनने का –

यदि आप भी चाहे तो dharaviproject@gmail.com पर संपर्क करके इन बच्चो को प्रोत्साहन दे सकते है।

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें contact@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter (@thebetterindia) पर संपर्क करे।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X