यह सच है कि कोई भी अकेला पूरी दुनिया में बदलाव नहीं ला सकता है। लेकिन, अगर आप एक बदलाव की पहल करें और लोगों को इससे जोड़ें तो यकीनन कुछ हद तक, आप एक बेहतर समाज बना सकते हैं। दिल्ली में ‘वीरजी का डेरा’ संगठन भी कुछ ऐसा ही काम कर रहा है। पिछले 31 सालों से यह संगठन दिल्ली में, बेसहारा और जरूरतमंदों के लिए एक मसीहा बना हुआ है। संगठन के स्वयंसेवी कार्यकर्ता शहर में 25 अलग-अलग जगहों पर, हर रोज गरीब लोगों में लंगर (Free Food for all) बांटते हैं। साथ ही, इस डेरे द्वारा बीमार तथा घायल लोगों को चिकित्सा सुविधा भी प्रदान की जाती है।
साल 1989 में इस संगठन की शुरुआत स्वर्गीय त्रिलोचन सिंह ने की थी और आज उनके दोनों बेटे, ब्रिगेडियर प्रेमजीत सिंह और कमलजीत सिंह इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। ब्रिगेडियर प्रेमजीत सिंह, जो हाल ही में भारतीय सेना से सेवानिवृत हुए हैं और कमलजीत सिंह अपना निजी व्यवसाय करते हैं। त्रिलोचन सिंह साल 1937 में म्यांमार में जन्मे थे लेकिन बाद में, परिवार के साथ दिल्ली आ गए। यहां उन्होंने पढ़ाई की और पूसा संस्थान में उन्हें नौकरी मिल गयी। नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने अपना जीवन बेसहारा और जरूरतमंद लोगों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
उनके मुताबिक, किसी जरूरतमंद की सेवा ही सच्ची सेवा है। इसी विचार से उन्होंने दिल्ली स्थित शीशगंज गुरूद्वारे के पास बैठने वाले गरीब और लाचार लोगों की मदद करना शुरू किया था। वह नियमित रूप से गुरूद्वारे में झाड़ू लगाने जाते थे। फिर, इन लोगों को लंगर बांटते थे। अगर उन्हें कोई भी व्यक्ति घायल दिखता था तो वह तुरंत उसकी मरहम पट्टी करते थे। भले ही, घाव कितना भी पुराना या बदबूदार क्यों न हो, वह कभी भी किसी की मदद करने से पीछे नहीं हटते थे। इसी कारण, लोग उन्हें ‘वीरजी’ के नाम से बुलाने लगे और धीरे-धीरे उनके काम से जुड़ने लगे।
जैसे-जैसे लोग बढ़े, उनका काम बढ़ा, एक संगठन बना और नाम पड़ा ‘वीरजी का डेरा’।
साल 2010 में उनकी मृत्यु के बाद, उनके बेटों ने इस सेवा की जिम्मेदारी ले ली।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए, कमलजीत बताते हैं कि उन्होंने अपने पिता को पूरी निष्ठा से लोगों की सेवा करते हुए देखा है और वही सीखा है। उनका मानना है, किसी की मदद करने के लिए पैसों से ज्यादा मन में सेवाभाव होने की जरूरत होती है। इस संगठन को चलाने वाले हम अकेले नहीं है बल्कि सैकड़ों ऐसे लोग हमसे जुड़े हुए हैं, जो सच्चे मन से मदद करना चाहते हैं।
खाने के साथ बांटते हैं दवाइयां भी:
कमलजीत बताते हैं, “हम हर रोज लोगों को लंगर बांटते हैं, जिसमें हम उन्हें दाल, रोटी और चावल देते हैं। लंगर एक जगह पर तैयार किया जाता है। यहां से कार्यकर्ता शहर में 25 अलग-अलग जगहों पर, इस लंगर को लोगों में बांट कर आते हैं। हर दिन, हम हजारों लोगों को खाना खिला रहे हैं। इसके अलावा, कार्यकर्ता अपने साथ कुछ दवाइयां जैसे- बुखार की दवाई, विटामिन कैप्सूल तथा मरहम-पट्टी आदि अपने साथ रखते हैं। अगर उन्हें कहीं भी कोई बेसहारा, चोटिल या बुखार में मिलता है तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेकर, उनकी मदद की जाती है।”
चिकित्सा सेवा के लिए, डॉ. ताहिर हुसैन और डॉ. डीसी अग्रवाल उनके साथ कई वर्षों से काम कर रहे हैं। इनके अलावा, दो और डॉक्टर व दो नर्स भी उनके साथ जुड़ी हुई हैं। कुछ कार्यकर्ता डॉक्टर तथा नर्स की टीम के साथ भी होते हैं, जो उनकी मदद करते हैं। हर दिन एक से दो घंटे तक, फुटपाथ पर बेसहारा पड़े 100 से ज्यादा मरीजों का इलाज किया जाता है।
डॉ. ताहिर बताते हैं कि वह इस संगठन से लगभग 13 सालों से जुड़े हुए हैं। इन 13 सालों में कभी इस डेरे की सेवा नहीं रुकी। हर दिन लोगों को खाना मिलता है और हर दिन घायल मरीजों का इलाज किया जाता है। डॉ. ताहिर खुद कई जगहों पर जाकर मरीजों का इलाज करते हैं। इन मरीजों में बेघर, बेसहारा लोगों के साथ-साथ दिहाड़ी-मजदूरी करने वाले गरीब लोग भी शामिल होते हैं। ये लोग इलाज और दवाइयों का खर्च नहीं उठा सकते हैं। इसलिए, ये लोग डेरा के कार्यकर्ताओं के पास मदद की उम्मीद से पहुँचते हैं।
एक प्राइवेट डिस्पेंसरी में काम करने वाले डॉ ताहिर कहते हैं, “अगर कोई घायल व्यक्ति हमारे पास आता है तो हम उसे फर्स्ट-एड देते हैं और अस्पताल पहुंचाते हैं। बहुत से बेघर, जो किसी बीमारी से जूझ रहे होते हैं, ऐसे लोगों को हम दशरथपुरी इलाके में डेरा द्वारा चलाए जा रहे एक चिकित्सा केंद्र में भेजते हैं। वहां इनका चेकअप करके, इन्हें सरकारी अस्पतालों से सही इलाज दिलवाया जाता है। हमने बहुत से लोगों का मोतियाबिंद का ऑपरेशन, दातों की सर्जरी आदि भी कराई है।”
लॉकडाउन में भी नहीं रुकी सेवा:
कमलजीत आगे बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान भी उनका काम नहीं रुका था। उन्होंने लगातार लंगर और चिकित्सा सेवा जारी रखी। इस दौरान उन्होंने प्रशासन के साथ मिलकर काम किया। सभी बेघरों और पलायन करके दिल्ली आये हुए मजदूरों को प्रशासन ने सरकारी स्कूलों में ठहराया था। इन सभी जगहों पर ‘वीरजी का डेरा’ संगठन ने लंगर सेवा उपलब्ध कराई थी।
उनके मुताबिक, लॉकडाउन में उन्होंने हर दिन लगभग 10, 000 लोगों को खाना खिलाया था। जहां भी दिल्ली पुलिस या प्रशासन को भोजन या दवाइयों के लिए मदद की जरूरत पड़ी, संगठन के कार्यकर्ताओं ने उनकी मदद की।
अब भी वह हर दिन एक हजार से ज्यादा लोगों को खाना खिला रहे हैं।
वह आगे कहते हैं, “हमारे साथ लगभग 300 परिवार जुड़े हुए हैं, जो राशन से लेकर सेवा करने तक, हर तरह से मदद करते हैं। हम कभी किसी से पैसे नहीं लेते हैं बल्कि लोग दाल, चावल, आटा, दवा जैसी चीजों से हमारी मदद करते हैं। जब हम अलग-अलग इलाकों में बेसहारा लोगों तक पहुँचते हैं तो उन्हें समझाने में, उनका विश्वास हासिल करने में थोड़ी समस्या आती है। लेकिन, किसी साधन को लेकर हमें कभी भी कोई समस्या नहीं आई है और इसका पूरा श्रेय इन निःस्वार्थ कार्यकर्ताओं को जाता है, जो दिन-रात मदद करने के लिए तैयार रहते हैं।”
सभी कार्यकर्ता समूहों में काम करते हैं। अलग-अलग दिन और जगह के हिसाब से कार्यकर्ताओं ने समूह बनाये हुए हैं। एक समूह लंगर तैयार करता है तो दूसरा समूह इसे बांटने जाता है। चिकित्सा सेवा के लिए अलग-अलग समूह हैं जो डॉक्टरों के साथ काम करते हैं। इस तरह, उनका काम कभी नहीं रुकता है।
संगठन से जुड़े एक कार्यकर्ता, 25 वर्षीय अभिषेक गुप्ता बताते हैं, “मैं डेरा से साल 2014 से जुड़ा हुआ हूँ और हर दिन हम सब, लोगों की सेवा करते हैं। हम निजामुद्दीन इलाके की तीन जगहों पर जाते हैं, जहां हम हर दिन 50 से 70 बीमार लोगों की दवा तथा मरहम-पट्टी करते हैं। इसके बाद, हम लगभग 300 लोगों में लंगर बांटते हैं।”
अभिषेक कहते हैं, “यहाँ हर धर्म के लोग सेवा करने के लिए आते हैं। यह काम करके दिल को जो खुशी और संतुष्टि मिलती है, वह आपको कहीं और नहीं मिल सकती।”
करते हैं खेती भी:
कमलजीत आगे बताते हैं कि उन्होंने पिछले कुछ सालों से दिल्ली के नजदीकी ग्रामीण इलाकों में कुछ जमीनें किराये पर ली हुई हैं। वह कुछ किसानों के साथ मिलकर इन जमीनों पर गेहूं, चावल और बाजरे की खेती करते हैं। यहां जो भी उपजता है, उसका इस्तेमाल लंगर बनाने के लिए किया जाता है। वह बताते हैं, “इस अभियान में हमारे साथ कुछ किसान जुड़े हुए हैं, जो खेतों की देखभाल करते हैं। लेकिन, हम लोग भी यहां से समूहों में जाकर, वहां बुवाई और कटाई के समय काम कराते हैं।”
खेतों से फसल की कटाई के बाद जो पराली बचती है, उनसे वह जानवरों के लिए चारा बनवाते हैं। इस चारे को धौज (Dhouj) की एक गौशाला में भेजा जाता है। चारे के बदले, गौशाला से उन्हें दूध मिलता है। इस दूध से वह बेसहारा और जरूरतमंदों के लिए हर सुबह चाय का इंतजाम करते हैं।
वह कहते हैं, “यह पूरा काम एक-दूसरे के सहयोग से चल रहा है। हमसे बहुत से लोग निःस्वार्थ भाव से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा, कुछ लोग हैं जो हमारी मदद लेकर, आज अच्छा जीवन जी रहे हैं और लोगों की सेवा कर रहे हैं। इससे बेहतर क्या होगा कि हमें न तो कभी साधनों की कमी हुई है और न ही मदद करने वाले हाथों की।”
दिन-रात लोगों की सेवा करने के बाद भी, संगठन के लोगों को किसी सम्मान या पुरस्कार की लालसा नहीं है। अगर कभी उन्हें किसी सम्मान के लिए बुलाया भी जाता है तो वे नहीं जाते हैं। कमलजीत कहते हैं कि उन्हें किसी की सेवा करने का मौका मिल रहा है, जो बहुत बड़ी बात है। इसके अलावा, उन्हें किसी और चीज की जरूरत नहीं है।
अगर आप कमलजीत से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें 9810458567 पर कॉल कर सकते हैं।
मूल लेख: विद्या राजा
संपादन – प्रीति महावर
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