भारत में हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर होती है। लोग खेतों में गन्ने से गुड़ तो बना लेते हैं, लेकिन उसकी खोई यूं ही बर्बाद हो जाती है। कई लोग इसे खेतों में ही जला देते हैं, जिससे काफी प्रदूषण फैलता है।
लेकिन आयोध्या के रहनेवाले वेद कृष्णा ने गन्ने की खोई (Sugarcane Waste) से बड़े पैमाने पर बायोडिग्रेडेबल कप, प्लेट, कटोरी और पैकेजिंग मटेरियल बनाना शुरू कर दिया है। उनका यह आइडिया देश के लाखों गन्ना किसानों के लिए आमदनी का एक नया स्त्रोत बन सकता है।
वेद अपने वेंचर ‘यश पक्का’ के तहत हर साल दो लाख टन से अधिक गन्ने के वेस्ट (Sugarcane Waste) को प्रोसेस करते हैं। इससे वह इको फ्रेंडली सामान बनाते हैं। आज उनका दायरा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब से लेकर मिस्त्र और मैक्सिको जैसे देशों में भी फैला हुआ है। वहीं, उनका सालाना टर्नओवर करीब 300 करोड़ का है।
पिता ने रखी थी नींव
वेद के पिता केके झुनझुनवाला एक बिजनेसमैन थे। वह पहले चीनी मिल चलाते थे, लेकिन परिवार के बंटवारे के बाद, उनके हिस्से से यह चला गया। इसके बाद, उन्होंने 1981 में ‘यश पक्का’ की शुरुआत।
इस कड़ी में वेद कहते हैं, “मेरे पिताजी समय से बहुत आगे थे और उन्होंने 1985 के आस-पास ही गन्ने की खोई (Sugarcane Waste) से गत्ता और कागज बनाना शुरू कर दिया था। इतना ही नहीं, 1996 तक उन्होंने अपने बिजनेस को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने 8.5 मेगावाट का पावर प्लांट भी लगाया था, जिसमें कोयले की जगह बायोमास का इस्तेमाल होता है।”
लेकिन इसी बीच वेद के पिता की एक हार्ट सर्जरी हुई और धीरे-धीरे उनका बिजनेस कमजोर होता गया। यह देख लंदन मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी से एडवेंचर स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की पढ़ाई कर चुके वेद ने लंदन की सुख-चैन की जिंदगी छोड़, अपने पिता के पास लौटने का फैसला किया।
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46 वर्षीय वेद कहते हैं, “मैं अपने पिताजी के विचारों से काफी प्रभावित था और 1999 में लंदन में अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद, मैं पिताजी के काम को संभालने भारत आ गया। मैंने उनके साथ 3 वर्षों तक काम सीखा। फिर, वह इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़कर चले गए।”
इसके बाद, कंपनी की पूरी जिम्मेदारी वेद के कंधों पर आ गई। उस समय कंपनी का कारोबार करीब 25 करोड़ था, लेकिन वेद के इरादे इससे कहीं ज़्यादा बड़े थे। उन्होंने तय किया कि इस बिज़नेस को आगे बढ़ाने के लिए वह 85 करोड़ का निवेश करेंगे।
लेकिन जब वेद इस प्रस्ताव को लेकर लेकर वेद बैंकों में जाते, तो कोई उन्हें संजीदगी से नहीं लेता। हर कोई उनकी इस ऊँची सोच की खिल्ली उड़ाता। लेकिन वेद ने हौसला नहीं खोया और धीरे-धीरे अपने काम के दम पर अधिकारियों का भरोसा जीतना शुरू कर दिया। यह उनकी ज़िद और लगन का ही नतीजा था कि कुछ ही वर्षों में उनका कारोबार 117 करोड़ का हो गया।
टर्निंग प्वाइंट
2010 के बाद से देश में प्लास्टिक के खतरों को लेकर काफी जागरूकता फैली है। इस दौरान, वेद ने भी महसूस किया कि वे गन्ने की खोई से पेपर तो बना ही रहे हैं, तो क्यों न अपने दायरे को और बढ़ाया जाए।
इसके बाद, उन्होंने गन्ने के वेस्ट (Sugarcane Waste) का इस्तेमाल फूड सर्विस में करने का फैसला किया। वेद ने इस प्रोसेस को सीखने के लिए चीन और ताइवान जैसे देशों का भी दौरा किया और वहां से आठ मशीनें मंगवाई। फिर, अपनी टीम को बढ़ाते हुए, उन्हें गन्ने के वेस्ट से फाइबर निकालने और इको फ्रेंडली सामान बनाने की सीख दी।
इस तरह 2017 में वेद ने ‘चक’ नाम के एक नए ब्रांड को जन्म दिया। इसके तहत वह फूड कैरी, पैकेजिंग मटेरियल और फूड सर्विस मटेरियल, जैसे तीन तरह के उत्पाद बना रहे हैं, जो प्लास्टिक और थर्मोकोल का एक बेहतर विकल्प है।
वेद फिलहाल हर दिन 300 टन से अधिक गन्ने के वेस्ट को प्रोसेस करते हैं। उनकी, आयोध्या में अपनी एक यूनिट है और वह जयपुर, जालंधर, केरल के अलावा मिस्त्र और मैक्सिको के कारोबारियों के साथ फ्रेंचाइजी मॉडल पर काम कर रहे हैं। अपनी इस कंपनी में आज उन्होंने 1500 लोगों रोज़गार भी दिया है ।
उनके ग्राहकों में हल्दीराम, मैकडॉनल्ड्स, चाय प्वाइंट जैसी कई फूड कंपनियों के नाम शामिल हैं । इसके अलावा उनके उत्पाद अमेजन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध हैं।
मंज़िलें अभी और भी हैं ….
वेद गन्ने के वेस्ट को फिलहाल चीनी मिलों से लेते हैं।
वह कहते हैं, “मेरे बिजनेस से फिलहाल किसानों को सीधे तौर पर तो फायदा नहीं हो रहा है। लेकिन हमारा इरादा अगले 5 वर्षों में अपने बिजनेस को 10 गुना बढ़ाने का है। इससे किसानों की आमदनी पर निश्चित रूप से काफी फर्क पड़ेगा।”
इस कड़ी में अपना अगला कदम बढ़ाते हुए, वह जल्द ही फ्लेक्सिबल पैकेजिंग की ओर रुख करने वाले हैं।
वेद कृष्णा के साथ रैपिड फायर राउंड
शौक
- ट्रैकिंग, घूमना, गाने सुनना
पसंदीदा किताबें
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- चंगेज खान एंड मेकिंग ऑफ दी मॉडर्न वर्ल्ड (वेदरफोर्ड) -अमेजन पर खरीदने के लिए यहां क्लिक करें।
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आप यश पक्का से यहां संपर्क कर सकते हैं।
संपादन – मानबी कटोच
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