कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर एक पोस्ट काफी वायरल हुई, जिसमें बताया गया था कि दूध के पैकेट को खोलते समय आप इसे कोने से पूरा न काटें, बल्कि इसे हल्का-सा काटें ताकि पैकेट से वह छोटा-सा टुकड़ा भी कचरे में न जाए। क्योंकि प्लास्टिक पैकेट के ये छोटे-छोटे टुकड़े भी पर्यावरण और हमारे पशु-पक्षियों के लिए हानिकारक हैं।
आजकल शहरों में लगभग सभी घरों में पैकेट का दूध आता है। अब आप कल्पना कीजिये कि अगर प्लास्टिक पैकेट का वह छोटा सा टुकड़ा हर दिन हर एक घर से पर्यावरण में जा रहा है तो इसका प्रभाव कितने बड़े स्तर पर होगा। बहुत से लोगों ने इस सोशल मीडिया पोस्ट को अनदेखा भी किया होगा लेकिन मुंबई में इस एक पोस्ट की वजह से कुछ महिलाओं ने मिलकर एक अनोखे अभियान की शुरुआत की है।
मुंबई में रहने वाली कुंती ओज़ा, हंसू पारडीवाला और चित्रा हिरेमठ ने 2019 में ‘Milk Bag Project’ की शुरुआत की थी। इन महिलाओं ने इसकी शुरुआत सबसे पहले अपने-अपने घरों से की और फिर अपनी सोसाइटी में लोगों को जागरूक किया। अब मुंबई के अलग-अलग इलाकों से लोग इन्हें दूध के खाली पैकेट्स भेजते हैं, जिसे रीसाइक्लिंग यूनिट्स भेजा जाता है।
अपने इस अभियान के बारे में बात करते हुए कुंती ओज़ा ने बताया, “हम सबने एक व्हाट्सऐप फॉरवर्ड देखा, जिसमें बताया गया था कि अगर दूध के पैकेट को सही से काट कर इस्तेमाल किया जाए तो हम बहुत हद तक प्रदूषण रोक सकते हैं। यह कोई बड़ा काम नहीं है। जरूरत है सिर्फ एक छोटी-सी आदत बदलने की। हम सबने आपस में इस बारे में चर्चा की और फिर सोचा कि क्यों न हम मिलकर यह काम करें।”
ये सभी महिलाएं पहले से ही पर्यावरण संरक्षण और कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में काम कर रही हैं। हंसू ‘हर घर, हरा घर‘ संगठन से जुड़ी हैं, तो कुंती ‘क्लीन मुंबई फाउंडेशन‘ से और चित्रा, ‘गार्बेज फ्री इंडिया‘ से जुड़ी हुई हैं। इन महिलाओं ने बताया, “हम एक ही एरिया में रहते हैं और हमारा कार्य क्षेत्र भी लगभग एक जैसा है। इसलिए हम अपने इलाके में अक्सर लोगों को कचरा प्रबंधन के लिए जागरूक करते रहते हैं। हमने जब दूध के पैकेट वाला पोस्ट देखा तो सोचा कि क्यों न इस बार भी मिलकर यह प्रोजेक्ट किया जाए।”
अपने घर से की शुरुआत, फिर लोगों को जोड़ा
उन्होंने इस काम की शुरुआत सबसे पहले अपने घरों से की और मिलकर एक वीडियो तैयार किया, जिसमें बताया गया कि कैसे आपको दूध का पैकेट काटना है और फिर इसे धोकर, सुखाकर इकट्ठा करते रहना है। हर महीने उनकी टीम लोगों के घरों से दूध के खाली पैकेट इकट्ठा करेगी या फिर अगर कोई खुद उनके पास इन्हें भेजना चाहता है तो भेज सकता है। इन पैकेट्स को इकट्ठा करके बड़ी संख्या में रीसाइक्लिंग यूनिट्स पर दिया जाता है। “हमने यह वीडियो अपने सोसाइटी ग्रुप्स और अन्य व्हाट्सऐप ग्रुप्स में डाला ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को पता चले,” चित्रा ने कहा।
हालांकि, उनकी राह इतनी आसान नहीं थी। क्योंकि लोगों को अगर जागरूक किया भी जाये तो भी उनकी आदतों में बदलाव लाना आसान काम नहीं है। लेकिन उन्होंने मिलकर काम किया और धीरे-धीरे उन्हें दूसरे लोगों से भी अच्छी प्रतिक्रिया मिलने लगी। इसके बाद उन्होंने एक रीसायकलर से संपर्क किया। लेकिन समस्या यह थी कि रीसायकलर कम मात्रा में कचरा नहीं लेते हैं। इसलिए कुछ समय तक इन दूध के पैकेट्स को उन्हें अपने पास ही इकट्ठा करना था। इन महिलाओं ने मिलकर एक जगह का इंतजाम किया, जहां वे पैकेट्स इकट्ठा करने लगी।
जब काफी ज्यादा मात्रा में पैकेट्स हो जाते हैं तो इन्हें वे रीसायकलर के पास पहुंचाती हैं। उन्होंने आगे कहा, “जब इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया तो हमने ध्यान दिया कि कचरा बीनने वाले भी दूध के पैकेट्स इकट्ठा नहीं करते हैं। क्योंकि शायद उन्हें पता नहीं है कि इन्हें भी वे बेच सकते हैं।”
अब तक किए हैं साढ़े सात लाख से ज्यादा दूध के पैकेट इकट्ठा
हंसू कहती हैं कि लगभग दस महीने तक उनका यह प्रोजेक्ट अच्छा चला और हर महीने लोग उनसे जुड़ने लगे। लेकिन 2020 में लॉकडाउन के दौरान उनका काम रुक गया। ऐसे में, उन्होंने लोगों को सलाह दी कि वे अपने घरों में ही दूध के खाली पैकेट इकट्ठा करना जारी रखें। हालांकि, कोरोना महामारी में लोग और भी कई तरह की परेशानियों से जूझ रहे थे। इसलिए कुछ समय तक उन्होंने ब्रेक लिया। लेकिन जैसे-जैसे परिस्थिति सामान्य हुई उन्होंने एक बार फिर जोर-शोर से अपना काम शुरू कर दिया।
मिल्क बैग प्रोजेक्ट की टीम अब तक साढ़े सात लाख से ज्यादा दूध के प्लास्टिक पैकेट्स को कचरे में जाने से रोक चुकी है। इन सभी पैकेट्स को उन्होंने रीसाइक्लिंग यूनिट्स को दिया है। “इन यूनिट्स पर सबसे पहले इन पैकेट्स को अच्छी तरह से धोया जाता है। फिर इन्हें सुखाकर मशीन में छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते हैं। इसके बाद इन्हें प्रोसेस करके प्लास्टिक ग्रैन्युल बनाए जाते हैं। इन रीसाइकल्ड प्लास्टिक ग्रैन्युल का प्रयोग गार्बेज बैग बनाने से लेकर और भी कई तरह के उत्पाद बनाने में किया जा रहा है,” उन्होंने कहा।
गौरतलब है कि पर्यावरण को प्रदूषित करने में सबसे अधिक योगदान प्लास्टिक का ही है। आंकड़ों के अनुसार विश्व में बनने वाला लगभग 79% प्लास्टिक हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करता है। इसमें से सिर्फ 9% ही रीसायकल हो पाता है। बात अगर भारत की करें तो हमारे देश में भी रीसाइक्लिंग बहुत बड़े स्तर पर नहीं होती है। लेकिन अगर ज्यादा से ज्यादा प्लास्टिक के कचरे को रीसायकल करके फिर से इस्तेमाल में लिया जाए तो नए प्लास्टिक का उत्पादन काफी हद तक कम हो सकता है। साथ ही, पर्यावरण में प्लास्टिक प्रदूषण को भी बड़े स्तर पर कम किया जा सकेगा। ऐसे में इन महिलाओं का यह प्रोजेक्ट इस दिशा में छोटा ही सही लेकिन महत्वपूर्ण कदम है।
उनके इस अभियान के बारे में जानकर दूसरे शहरों के लोग भी उनसे संपर्क कर रहे हैं। “हमें और भी कई शहरों के लोगों ने सम्पर्क किया और कहा कि वे भी इस अभियान से जुड़ना चाहते हैं। इन सभी लोगों से हम सिर्फ यही कहते हैं कि आप अपने घर में शुरुआत करें और फिर अपने मोहल्ले के लोगों को जागरूक करें। एक-एक कदम आगे बढ़ाएं और खुद इस प्रोजेक्ट को अपने इलाके में रेप्लिकेट करें। तभी हम बदलाव ला पाएंगे,” उन्होंने अंत में कहा।
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है और आप अपने इलाके में इस काम को करना चाहते हैं तो themilkbagproject@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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