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राजस्थान: घर में जगह नहीं तो क्या? सार्वजानिक स्थानों पर लगा दिए 15,000 पेड़-पौधे

Anupama Tree-woman

जयपुर की अनुपमा तिवाड़ी, पिछले 12 साल से पौधे लगा रही हैं। अब तक उन्होंने 15000 से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं। उनके जीवन का लक्ष्य एक लाख पेड़-पौधे लगाना है।

“पौधे बिल्कुल मेरे बच्चों जैसे हैं, इन्हे कोई तोड़ता या उखाड़ता है, तो मैं परेशान हो जाती हूँ।” यह कहना है जयपुर की रहने वाली अनुपमा तिवाड़ी का। 55 वर्षीया अनुपमा, जयपुर में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन में हिंदी विषय की ट्रेनर हैं। वह राजस्थान में अब तक, 15 हजार से ज्यादा पेड़-पौधे लगा चुकी हैं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहती हैं, “मेरे पिता विजय कुमार तिवाड़ी, राजस्थान में दौसा जिले के बांदीकुई कस्बे में रेलवे में एक मेलगार्ड थे। मेरा सारा बचपन रेलवे के एक बंगले में बीता है, जहां हमारे आँगन में नीम, सुरेल और अरडू के ऊँचे-ऊँचे पेड़ थे। इनके अलावा कचनार, चाँदनी, मोगरा, गुलाब, मधुमालती, चमेली जैसे तमाम ऐसे फूल थे, जिनके नाम भी मैं बचपन में नहीं जानती थी। तब हमारे घर में बैंगन, टमाटर, गोभी भी खूब उगते थे।”

वह कहती हैं कि, “बचपन में हमारे घर में मांग्या बाबा (माली) आते थे, जो बहुत ख़ुशी-ख़ुशी बागवानी करते थे। घर में माली होने के बावजूद, मेरे पिता फावड़ा चलाते, खुरपी से सुंदर-सुंदर क्यारियाँ बनाते और पेड़ों के किनारे बहुत बढ़िया थांवले बनाते थे। घर में लगे चार झूलों में से दो झूले तो पेड़ों पर ही लगे थे।”

अनुपमा बचपन से ही पेड़ों की देखभाल करती रही हैं। पेड़ों में पानी डालना, उनके बारे में तमाम जानकारियां जुटाना, ये सब उन्हें हमेशा से ही बहुत पसंद है। बागवानी करना उनके लिए एक थेरेपी की तरह है। लगभग 32 वर्ष पहले उनका परिवार जब जयपुर में बस गया, तो उनका बागवानी का शौक गमलों तक ही सिमट कर रह गया। 

शहर हरा भरा बनाने का जुनून  

Tree-woman

शादी के बाद, अनुपमा अपने पति कमल शर्मा के साथ, एक फ्लैट में रहती थीं। लगभग 12 साल पहले जयपुर में उनका अपना एक नया घर बना था। उन दिनोंबहुत छोटी सी जगह में भी उन्होंने अमरूद, अनार, नींबू और चीकू के पेड़ लगाए तथा छत पर गार्डन बनाया। 

वह ढाबों से राख लाकर, गन्ने, भुट्टे और नारियल के छिलकों से खाद बनाती थीं। वह हमेशा यही सोचती रहती थी कि बागवानी के लिए, उन्हें और क्या-क्या करना चाहिये? वह घर में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग बागवानी के लिए करती थीं। इस दौरान, उनके पति और बच्चों ने भी बागवानी करने में उनकी बहुत मदद की। 

अनुपमा सरकारी स्कूलों में, शिक्षकों को हिंदी की ट्रेनिंग देती हैं। उन्होंने अपनी पोस्टिंग के दौरान, राजस्थान के टोंक तथा निवाई में भी कुछ समय काम किया है। वह जहां भी जाती हैं, पौधारोपण जरूर करती हैं। एक बार, गर्मियों की छुट्टियों में वह कुन्दनपुर गई थीं। अनुपमा वहां गाँव में, बच्चों के लिए कुछ किताबें ले गईं। साथ ही, उनके साथ मिलकर उन्होंने स्कूलों में पौधारोपण भी किया। 

वह बताती हैं, “मैंने सबसे पहले अपने मोहल्ले के एक बंजर पार्क में 30 पौधे लगाए थे। मैं रोजाना पौधों में पानी डालती और उनकी देखभाल करती थी। लेकिन छह महीने बाद, एक बकरी चराने वाला अपनी बकरियां पार्क में ले आया। इस तरह, बकरियों ने सारे पौधे चर लिए और एक भी पौधा नहीं बचा। लेकिन, मैंने हार नहीं मानी और पार्क में फिर से पौधे लगाए।” 

वह अपने मोहल्ले में अक्सर लोगों की जरूरत के हिसाब से उन्हें पौधे बांटती रहती हैं। उन्होंने बताया, “12 साल पहले मैंने अपने घर की गली में 17 पौधे लगाए थे, अब उनमें से सिर्फ चार पेड़ बचे हैं और वृक्ष बन चुके हैं।” अब तक उन्होंने कई जगहों जैसे- स्टेडियम, बस स्टैंड, पुलिस चौकी, सड़क के किनारे, तालाब के किनारे, ऑफिस, सरकारी और निजी स्कूलों, कॉलेज, अस्पताल, लोगों के घरों में कुल 15,230 पेड़-पौधे लगाए हैं। 

Anupama Tiwadi

अनुपमा ने इन जगहों पर बरगद, पीपल, गूलर, नीम, सुरेल, अर्जुन, गुलमोहर, मेहंदी, सदाबहार, चाँदनी, गुड़हल, बेलपत्र, सीताफल, अनार, अमरुद, आँवला, जामुन और कचनार जैसे पौधे लगाए हैं। वह जहां भी पौधे लगाती हैं, उन पौधों की देखभाल से जुड़ी बातों के बारे में, सम्बंधित लोगों से पता करती रहती हैं। इसलिए, वे लोग उन्हें पेड़ में लगे फूलों और फलों की तस्वीरें भेजते रहते हैं। अनुपमा के लगाये पौधों में से, अब तक 3600 से अधिक पेड़ स्वस्थ हैं। कई पेड़ों में तो अब, गूलर, आँवले, जामुन, अमरूद, सीताफल, अनार जैसे फल भी आने लगे हैं। 

अनुपमा ने बताया कि जब वह गर्मियों के दिनों में सड़को पर पेड़ लगाती थीं, तो लोग उन्हें पागल समझते थे। लेकिन, वह लोगों की ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देती थीं। आज सड़क किनारे उनके लगाए, नीम और गुलमोहर की छाया में कई सब्जी वालों ने अपनी दुकानें लगाई हुई हैं। मजदूर उन पेड़ों की शाखाओं पर अपने कपड़े टांगते हैं तथा वहीं विभिन्न पक्षियों के झुंड बैठते हैं। इन पेड़ों की छांव न सिर्फ राहगीरों को राहत दिलाती है, बल्कि जानवर भी इनकी छांव तले आराम से बैठते हैं। ऐसे दृश्यों को देख अनुपमा कहती हैं, “मुझसे कई बार लोग पूछते हैं कि आप ये सब क्यों करती हैं? आपको इससे क्या फायदा होता है? तो मैं इन दृश्यों को ही अपना फायदा बताती हूँ।”

लक्ष्य की चुनौतियां 

अनुपमा कहती हैं कि सार्वजनिक जगहों पर पेड़-पौधों को लगाकर, उनकी देखभाल करना बहुत मुश्किल काम है। वह कहती हैं, “कई बार मैं पौधे लगाती और कुछ दिनों बाद, वहां जाकर देखती थी, तो पौधे वहां नहीं मिलते थे। जिसके समाधान के रूप में मैंने अलग-अलग पोस्टर बनाने शुरू किये। मैंने उन पोस्टरों में, पेड़ से होने वाले फायदों के बारे में लिखना शुरू किया।” 

वह जहां-जहां पौधे लगातीं, उनके आसपास ये पोस्टर भी लगा देती थीं। कई स्थानीय अखबारों ने उनके इन कार्यों को देखकर, उनके बारे में लिखना शुरू किया। तभी से उन्हें ‘ट्री वुमन’ के नाम से पहचान मिलने लगी। 

वह पेड़ों को अपने बच्चों जैसा मानती हैं। उनका कहना है कि आज हम पेड़ों को काट रहे हैं और एसी (AC) से हवा ले रहे हैं। न सिर्फ इंसान बल्कि जानवर भी इनकी छांव में आसरा लेते हैं। साथ ही, इन पेड़ों पर ही हजारों पक्षी अपना घोंसला बनाते हैं। तितली, ततैया और मधुमक्खी जैसे कितने ही जीवों का आसरा होते हैं ये पेड़। 

अनुपमा बताती हैं, “नीम से इंसानों और जानवरों के लिए 165 प्रकार की औषधियाँ बनाई जा सकती हैं। सहजन के पेड़ में 300 से अधिक प्रकार के औषधिय गुण पाए जाते हैं।” वह कहती हैं कि एक बरगद की आयु, कम से कम 500 वर्ष तक होती है। ये पेड़ कितने पक्षियों का आसरा बनेंगे, न जाने कितने जानवर और राहगीर इसकी छांव में राहत महसूस करेंगे, इसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। इन पेड़ों द्वारा हमें शुद्ध हवा तथा साफ वातावरण के अलावा, भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन भी मिलती है। इसलिए, इनका संरक्षण करना बहुत ज्यादा जरूरी है।

rajasthan tree woman

सेवा ही धर्म

अनुपमा और उनके पति कमल शर्मा ने 2010 में, जयपुर के ‘सवाई मान सिंह मेडिकल कॉलेज’ में शरीर दान के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है। ताकि मरणोपरांत भी वे लोगो के काम आ सकें। वहीं, इस दंपति ने ‘आई बैंक’ में नेत्र दान के लिए भी रजिस्ट्रेशन किया है। अनुपमा अब तक 10 बार रक्तदान भी कर चुकी हैं।

वह प्रकृति और मानवता की सेवा को अपना धर्म मानती हैं। उन्होंने सेंट्रल जेल, किशोर गृह, वृद्धाश्रम जैसी जगहों पर हजार पुस्तकें दान की हैं। वह कहती हैं, “एक लाख पेड़-पौधे लगाना, मेरे जीवन का सबसे बड़ा और अंतिम लक्ष्य है।” ये सभी काम वह स्वयं के खर्चे से करती हैं। उनका मानना है कि पेड़-पौधों को पर्यावरण के हिसाब से विकसित करना जरूरी है।  

अनुपमा ने इस साल कुल 6,064 पेड़-पौधे लगाए हैं, जिनमें बरगद के पेड़ भी शामिल हैं। वह बरगद और पीपल को अपने पूर्वजों की तरह मानती हैं।

द बेटर इंडिया उनके जज्बे को सलाम करता है। अगर आप भी अपने आसपास पेड़ लगाने के लिए कोई जानकारी चाहते है, तो उन्हें anupmatiwari91@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन – प्रीति महावर

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