प्रदूषण से बिगड़ रहे हालात! छात्रों ने संभाली कमान, बेकार प्लास्टिक बॉटल्स में कर रहे खेती

Students Collect Over 30 KG Waste Plastic Bottles To Make DIY Hydroponics Planters

प्लास्टिक का कचरा, खासकर बोतलें पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा हैं। मुंबई में USB के दस छात्र इस कचरे से निपटने में जुटे हैं। प्लास्टिक की बोतलों को अपसाइकिल कर, वे ऐसे हाइड्रोपॉनिक प्लांटर बना रहे हैं जिसकी लागत काफी कम है और पानी भी ज्यादा खर्च नहीं होता।

अगर उमस भरी गर्मी हो, तो ऐसे में ठंडी कोल्ड ड्रिंक की बोतल से बेहतर क्या हो सकता है? और कोल्ड ड्रिंक पीने में कोई बुराई भी नहीं है। लेकिन ज़रा एक बार कोल्ड ड्रिंक की उस खाली बोतल के बारे में सोचिए, जिसे यू हीं फेंक दिया जाता है। क्या इसमें भी कुछ ग़लत नहीं? क्या आपको पता है कि दुनियाभर में हर मिनट में ऐसी दस लाख बोतलें खरीदी जाती हैं और इस्तेमाल के बाद कूड़े में फेंक दी जाती हैं।

इस बारे में गंभीरता से सोचना तब और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है, जब आप प्लास्टिक की बॉटल्स में आने वाले कोल्ड ड्रिंक का इस्तेमाल करते हैं।

प्लास्टिक बोतल को डीकंपोज होने में लगते हैं 450 साल

ज्यादातर प्लास्टिक, पेट्रोलियम को ऐसे पदार्थ में तब्दील करके बनाया जाता है, जिसे सूक्ष्मजीव नहीं पहचानते और यही कारण है कि प्लास्टिक को प्राकृतिक रूप से गलने में सैंकड़ो साल लग जाते हैं। कुल मिलाकर सफर में आपकी प्यास बुझाने वाली एक प्लास्टिक की बोतल को डीकंपोज होने में 450 साल लगते हैं और अपने इस पूरे जीवनकाल में वह पर्यावरण को किसी न किसी रूप में नुकसान पहुंचाते रहते हैं।

हो सकता है कि आपको हैरानी हो, लेकिन बहुत से सजग युवा अब बिगड़ते हालात की बाग-डोर अपने हाथों में ले रहे हैं और एक समय में एक बोतल मुहिम के जरिए इस समस्या से निपटने की कोशिश में लगे हैं।

यूनिवर्सल बिज़नेस स्कूल (यूबीएस) मुंबई के दस छात्रों ने प्लास्टिक की बोतलों को फिर से इस्तेमाल करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट ‘रूप’ पर अगस्त 2020 से काम करना शुरू किया। ENACTUS-UBS विंग के तहत शुरू किया गया यह प्रोजेक्ट ‘ROOP (रीसाइकल आवर ओन प्लास्टिक)’ एक कम लागत वाला मॉडल है। जिसमें PET प्लास्टिक बोतलों को फिर से इस्तेमाल कर हाइड्रपोनिक पॉट प्लांटर्स बनाया जाता है।

कैसे बनाते हैं हाइड्रोपोनिक्स प्लांटर्स?

रिसाइक्लिंग से निकलने वाले कचरे के उलट, अपसाइक्लिंग में बोतलों को उसके मूल रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कुछ नया बनाने के लिए उनको तोड़ने की लागत नहीं लगती।

ENACTUS के अध्यक्ष सुधर्मा कम्भामेट्टु बताते हैं, “एक बार में चार से पांच बोतलों का इस्तेमाल किया जाता है और उन्हें आधा काटकर, बोतल के ऊपरी हिस्से को उलटकर नीचे वाले हिस्से में डाल दिया जाता है। ऊपरी हिस्से में जूट भरकर प्लांट लगाए जाते हैं। हर बोतल के निचले हिस्से में दो छेद कर उसमें पाइप डाल दिया जाता है ताकि बोतल एक दूसरे से जुड़ी रहें और सभी को पानी का फ्लो मिलता रहे।”

इस अनोखे तरीके में न केवल प्लास्टिक का फिर से इस्तेमाल किया जाता है, बल्कि खेती के लिए मिट्टी की जरूरत को भी ये खत्म कर देता है। इस प्रोजेक्ट के प्रमुख हेट गौर कहते हैं, “ इन प्लांटर्स पर काम करते हुए हमें पता चला कि इसमें पौधों को बढ़ने के लिए ज्यादा पानी की जरुरत नहीं होती। मैं दो से तीन दिन के अंतराल पर पौधों को पानी देता था, उसके बावजूद उनकी उपज काफी अच्छी रही।”

रीडिजाइन टू रीयूज

ENACTUS एक गैर लाभकारी सामाजिक उद्यम है, जो छात्रों को सीखने के लिए एक प्लेटफार्म मुहैया कराता है। इसका उद्देश्य छात्रों को वर्ल्ड सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) के अनुरूप बिजनेस मॉडल बनाने में मदद करना है। इस मंच को एक अवसर मानते हुए छात्रों ने एक ऐसा प्रोडक्ट बनाने का फैसला लिया, जो ना केवल पर्यावरण के अनुकूल हो, बल्कि समाज को अपने तरीके से फायदा भी पहुंचा सके। 

सुधर्मा कहते हैं, “यहां फंडिंग चिंता का कारण हो सकती है, लेकिन छात्रों की रचनात्मकता इस समस्या से निपटने के लिए काफी है।” प्रोजेक्ट चलता रहे इसके लिए छात्रों ने ‘रीडिजाइन टू रीयूज’  इवेंट की मेजबानी की। इसमें 50 से ज्यादा सदस्यों ने हिस्सा लिया। टीम ने योजना के लिए जरूरी प्लास्टिक की बेकार बोतलों को इक्ट्ठा करने के लिए मुंबई और चेन्नई में दो स्वच्छता अभियान भी चलाए। 

उन्होंने अकेले इस अभियान के जरिए 30 किलो प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा किया है।

मूल लेखः-रिया गुप्ता

संपादनः अर्चना दुबे

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