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पक्षियों के लिए समर्पित की दो एकड़ जमीन, आते हैं 93 तरह के पक्षी

Birds Conservation

कर्नाटक में दक्षिण कन्नडा के रहने वाले नित्यानंद शेट्टी और उनकी पत्नी रम्या ने अपनी दो एकड़ जमीन पक्षियों के लिए समर्पित कर दी है। उनके लिए घोंसले, दाना-पानी की व्यवस्था करने के साथ-साथ दूसरों को कर रहे हैं जागरूक।

शहर तो शहर, अजकल गांव-घर में भी चिड़िया बहुत ही कम देखने को मिलती हैं। इसकी वजह स्पष्ट है- बड़ी-बड़ी इमारतों के बीच हम इन पक्षियों को उनका घोंसला देना भूल गए हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उन पक्षियों को वापस लाने की जद्दोज़हद में लगे हुए हैं। इन लोगों ने न सिर्फ अपने घर में, बल्कि पूरे इलाके में पक्षियों को वापस लाने के लिए अभियान छेड़ा हुआ है। आज हम आपको कर्नाटक के एक ऐसे ही शख्स से मिलवाने जा रहे हैं।

यह कहानी दक्षिण कन्नड़ जिला स्थित एलिअनाडुगोदु गांव के रहने वाले नित्यानंद शेट्टी और उनकी पत्नी, रम्या की है। इस दंपति ने ‘गोब्बाची गोडु’ मतलब ‘चिड़िया का घोंसला’ नाम से अपना अभियान चलाया हुआ है। जिसके तहत वह स्कूल-कॉलेज, अलग-अलग संगठनों में जाकर लोगों को पक्षियों की कम होती संख्या के बारे में जागरूक करते हैं। साथ ही, पक्षियों के रहने, खाने-पीने और नहाने के लिए घोंसला और मिट्टी के कटोरे भी बांटते हैं। आज उनके लगातार प्रयासों के कारण ही, एक बार फिर उनके इलाके में कई तरह के पक्षियों का कोलाहल सुनाई देने लगा है। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “हम सिर्फ अपने स्तर पर एक अभियान चला रहे हैं। यह कोई संगठन या कोई ट्रस्ट नहीं है, जिसमें हम दूसरों से फंडिंग लेकर काम करें। बल्कि हम दोनों पति-पत्नी अपनी खेती की कमाई से ही कुछ हिस्सा इस काम में भी लगाते हैं। अपने इस अभियान की शुरुआत हमने पहले अपने घर और खेतों से ही की थी। अब न सिर्फ अपनी तालुका में, बल्कि हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर जैसे कुछ राज्यों में भी हमें अपना संदेश पहुंचाने का मौका मिल रहा है।”

Karnataka Couple Saving Environment

पक्षियों के लिए समर्पित की दो एकड़ जमीन 

इकोनॉमिक्स में मास्टर्स करने वाले नित्यानंद और एमकॉम की डिग्री करने वाली रम्या पेशे से किसान हैं। उन्होंने बताया कि वे किसान परिवार से आते हैं और नौकरी की बजाय किसानी को पेशा बनाया है, ताकि अपनी जड़ों से जुड़े रह सकें। अपनी जमीन पर नित्यानंद और रम्या नारियल, सुपारी काली मिर्च जैसी फसलों की खेती करते हैं। इसके अलावा, वे मौसमी सब्जियां और कुछ आम-कटहल जैसे फलों के पेड़ भी लगा रहे हैं।

नित्यानंद कहते हैं, “मैंने हमेशा बचपन में माँ को आंगन में पक्षियों के लिए दाना-पानी रखते देखा था। हमारे घर में भी कई पक्षियों के घोंसले होते थे। लेकिन समय के साथ पक्षियों की तादाद कम होने लगी। इसके कई कारण हैं। लेकिन कारणों से ज्यादा हमने समाधान पर जोर दिया कि कैसे पक्षियों के अपने आसपास वापस लाया जाए।”

इसका एक ही जवाब था कि पक्षियों के लिए अनुकूल वातावरण होना चाहिए। इसके लिए नित्यानंद और उनके परिवार ने अपनी दो एकड़ जमीन सिर्फ पक्षियों के लिए छोड़ दी। इस जमीन पर उन्होंने कई तरह के फल-सब्जियों के पेड़-पौधे लगाए हुए हैं ताकि पक्षियों को खाना मिले। साथ ही, एक छोटी-सी झोपड़ी डालकर उन्होंने पानी के लिए कई सारे मिट्टी के कटोरे भी लगाए हैं ताकि गर्मियों के मौसम में पक्षी अपनी प्यास बुझाएं और नहा भी लें। इसके साथ ही, नित्यानंद और रम्या ने उनके लिए घोंसले की भी व्यवस्था की हुई है। 

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उन्होंने कहा, “बहुत से ऐसे पक्षी हैं जो खुद अपना घोंसला नहीं बना सकते हैं। पहले गांवों में घरों में ही ऐसी कई जगहें होती थीं, जहां ये पक्षी अपना ठिकाना बना लेते थे ताकि अपने अंडे रख सकें। लेकिन अब कोई नहीं चाहता था कि पक्षियों के घोंसले उनके घरों में हों। आजकल बिजली के तार भी सभी घरों में होते हैं और कई बार खुले तारों की वजह से भी पक्षी करंट से मर जाते हैं। इसलिए हमने सोचा कि सिर्फ घर में ही नहीं बल्कि आसपास की जगहों में, अपने खेतों में भी हमें उनके घोसलों के लिए जगह बनानी चाहिए। खासकर की गर्मी के समय में पक्षियों को घोंसले, दाना और पानी की आवश्यकता रहती है।”

उनके खेतों में आते हैं 93 तरह के पक्षी

नित्यानंद और रम्या बताते हैं कि पहले कोई पक्षी आये न आये कौआ सब जगह दिखता था। लेकिन अब तो हम इंसानों ने कौओं को भी खुद से दूर कर दिया है। जबकि कौए मानव प्रजाति के लिए बहुत मददगार होते हैं। “शहर तो क्या गांवों में भी लोग अब पक्षियों के लिए दाना-पानी रखना भूल जाते हैं। लेकिन हमारे बचपन में ऐसा नहीं था। अगर किसी कोई कोई पक्षी घायल भी दिखता था तो तुरंत उसकी मदद की जाती थी। इससे मनुष्यों और जीव-जंतुओं के बीच सद्भावना बनी रहती थी। हम एक बार फिर आने वाली पीढ़ी के मन में यह सद्भावना और पक्षियों के प्रति करुणा भरना चाहते हैं।”

अब तक तालुका के 205 स्कूलों में मुफ्त सेमिनार कर चुके यह पति-पत्नी पक्षियों के लिए खुद ही घोंसले भी बनाते हैं। उन्होंने अपने इलाके में 2000 से ज्यादा मिट्टी के कटोरे और अलग-अलग तरह के घोंसले लोगों को बांटे हैं। अगर कोई एक बार उन्हें घोंसले या कटोरे के लिए फोन करता है तो वे तुरंत उन तक दोनों चीजें पहुंचाते हैं। यह दंपति इस काम के बदले आर्थिक मदद नहीं लेते हैं। इसके अलावा, अगर कोई पक्षी उन्हें घायल मिलता है तो उसका उपचार किया जाता है। वहीं अगर कोई पक्षी मर जाये तो उसे मिट्टी में दफना देते हैं। 

Environment conservation

उनका कहना है कि इंसानों की तरह ही इन बेजुबान जीवों को भी सम्मान का पूरा अधिकार है। शायद यह इस दंपति का समर्पण ही है जो आज उनके खेतों में लगभग 93 तरह के पक्षी भ्रमण के लिए आते हैं। नित्यानंद कहते हैं कि पिछले साल लॉकडाउन के दौरान उनके गौर किया कि कौन-कौन से पक्षी उनके यहां आते हैं। अलग-अलग समय पर अलग-अलग प्रजाति के पक्षी उनके खेतों में आते हैं। कोई अपने अंडे घोंसले में रखता है तो कोई अपनी प्यास बुझाने आते हैं। इन पक्षियों में कौआ, ग्रेट कॉर्मोरेंट, उल्लू, किंगफिशर, क्रेन, कबूतर, बुलबुल, जंगली मुर्गी, मोर, सनबर्ड, मैना, ग्रे जंगलफॉवल, कोयल, चित्तीदार मुनिया, तोता, कठफोड़वा, कबूतर, भारतीय तालाब बगुला आदि शामिल हैं। 

“हम यह नहीं कहते कि हमारा खेत कोई पक्षीधाम है, जहां आपको हर समय पक्षी मिलेंगे। लेकिन इतना कह सकते हैं कि अगर आप यहां समय बिताएंगे तो आपकी सुबह की शुरुआत पक्षियों की चहचहाट से होगी। आजकल छोटे-छोटे बच्चों की सुबह भी मोबाइल या कार-बाइक के हॉर्न से होती है। लेकिन हमारे खेतों में आप तरह-तरह के पक्षियों की आवाज सुन सकते हैं। इनके कोलाहल के सामने अब हमें खुद वाहनों या अन्य किसी चीज का शोर बहुत ही अटपटा लगता है,” उन्होंने कहा। 

अंत में यह दंपति सभी को बस यही संदेश देते हैं कि अपने घरों में पक्षियों के लिए दाने-पानी की व्यवस्था करें। फिर आपको घर में भी पक्षियों का चहचहाना सुनाई देगा। बेशक नित्यानंद और रम्या आज हम सबके लिए प्रेरणा हैं, जो पर्यावरण के लिए काम करते हुए एक बेहतर और खुशनुमा जीवन जी रहे हैं। 

संपादन- जी एन झा

कवर फोटो: नित्यानंद शेट्टी

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