भूंगा घर: गुजरात के गौरव की तस्वीर है यह शैली, भूकंप से लड़ने की भी रखते हैं ताकत

bhunga houses in kutch

2001 में, गुजरात के भुज में आए भूकंप के दौरान सीमेंट से बने घर तो टूट गए थे, लेकिन ‘भूंगा’ शैली से मिट्टी से बने घरों को ज़रा सा भी नुकसान नहीं पहुंचा था।

कच्छ गुजरात का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। यह देश में भूकंप के लिए सबसे संवेदनशील इलाकों में से एक है। यही कारण है कि यहां के लोग अपनी घरों को कुछ अलग अंदाज में बनाते हैं। 

कच्छ ने बीते कुछ सदियों में भूंकप के कारण भारी तबाही को झेला है। यहां 1819 में आए भूकंप के दौरान 1500 से अधिक लोगों की जान चली गई थी और हजारों घर बर्बाद हो गए थे। 

उसके करीब 180 वर्षों के बाद, 2001 में भुज में आए इस प्राकृतिक आपदा ने हजारों लोगों की जिंदगी को फिर से तबाह कर दिया। लेकिन, एक ध्यान देने वाली बात थी कि यहां कई सीमेंट की इमारतें तो ढह गईं, लेकिन भूकंप का केन्द्र होने के बावजूद ‘भूंगा’ शैली से बने घरों को कोई नुकसान नहीं हुआ।

क्या है भूंगा शैली

1819 में आए भूकंप के बाद, यहां के लोगों ने ‘भूंगा’ शैली से घर बनाना शुरू कर दिया था। इस शैली को उन्होंने भविष्य के खतरे को देखते हुए अपनाया था। इस अनूठी शैली में गोल दीवारों के जरिए घर बनाए जाते हैं, जो भौगोलिक वातावरण के बिल्कुल अनुकूल होते हैं।

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कच्छ में भूंगा शैली से बने घर

कच्छ एक रेतीला इलाका है और लोगों को ‘भूंगा’ शैली से घर बनाने से रेतीले तूफान और चक्रवाती हवाओं से भी राहत मिलती है। 

कैसे बनाते हैं घर

पर्यावरण के अनुकूल इन घरों को बांस, मिट्टी और लकड़ी जैसे स्थानीय स्तर पर मिलने वाले संसाधनों से तैयार किया जाता है। दूसरी ओर गाय, ऊंट या घोड़े की खाद को मिट्टी में मिलाकर घर की दीवार तैयार की जाती है। 

घर की दीवारें काफी मोटी होती हैं, जिससे तापमान काफी संतुलित रहता है। इससे गर्मी के दिनों में घर ठंडा रहता है, तो सर्दियों में गर्म।

वहीं, घर की छतें फूस से बनी होती हैं। झोपड़ीनुमा बनीं ये छतें वजन में काफी हल्की होती हैं। लकड़ी से बनी खिड़कियां काफी नीचे होती हैं, ताकि घर में अच्छी रोशनी आ सके। 

 construction of bhunga house
भूंगा घरों की संरचना

आमतौर पर, यहां हर घर में एक दरवाजा और दो खिड़कियां होती हैं। लोग अपनी फूस की छतों को हर साल बदल देते हैं, ताकि कोई दिक्कत न हो। घर की छतों का व्यास 3 मीटर से 6 मीटर के बीच होता है।

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घर की बाहरी दीवारों पर कई तरह के रंगीन चित्र बनाए जाते हैं, तो भीतरी दीवारों पर सफेद मिट्टी चढ़ाए जाते हैं। चेहरा देखने के लिए आईनों को दीवारों में ही लगाया जाता है, जिसे बोलचाल की भाषा में ‘मटिकम’ कहा जाता है। साथ ही, इससे घर की रोशनी भी बढ़ती है और सफेद मिट्टी होने के कारण नैचुरल लाइटिंग काफी आसान हो जाती है।

people painting the walls
दीवारों पर रंगाई करते हुए लोग

‘भूंगा’ शैली के घर, खास तौर पर कच्छ के उत्तरी इलाकों में आप देख सकते हैं, खासकर बन्नी और रेगिस्तानी द्वीपों में। यहां की मिट्टी जलोढ़ (दोमट) होती है। यहां पत्थर नहीं मिलते हैं, यही कारण है कि यहां घर बनाने के लिए मिट्टी और गोबर का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है।

घर की दीवारों और नींव को बनाने के लिए जरूरी संसाधन

  1. इसमें ब्लॉक के लिए मिट्टी और पिसा हुए चावल का इस्तेमाल किया जाता है।
  2. नींव के लिए चिनाई (चूना, रेत का मिश्रण) को इस्तेमाल में लाया जाता है।
  3. प्लास्टर के लिए मिट्टी और गोबर का उपयोग किया जाता है।

घर बनाने का तरीका

घर की नींव 30 सेमी गहरी और 45 सेमी चौड़ी होती है। ब्लॉक बिछाने की प्रक्रिया को स्थानीय रूप से चैंटर कहा जाता है। नींव खोदने के बाद, उस पर दीवार बनाई जाती है और दरवाजे-खिड़की के लिए जगह जरूरत के हिसाब से छोड़ी जाती है।

bhunga house interior
भूंगा घरों की भीतरी दीवारें

घर की दीवार बनने के बाद, इस पर मिट्टी-गोबर की लेप चढ़ाई जाती है और हाथों से चिकना किया जाता है। इसमें लोगों को एक दिन का समय लगता है। वहीं, इस पर मिट्टी की कुल सात परतें होती हैं।

छत को सहारा देने के लिए घर के बीचोंबीच एक लकड़ी के खम्बे को लगाया जाता है। वहीं, घर के लिंटेल लेवल और कॉलर लेवल को मजबूती देने के लिए बांस का इस्तेमाल किया जाता है। इससे भूकंप आने पर नुकसान का खतरा कम रहता है। 

जैसा कि पारंपरिक रूप से घर की छतों को बनाने के लिए फूस का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन हालिया दिनों में लोगों ने मैंगलोर टाइल्स को भी अपनाना शुरू कर दिया है। 

खलिहान में खेलती बच्चियां

भूंगा शैली से लोगों को घर बनाने में ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं पड़ती है और एक महीने से भी कम समय में इसे आसानी से बनाया जा सकता है। एक घर बनाने में करीब 10-15 हजार रुपए खर्च होते हैं।

इस तरह, भूंगा शैली में बने घर, सदियों से अपनी पारंपरिक और सांस्कृतिक पहचान को बरकरार रखे हुए है। उम्मीद है कि आधुनिक तकनीकों के साथ भावी पीढ़ी इससे बहुत कुछ सीख पाएगी, जो न सिर्फ सस्ती है, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए काफी कारगर भी है।

मूल लेख – किशन दवे

संपादन- जी एन झा

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