हमारे आसपास हरियाली रहे, इसकी कल्पना तो हर कोई करता है लेकिन ऐस लोग बहुत कम होते हैं, जो इस नेक काम के लिए कदम बढ़ाते हैं। आज हम आपको छत्तीसगढ़ के एक ऐसे शख्स से मिलवाने जा रहे हैं जो न केवल वृक्षारोपण कर रहे हैं बल्कि अनोखे तरीके से पौधों की देखभाल भी कर रहे हैं।
यह प्रेरक कहानी छत्तीसगढ़ के बालोद जिला स्थित देवरी गांव में रहने वाले भोज कुमार साहू की है। भोज कुमार कहते हैं कि पर्यावरण के लिए कुछ करने की प्रेरणा उन्हें बालोद जिले के एक और पर्यावरण प्रेमी, वीरेंद्र सिंह से मिली है।
भोज कुमार ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं पिछले कई सालों से पौधारोपण पर काम कर रहा हूं। यह सच है कि छत्तीसगढ़ में काफी वन क्षेत्र है। लेकिन प्रशासन और जन-समाज की लापरवाही के कारण पिछले कुछ समय में पर्यावरण को बहुत क्षति पहुंची है। इसलिए आज बहुत से लोग पर्यावरण के लिए आगे आ रहे हैं। वीरेंद्र जी और उनके काम के बारे में जब मैंने सुना तो मुझे लगा कि मुझे भी इस दिशा में कुछ करना चाहिए।”
सबसे दिलचस्प बात यह है कि वह न सिर्फ पौधारोपण के लिए बल्कि इनकी देखभाल के लिए भी लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। उनके लगाए सैकड़ों पौधे आज घने पेड़ बन कर लोगों को छांव दे रहे हैं। अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा भोज कुमार प्रतिमाह पर्यावरण और सामाजिक कार्यों के लिए रखते हैं।
सात पौधों से हुई शुरुआत
भोज कुमार कहते हैं, “मेरे पिताजी एक साधारण किसान हैं लेकिन उन्होंने हम भाई-बहनों की शिक्षा पर जोर दिया। मैंने फार्मेसी में ग्रैजुएशन की हुई है और फ़िलहाल, राजनांदगांव में डोंगरगांव के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर बतौर रेडियोग्राफर कार्यरत हूं।”
हालांकि, भोज कुमार के काम को सबसे ज्यादा पहचान तब से मिली जब उन्होंने अपनी शादी में लड़की वाले से सात पौधे लिए। इस बारे में उन्होंने बताया, “मैं दहेज के खिलाफ हूं। यह एक सामाजिक अभिशाप है। मैंने सोचा कि क्यों न अपनी शादी से ही एक अच्छा संदेश लोगों को दिया जाए। इसलिए मैंने शादी में अपने ससुराल वालों से सात पौधे उपहार स्वरुप मांगा। इन सभी पौधों को पत्नी, खुशबू के साथ मिलकर अपने गांव में ही अलग-अलग जगह लगाया। आज ये पौधे अच्छी तरह से विकसित हो रहे हैं।”
इन सात पौधों के अलावा, भोज कुमार अब तक 500 से ज्यादा पेड़-पौधे लगा चुके हैं और उनसे प्रेरित होकर और भी लोग आगे आ रहे हैं। फ़िलहाल, निमोरा में प्रशासनिक अकादमी के डिप्टी डायरेक्टर पद पर कार्यरत पी. एल. यादव बताते हैं, “भोज कुमार को प्रकृति से बहुत ही लगाव है। मुझे याद है, जब मेरी पोस्टिंग उनके इलाके में थी तो एक बार वह मेरे पास शिकायत लेकर आये थे कि उनके लगाए पेड़ों को किसी ने नुकसान पहुँचाया है। और वह मुझे बताते-बताते भावुक हो गए थे। मैंने खुद देखा है कि वह सिर्फ पौधे लगाकर छोड़ नहीं देते हैं बल्कि बच्चे की तरह उनकी देखभाल करते हैं।”
अनोखे तरीके से करते हैं सिंचाई
भोज कुमार ने बताया कि उनकी कोशिश ग्राम पंचायत के साथ मिलकर काम करने की होती है। ताकि लगाए गए पौधों की देखभाल अच्छे तरीके से हो सके। उन्होंने कहा, “केवल पौधा लगाना ही मेरा उदेश्य नहीं है। वह पौधा एक वृक्ष बने, यह जरूरी है। दरअसल पौधों को शुरूआती एक-दो साल तक देखभाल की जरूरत होती है। इसके बाद, वे खुद विकसित होने लगते हैं।”
पौधों की देखभाल के लिए उन्होंने एक अनोखी तरकीब भी निकाली है। इसके बारे में उन्होंने बताया, “मैंने मध्य प्रदेश की एक खबर देखी थी, जिसमें बताया गया कि एक मंदिर के बाहर पौधों की सिंचाई के लिए ग्लूकोज़ की बोतलों से ड्रिप इरिगेशन सिस्टम बनाया गया। इससे पानी भी कम खर्च हुआ और लागत भी कम लगी। इसलिए मैंने अपनी शादी पर मिले पौधों की सिंचाई के लिए यह तरीका अपनाया।”
भोज कुमार स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत हैं, जहां पर काफी संख्या में ग्लूकोज की बोतलें कचरे में जाती हैं। “मैंने इस कचरे से कुछ बोतलें इकट्ठा करके साफ की और अपने साथ गांव ले गया। वहां पर इन बोतलों को मैंने पौधों के पास एक लकड़ी की मदद से इस तरह लगा दिया कि इनसे पौधों की जड़ों को बूंद-बूंद पानी मिलता रहे। इस तरीके से कई फायदे हुए हैं। हम सब जानते हैं कि ड्रिप सिस्टम से कम पानी में ज्यादा अच्छी सिंचाई हो जाती है। इससे पौधों की जड़ों में ज्यादा देर तक नमी मिलती रहती है,” उन्होंने कहा।
इसके अलावा, वह मटका टपक विधि भी अपना रहे हैं। उन्होंने बताया कि सबसे पहले पौधा लगाने के बाद, इसके चारों और ‘ट्रीगार्ड’ लगाया जाता है। फिर एक मिट्टी के घड़े के तले में छेद करके इस ‘ट्रीगार्ड’ के ऊपर रखा जाता है। घड़े में एक बार पानी भरकर छोड़ दिया जाता है और छेद में से पानी एक-एक बूंद करके पौधों को मिलता रहता है।
भोज कुमार का दावा है कि सामान्य तरीके से पौधे को पानी देने पर लगभग दो-तीन लीटर पानी खर्च होता है लेकिन ड्रिप सिस्टम से एक लीटर में ही काम हो जाता है। इस विधि से उन्हें अच्छी सफलता भी मिली है।
बनाए 500 ‘सीड बॉल’
भोज कुमार कहते हैं कि इस साल बारिश के मौसम में रोपण के लिए उन्होंने 500 सीड बॉल तैयार किए हैं। सीड बाल तैयार करने के लिए गोबर की खाद, मिट्टी का मिश्रण बनाकर और इसमें पानी डालकर, इसके छोटे-छोटे बॉल बनाए जाते हैं। इस बॉल में करंज, अशोक, इमली, कनेर जैसे पेड़ों के बीज डाले जाते हैं। फिर इन बॉल को छांव में ही सुखाया जाता है और बारिश का मौसम आने पर इन्हें सड़कों के किनारे, पहाड़ों में या जंगलों में डाला जाता है ताकि बारिश के मौसम में ये बीज अंकुरित होकर पौधे बनें और पौधे पेड़ बनकर प्रकृति को सहेजें।
जून के महीने से ही उन्होंने सीड बॉल बनाना शुरू कर दिया था और अब इन सीड बॉल को अलग-अलग लोगों को वितरित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिछले कई सालों से वह लोगों को उपहार स्वरुप भी पौधे ही भेंट करते हैं। उनका उद्देश्य जितना हो सके प्रकृति के करीब रहना और लोगों को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ना है।
द बेटर इंडिया भोज कुमार के प्रयासों की सराहना करता है और हमें उम्मीद है कि बहुत से लोग उनसे प्रेरणा लेंगे।
संपादन- जी एन झा
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