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हफ्ते में एक दिन खेत में मजदूरी करती है यह अधिकारी, ताकि दान कर सकें खेती में कमाए पैसे

Official Works as Labourer

“मेरी माँ जो संघर्ष किया, उसे मैं भूल नहीं सकती। जब भी मैं लोगों में दर्द और पीड़ा देखती हूँ, तो मैं इसे कम करना चाहती हूँ।” - तस्लीमा

हम सरकारी अधिकारियों को लेकर अक्सर सुनते हैं कि वह जरूरतमंदों की मदद करने के बजाय भ्रष्टाचार और अन्य अनैतिक कार्यों को अंजाम देते हैं। लेकिन, क्या आपने कभी किसी सब-रजिस्ट्रार को यह कहते हुए सुना है – 

“मैं सप्ताह के अंत में, खेत में काम करके 250-300 रुपए कमाती हूँ। मैं दिन में 9 बजे से लेकर 5 बजे तक काम करती हूँ। मुझे जो पैसे मिलते हैं, उसे जरूरमंदों या किसान साथियों को दे देती हूँ।”

यह प्रेरणा देने वाली कहानी 34 वर्षीय तस्लीमा मोहम्मद की है, जो तेलगांना के मुलुगु और जयशंकर भूपलपल्ली जिला में सब-रजिस्ट्रार के रूप में काम करती हैं। सब-रजिस्ट्रार के तौर पर, उनका दायित्व संपत्ति के रिकॉर्ड का रखरखाव और टैक्स को जमा करना है।

तस्लीमा को सामाजिक बदलाव के लिए प्रयास करने से खुशी मिलती है। उनकी चिन्ताएं कई विषयों को लेकर है, जिसमें सबसे मुख्य तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बसने वाले संसाधनविहीन गुट्टी कोया जनजाति के उत्थान को लेकर है।

तस्लीमा खेत में जुताई से लेकर अन्य सभी जरूरी कृषि कार्य करती हैं।

जैसे कि पहले बताया गया है, उनके कार्यों में खेती-किसानी का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे वह पिछले 6 वर्षों से हर सप्ताह के अंत में लगातार करती आ रही हैं। इसके अलावा, वह अक्सर किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने बारे में भी बताती हैं।

इस कड़ी में वह द बेटर इंडिया से कहती हैं, “मेरी यह प्रेरणा मेरे अतीत से जुड़ी हुई है। मेरे पिता की हत्या नक्सलियों ने कर दी थी। इसके बाद, मेरी माँ हमारी 5 एकड़ जमीन को संभालती थी, लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से हमने इसे खो दिया। लेकिन, खेती ने हमें जिंदा रखा।”

अपने पुराने दिनों को याद करते हुए, तस्लीमा कहती हैं, “मुझे याद है, जब मेरी माँ सरकारी परीक्षा की कोचिंग के लिए 13000 रुपए फीस भरने के लिए संघर्ष करती थीं।”

वह आगे कहती हैं, “मेरी माँ ने जो संघर्ष किया, उसे मैं भूल नहीं सकती। जब भी मैं लोगों में दर्द और पीड़ा देखती हूँ, तो इसे कम करना चाहती हूँ।”

तस्लीमा कहती हैं, “मेरी मदद सिर्फ आस-पास वाले लोगों तक सीमित नहीं है। मैं गुमशुदा बच्चों को उनके घर पहुँचाने में भी मदद करती हूँ।”

तस्लीमा एक 15 वर्षीय लड़की की अभिभावक भी हैं, जिसने एक दुर्घटना में अपने माता-पिता को खो दिया था। इसे लेकर वह कहती हैं, “जब मैं उससे मिली, तो मुझे पता चला कि उसने अपने माता-पिता को खो दिया है और उसकी देख-भाल करने वाला कोई नहीं है। इससे बाद, कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए मैंने उसकी देख-भाल करने का फैसला किया।”

तस्लीमा हर पल लोगों की सहायता करती हैं। कुछ दिन पहले ही तस्लीमा को आठ महीने की गर्भवती महिला के बारे में पता चला, जिसका कोई ठिकाना नहीं था। इसे लेकर तस्लीमा कहती हैं, “मैं उस महिला को घर ले आई और सुनिश्चित किया कि वह पोषण तत्वों से भरपूर खाना खाए और माँ बनने तक उसे हरसंभव मदद मिले। मैं हर किसी की मदद करना चाहती हूँ, जितना मैं कर पाऊं।”

इस सामाजिक योद्धा ने अब तक 17 बच्चों को एक नई जिंदगी देने के साथ ही, 300 से अधिक छात्रों और युवा पेशेवरों को देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान अपने परिवारों की मदद की खातिर खेती करने के लिए प्रेरित किया।

हालाँकि, इतना सबकुछ हासिल करने के लिए तस्लीमा अपनी कमाई के आधे से अधिक हिस्से को खर्च कर देती हैं और इन कार्यों में उन्हें पति और परिवार की पूरी मदद मिलती है, जिसके लिए वह धन्यवाद भी जताती हैं।

तस्लीमा कहती हैं, “मौजूदा कोरोना महामारी के कारण, बड़े शहरों में पढ़ रहे छात्र और पेशेवर युवा अपने घर लौट आए हैं, लेकिन वे खेतों में काम करने में असहज महसूस करते हैं। साथ ही, लॉकडाउन की वजह से मजदूरों की भी कमी है।”

हेमंत रसमला नाम के एक छात्र ने तस्लीमा का आभार व्यक्त करने के लिए अपनी बांह पर ‘अक्का’ का टैटू गुदवाया।

इसी को देखते हुए तस्लीमा ने युवाओं को अपने परिवारों की मदद करने के लिए प्रेरित करने का फैसला किया। इतना ही नहीं, उन्होंने निजी संस्थानों के 50 शिक्षकों को भी ऐसा करने के लिए राजी कर लिया।

तस्लीमा को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए ‘गुट्टी कोयला पेड्डका’ की उपाधि दी गई है, जिसका अर्थ है – गुट्टी कोया जनजातियों की बहन।

तस्लीमा के फेसबुक पर 1,500 से अधिक फॉलोअर हैं और उनके नाम से ‘सब-रजिस्ट्रार तस्लीमा फॉलोअर्स’ पेज भी चलता है, जो समुदाय के सदस्यों और दूसरों को सहायता करने में मदद करता है।

विनोद बनोठ जो कि तेलंगाना राज्य आवासीय स्कूल के 11वीं कक्षा के छात्र और एथलीट हैं, कहते हैं, “मैं तस्लीमा को पिछले एक साल से जानता हूँ। उन्होंने भोजन समेत मेरी सभी जरूरतों को पूरा किया। वह मेरे लिए माँ समान है, जिन्होंने मेरा साथ दिया।”

35 वर्षीय राकेश गोतिमुक्कुला, जो मुलुगु में एक निजी स्कूल में शिक्षक हैं, कहते हैं, “तस्लीमा ने लॉकडाउन, हाल ही में आई बाढ़ के साथ-साथ, कृषि गतिविधियों में 50 शिक्षकों की मदद की। वह मुश्किल हालातों में हमारी एक सच्ची प्रेरणा रही हैं।”

एक अन्य युवा अन्वेश मनचोजू कहते हैं, “कुछ वर्षों पहले मैंने उप-जिलाधिकारी से अपनी पढ़ाई के लिए ऋण और  वित्तीय सहायता की अपील की थी। तब वीपी गौतम एसडीएम थे, आज वह मेरे भाई जैसे हैं और तस्लीमा बहन की तरह, उन्होंने मुझे राजनीति विज्ञान की पढ़ाई करने में पूरी मदद की।”

(मूल लेख – HIMANSHU NITNAWARE)

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