जब भी हम जरूरतमंदों की सहायता करने के बारे में सोचते हैं, तो दिमाग में एक ही सवाल आता है कि साधन कहाँ से आएंगे? पैसा कहाँ से आएगा? क्योंकि, सबकी सोच यही है कि बिना पैसे के समाज सेवा हो ही नहीं सकती। कुछ हद तक यह बात सही भी है, लेकिन यह भी सच है कि अगर आपके इरादे मजबूत हों, तो आप अपनी राह बना ही लेते हैं। जैसा कि हैदराबाद में रहने वाले इंजीनियरिंग ग्रैजुएट जैसपर पॉल, अपने बनाये आश्रय-गृह के ज़रिये (shelter home) कर रहे हैं।
शुरुआत में पॉल को यह नहीं पता था कि वह लोगों की मदद किस तरह करेंगे, लेकिन आज उन्हें अपने काम के लिए हजारों लोगों का साथ मिल रहा है और करोड़ों रुपयों की फंडिंग भी हो रही है जिसकी बदौलत वह बेघर लोगों की सहायता कर रहे हैं।
बेघर और बेसहारा लोगों की सहायता के लिए पॉल ने 2017 में ‘सेकंड चांस‘ संगठन की शुरुआत की थी।
एक हादसे ने दिया ‘सेकंड चांस’
समाज सेवा में जुटे 25 वर्षीय पॉल की कहानी, साल 2014 से शुरू होती है, जब वह सड़क हादसे का शिकार हुए थे। उस समय वह महज 19 साल के थे। गाड़ी ने सड़क पर तीन पलटी खाई, लेकिन वह बाल-बाल बच गए। यह उनके लिए जिंदगी का ‘सेकंड चांस’ (दूसरा मौका) था, जिसे वह दूसरों के लिए समर्पित करना चाहते थे।
उस समय पॉल कॉलेज में थे और तय कर चुके थे कि वह अपने जीवन को कुछ अच्छा काम करने में लगाएंगे। लेकिन कौनसा काम?
इस बारे में वह अक्सर सोचते थे। तभी, एक दिन शहर के सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन जाते समय, उनकी नजर फुटपाथ पर लगभग बेसुध बैठी एक बुजुर्ग महिला पर पड़ी। महिला के हाथ में चोट लगी थी और घावों पर मक्खियां भिनभिना रही थीं। उस समय तो पॉल वहाँ से आगे बढ़ गए, लेकिन उनके मन से वह महिला नहीं गयी और वह लौटकर उस महिला के पास आए।
पॉल ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने उन महिला से बातचीत की, तो पता चला कि वह बेसहारा हैं और उनकी चोट कई दिन पुरानी थीं। मैंने उनकी मदद करने की ठानी और उन्हें एक पुलिस कांस्टेबल की मदद से अस्पताल पहुँचाया। लेकिन इलाज के बाद, उनके पास जाने का कोई ठिकाना नहीं था। मैं उनके साथ अस्पताल में रुका और एक आश्रय-गृह ()shelter home में उनके रहने का इंतजाम कराया। मैंने उस महिला का एक वीडियो तैयार कर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, जिसके जरिए उनके परिवार का पता चल पाया और वे उन्हें हैदराबाद आकर ले गए।”
इस एक काम ने पॉल को बहुत सुकून दिया और उन्होंने तय कर लिया कि अब वह बेसहारा लोगों के लिए काम करेंगे। लगभग तीन सालों तक, उन्होंने शहर के आश्रय-गृहों (shelter home) और सामाजिक संगठनों के साथ काम किया। लेकिन फिर भी, उन्हें कहीं न कहीं कोई कमी लगती थी। इसलिए उन्होंने साल 2017 में ‘सेकंड चांस’ की शुरुआत की।
कैसे करते हैं काम
अपने काम करने के तरीकों के बारे में पॉल ने बताया कि उन्होंने अपना एक संपर्क नंबर जारी किया है। अगर किसी को भी कोई बेघर और बेसहारा व्यक्ति परेशानी में मिलता है, तो वह उन्हें कॉल करते हैं। वह हैदराबाद पुलिस और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के संपर्क में भी रहते हैं, जो अक्सर उनके यहाँ किसी न किसी को रेस्क्यू करके भेजते हैं। उनके हैदराबाद में तीन केंद्र हैं और इन तीनों ही केंद्रों को उन्होंने किराये पर लिया हुआ है। सबसे पहले, लोगों को रेस्क्यू करके उनके पहले केंद्र पर ले जाया जाता है, जो यापरल में है। यहाँ पर उन्हें सबसे पहले चिकित्सा दी जाती है।
पॉल कहते हैं, “उन्हें नहलाने-धुलाने और साफ कपड़े पहनाने के बाद, खाना खिलाया जाता है। डॉक्टर उनके स्वास्थ्य की जाँच करते हैं, ताकि अगर किसी को कोई बीमारी है, तो हम उन्हें सही इलाज दिलवा सकें। जिन्हें ज्यादा चिकित्सा की जरूरत नहीं होती है, उन्हें हम अपने बाकी दो केंद्रों पर रखते हैं, एक चेरापल्ली में और दूसरा घाटकेसर में है। वहाँ उनके रहने, खाने, सोने आदि का पूरा इंतजाम किया गया है।”
चिकित्सा संबंधी सुविधाओं के लिए छह डॉक्टर उनके साथ काम कर रहे हैं, जो बिना किसी फीस के उनकी मदद करते हैं। इन डॉक्टरों में से एक, डॉ. जी. एस. कार्तिक कहते हैं, “मैं अपने एक दोस्त के साथ पॉल के सेंटर पर गया था। उनके आश्रय गृह (shelter home) में जब मैंने उनका काम देखा, तो मुझे लगा कि यह करने के लिए जज्बा चाहिए। उनके पास इस तरह के घायल लोग आते हैं, जिनके घावों में कीड़े लगे हुए होते हैं, बदबू आ रही होती है। पर वह कभी किसी से मुँह नहीं फेरते, बल्कि उनके घावों को खुद साफ़ करके उनकी पट्टी करते हैं। नहला-धुलाकर अच्छे कपड़े और खाने के लिए अच्छा खाना देते हैं।”
डॉ. कार्तिक नियमित रूप से हफ्ते में एक-दो बार केंद्र पर जाकर सभी लोगों का चेक-अप करते हैं। इसके अलावा, वह वीडियो कॉल या सामान्य फोन कॉल के जरिए भी उनसे जुड़े रहते हैं।
बिछड़ों को मिलाना
वैसे तो पॉल के पास ज्यादातर ऐसे लोग पहुँचते हैं, जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है। लेकिन, नियमित देखभाल से जब उनकी स्थिति में सुधार आता है, तो उनके परिवार के बारे में पता करने की कोशिश की जाती है।
अब तक उन्होंने 1500 से ज्यादा लोगों की मदद की है। वह 70 लोगों को उनके परिवार से मिलवाने में सफल हुए हैं। इसके अलावा, 150 लोग उनके केंद्रों पर रहकर सुरक्षित जीवन जी रहे हैं।
वह कहते हैं, “हमारे पास जितने भी लोग हैं, लगभग सबकी उम्र 50 से ऊपर है। जब भी कोई हमारे यहाँ पहुँचता है, तो पहली कोशिश उन्हें उनके परिवारों से मिलाने की होती है। लेकिन, अगर ऐसा नहीं हो पाता है, तो हम इनकी पूरी जिम्मेदारी लेते हैं।”
फ़िलहाल, उनकी टीम में 20 लोग काम कर रहे हैं, जिनमें खाना बनाने वाले और इन लोगों का ध्यान रखने वाले कर्मचारी भी शामिल हैं।
इसके अलावा, वह सरकारी अस्पतालों में भर्ती हुए अकेले और बेसहारा मरीजों की भी जिम्मेदारी लेते हैं। अगर कभी किसी की मृत्यु हो जाती है और उनके परिवार का कोई पता नहीं होता है, तो वह व्यक्ति के धर्म के अनुसार उनका अंतिम संस्कार भी कराते हैं।
सेकंड चांस फाउंडेशन के काम के बारे में, रचकोंडा, हैदराबाद के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, महेश भागवत कहते हैं, “हमारी टीम को जब भी कोई बेसहारा और मानसिक तौर पर बीमार व्यक्ति मिलता है, तो हम तुरंत उन्हें फोन करते हैं। वे इनका पूरा ध्यान रखते हैं। बहुत से लोगों को उनके परिवारों से वापस भी मिलवाया गया है। सेकंड चांस फाउंडेशन, हमारी रचकोंडा सिक्योरिटी काउंसिल का भी हिस्सा है। हमारा उद्देश्य, साथ में मिलकर जितना हो सके, इन लोगों की मदद करना है।”
भागवत आगे कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान भी पॉल और उनकी टीम ने पुलिस के साथ मिलकर कई अभियानों पर काम किया। लॉकडाउन के दौरान 15 से ज्यादा बेसहारा लोगों को रेस्क्यू किया गया, जिनकी पूरी जिम्मेदारी उन्होंने ली। साथ ही, जरूरतमंदों तक खाना, मास्क जैसी जरुरी चीजें पहुँचाने में भी उन्होंने मदद की।
कैसे जुटाते हैं फंड?
इस पूरे काम की फंडिंग के बारे में पॉल बताते हैं, “इस काम में मेरी पत्नी, तैरिसा मेरा पूरा साथ दे रही है। हम अपनी आजीविका के लिए अपना फूड बिजनेस चलाते हैं। उसमें से भी कमाई का एक हिस्सा हम इस काम में लगाते हैं। लेकिन, तीन केंद्रों को चलाने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। इसलिए हम कभी-कभी सोशल मीडिया के जरिए फंड भी जुटाते हैं। बहुत से लोग हमारे यहाँ आकर इन लोगों से मिलते हैं और देखते हैं कि इन्हें अच्छी देखभाल मिल रही है। इसके बाद वे कभी आर्थिक रूप से तो कभी राशन या कपड़े देकर मदद करते हैं। जो भी काम है, वह सिर्फ मेरे अकेले नहीं, बल्कि नेकदिल लोगों की मदद से हो रहा है।”
सफर नहीं है आसान
पॉल बताते हैं कि बहुत बार उन्हें परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। कई बार उन्हें गलत कॉल भी आते हैं। जैसे कोई परिवार अपने किसी बीमार बुजुर्ग से छुटकारा पाना चाहता है, तो उन्हें फ़ोन कर देता है। यह गलत है और इसलिए किसी को भी अपने यहाँ लाने से पहले, वह पुलिस के साथ मिलकर जाँच-पड़ताल करते हैं। इसके अलावा, हर कोई उनके काम की कद्र भी नहीं करता है। वह बताते हैं कि उनका एक और केंद्र था, लेकिन जिनसे उन्होंने वह घर किराये पर लिया था, उन्होंने कुछ समय बाद ही घर छोड़ने के लिए कह दिया।
हालांकि, इस तरह की परेशानियों से पॉल कभी हताश नहीं होते, क्योंकि दूसरी तरफ वे उन लोगों के बारे में सोचते हैं, जिनकी मदद से उनका काम आगे बढ़ रहा है।
वह कहते हैं, “बहुत से लोग हैं दुनिया में जो कुछ अच्छा करना चाहते हैं, लेकिन कई कारणों से खुद लोगों की सहायता नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोग हमारे जरिए जरूरतमंद लोगों की सहायता कर रहे हैं।”
अपना आश्रय-गृह बनाने का सपना
पॉल अपना खुद का एक आश्रय-गृह (shelter home) बनाना चाहते हैं, ताकि उनके रेस्क्यू किये हुए सभी लोग, एक साथ रह सकें। इसके लिए, वह एक फंडरेजर अभियान चला रहे हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि उन्हें अपने इस अभियान में लोगों का खूब साथ मिल रहा है। वह कहते हैं, “लोगों के सहयोग से ही हम यहाँ तक पहुँचे हैं और आगे भी उनके सहयोग से ही बढ़ेंगे।”
एक नई शुरुआत
पॉल अपने सेंटर पर रहने वाले लोगों की काउंसलिंग पर भी ध्यान देते हैं ताकि ये लोग अपने निराशा भरे जीवन से ऊपर उठकर एक नई शुरुआत करें। केंद्रों पर रहने वाले जो लोग धीरे-धीरे ठीक होने लगते हैं, उन्हें दैनिक गतिविधियों जैसे, सब्जी काटने में मदद करना, बागवानी करना आदि में लगाया जाता है। अगर इसी तरह इन लोगों में सुधार होता रहा, तो वह आगे उन्हें किसी रोजगार से जोड़ने पर भी विचार करेंगे।
पॉल कहते हैं, “मेरी दिल से इच्छा है कि हमारे यहाँ इस तरह के आश्रय-गृह (shelter home) की जरूरत ही न हो। सभी लोगों को अपने परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। चाहे वे किसी भी हालत में क्यों न हों और दूसरे लोगों को उनकी मदद करनी चाहिए। जब हम सब अपनी जिम्मेदारियों को समझेंगे, तब किसी वृद्धाश्रम या आश्रय-घरों (shelter home) की जरूरत नहीं होगी। लेकिन, तब तक हम इन लोगों को भी अनदेखा नहीं कर सकते हैं। इसलिए, जब तक हो सकेगा मैं इन लोगों की देखभाल करूँगा।”
अगर आप हैदराबाद में रहते हैं और कहीं पर किसी बेसहारा को देखते हैं तो उन्हें अनदेखा न करें। 080108 10850 पर कॉल करें और पॉल व उनकी टीम को सूचित करें। वे वहाँ पहुंचकर उनकी मदद करेंगे। अगर आप सेकंड चांस फाउंडेशन के अभियान में किसी भी तरह से मदद करना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें।
संपादन- जी एन झा
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