200 हफ़्तों में 219 स्पॉट्स : बंच ऑफ फूल्स बना रहे हैं अपने शहर को साफ़ और सुन्दर!

पहले ग्रुप के युवा सदस्यों की टोली शहर के गंदे स्थानों का चयन करती है और फिर इसे साफ़ करने की बाकायदा योजना बनाकर काम शुरू करती हे। रविवार या अन्य छुट्टियों के दिन सुबह छ: बजे से ग्रुप के लोग पूर्वनिश्चित स्थान पर सफ़ाई के लिए पहुँच जाते हैं!

आमतौर पर हम वीकेंड में क्या करते है? कोई परिवार के साथ पिकनिक मनाने जाता है तो कोई दोस्तों के साथ मूवी और रेस्टोरेंट जाता है किन्तु छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक संस्था हर रविवार शहर के लोगो को सफाई के प्रति जागरूक करती है। संस्था का नाम है बंच ऑफ़ फूल्स अर्थात मूर्खो की टोली, मुर्ख इसलिए क्योंकि शहर को समझदार लोगो ने गन्दा कर रखा हे और अगर परिवर्तन लाना है, तो कुछ लोगो को तो मुर्ख बनना ही होगा। इस संस्था में स्टूडेंट्स, सी. ए, इंजीनियर, डॉक्टर, बिज़नेसमेन एवं प्रोफेसर शामिल है।

जागरूकता के लिये बंच ऑफ फूल्स ने एक मॉडल बनाया है। पहले ग्रुप के युवा सदस्यों की टोली शहर के गंदे स्थानों का चयन करती है और फिर इसे साफ़ करने की बाकायदा योजना बनाकर काम शुरू करती हे। रविवार या अन्य छुट्टियों के दिन सुबह छ: बजे से ग्रुप के लोग पूर्वनिश्चित स्थान पर सफ़ाई के लिए पहुँच जाते हैं!

सफाई के बाद आस पास की दीवारों पर सामाजिक संदेश देने वाली आकर्षक चित्रकारी की जाती है, जिससे वह जगह हमेशा के लिये साफ़ रहे।

अब इस समूह के साथ बड़ी संख्या में बुज़ुर्ग और महिलाएं भी जुड़ गए हैं।

शुरुआत छोटी जरूर थी लेकिन आज जन आंदोलन का रूप ले चुकी है।

जब संस्था की नींव रखी गई थी तो इसमें मात्र सात सदस्य ही थे, लेकिन आज सदस्यों की संख्या 100 पार कर चुकी है।अब तक 200 हफ्तों में 219 से ज़्यादा स्पॉट्स की सफाई कर इस संस्था ने एक मिसाल कायम की है! इस संस्था की विशेष बात यह है कि आपको इसका सदस्य बनने के लिए कोई फॉर्म नहीं भरना है और न ही किसी प्रकार की औपचारिकता निभानी है। आप बस झाड़ू उठाकर लगातार 4 हफ्ते सफाई में अपना योगदान करे और सदस्य बन जाइये। संस्था के पदाधिकारियों ने बताया कि वेबसाइट पर लोग अपने आस-पास की गंदगी वाली जगहों की फोटो लेकर अपलोड कर सकते हैं। पहले संस्था की रिसर्च और विकास समिति का दल जाकर स्थान देखता है और फिर सन्डे को पूरी टीम जाकर वहां साफ-सफाई कर लोगो को जागरूक करने का काम करती है I

बंच ऑफ फूल्स को क्लीन इंडिया कैम्पेन के तहत 2015 में मुम्बई में स्वच्छता सेनानी का एवार्ड मिल चुका है. इनके कामों को सराहने वालों में ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैं।

जब बंच ऑफ फूल्स ने रायपुर शहर में चौक चौराहों पर लगी महापुरुषों की प्रतिमाओं को धोकर चमकाना और प्रतिमाओं के आसपास के क्षेत्र को साफ़ रखने की शुरुआत की और ट्विटर पर इसे पोस्ट किया तो स्वयं प्रधानमंत्री ने इनके इस ट्वीट को रीट्वीट किया और अपने रायपुर दौरे के दौरान उन्होंने बंच ऑफ़ फूल्स की टीम के साथ विशेष मुलाकात भी की थी।

क्या है इनकी नई पहल – भविष्य रंगिये दिवार नहीं!

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा एवं पवित्र त्यौहार माना जाता है I हमारे देश में हर वक़्त किसी न किसी स्थान पर चुनाव की तैयारियां चल रही होती है, जिसमें मुख्य रूप से केंद्र, राज्य, निगम, पंचायत चुनाव आदि होते हैं I चुनाव के दौरान राजनैतिक दल प्रचार- प्रसार हेतु अलग-अलग तरीके अपनाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से दीवारों पर पोस्टर लगाना या रंगना आम बात है I हर दल लाखो स्क्वायरफुट पर रंग पोतकर यह सन्देश देता है कि देश की व्यवस्था कैसे सुधरेगी, बड़े-बड़े नारे लिखकर देश बदलने की बात लिखी जाती है I.साफ़-सुथरी दीवारों पर केमिकल पेंट लगाकर चुनावी वादे किये जाते हैं और नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के ज़िंदाबाद के नारे लिखे जाते हैं! सवाल उठता है कि क्या चुनाव जीतने के लिए, दिवार को गन्दा करना जरुरी है? क्या प्रचार -प्रसार का यही एक उपयुक्त माध्यम है? जी नहीं, विश्व के किसी भी विकसित देश में इस प्रकार से प्रचार नहीं किया जाता I

क्यों नहीं दीवारों को रंगना या गन्दा करना चाहिए ?

1 साफ़ दीवारें स्वछता का प्रतीक होती है, शहर की गलियाँ और सड़के साफ़ हो और दीवारें गंदी हो तो समझो कुछ साफ़ नहीं है!

2 . सकारत्मक सन्देश को मिटाकर राजनैतिक आरोप- प्रत्यरोप करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

3 जितने खर्च में दीवारों को रंगा जाता है, उतने खर्च में बहुत सारी मूलभूत सुविधाएं पूरी की जा सकती है।

क्या कर रही है बंच ऑफ़ फूल्स ?


बंच ऑफ़ फूल्स चुनाव से ठीक 3 महीने पहले ही एक विशाल जन जागरूकता अभियान चला रही है जिसके माध्यम से छत्तीसगढ़ के सभी राजनैतिक दलों से निवेदन कर रही है कि इस चुनाव से दीवारों को रंगना बंद कर दे। इस विशाल मुहीम में देश के सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों के अध्यक्ष एवं सचिव को पत्र लिखकर इस प्रथा को बंद करने का निवेदन किया गया है। इसके साथ-साथ वालंटियर्स इस मुहीम में निरंतर काम कर सभी दल के कार्यकर्ताओं को जागरूक कर रहे हैं। साथ ही वोटर्स को भी समझा रहे हैं कि वे प्रचार-प्रसार के ऐसे तरीके का किसी भी रूप में समर्थन न करें। सोशल मीडिया के माध्यम से अब तक 1 लाख लोग इसका समर्थन कर दीवारों को साफ़ रखने की शपथ ले चुके हैं।

बंच ऑफ़ फूल्स के सभी सदस्य गर्व से कहते है कि अच्छी आदतों को अपनाने के लिए पागलपन जरुरी है, अब तक 200 हफ्तों तक बिना किसी अवकाश के निरंतर रायपुर शहर के गंदे स्पॉट्स को साफ़ करना अपने आप में अद्भुत है। इन सदस्यों के जोश को आंधी, तूफ़ान, बारिश, ठण्ड भी नहीं रोक पाई।

बंच ऑफ़ फूल्स के सदस्यों ने यह साबित कर दिया कि बड़े बदलाव के लिए छोटे-छोटे कदम उठाने पड़ते है और आज संस्था दिवार रंगने की इस प्रथा को ख़त्म कर एक सकारात्मक बदलाव के लिए तेज़ी से अग्रसर है।

बंच ऑफ़ फूल्स से संपर्क करने के लिए आप उनकी वेबसाइट अथवा फेसबुक पेज पर जा सकते हैं!

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