लकड़ी से बनी सीढ़ियां और सिलाई मशीन से वॉश बेसिन, यह कपल जीता है पूरी तरह सस्टेनेबल लाइफ!

"बहुत-सी चीजें हैं जिनके बिना हम जी सकते हैं और लॉकडाउन ने हमें यह सिखा भी दिया है।"

हाराष्ट्र के औरंगाबाद में रहने वाली गार्गी परमार और उनके पति किरण भाले एक सस्टेनेबल लाइफस्टाइल जी रहे हैं। उनके घर से लेकर व्यवसाय तक, हर जगह वे पर्यावरण का ध्यान रखते हैं!

गार्गी ने  पुणे के स्कूल ऑफ़ फैशन डिजाइनिंग से अपनी मास्टर्स की। मास्टर्स के एक प्रोजेक्ट के दौरान उन्हें ‘सस्टेनेबल फैशन’ का कांसेप्ट पढ़ा। जब उन्होंने इस बारे में और अधिक रिसर्च की तो कुछ चौंकाने वाली बातें उनके सामने आई। उन्हें पता चला कि दुनिया में फैशन इंडस्ट्री प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। हर दिन न जाने कितने कपड़े बनते हैं और हर पल फैशन ट्रेंड बदलता है। इस बदलते ट्रेंड में हम पर्यावरण को बिल्कुल भूल ही गए हैं, जहां इस इंडस्ट्री का कचरा जाकर इकट्ठा हो रहा है।

गार्गी ने द बेटर इंडिया को बताया, “ज़्यादातर कंपनियां सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचती हैं और उन्हें पर्यावरण से ज्यादा पैसे की चिंता है। मैंने तय कर लिया कि मैं सिर्फ ऐसी जगह ही काम करूंगी, जहां इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल फैशन के क्षेत्र में काम हो रहा हो। लेकिन यह बात 2011 की है और उस समय ऐसे बहुत कम ही विकल्प थे। लेकिन मैंने ठान लिया था और इसलिए मैंने अपनी इंटर्नशिप अहमदाबाद के ‘औरा हर्बल्स’ के साथ की। यह कंपनी प्राकृतिक डाई का काम करती है। इसके बाद मैंने ‘डू यु स्पीक ग्रीन’ फर्म के साथ काम किया।”

अपने प्रोफेशनल करियर के साथ-साथ गार्गी ने अपने पर्सनल लाइफस्टाइल को भी सस्टेनेबल बनाने पर काम किया। उन्हें हमेशा लगता था कि वह इस क्षेत्र में और भी बहुत कुछ कर सकती हैं जिससे कि लोग पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हों। लगभग ढाई साल काम करने के बाद गार्गी अपने शहर औरंगाबाद लौटी और रिसर्च करने लगी कि उन्हें क्या करना है? इस दौरान दो सबसे बड़े मुद्दे उनके सामने आए- पहला, खत्म होते प्राकृतिक संसाधन और दूसरा, बढ़ते हुए कचरे के ढेर!

Gargi Parmar and Kiran Bhale

वह बताती हैं कि उस समय उनके दिमाग में बस यही चल रहा था कि वह क्या करें? लेकिन कहते हैं ना कि कभी-कभी समस्याओं में ही आपको हल मिल जाते हैं। गार्गी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। उन्होंने एक दिन अपनी मम्मी को पापा के पुराने पेंट से बैग और कुशन कवर बनाते हुए देखा। उस पल गार्गी के सामने वह तमाम चीजें आईं जो उनकी माँ बरसों से कर रही हैं, मतलब पुरानी प्लास्टिक की बाल्टी को फेंकने की बजाय प्लांटर बना लेना, पुराने कपड़ों से कुछ और नयी उपयोगी चीजें बनाना। अगर आसान शब्दों में कहें तो हर एक चीज़ को अपसायकल या फिर रीसायकल कर, कोई नया रूप दे देना।

अगर हम अपनी माँ, दादी-नानी, चाची की ज़िंदगी पर गौर करें तो आप समझेंगे कि सस्टेनेबिलिटी के बारे में बड़े-बड़े लेख पढ़े बिना भी वे इसे जी रही हैं। रोजमर्रा की ज़िंदगी में 5 आर- रिथिंक, रिड्यूज, रिसायकल, रिपेयर और रियूज का भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं। अपनी माँ से ही गार्गी को अपने स्टार्टअप का आईडिया मिला- ‘बा नो बटवो!’

बटवो या फिर बटुआ मतलब छोटा-सा पर्स, जो आपको ज़्यादातर भारतीय महिलाओं के पास मिलेगा और इसमें पैसों के अलावा, वे और भी ढ़ेरों काम की चीजें रख लेती हैं। ‘बा नो बटवो’ ब्रांड नाम के अंतर्गत गार्गी का स्टार्टअप अपसायकलिंग पर काम कर रहा है। पुरानी-बेकार चीजों को वह अपसायकल करके रिडिजाइन करते हैं और उनसे कुछ उपयोगी प्रोडक्ट्स बनाते हैं जैसे पुराने कपड़ों से बैग, हेंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स, घर को सजाने की चीजें और स्टेशनरी आदि।

She started her strtup called Ba No Batvo

“बा नो बटवो सिर्फ प्रोडक्ट्स या ब्रांड नहीं है बल्कि यह एक ‘सोच’ है। हमारी संस्कृति से लुप्त होती कलाओं और क्राफ्ट को बचाने का एक प्रयास, जो आज के ‘यूज और थ्रो’ के लाइफस्टाइल में कहीं खो रही हैं,” गार्गी ने बताया।

गार्गी के इस सफ़र में उनके भाई विनीत और उनके दोस्त किरण ने उनका पूरा साथ दिया। किरण भाले, अब गार्गी के पति हैं और यह दंपति अपने व्यवसाय के साथ-साथ अपने निजी जीवन में भी बहुत सी इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल प्रैक्टिस फॉलो करता है। किरण और गार्गी ने बताया कि उन्होंने अपनी शादी की सजावट भी इको-फ्रेंडली रखी थी। सिर्फ एक दिन का फंक्शन रखा गया और मेहमानों के लिए उपहार भी पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए खरीदे गए थे। सजावट के लिए उन्होंने कपड़ों का इस्तेमाल किया, जिन पर हाथ से पेंट किया गया था और बाकी साज-सज्जा फूलों से हुई।

Eco-friendly wedding decor

शादी के बाद पहले दिन से ही उन्होंने जीरो-वेस्ट लाइफस्टाइल को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को कैसे यह दंपति सस्टेनेबल बना रहा है, इस बारे में उन्होंने हमें बताया।

1. सबसे पहले उन्होंने सुनिश्चित किया कि वे पॉलिथीन का इस्तेमाल नहीं करेंगे। हर जगह वे अपने साथ कपड़े के थैले लेकर जाते हैं। यह थैले भी उन्होंने पुराने कपड़ों में से सिले हैं।

2. हाइपरमार्किट की जगह अब वह स्थानीय बाज़ार से ग्रोसरी खरीदते हैं ताकि उन्हें बिना प्लास्टिक की पैकेजिंग के सभी सामान मिले। कपड़े के थैले के अलावा, तेल, घी जैसे सामान के लिए वह स्टील के डिब्बे लेकर जाते हैं।

Their Sustainable Kitchen

3. रसोई के लिए भी वह धीरे-धीरे स्टील के डिब्बे और मिट्टी की बरनियों का उपयोग कर रहे हैं। उनकी किचन में आपको कोई नॉन-स्टिक बर्तन नहीं मिलेगा बल्कि वह लोहे की कढ़ाई या फिर मिट्टी के बर्तन ही उपयोग करते हैं।

4. बड़े मॉल या फिर ब्रांड्स की बजाय, गार्गी और किरण के कपड़े स्थानीय खादी या फिर सूती हैंडलूम से आते हैं जो सस्टेनेबल हैं।

5. हर साल गणेशोत्सव पर यह दंपति मिट्टी की मूर्ति बनाता है, जिसका विसर्जन घर पर ही बाल्टी में किया जाता है। इस मिट्टी को वह फिर से स्टोर कर लेते हैं ताकि अगले साल उसी से गणपति की मूरत बना पाएं।

Sustainable Home

किरण आगे कहते हैं कि उन्होंने अपने घर को भी बहुत हद तक सस्टेनेबल और इको-फ्रेंडली तरीकों से बनाया है। दीवारों के निर्माण के लिए उन्होंने मिट्टी, रेत और चुने का इस्तेमाल किया। मिट्टी भी उन्होंने पास के गाँव से मंगवाई थी। इसके अलावा, एक पुराने टूटे हुए घर से जो भी लकड़ी निकली थी, उससे उन्होंने अपने घर की खिड़कियाँ बनवाईं। घर में दरवाजे भी पुराने ही इस्तेमाल किए गए हैं।

उन्होंने कहा, “हमारा पुराना फर्नीचर भी हमने अपसायकल किया जैसे पुरानी डाइनिंग टेबल को ऑफिस की टेबल में बदला। पुराने लकड़ी के झूले से मेज बनाई। बेकार पड़े वायर स्पूल से स्टूल बना लिए और बहुत पुरानी सिलाई मशीन को हमें अपना वॉश बेसिन स्टैंड बनाया है। घर की सीढ़ियाँ भी पुरानी लकड़ी से ही बनी हैं।”

Wash Basin and Table made from old sewing machine and wooden cradle

पुरानी साड़ियों से पर्दे बनाए गए हैं और पर्दे टांगने के लिए बांस की रॉड का इस्तेमाल हुआ है। घर की खिडकियों को इस तरह से लगाया गया है कि प्राकृतिक रौशनी और हवा भरपूर मिले। साथ ही, कई जगह घर को खुला रखा गया है। इससे उन्हें दिन में कभी भी लाइट ऑन करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। उनके घर में एसी, वॉशिंग मशीन और माइक्रोवेव का इस्तेमाल नहीं होता और न ही वे कभी भी ऑनलाइन कुछ खरीदते हैं। गार्गी कहती हैं कि उनके बेटे के सारे खिलौने भी लकड़ी के ही हैं।

बारिश का पानी इकट्ठा करने के साथ-साथ, पिछले दो साल से वह किचन गार्डनिंग भी कर रहे हैं। खुद जैविक तरीकों से अपनी साग-सब्ज़ियाँ उगाते हैं। जिसके लिए उन्होंने पुराने डिब्बों और टायरों को इस्तेमाल किया है। बागवानी के साथ-साथ वह घर में ही खाद भी बनाते हैं।

Curtains from old sarees and holder is made up of bamboo

गार्गी कहती हैं कि सस्टेनेबल लाइफस्टाइल लोगों को मुश्किल लगती  है क्योंकि हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहाँ लोगों को अपने आराम के आगे पर्यावरण दिखाई नहीं देता। हमने ‘यूज एंड थ्रो’ के कल्चर को इस कदर अपना लिया है कि हम इससे बाहर नहीं निकलना चाहते। लोगों की सोच कि ‘सब चलता है’- सबसे बड़ी समस्या है और इसे बदलना बहुत ही ज्यादा मुश्किल।

“हमें लोगों को अपना लाइफस्टाइल समझाने में बहुत मुश्किल आती है। साथ देने की बजाय उनका सवाल होता है कि तुम्हारे अकेले के करने से क्या हो जाएगा। लेकिन हम जानते हैं कि हम क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। कुछ करना, कुछ भी न करने से ज्यादा महत्व रखता है,” उन्होंने आगे कहा।

आने वाले समय में अपनी कुछ योजनाओं के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि अब उन्हें घर में सोलर पैनल लगवाने हैं ताकि वह ग्रीन एनर्जी पर निर्भर करें। ग्रे वेस्ट और पानी के ट्रीटमेंट के लिए बायोडाइजेस्टर और एक छोटा सा सोलर कुकर और बायोगैस प्लांट लगाना है। साथ ही, गार्गी घर पर ही प्राकृतिक शैम्पू, टूथपेस्ट, वॉशिंग पाउडर और मॉइस्चराइजर बनाने के प्रयास भी कर रही हैं।

अंत में वह लोगों को सिर्फ एक ही सलाह देती हैं, “सस्टेनेबल लाइफस्टाइल जीना आसान है अगर आप कुछ भी खरीदने और फेंकने से पहले दो बार सोचें। बहुत-सी चीजें हैं जिनके बिना हम जी सकते हैं और लॉकडाउन ने हमें यह सिखा भी दिया है। इसलिए छोटे-छोटे कदम उठाएं क्योंकि यह सिर्फ हमारे पर्यावरण नहीं बल्कि हमारे लिए भी अच्छा है।”

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अगर आप गार्गी और किरण से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें banobatwo@gmail.com पर ईमेल लिख सकते हैं!


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