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केरल के इस दंपति ने ऐसा क्या किया कि 6000 रू. के बदले आया 150 रू. का बिजली बिल!

लीना और रवि के एक फैसले ने, न केवल बिजली के बिल को कम कर दिया बल्कि अब वे पर्यावरण को स्वच्छ रखने में भी योगदान दे रहे हैं।

‘एक खूबसूरत बंगला, बंगले के आगे हरा-भरा बगीचा, बगीचे में मन मोह लेने वाले गुलाबी और सफेद रंग के ताजे-ताजे बोगनविलिया के फूल’ – ऐसी जगह पर रहना, हर किसी की ख्वाहिश हो सकती है लेकिन केरल के कोच्चि शहर के एलाम्कुलम में रहने वाले लीना और रवि जॉर्ज के लिए यह एक खूबसूरत हकीकत है। 

सिर्फ इस घर की खूबसूरती ही नहीं, एक और खास बात है जो आपको हैरान कर देगी। इस घर में आने वाली बिजली का खर्च सिर्फ 150 रुपए है। हालांकि, ऐसा हमेशा से नहीं था। कुछ साल पहले तक इस घर में बिजली का बिल हर महीने 6000 रुपए या इससे भी ज्यादा आता था। लेकिन लीना और रवि के एक फैसले ने, न केवल बिजली के बिल को कम कर दिया बल्कि अब वे पर्यावरण को स्वच्छ रखने में भी योगदान दे रहे हैं। उनकी घर की छत पर चौबीस सोलर पैनल लगे हुए हैं। इन सोलर पैनल के जरिए इनका घर चौबीस घंटे रौशन रहता है, यानी पूरे घर को बिजली इन सोलर पैनल से मिलती है।

लीना पेशे से इंटीरियर डिजाइनर हैं जबकि रवि इंजीनियर हैं। दोनों ने करीब साढ़े छह साल पहले घर में बिजली के लिए सोलर पावर का इस्तेमाल करने का सोचा और तब से लेकर आज तक इन दोनों का आशियाना सोलर पावर से ही रौशन रहता है। इतना ही नहीं इस तकनीक के जरिए उन्होंने अपने बिजली बिल के बोझ को भी काफी हल्का किया है। पहले महीने में जहां उन्हें 6000 रुपए का बिल भरना पड़ता था, अब केवल 150 रुपए देने पड़ते हैं।

सोलर ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल ने लीना और रवि जॉर्ज का नाम कोच्चि के मॉडल सस्टेनेबल होम्स के मालिकों की लिस्ट में भी शुमार किया है। जॉर्ज दंपत्ति की यह संपत्ति 3500 वर्ग फुट में फैली है। घर में अत्याधुनिक वास्तुकला और बेहतरीन इंटीरियर डिज़ाइनिंग का नमूना देखने मिलता है। जाहिर सी बात है कि ऐसे में बिजली की खपत भी ज्यादा है।

Leena George in front of her home

सोलर पावर से बिजली बिल में भारी कटौती

द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए लीना ने बताया, “एक समय ऐसा था जब हमें दो महीने के बिजली बिल के लिए 12,000 या उससे भी ज्यादा खर्च करने पड़ते थे।”

कोच्चि के उमस भरे मौसम में, पंखा, कूलर, एसी का इस्तेमाल बढ़ता है और इसके साथ ही बढ़ता है बिजली का बिल भी। लाख कोशिश के बावजूद जॉर्ज दंपत्ति बिजली की खपत को कम करने में असफल रहे। फिर उन्होंने सोलर एनर्जी आज़माने का सोचा और अपनी घर की छत पर सोलर पावर यूनिट लगाया। हालांकि, मानसून के दौरान बिल थोड़ा ज्यादा आता है लेकिन बाकि पूरे साल ये खर्च कई गुना कम हुआ है।

2014 में, सोलर एनर्जी एक बहुत ही नया ट्रेंड था लेकिन लीना और रवि ने इसे अपनाने का फैसला किया और आज उन्हें अपने फैसले पर गर्व है।

The solar power generator

इस फैसले के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, “हमने काफी रिसर्च किया और फिर पाया कि सोलर हमारे लिए काफी किफायती होगा। घर में इस्तेमाल होने वाली बिजली की चीजों के लिए हम सोलर में स्विच हो गए। शुरुआत में बैटरी से चलने वाले सोलर पावर जनरेटर का इस्तेमाल होता था। उसमें कुछ खामियां थी। जैसे कि वह काफी जगह लेता था। केवल बैटरी रखने के लिए ही एक पूरे कमरे की जरूरत होती थी, फिर रखरखाव भी एक अलग परेशानी थी। इसलिए, हमने लगभग तीन साल पहले ग्रिड सिस्टम पर स्विच किया और यह सबसे अच्छी सर्विस दे रहा है।”

सोलर ग्रिड लगाने से घरों में बिजली जाने की संभावना लगभग समाप्त हो गई है। इसके जरिए लगभग 6 किलोवाट के उत्पादन के साथ, हाई पावर वाले रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन और एयर-कंडीशनर सहित घर में बिजली से चलने वाली सारी चीजों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

अन्य स्थायी पहलू

सोलर पावर के अलावा, लीना ने अपने घर पर ही बायोगैस और खाद बनाने की पूरी तैयारी की हुई है। घर का सारा बायोडिग्रेडेबल कचरा, घर के पिछले आंगन में बने पारंपरिक मिट्टी कम्पोस्ट इकाई में जाता है, जहां से उन्हें अपने जैविक बगीचे के लिए हरी खाद मिलती है। दरअसल 66 वर्षीय लीना पिछले 16 वर्षों से खाद बनाने की शौकीन रही हैं। इस कम्पोस्ट इकाई से उन्हें अपने घर के लिए 2 घंटे का बायोगैस भी मिल जाता है।

बड़े गर्व के साथ लीना बताती हैं, “मेरे सभी पत्तेदार साग, सब्जियां और फलों के पेड़ घर के कचरे से पोषित होते हैं। कम्पोस्ट इकाई से हमें खाना पकाने का कुछ ईंधन भी प्राप्त होता है। कुछ प्लास्टिक की पैकेजिंग को छोड़कर, कोई भी कचरा मेरे घर से बाहर नहीं जाता है। ”

इस जोड़े द्वारा तैयार किये गए सस्टेनेबल होम ने आस-पास रहने वाले कई लोगों को सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल करने की प्रेरणा दी है। लीना की इच्छा है कि भविष्य में वह अपने घर में एक वर्षा जल संचयन इकाई यानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग यूनिट भी लगाएं। साथ ही वह व्यक्तिगत रूप से, ज़ीरो-प्लास्टिक जीवन शैली अपनाने के रास्ते पर हैं।

मूल लेख – सायंतनी नाथ

संपादन – अर्चना गुप्ता


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