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Global Teacher Award: जानिए कौन हैं 7 करोड़ रुपए जीतने वाले शिक्षक रंजीत सिंह दिसाले

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ग्लोबल टीचर पुरस्कार से सम्मानित दिसाले साल 2016 में उस वक्त भी सुर्खियों में थे, जब उन्होंने स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को लेकर, एक क्यूआर कोड प्रणाली की शुरुआत की थी, जिसे कई राज्यों द्वारा अपनाया गया था।

आज से एक दशक पहले, 2009 में, रंजीत सिंह दिसाले जब महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पारितेवादी गाँव स्थित प्राथमिक विद्यालय पहुँचे, तो स्कूल की हालत काफी बदहाल थी। ऐसा मालूम पड़ता था कि यह कोई पशुओं को रखने की जगह है, या स्टोर रूम के रूप में काम आती थी।

यहाँ के अधिकांश छात्र आदिवासी समुदाय के थे और यहाँ लोगों को अपने बच्चों, खासकर लड़कियों को पढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। क्योंकि, उनका विचार था कि इससे कुछ बदलने वाला नहीं है।

लेकिन, दिसाले ने परिस्थितियों को बदलने का जिम्मा अपने कंधों पर उठाया और टेक्नोलॉजी की मदद से पूरी शिक्षा व्यवस्था को ही बदल दिया।

उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि आज यह स्कूल पूरी दुनिया में अपना नाम कमा रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों को बढ़ावा देने और उन्हें तकनीक से जोड़ने की कोशिशों के लिए 32 वर्षीय दिसाले को हाल ही में, प्रतिष्ठित ग्लोबल टीचर प्राइज का पुरस्कार दिया गया। इसके तहत, उन्हें 10 लाख डॉलर यानी लगभग 7.38 करोड़ रुपए मिले।

दिसाले को यह पुरस्कार वर्की फाउंडेशन  द्वारा दिया गया। इस पुरस्कार के लिए 12000 शिक्षकों ने अपने नामांकन दर्ज कराए, जिनमें से सिर्फ 10 लोगों को चुना गया। 

हालांकि, दिसाले अब इस राशि का आधा हिस्सा अपने साथियों को देने का एलान कर चुके हैं।

उन्होंने इस कार्यक्रम के लाइव टेलीकास्ट के दौरान एक इंटरव्यू में होस्ट स्टीफन फ्राई को बताया, “मैं इस राशि का आधा हिस्सा, इस प्रतियोगिता के नौ अन्य प्रतिभागियों के साथ बाँटने की घोषणा करता हूँ। हम शिक्षक हमेशा देने और बाँटने में यकीन करते हैं।”

पूरा वीडियो यहाँ देखें – 

दिसाले ने आगे इसके कारणों का उल्लेख करते हुए कहा है कि उन्होंने भले ही यह पुरस्कार जीता हो, लेकिन वह अकेले इस दुनियो को नहीं बदल सकते हैं। इसलिए सभी प्रतिभागियों को अपना असाधारण काम जारी रखने के लिए समान अवसर मिलना चाहिए।

जबकि, शेष राशि में से  30% हिस्सा भारत के टीचर इनोवेशन फंड के लिए समर्पित होगी। दिसाले द्वारा महाराष्ट्र टाइम्स को दिए एक बयान के अनुसार, “इनाम का 20 फीसदी हिस्सा, युद्ध क्षेत्रों में पीस आर्मी के गठन के लिए खर्च होगा, जिसके तहत करीब 5 हजार छात्रों को एकजुट किया जाएगा।”

द टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, दिसाले ने अपने प्रयास के तहत लड़कियों और उनके माता-पिता को शिक्षा के महत्व को समझाने पर जोर दिया। उनके प्रयासों की बदौलत, आज गाँव में किशोरावस्था में कोई विवाह नहीं होते हैं और स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति दर 100 फीसदी है।

पूर्व में, उनके इस स्कूल को महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ विद्यालय का पुरस्कार भी मिल चुका है।

इसके अलावा, दिसाले साल 2016 में उस वक्त भी सुर्खियों में थे, जब उन्होंने स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को लेकर, एक क्यूआर कोड प्रणाली की शुरुआत की थी, जिसे कई राज्यों द्वारा अपनाया गया था।

दरअसल, यह बात उस वक्त की है, जब दिसाले ने क्यूआर कोड स्कैन कर रहे एक शख्स को देखा और उन्हें विचार आया कि इसी तकनीक का इस्तेमाल कर, क्यों न पाठ्यपुस्तकों को डिजीटल फार्मेट में बदला जाए।

इसके साथ ही एक और समस्या थी कि अधिकांश किताबें अंग्रेजी में थी, लेकिन दिसाले ने एक-एक करके किताबों का मातृभाषा में अनुवाद किया और उसमें क्यूआर कोड जोड़ दिया, ताकि छात्र वीडियो लेक्चर अटेंड कर सकें और अपनी ही भाषा में कविताएँ और कहानियाँ सुन सकें।

इसके बाद, दिसाले ने साल 2017 में महाराष्ट्र सरकार को इस तकनीक को पाठ्यक्रम को जोड़ने का प्रस्ताव दिया। इसके बाद, राज्य सरकार ने प्रायोगिक स्तर पर इस पर अमल करने के बाद घोषणा की कि वह इसे सभी श्रेणियों के लिए लागू करेगी। वहीं, एनसीईआरटी ने भी इस तकनीक अपनाने की घोषणा कर दी।

हालांकि, ग्लोबल टीचर अवॉर्ड दिसाले के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार नहीं है। पूर्व में, उन्हें  माइक्रोसॉफ्ट द्वारा ‘इनोवेटिव एजुकेटर एक्सपर्ट’ का पुरस्कार भी दिया जा चुका है। इसके अलावा, उन्होंने भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान-2018 के सर्वश्रेष्ठ इनोवेटर का पुरस्कार भी जीता।

मूल लेख – HIMANSHU NITNAWARE

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संपादन – जी. एन झा

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