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इस सॉफ्टवेयर की मदद से गरीब बच्चों को वापिस स्कूल से जोड़ रही हैं कैप्टेन इंद्राणी सिंह!

कैप्टेन इंद्राणी सिंह ने साल 1996 में हरियाणा के गुडगांव में लिटरेसी इंडिया एनजीओ शुरू किया। लिटरेसी इंडिया का मुख्य केंद्र आज गुरुग्राम के बजघेड़ा गाँव में है। इस एनजीओ का उद्देश्य गरीब बच्चों की शिक्षा की दिशा में काम करना था। इसके लिए उन्होंने ज्ञानतंत्र डिजिटल दोस्त उद्भव सोफ्टवेयर बनवाया है।

कोनोमिक सर्वे 2016- 2017 के अनुसार, हर साल भारत में लगभग 90 लाख लोग शिक्षा या रोजगार के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करते हैं। इन लोगों में सबसे ज्यादा संख्या दैनिक वेतन पर काम करने वाले मजदूरों की है।

पेट के लिए दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए इन लोगों को न चाहते हुए भी बहुत-सी ज़रूरी चीजों को ताक पर रखना पड़ता है। जैसे कि इनके बच्चों की शिक्षा!

शहरों में दिहाड़ी-मजदूरी करने वाले ज्यादातर लोगों के बच्चों की शिक्षा या तो कभी शुरू ही नहीं होती और अगर होती भी है तो बीच में छूट जाती है।

ऐसे में इन परिवारों के बच्चों का आगे का जीवन भी अंधकारमय हो जाता है। हमारे देश में बहुत-से संगठन व संस्थाएं इन गरीब बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। पर जब भी पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों को वापिस स्कूल भेजने की मुहीम पर काम किया जाता है, तो एक और बड़ी समस्या सामने आती है और वह है कि उम्र में बड़े छात्रों को छोटे बच्चों के साथ कक्षा में बैठने में हिचक व शर्म महसूस होती है। जिसके कारण वे फिर से स्कूल जाने से कतराते हैं।

बच्चों की इसी मानसिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए, एशिया की पहली महिला कमर्शियल पायलट और समाजसेवी संस्था ‘लिटरेसी इंडिया‘ की संस्थापक, कैप्टेन इंद्राणी सिंह ने एक खास सॉफ्टवेर बनवाया जिसका नाम है ‘ज्ञानतंत्र डिजिटल दोस्त (जीडीडी)’

इस सॉफ्टवेयर की मदद से बच्चे कम समय में ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।

ज्ञानतंत्र डिजिटल दोस्त सॉफ्टवेयर पर पढ़ते बच्चे

ज्ञानतंत्र डिजिटल दोस्त सॉफ्टवेयर के ज़रिये बच्चों को बेसिक कोर्स के साथ-साथ सॉफ्ट स्किल्स आदि के बारे में भी पढ़ाया जाता है। इसमें कक्षा पांच तक के सभी विषयों के कोर्स के शिक्षण मोड्यूल बनाये गये हैं, जिसकी सहायता से किसी भी उम्र के बच्चे आसानी से लिखना-पढ़ना सीख सकते हैं। सभी मोड्यूल्स को बहुत ही रचनात्मक ढंग से डिज़ाइन किया गया है, ताकि बच्चों के लिए पढ़ाई बोझ नहीं बल्कि उनके खेल का एक हिस्सा बन जाए। साथ ही बच्चों के विकास और उनकी तरक्की को समय-समय पर जांचने के लिए इस सॉफ्टवेयर में अलग-अलग तरह के असाइनमेंट्स और प्रोजेक्ट हैं।

शैक्षणिक कोर्स के अलावा इसमें बाल उत्पीड़न, यौन शोषण, बाल श्रम आदि बच्चों से जुड़े मुद्दों के बारे में भी बताया गया है, ताकि इन बच्चों में इन सभी बातों के प्रति जागरूकता बढ़े।

जब ये बच्चे एक बार जीडीडी प्रोग्राम को पूरा कर लेते हैं, तो उन्हें उनकी उम्र के हिसाब से रेगुलर कक्षाओं में भेज दिया जाता है। इससे बच्चों की कई कक्षाओं की पढ़ाई कम समय में पूरी हो जाती है। इस सॉफ्टवेयर की शुरुआत लिटरेसी इंडिया ने साल 2010 में की थी।

आज नई दिल्ली / एनसीआर, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में 106 केंद्रों पर जीडीडी कार्यक्रम चल रहा है। अब तक लगभग 1 लाख बच्चों के जीवन में इस सॉफ्टवेयर से बदलाव आया है। इसके अलावा इस प्रोग्राम को अब महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, आदि में भी शुरू करने की योजना पर लिटरेसी इंडिया काम कर रहा है। प्रोग्राम के बढ़ते स्केल को देखते हुए अब इसे ‘ज्ञानतंत्र डिजिटल दोस्त उद्भव’ नाम दिया गया है।

अपनी आगे की योजना पर बात करते हुए लिटरेसी इंडिया के प्रोजेक्ट डायरेक्टर सोहित यादव ने बताया कि अब उनका ध्यान ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों व ऐसे संगठनों से जुड़ने पर है जो शिक्षा की दिशा में काम कर रहे हैं। साथ ही वे चाहते हैं कि सभी राज्यों की सरकारें भी इस तरह के तकनीक के साथ पढ़ाई पर ध्यान दें।

इसके अलावा उनकी मुहीम ‘इच वन, टीच वन’ है जिसका मतलब है कि हर कोई पढ़ा-लिखा इंसान कम से कम एक दुसरे इंसान को पढ़ाए ताकि लोगों के बीच शिक्षा का यह अंतर खत्म हो। साथ ही, उनकी कौशल क्षमता बढ़े। इस सोफ्टवेयर को कोई भी कभी भी आसानी से डाउनलोड कर सकता है।

आज के बच्चे आने वाले कल की धरोहर हैं। इसलिए इनके सम्पूर्ण विकास पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। लिटरेसी इंडिया के माध्यम से जो भी बच्चे शिक्षा पा रहे हैं, उन सभी को कॉपी-किताब, कपड़े- जूते आदि एनजीओ की तरफ से ही दिए जाते हैं। इतना ही नहीं बच्चों को मिड-डे मील भी दिया जाता है।

कैप्टेन सिंह कहती हैं,  “लिटरेसी इंडिया के हर उद्देश्य को पूरा करने में टेक्नोलॉजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्कूल से ड्रॉपआउट बच्चों को फिर से शिक्षा से जोड़ने में इस सॉफ्टवेयर का अहम योगदान रहा। हमें ख़ुशी है कि इसकी मदद से हम उन बच्चों की समस्याओं का हल कर पा रहे हैं, जो फूटपाथ या फिर झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं। ये वो बच्चे हैं जिनकी शिक्षा किसी न किसी वजह से छूट गयी या फिर जो कभी स्कूल गए ही नहीं। पर अब उन्हें लिटरेसी इंडिया की मदद से पढ़ने का मौका मिल रहा है। लेकिन अगर आप एक 12 साल के बच्चे को नर्सरी या पहली कक्षा में बिठाएंगे तो वह नहीं पढ़ पायेगा।”

द बेटर इंडिया के माध्यम से लिटरेसी इंडिया अपने इस प्रोग्राम के बारे में जागरूकता फैलाना चाहता है, ताकि लोगों को इसके बारे में पता चले और जो भी व्यक्ति कुछ अच्छा करने की चाह रखता है वह इससे जुड़कर समाज में अपना योगदान दे सकते हैं।

यदि आप लिटरेसी इंडिया से सम्पर्क करना चाहते हैं तो प्रोजेक्ट डायरेक्टर सोहित यादव को sohityadav@literacyindia.org पर ईमेल कर सकते हैं।

संपादन – मानबी कटोच


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