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होम स्टे के ज़रिये बचाया विलुप्त हो रहे हिम तेंदुओं को, दो लद्दाखियों की अद्भुत कहानी

दो लद्दाखी वन्य जीव संरक्षकों की बदौलत आज हिम तेंदुओं का अस्तित्व है। उन्होंने हिम तेंदुओं को होम स्टे के ज़रिये कैसे बचाया, यह उसकी रोचक कहानी है।

जब लद्दाख में हिम तेंदुओं (Snow Leopard) के संरक्षण का इतिहास लिखा जाएगा, तब दो नाम हमेशा औरों से अधिक चर्चित रहेंगे- स्नो लेपर्ड कंज़र्वेन्सी इंडिया ट्रस्ट (SLC-IT) के दिवंगत सह-संस्थापक रिनचेन वांगचुक और SLC-IT के वर्तमान निदेशक और यकीनन लद्दाख के सबसे कुशल वन्यजीव वैज्ञानिक, 46 वर्षीय डॉ. सेवांग नमगेल।

हिम तेंदुए (Snow Leopard) बहुत फुर्तीले शिकारी जीव हैं, जो लद्दाख की पारिस्थितिक (इकोलॉजिकल) अखंडता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभातें है। उनकी रक्षा में रिनचेन वांगचुक और डॉ. सेवांग नमगेल का बहुत बड़ा योगदान है। होमस्टे के प्रचार के माध्यम से, भारत के पहले सफल समुदाय-आधारित (कम्युनिटी बेस्ड) हिम तेंदुए (Snow Leopard) के संरक्षण के प्रयासों से लेकर लद्दाख की जनता को इस दुर्लभ जीव के बारे में शिक्षित करने तक, उन्होंने इस अभियान के लिए बहुमूल्य सेवा प्रदान की है।

(Snow Leopard)
Rinchen Wangchuk (Left) and Dr. Tsewang Namgail (Right)

प्रकृति माँ की गोद में

दो महावीर चक्रों से सम्मानित भारतीय सेना के सिपाही, कर्नल चेवांग रिनचेन के पुत्र रिनचेन वांगचुक, नुब्रा घाटी के बेहद शांत गांव, सुमुर में पले-बढ़े हैं।

रिनचेन इस शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री में कहते हैं, “मेरा बचपन, लिंक्स (Snow Leopard) का पीछा करते हुए और चरवाहों के साथ घूमते हुए बीता। मुझे हमेशा बाहरी जीवन और पर्वतों पर चढ़ाई करना आकर्षित करता था। हाई स्कूल में, मैंने पश्चिमी समूहों के साथ भाग लेना शुरू कर दिया तथा यहाँ मौजूद छह हजार मीटर की चोटियों पर चढ़ाई भी की। एक पर्वतारोही के रूप में, मैं लद्दाख की सुन्दरता और समृद्ध जैव विविधता की ओर बेहद आकर्षित हुआ। मुझे हिम तेंदुओं (Snow Leopard) और भेड़ियों को जानने का मौक़ा भी मिला। इन कारणों से मैं एक नेचर गाइड बन गया। मैंने कुछ वाइल्ड लाइफ डाक्यूमेंट्री फिल्म समूहों का नेतृत्व करना शुरू किया, जो यहां हिम तेंदुओं (Snow Leopard) को फिल्माने के लिए आते थे। वहां से, मैं वैज्ञानिक समुदाय के साथ जुड़ गया।“

वहीं, डॉ. सेवांग नमगेल, स्कुर्बुचन के एक सुदूर, मनोरम गाँव में पले-बढ़े, जो लेह से लगभग 125 किमी दूर है। नौ साल तक उन्होंने, गांव के बच्चों के साथ, खुले आसमान के नीचे पढ़ाई की।

डॉ. नमगेल द बेटर इंडिया से बात करते हुए कहते हैं, “इसने मुझे वास्तव में वन्य जीवन और मेरे प्राकृतिक परिवेश से अवगत कराया। मैं रोज़ स्कूल जाता था, जबकि वीकेंड, भेड़-बकरियों को उँचे चारागाहों (मैदानों) में चराने में बीत जाता था। इन अनुभवों ने मुझे हिम तेंदुए (Snow Leopard) के साथ-साथ, वन्यजीवन के संपर्क में ला दिया। बाल चरवाहे के रूप में, मेरे कुछ भेड़ और बकरियां हिम तेंदुओं (Snow Leopard) के शिकार हो गए थे। जब तक मैंने अपना गाँव नहीं छोड़ा, तब तक मुझे वास्तव में कभी, औपचारिक परवरिश का अनुभव नहीं हुआ। खासकर तब, जब शिक्षा की बात आती है। क्योंकि, हमारे शिक्षक नियमित रूप से हमें पढ़ाने नहीं आते थे।“

(Snow Leopard)
डॉ. नमगेल कैमरा ट्रैप सेट करते हुए।

हालांकि, रिनचेन की शुरुआती परवरिश सुमुर में हुई। उनके पिता अपने पेशे के कारण भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा करते रहते थे। जिस वजह से उन्हें नियमित रूप से अपना स्कूल बदलना पड़ा। दिल्ली से ग्रैजुएशन करने के बाद, वह 1990 के दशक के अंत में ‘अंतर्राष्ट्रीय स्नो लेपर्ड ट्रस्ट’ के साथ एक क्षेत्र सहयोगी (field associate) के रूप में काम करने के लिए, लद्दाख लौटे और विभिन्न सर्वेक्षणों का संचालन किया।

शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री में रिनचेन कहते हैं, “जिग्मेट दादुल (भारत के प्रमुख स्नो लेपर्ड प्रकृतिवादियों (नैचुरलिस्ट) और ट्रैकर्स में से एक) जैसे सहयोगियों के साथ, हम पूरी सर्दी टेंट में रहने और हिम तेंदुओं (Snow Leopard) की निगरानी करने में निकाल देते थें। यह तब था, जब हमें ग्रामीण समुदायों की दुर्दशा का एहसास हुआ, जिन्हें इस खूबसूरत मगर खूंखार जानवर के साथ जीना पड़ता था। ये जानवर हमारे लिए तो बेहद सुंदर और रहस्यमई थे। लेकिन कृषि समुदायों को काफ़ी उपद्रव झेलना पड़ता था। एक नैचुरलिस्ट के रूप में काम करते हुए, मैं इन समुदायों के लिए कुछ करना चाहता था। यह शुरू हुआ, हाई ऑल्टीट्यूड हेमिस नेशनल पार्क (High-altitude Hemis National Park) के सर्वे में वालंटियर करने से। मैंने महसूस किया कि हमें इस समस्या के लिए एक स्थायी समाधान की जरूरत है। यह जरूरी हो गया था कि हम किसानों की मदद करने के लिए प्रोत्साहन-आधारित संरक्षण (incentive-based conservation) की पहल करें और उन्हें संरक्षण के प्रयासों में शामिल करें।“  

डॉ. नमगेल ने एक अलग रास्ता अपनाया। पंजाब विश्वविद्यालय से जीव विज्ञान (Zoology) में M.Sc करने के बाद, उन्होंने नॉर्वे के ट्रोम्सो विश्वविद्यालय से, वाइल्ड लाइफ जीवविज्ञान में M.Sc की और नीदरलैंड के वैगनिंगन विश्वविद्यालय से, वाइल्ड लाइफ इकोलॉजी में PhD की। यूरोप में अपने कार्यकाल के बाद, वह 2013 में लद्दाख लौटने से पहले, तीन साल के लिए युनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे (USGS) में एक पोस्टडॉक्टरल रिसर्चर थे।

(Snow Leopard)
(छवि सौजन्य एसएलसी-आईटी (SLC-IT))

समुदाय की रक्षा करना

एक फील्ड सहयोगी के रूप में, रिंचेन वांगचुक ने एक प्रश्न तैयार किया, जो हिम तेंदुए (Snow Leopard) के संरक्षण की मूलभूत चुनौती के बारे में था। आप उन स्थानीय समुदायों की ज़रूरतों के साथ हिम तेंदुए (Snow Leopard) के संरक्षण की धारणा को कैसे सुलझाते हैं, जो अपने पशुओं, विशेष रूप से भेड़ और बकरियों को इन फुर्तीले जीवों के कारण खो देते हैं? हिम तेंदुए मुख्य रूप से इन समुदायों के द्वारा, बदले की भावना से मारे जा रहे थे। आज लद्दाख में, 250 से कुछ अधिक ही हिम तेंदुए बचे हैं।

डॉ. नमगेल याद करते हुए कहते हैं, “एक तरफ, हमारे पास इन जानवरों के संरक्षण का दायित्व है, तो दूसरी तरफ, ये जीव लोगों के जीवन के लिए एक वास्तविक खतरा पैदा करते हैं। शुरुआती दिनों में, मैं रिनचेन वांगचुक के साथ हेमिस नेशनल पार्क के कुछ दूरदराज के गांवों में, एक स्वतंत्र वाइल्ड लाइफ रिसर्चर के रूप में जाता था और उनसे इन जानवरों के संरक्षण के बारे में बात करता था। वे हैरान हो जाते थे कि हमारी इच्छा एक ऐसे जानवर की रक्षा करने की है, जिससे वे घृणा करते थे और यहां तक ​​कि हमने हमारे संगठन का नाम भी उनके नाम से रखा है।”

इन चिंताओं को दूर करने के लिए, रिनचेन ने साल 2000 में, अमेरिका स्थित स्नो लेपर्ड कंज़रवेंसी (SLC) के डॉ. रॉडनी जैक्सन के साथ, SLC-IT की स्थापना की, जो 2003 में रजिस्टर हुआ था। जिससे समुदाय-आधारित संरक्षण प्रयासों के लिए, स्थानीय प्रयासों को बढ़ावा मिल सके। साल 2010-11 तक, स्वतंत्र होने से पहले, SLC-IT ने SLC के सहयोगी के रूप में काम किया।

फोटो: हिम तेंदुओं (Snow Leopard) के हमलों की चपेट में आ सकने वाला एक खुला बाड़ा (कोरल)। (छवि सौजन्य एसएलसी-आईटी (SLC-IT))

डॉ. नमगेल कहते हैं, “SLC-IT ने एक कदम मवेशियों के बाड़ों को सुरक्षित करने के लिए उठाया। रिनचेन को यह समझ आया कि हिम तेंदुओं की हत्या, लोग अपने मवेशियों को बचाने के लिए करते थे। दरअसल, ये हिम तेंदुए कमजोर तरीके से बने हुए बाड़ों में आसानी से घुस जाते थे। हमने मवेशियों को सुरक्षित करने के लिए, बाड़ों की छतों पर तार के जाल लगाएं, इन जालों को सहारा देने के लिए लकड़ी के बीम, और दरवाज़े के फ्रेम को मज़बूत करने के लिए जरूरी मटेरियल की आपूर्ति की। कभी-कभी, हम उन्हें पूरे बाड़े को ही दुबारा पत्थर से बनाने के लिए कहते हैं, क्योंकि उनके घरों से जुड़े बाड़ों की मरम्मत करना मुश्किल होता है।“

साल 2000 से अब तक,  SLC-IT ने लद्दाख में 200 से अधिक मवेशियों के बाड़े बनाने में मदद की है। हालांकि, इस पहल (शिकारी-प्रजाति के पशुओं से बचाव के लिए, बाड़ों को विकसित करना) की ज्यादातर सफलता की कहानियाँ ज़ंस्कार में सुनने को मिलती है। जहाँ यह कार्यक्रम 2011 में शुरू हुआ था। इनमें से कुछ गाँव दूर बीहड़ों में हैं और यहाँ सामान ले जाना बहुत मुश्किल है। ये बाड़े न सिर्फ लोगों, बल्कि पूरे गाँव के लिए कारगर हैं।

वे कहते हैं, “कुल मिलाकर लगभग पांच हजार लोगों को इन बाड़ों से लाभ हुआ है। हमने अनुमान लगाया कि हमारे द्वारा बनाया गया हरेक बाड़ा, 60-70 वर्षों तक रह सकता है। इससे हम कम से कम 2 हिम तेंदुओं को बचा सकते हैं। जिस हिसाब से लोग अपने बाड़ों के अंदर हिम तेंदुओं को मारते हैं, उसके आधार पर यह एक बहुत ही कच्चा अनुमान है। हम हमेशा इन लोगों के साथ साझेदारी में, इन बाड़ों का निर्माण करते हैं। स्थानीय ग्रामीण बाड़े निर्माण की जगहों पर, पत्थर और ईंट जैसे मटेरियल पहुंचाते हैं। ऐसे गाँव जहां पेड़ हैं, वे लकड़ी के बीम देते हैं, जो ऊपर लगे स्टील के जाल को सहारा देते हैं। जिन गांवों में पेड़ नहीं होते, हम वहाँ उन्हें लकड़ी के बीम और दरवाज़े के फ्रेम के लिए मटेरियल उपलब्ध कराते हैं। वे यहाँ बाड़े का निर्माण करते हैं, जबकि हम यहाँ लगने वाले मटेरियल की आपूर्ति करते हैं और प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाते हैं।”

एक सुरक्षित कोरल/बाड़ा (छवि सौजन्य एसएलसी-आईटी (SLC-IT))

इनमें से अधिकांश बाड़े के प्रोजेक्ट, चांगथंग की शाम घाटी तथा रोंग घाटी, ज़ंस्कार और कुछ नुब्रा जैसे बीहड़ दिगर-तंगियार ग्रामीण इलाकों में हैं।  SLC-IT दुनियाभर के स्कूल और कॉलेज के छात्रों के लिए एक वॉलंटरी कार्यक्रम भी चलाता है, जिसे VolunTourism कहा जाता है।

ये छात्र लद्दाख के दूरदराज़ के गांवों में 7 से 10 दिन तक बिताते हैं और स्थानीय परिवारों के साथ रहने और उनकी संस्कृति के बारे में जानने के साथ-साथ, बाड़ा बनाने में भी मदद करते हैं।

इसके बाद उनका अगला कदम, हिम तेंदुओं के प्रति स्थानीय लोगों के नजरिये को सौम्य बनाना था। साल 2003 में, रिनचेन के नेतृत्व में  SLC-IT ने हेमिस नेशनल पार्क की रूंबक घाटी में ‘हिमालयन होमस्टे कार्यक्रम’ की शुरुआत की। जिससे ग्रामीणों को, हिम तेंदुओं द्वारा मवेशियों को मारने से होने वाली आर्थिक हानि से, निपटने में मदद मिल सके। उस समय, डॉ. नमगेल तिब्बती अर्गाली (जंगली पहाड़ी भेड़) पर शोध कर रहे थे और रिनचेन वांगचुक के साथ इन हिस्सों का दौरा कर रहे थे।

डॉ. नमगेल कहते हैं, “ये रूंबक गांव की कुछ महिलाएं ही थीं, जिन्होंने पहली बार रिनचेन को इस स्थानीय होमस्टे मॉडल का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने सुझाव दिया, ‘बाहर कैंप बनाने और जगह-जगह कूड़ा डालने के बजाय, पर्यटक हमारे साथ, हमारे घरों में क्यों नहीं रह सकते?’ अगर पर्यटक उनके घरों में रहते हैं, तो वे घोड़ों पर, शिविर का सामान ले जाने की परेशानी से बच सकते हैं। साथ ही वे घोड़े, जो असुरक्षित तिब्बती अर्गालियों का चारा रास्ते में खा जाते हैं, नहीं खा पाएंगे।  SLC-IT ने इस क्षेत्र में पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच एक सर्वेक्षण भी किया कि क्या ऐसा मॉडल उन्हें मंज़ूर होगा।”

अब तक,  SLC-IT ने शाम घाटी, रोंग घाटी और ज़ंस्कार में 200 से ज्यादा होमस्टे स्थापित करने में मदद की है। ये होमस्टे, हिम तेंदुओं के रहने की जगह या लोकप्रिय ट्रेकिंग मार्गों पर हैं। ट्रेकिंग मार्गों की स्थिति और लोकप्रियता के आधार पर निवासी 15 हजार रुपये से 2.5 लाख रुपये हर मौसम (पर्यटक सीजन लगभग छह महीने रहता है) कमा रहे हैं। होमस्टे के अलावा, SLC-IT स्थानीय हस्तकला उत्पादों की बिक्री को प्रोत्साहित करता है, जिसे पर्यटक स्मृति चिन्ह के रूप में घर ले जा सकते हैं। साथ ही, SLC-IT ट्रेकिंग मार्गों में स्थानीय व्यंजन परोसने वाले इको कैफे का निर्माण तथा सोलर वॉटर हीटर का प्रावधान करते हैं।

डॉ. नमगेल कहते हैं, “संरक्षण से जुड़े घरों को पहले लद्दाख में शुरू किया गया था और फिर ये धीरे-धीरे हिमालय के अन्य क्षेत्रों में चले गए। यह हिम तेंदुओं के संरक्षण में स्थानीय समुदायों का समर्थन प्राप्त करने का एक अच्छा तरीका बन गया। यहाँ सिर्फ हिम तेंदुए नहीं, बल्कि भेड़िये भी थे, जिन्हें चरवाहों से अपनी जान का जोखिम था। वही लोग, जिन्होंने पहले इन तेंदुओं को मार डाला था, वे अब पर्यटकों को अपने गांवों में हिम तेंदुओं और अन्य जंगली जीवों को देखने के लिए आमंत्रित करते हैं। ये होमस्टे सबसे पहले हेमिस नेशनल पार्क में रूंबक में शुरू किए गए थे, जिसे राज्य वन्यजीव विभाग ने 2006 में अपने अधिकार में ले लिया।”

हिमालयन होमस्टे प्रोग्राम। (छवि सौजन्य पैंथेरा के ब्लॉग)

26 मार्च 2011 को, केवल 42 वर्ष की आयु में रिनचेन का निधन हो गया। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए, सैंक्चुअरी एशिया में सुजाता पद्मनाभनलिखती हैं, “रिनचेन के मार्गदर्शन और नेतृत्व में SLC-IT की टीम ने हेमिस नेशनल पार्क में लद्दाख और ज़ांस्कर के शाम क्षेत्र में सामुदायिक-आधारित पर्यटन के सबसे सफल मॉडल में से एक का विकास किया। लद्दाख हिमालयन होमस्टे कार्यक्रम ने लोकप्रिय ट्रेकिंग मार्गों के साथ, गांवों में सबसे गरीब परिवारों को पर्यटन से आय अर्जित करने में मदद की। इसने, कुछ हद तक, आर्थिक नुकसान की भरपाई करने में मदद की, जो उनके पशुधन को हिम तेंदुओं और तिब्बती भेड़ियों द्वारा शिकार किए जाने पर हुआ था और शिकारियों के प्रति ग्रामीणों के नज़रिए में बदलाव भी लाया।”

कई विशेषज्ञ मानते हैं कि पिछले 10-15 वर्षों में हिम तेंदुओं के प्रति स्थानीय दृष्टिकोण में पूरी तरह बदलाव आया है। इन नाराज़ किसानों को सक्रिय संरक्षणकर्ताओ में परिवर्तित करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। आज स्थानीय लोग ऊँची जगह पर पहुंचकर सकारात्मक आशा से देखते हैं कि क्या एक माँ हिम तेंदुए ने अपने बच्चों को जन्म दिया है या नहीं।

विकल्प संगम प्रकाशन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, “हालांकि, उच्च चारागाहों पर कभी-कभार हत्या कायम रही। इसे हल करने के लिए, SLC-IT ने एक समुदाय-नियंत्रित पशुधन बीमा कार्यक्रम शुरू किया, जिसके तहत ग्रामीणों ने बीमित (इंश्योर्ड) पशुओं से प्रीमियम एकत्र किया, और SLC-IT ने एक कोष बनाने के लिए एक मिलान निधि प्रदान की। ग्रामीणों को तब कॉर्पस से मुआवज़ा मिला, जो बैंक में बढ़ता रहता है।”

उनके संरक्षण प्रयास का एक ओर पहलू था-लद्दाख में स्कूलों के लिए बायोडायवर्सिटी रिसोर्स किट- री-ग्यानचा, लद्दाखी में जिसका अर्थ है ‘पहाड़ों के गहने’, विकसित करना। इसे पुणे के एक NGO – ‘कल्पवृक्ष’ के साथ लगभग एक दशक पहले शुरू किया गया था।

“किट में बायो डायवर्सिटी, इको सिस्टम्स, लद्दाख के वन्यजीव, खतरों का सामना करने और संरक्षण कार्यों के बारे में जानकारी हैं। इसमें 80 गतिविधियों का विस्तृत विवरण भी है, जिन्हें कार्यक्रम के हिस्से के रूप में संचालित किया जा सकता है। किट को कई तस्वीरों और चित्रों के साथ चित्रित किया गया है और शिक्षकों और बच्चों को आकर्षित करने के लिए इसे रंगीन रखा गया है। SLC-IT की वेबसाइट के अनुसार, इसमें पहले से तैयार शैक्षिक सामग्री जैसे पोस्टर, एक बोर्ड गेम, कार्ड गेमज़, वर्कशीटस और पज़ल्स शामिल हैं।

वे लद्दाख की जैव विविधताके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए लेह और कारगिल में स्कूलों और कॉलेजों में नियमित कार्यशालाएं आयोजित करते हैं और युवाओं को इस क्षेत्र की इकोलॉजिकल इंटेग्रिटी को बनाए रखने में अंगुलेट या हिम तेंदुओं की भूमिका को समझने में मदद करते हैं।

अन्य पहल

रिनचेन के 42 वर्ष की आयु में, बिगड़ते न्यूरोलॉजिकल स्थिति के कारण चल बसने के बाद,  डॉ. नमगेल ने अपने मेन्टर के कार्य को आगे बढ़ाया। हालांकि, 2011 और 2013 के बीच, SLC-IT एक वास्तविक अनिश्चितता के दौर से भी गुज़रा।

सन 2013 में अपनी छुट्टियों के दौरान लेह बाज़ार में निवर्तमान निर्देशक के साथ एक गंभीर बैठक थी, जिससे उन्हें SLC-IT की बागडोर संभालने और वहाँ बने रहने में मदद हुई।

डॉ. नमगेल कहते हैं,“यह एक कठिन निर्णय था क्योंकि मेरे पास अमेरिका जाने का एक अच्छा अवसर था, लेकिन साथ ही, मैं हमेशा घर पर आना चाहता था और इन जानवरों के लिए कुछ करना चाहता था, जो मुझे बेहद प्यारे थे। बहुत सोचने के बाद, मैंने पदभार संभाला क्योंकि रिनचेन मेरे इतने अच्छे दोस्त और मेन्टर थे।”

पदभार संभालने के बाद से, उन्होंने लद्दाख में SLC-IT की पहल को मजबूत किया है।

हेमिस नेशनल पार्क में एक वन्यजीव रक्षक, खेंरब फुंत्सोग, द बेटर इंडिया को बताते हैं, “शुरुआती वर्षों में, रिनचेन को आर्थिक सहायता पाने में मुश्किल आई। उन्होंने जो भी पहल की और शुरू की, वह छोटे स्तर पर थी। मेरे विचार में, डॉ. सेवांग नमगेल लद्दाख के सबसे कुशल वन्यजीव वैज्ञानिक हैं। इन वर्षों में, उन्होंने न केवल हिम तेंदुए पर महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अनुसंधान किया है, इसके अलावा उन्होंने विशेष रूप से ज़ांस्कर और ऊपरी सिंधु नदी बेल्ट में SLC-IT के काम के पैमाने और दायरे का विस्तार किया है।”

अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने, विशेष रूप से 2015 से, पहल की एक श्रृंखला शुरू की है। उन्होंने मठवासी शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया। SLC-IT सबको संरक्षण देता है – बौद्ध भिक्षु, नन और सभी प्रमुख संरक्षण मुद्दों के धार्मिक गुरुओं, और वन जीव जो ख़तरे में हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं। बदले में, वे अपने अनुयायियों को परस्पर-निर्भरता और अहिंसा जैसे बौद्ध सिद्धांतों के माध्यम से संरक्षण का संदेश देते हैं।

Snow Leopards

उन्होंने स्थानीय ग्रामीणों को अपने गांवों के आसपास जंगली जानवरों और उच्च चारागाहों में सर्वेक्षण करने के लिए भी लगाया है, जहां वे पशुओं को चराने के लिए ले जाते हैं। ‘स्नो लेपर्ड डे’ पर, पिछले पांच सालों से ये ग्रामीण पहाड़ों पर जाकर सर्वेक्षण कर रहे हैं और इन इलाकों में घूमने वाले जीवों की रिकॉर्डिंग कर रहे हैं। इन निष्कर्ष से संबंधित गांवों की जैव विविधता प्रोफ़ाइल बनाने में मदद मिलती है। एसएलसी-आईटी उन सभी आंकड़ों का विश्लेषण करने की प्रक्रिया में है जो पिछले पांच वर्षों में एकत्र किए गए हैं। परिणामों को अगले साल कुछ समय बाद एक स्थानीय प्रकाशन में प्रकाशित किया जाएगा।

जैसा कि द बेटर इंडिया में बताया गया है, लद्दाख में जंगली कुत्तों की संख्या निरंतर बढ़ रही है, जिससे लोगों और स्थानीय वन्यजीवों को खतरा है। यह मानव निर्मित समस्या है।

डॉ. नमगेल बताते हैं, “हमने महसूस किया है कि इन कुत्तों को बधिया (केस्ट्रेट) और क्लीव (न्युटर) करने से कुछ समय के लिए मदद मिल सकती है, लेकिन लंबे समय में, जब तक हम गीले कचरे का प्रबंधन नहीं करते हैं, जो कि ज्यादातर पर्यटन और सैन्य द्वारा पैदा हो रहा है, हम समस्या को अच्छी तरह से सुलझाने में सफल नहीं होंगे। पिछले साल, हमने, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (युनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम) द्वारा स्पॉन्सर्ड़ सुरक्षित हिमालय प्रोजेक्ट के तहत, सैन्य शिविरों में बायोगैस का उत्पादन करने के लिए एक बायोडाइजेस्टर प्रोटोटाइप विकसित किया। हमने लेह के चोगलामसर क्षेत्र में, एक अर्धसैनिक शिविर (पैरामिलिट्री कैंप) में, एक ग्रीनहाउस के अंदर, एक इकाई को स्थापित किया है। हमने उन्हें दिखाया कि यह बायोगैस डाइजेस्टर सर्दियों में भी काम कर सकता है।”

लेकिन सवाल यह है कि सशस्त्र बलों में संरक्षण प्रयासों में सहायता करने की इच्छाशक्ति है या नहीं। सीमा के साथ सुदूर इलाकों में, जहां सेना का डेरा है, वहां जंगली याक, तिब्बती मृग, स्नो लेपर्ड और काली गर्दन वाले सारस जैसी लुप्तप्राय प्रजातियां हैं, जिन्हें जंगली कुत्तों से भी ख़तरा है। यही कारण है कि उन्हें जल्द ही कार्रवाई करनी चाहिए।

इस बीच, डॉ. नमगेल जैसे लोगों का संघर्ष जारी है, जो रिनचेन की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। “आख़िरकार, वन्यजीवों की रक्षा और संरक्षण, विशेषकर हिम तेंदुओं की रक्षा, मेरे जीवन का एक अमिट लक्ष्य है,” वह कहते हैं!

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संपादन – मानबी कटोच
मूल लेख – रिंचेन नोरबू वांगचुक

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