वड़ा पाव का 100 करोड़ का बिजनेस, मिलिए मुंबई के इस उद्यमी से

Vada Pav Business

मुंबई की मशहूर फूडचेन ‘जंबोकिंग बर्गर' के मालिक, धीरज गुप्ता बता रहे हैं, कैसे उन्होंने 'मेक इन इंडिया' पर ध्यान केंद्रित करते हुए, एक स्ट्रीटफूड वड़ा पाव को रीब्रांड किया और फूड बिजनेस में आगे बढ़े।

बात महाराष्ट्र की हो तो खाने के नाम पर, सबसे पहली चीज़ जो जहन में आती है, वह है वड़ा पाव। वड़ा पाव महाराष्ट्र की सबसे लोकप्रिय, आसानी से उपलब्ध होने वाली, सस्ती और किसी भी समय खाई जा सकने वाली डिश है। जिसका बिजनेस (Vada Pav Business) अब सिर्फ महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि देश के बाकी राज्यों में भी हो रहा है। एक पाव को बीच से काट कर, उसमें आलू के वड़े तथा तली हुई मिर्च को डाल कर, लाजवाब चटनी के साथ परोसा जाता है। इस डिश का स्वाद, कभी भी किसी को निराश नहीं करता है। आप मुंबई जाएं और बिना वड़ा पाव चखे, वापस आ जाएं तो आपकी यात्रा शायद पूरी नहीं मानी जाएगी।

मुंबई के रहने वाले, 46 वर्षीय धीरज गुप्ता को इस साधारण सी दिखने वाली डिश की असधारण क्षमता का अंदाज़ा पहले से ही था। वह वड़ा पाव को देश के विभिन्न हिस्सों तक ले गए और इसे मैकडॉनल्ड्स, डोमिनोज और पिज्जा हट में बिकने वाले विदेशी खाने के बराबर लाकर खड़ा कर दिया। धीरज ने 2 लाख रुपये के शुरुआती निवेश के साथ, ‘जंबोकिंग बर्गर’ की शुरुआत की, जो अब 100 करोड़ रुपये की व्यावसायिक इकाई बन गया है।

धीरज ने 1998 में, बिजनेस मैनेजमेंट का कोर्स पूरा किया था। यह वह समय था, जब मैकडॉनल्ड्स और डोमिनोज को भारत में आए, केवल कुछ ही साल हुए थे। धीरज बताते हैं कि कॉलेज पूरा करने के बाद, वह मिठाई बनाने और उसके वितरण के लिए एक सप्लाई चेन सिस्टम बनाना चाहते थे। वह बताते हैं, “मुझे पूरा विश्वास था कि अगर मिठाईयों को चॉकलेट की तरह पैक किया जाए तो बिक्री अच्छी हो सकती है। मैंने जाना कि भारत में मिठाई उद्योग एक असंगठित क्षेत्र था और मैं इसे बदलना चाहता था। दुर्भाग्य से, यह आइडिया काम नहीं कर पाया।”

इस बिजनेस आइडिया को पूरी तरह से छोड़ने से पहले, धीरज ने दो साल में लगभग 50 लाख रुपये गंवा दिए। वह बताते हैं, “मैंने विभिन्न स्रोतों से पैसा उधार लिया था और विभिन्न आइडिया पर मैं सोच-विचार कर रहा था, जिससे मैं इन आइडिया को एक सफल व्यवसाय में बदल सकूँ। दूसरी तरफ, मैकडॉनल्ड्स और डोमिनोज की सफलता भी मेरे दिमाग में गूंज रही थी। मजबूत इरादे के साथ, मैंने मिठाई व्यवसाय के आइडिया को अलविदा कहा और अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों की तर्ज पर ‘Quick Service Restaurant’ (QSR) बिजनेस में ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया।”

प्रतियोगियों से स्पष्ट तौर पर अलग

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मैकडॉनल्ड्स के बर्गर की लोकप्रियता से प्रेरित होकर, धीरज ने वड़ा पाव में हाथ आजमाने का फैसला किया। स्वच्छ और ताज़ा बने वड़ा पाव बेचने के वादे के साथ, 2001 में, उन्होंने 2 लाख रुपये का ऋण लिया और मलाड रेलवे स्टेशन के बाहर 150-200 वर्ग फुट जगह किराए पर ली। यहीं से ‘जंबोकिंग’ की शुरुआत हुई। बाजार में मिलने वाले वड़ा पाव की तुलना में, यहाँ मिलने वाली डिश का आकार 20 प्रतिशत बड़ा था। जिसने बिजनेस को काफी फायदा पहुंचाया।

धीरज बताते हैं, “शुरुआत में, सफलता मिलने से मेरा आत्मविश्वास मजबूत हुआ। ‘जंबोकिंग’ की लोकप्रियता बढ़ते देखते हुए, प्रतियोगियों ने यही मॉडल को दोहराया और अपने वड़ा पाव को ‘जंबो वड़ा पाव’ बताने लगे। लेकिन, हमारे आउटलेट्स की संख्या ज़्यादा थी, जिसके कारण ग्राहक आसानी से हमारा असली जंबोकिंग वड़ा पाव को पहचान जाते थे।”

धीरज कहते हैं कि आउटलेट खोलने की वजह से, उन्हें QSR के कामकाज के बारे में काफी कुछ सीखने को मिला। वह बताते हैं, “जैसे-जैसे मैं अपना ब्रांड विकसित कर रहा था, मैंने जानना शुरू किया कि ग्लोबल क्यूएसआर अपने ब्रांड की अलग पहचान और मार्केटिंग में कैसे सफल होते हैं, ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए वे कोई कहानी या आइडिया कैसे बनाते हैं तथा अपने उत्पाद को बड़े पैमाने पर किफ़ायती और सम्पूर्ण सप्लाई चेन को बनाने के लिए, अपने काम पर कैसे ध्यान केंद्रित करते हैं? जब हमने अपने वड़ा पाव में ब्रेड का आकार और आलू की मात्रा बढ़ाई तो हमारे फ्रेंचाइजी परिवार ने भी हमें कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया। हमारे पहले दो खाद्य उत्पाद, शेज़वान जंबोकिंग और छोला जंबोकिंग थे।”

धीरज कहते हैं, “ग्लोबल क्यूएसआर दिग्गजों के ‘व्यापार मॉडल’ को ध्यान में रखते हुए, ‘जंबोकिंग’ का निर्माण किया गया। मेरे शोध और अनुभवों ने इस प्रक्रिया में मदद की।”

वह उभरते उद्यमियों को अल रीज़ और जैक ट्राउट की पुस्तकें, जैसे- ‘फोकस: द फ्यूचर ऑफ यॉर कंपनी डिपेंड्स ऑन इट ’ और ‘पोजिशनिंग – द बैटल फॉर योर माइंड’ को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

धीरज बताते हैं कि बाद में, कंपनी ने सबवे के फ्रैंचाइज़ी मॉडल को अपनाया। वह कहते हैं “सबवे का 100 प्रतिशत फ्रैंचाइज़ी मॉडल है, जिसकी वजह से दुनियाभर में इसके 78,000 स्टोर हैं। एक फ्रैंचाइज़ी नेटवर्क मुनाफा कमाते रहने में काफी मदद करता है।”

हालांकि धीरज ने मुंबई में सफलता का स्वाद चखा, लेकिन देश के अन्य हिस्सों में व्यवसाय को चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

घरेलू मैदान के बाहर मुश्किल पारी

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द बेटर इंडिया से बात करते हुए धीरज कहते हैं, “हर उद्यम को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है; हमारी चुनौती 2010 में सामने आई, यानी व्यवसाय में प्रवेश करने के करीब एक दशक बाद। प्रारंभिक निवेश ने हमें 32 चेन स्टोर को विकसित करने में मदद की थी। 2007 में, हमें 6.5 करोड़ रुपये के टर्नओवर की उम्मीद थी और हमने कुछ छोटे-छोटे निवेशों को भी बढ़ाया। 2008 तक हमने 45 आउटलेट्स खोले थे, जो संतोषजनक रहा।”

धीरज ने आगे बताया कि चुनौती तब सामने आई, जब उन्होंने मुंबई के बाहर प्रयोग करने का फैसला किया। वह मानते हैं कि उनकी रणनीति में कुछ खामियां थीं। वह कहते हैं, “2012 तक 13 शहरों में 52 स्टोर (जिनमें से आधे कंपनी के स्वामित्व वाले स्टोर थे) के बावजूद, हमें नुकसान उठाना पड़ा। किराया और वेतन जैसी लागत वसूलने के लिए भी हमारे कई आउटलेट्स संघर्ष कर रहे थे।”

उनका कहना है कि मुंबई के बाहर के ग्राहक वड़ा पाव से उस तरह से नहीं जुड़ पा रहे थे, जिस तरह से लोग मुंबई या महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में जुड़ते थे। धीरज कहते हैं, “वे इसे एक गैर-स्थानीय भोजन मानते थे और महाराष्ट्र आने पर ही इसे खाने की सोच रखते थे।”

हालांकि, जब कंपनी ने फिस्कल डिसिप्लिन (वित्‍तीय अनुशासन) पर ध्यान केंद्रित किया तब चीजों में सुधार हुआ। उन्होंने कहा, “ब्रांड को नये सिरे से स्थापित करने के लिए, हमने काफी रिसर्च की। हमने टेक्नोलॉजी, लीन सिस्टम, प्रक्रियाओं में भारी निवेश किया और प्रतिष्ठित मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के साथ भागीदारी की। जंबोकिंग वड़ा पाव, एक बर्गर ब्रांड में तब्दील हो गया और हमने अपने ब्रांड को ‘बर्गर्स – बॉर्न इन इंडिया’ कहना शुरु कर दिया।”

एक भारतीय बर्गर

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कंपनी ने बिजनेस मॉडल को कंपनी के स्वामित्व वाले स्टोर से, एक फ्रैंचाइज़ी मॉडल में बदल दिया और यह एक साहसिक कदम था। धीरज बताते हैं, “हमने अपनी सारी ऊर्जा को सबसे अच्छी फ्रेंचाइजी सिस्टम बनाने पर केंद्रित किया और ब्रांड निर्माण में भारी निवेश किया। 2013 तक, हम विकास के रास्ते पर वापस आ गए थे। नवाचार, प्रशिक्षण और अटूट अनुशासन हमारी सबसे बड़ी ताकत रही है।”

वर्तमान में जंबोकिंग कई फ्लेवर में वड़ा पाव और बर्गर बेच रहे हैं, जैसे- टैंगी मैक्सिकन, कॉर्न पालक, नाचोज, चीज़ ग्रिल्ड, बिग क्रंच, तंदूरी पनीर और क्रिस्पी वेज। हाल ही में, उन्होंने मैक और चीज़ बर्गर भी इसमें शामिल किया है। यहाँ ग्राहकों के लिए, रैप्स, मलाईदार शेक, आइसक्रीम और फ्राइज़ आदि भी परोसे जाते हैं। मुंबई, पुणे, इंदौर और लखनऊ जैसे शहरों में 114 फ्रैंचाइज़ी आउटलेट्स स्टोर मौजूद हैं। धीरज का लक्ष्य मार्च 2022 तक देश भर में 180 आउटलेट्स बनाने का है।

जब हमने उनसे भारतीय बर्गर में एक स्वस्थ विकल्प पेश करने के बारे में पूछा, तब उन्होंने कहा, “हमने ब्राउन ब्रेड पेश किया, लेकिन हमें इसमें सफलता नहीं मिली। मुझे लगता है कि ग्राहकों की प्राथमिकताएँ स्पष्ट हैं कि वे क्या चाहते हैं।”

धीरज उद्यमियों को व्यवसाय के लिए, एक केंद्रित और अनुशासित नजरिया अपनाने की सलाह देते हैं। वह कहते हैं, “विकल्पों के बजाय, एक व्यंजन पर ध्यान देना चाहिए। इसमें धैर्य की जरूरत होगी, जो आपको बाजार में लंबे समय तक बने रहने में मदद करेगा।”

मूल लेख- हिमांशु नित्नावरे

संपादन- जी एन झा

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